शेर-व्यवस्था का प्रतीक
‘शेर’ असगर वजाहत की प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक लघु कथा है। शेर व्यवस्था का प्रतीक है, जो अभी तक खामोश रहती है। जब तक सारी जनता उसके खिलाफ नहीं बोलती। जैसे ही व्यवस्था के खिलाफ उंगली उठती है, सत्ता उसे कुचलने का प्रयास करती है। सत्ता में बैठे लोग जनता को विभिन्न प्रलोभन देकर उसे अपनी और मिलाने का प्रयास करते हैं , जबकि सच्चाई यह है कि वह केवल अपना उल्लू सीधा कर रहे होते हैं। शेर द्वारा दिए गए प्रलोभन से गधा, लोमड़ी, उल्लू और कुत्ता का समूह बिना कुछ सोचे विचारे उसके मुँह में जा रहे थे।
प्रमाण से अधिक महत्वपूर्ण विश्वास: भोली-भाली जनता प्रमाण को अधिक महत्व न देते हुए विश्वास के आधार पर शोषक वर्ग सत्ता वर्ग की बात मानती है। यह जानते हुए भी कि शेर एक मांसाहारी जीव है, जो सभी को खा जाता है। सभी जानवरों को यह विश्वास दिला दिया जाता है कि अब शेर, अहिंसा और अस्तित्ववादी का समर्थक हो गया है और वह जानवरों का शिकार नहीं करेगा। अतः जानवर उनकी बात मान कर शेर के मुँह में स्वयं प्रवेश कर लेते हैं। किंतु लेखक जैसे कुछ लोग हैं जो प्रमाण को ही अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं, जिन्हें सत्ता कुचलने का प्रयास करती है।