खड़ी बोली के कवि कौन है? - khadee bolee ke kavi kaun hai?

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Child Development and Pedagogy - 1

15 Questions 15 Marks 15 Mins

Last updated on Sep 15, 2022

UTET Answer Key (Provisional) released on 7th October 2022. Objections against the same can be submitted till 22nd October 2022. The exam was held on 30th September 2022. The Uttarakhand Board of School Education had released the notification for Uttarakhand Teacher Eligibility Test (UTET) 2022. The UTET is a state-level eligibility examination for the recruitment of teachers in institutions across the state of Uttarakhand.

हिंदी के कवि मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के पहले कवि माने जाते हैं। पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त ने खड़ी बोली में कविताएं लिखीं। उन्होंने अपनी कविता के ज़रिए खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए बहुत कोशिश की। सिर्फ़ ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा के अलावा नये कवियों ने खड़ी बोली में ही कविताएं लिखीं। 

प्रभु ईसा

मूर्तिमती जिनकी विभूतियाँ
जागरूक हैं त्रिभुवन में;
मेरे राम छिपे बैठे हैं
मेरे छोटे-से मन में;
धन्य-धन्य हम जिनके कारण
लिया आप हरि ने अवतार;
किन्तु त्रिवार धन्य वे जिनको
दिया एक प्रिय पुत्र उदार;
हुए कुमारी कुन्ती के ज्यों
वीर कर्ण दानी मानी;
माँ मरियम के ईश हुए त्यों
धर्मरूप वर बलिदानी;
अपना ऐसा रक्त मांस सब
और गात्र था ईसा का;
पर जो अपना परम पिता है
पिता मात्र था ईसा का।

अर्जुन की प्रतिज्ञा 

उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा,
मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।
मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ,
प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ?

साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
पूरा करुंगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ मैं।
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैँ अभी,
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे सभी।

अभिमन्यु-धन के निधन से कारण हुआ जो मूल है,
इससे हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है,
उस खल जयद्रथ को जगत में मृत्यु ही अब सार है,
उन्मुक्त बस उसके लिये रौ'र'व नरक का द्वार है।

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1 year ago

खड़ी बोली के कवि कौन कौन है?

लगभग 18वीं शताब्दी के आरम्भ के समय कुछ हिन्दी गद्यकारों ने ठेठ हिन्दी बोली में लिखना शुरू किया। इसी ठेठ हिन्दी को'खरी हिन्दी' या 'खड़ी हिन्दी' कहा गया। शुद्ध अथवा ठेठ हिन्दी बोली या भाषा को उस समय साहित्यकारों द्वारा खरी या खड़ी बोली के नाम से सम्बोधित किया गया था।

खड़ी बोली हिंदी का प्रथम कवि कौन था?

फादर कामिल बुल्के कृत 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' (१९४९ ई.)

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