Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. Show
GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैंStd 9 GSEB Hindi Solutions बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Questions and Answers प्रश्न-अभ्यास प्रश्न 1. प्रश्न 2. जिसकी पूर्ति के लिए बच्चों को भी अमानवीय दशाओं में मजदूरी करनी पड़ती है । अतः मात्र विवरण देने से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि इस समस्या को प्रश्न के रूप में समाज के सामने रखना होगा, लोगों को जागरूक करना होगा । प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 7. प्रश्न 8. GSEB Solutions Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Important Questions and Answers अतिरिक्त प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न 1. कोहरे से टैंकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं भावार्थ : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. 2. क्या अंतरिक्ष में गिर गई है सारी गेंदें भावार्थ : कवि इस बात से अत्यंत क्षुब्ध है कि बच्चों के खेलने के लिए खिलौने हैं, पढ़ने के लिए किताबें हैं, मौज-मस्ती करने के लिए बाग-बंगीचे और मैदान हैं, किलकारियाँ भरने के लिए घर-आँगन आदि सबकुछ होने के बावजूद बच्चों को काम पर जाना पड़ रहा है ? आगे वह ऐसी संभावना व्यक्त करता है कि क्या बच्चों के खेलने की गेंदें कहीं अंतरिक्ष में खो गई है ? बच्चों के लिखने-पढ़ने और मनोरंजन की रंग-बिरंगी किताबों को दीमकों ने खा लिया है ? क्या उनके सारे खिलौने किसी काले पहाड़ (गरीबी) के नीचे दब गए हैं ? उनके पढ़ने की पाठशालाएँ भूकंप में ढह गई हैं और खेलने के मैदान, बाग-बगीचे और घर-आँगन सबकुछ अचानक खत्म हो गए हैं क्या ? प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. 3. तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ? भावार्थ : कवि मासूम बच्चों के अनमोल बचपन को लुटते देखकर क्षुब्ध हो जाता है और इस दुनिया को रहनेलायक ही नहीं समझता । वह कहता है कि जिस देश और दुनिया में बच्चों के बचपन को छीना जाता हो, रौंदा जाता हो इससे बड़े दुर्भाग्य या कलंक की बात क्या हो सकती है ? जिस जगह बच्चों की हँसती-खेलती और किलकारियाँ भरती दुनिया न हो वहाँ सबकुछ होकर भी कुछ नहीं है । ऐसी दुनिया ही निरर्थक है । जहाँ बच्चों का बचपन ही उजड़ रहा हो वह स्थिति कितनी भयानक हो सकती है ? स्वतः समझा जा सकता है । आगे कवि कहता है कि इससे भी ज्यादा भयानक बात तो यह है कि यह स्थिति एकाध दिन और एकाध जगह की नहीं, बल्कि नित्यक्रम की है और पूरी दुनिया में है । दुनिया की हजारों सड़कों पर ये छोटे-छोटे बच्चे काम पर जाते दिखलाई देते हैं । यह समस्या सार्वजनिक एवं सार्वत्रिक है । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. बच्चे काम पर जा रहे हैं Summary in Hindiराजेश जोशी का जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ था । उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद पत्रकारिता शुरू की और कुछ वर्षों तक अध्यापन किया । उन्होंने कविताओं के अतिरिक्त कहानियाँ, नाटक, लेख, अनुयाद और आलोचनात्मक टिप्पणियाँ भी लिखी हैं । उन्होंने नाट्य रूपांतर और लघु फिल्मों के लिए पटकथा लेखन भी किया है । उन्होंने मायकोवस्की की कविता का अनुवाद ‘पतलून पहिना बादल’ नाम से किया है । ‘एक दिन बोलेंगें पेड़’, ‘मिट्टी का चेहरा’, ‘नेपथ्य में हँसी’ और ‘दो पंक्तियों के बीच’ उनके प्रमुख काव्य-संग्रह; ‘समर गाथा’ लंबी कविता; ‘सोमवार और अन्य कहानियाँ’, ‘कपिल का पेड़’ कहानी-संग्रह; ‘जादू जंगल’, ‘अच्छे आदमी’, ‘कहन कबीर’, ‘टंकारा का गाना’, ‘तुक्के पर तुक्का’ नाटक आदि राजेश जोशी की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं । इन्हें माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, शिखर सम्मान, पहल सम्मान, शमशेर सम्मान, मुक्तिबोध पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । राजेश जोशी की कविता ने समकालीन जनवादी कविता को नई दिशा एवं नए आयाम प्रदान किए हैं । एक सजग एवं जागरूक कवि की क्रांतिधर्मिता और व्यापक सामाजिक सरोकार उनकी कविता की पहचान है । आपकी कविता में स्थानीय बोली के शब्द होते हैं। कविता-परिचय : ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ राजेश जोशी लिखित एक बहुचर्चित कविता है, जिसमें कवि ने न केवल भारत की बल्कि विश्व की एक भयानक एवं ज्वलंत समस्या को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है । आज का बालक आनेवाले कल का (भविष्य) का नागरिक है । अत: किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माण उस राष्ट्र के बच्चों की तंदुरस्ती, शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कार पर निर्भर है। यदि वही बालक अपने खेलने-कूदने, हँसने-खेलने और पढ़ने-लिखने की उम्र में काम में जुट जाये तो इससे बड़ा दुर्भाग्य या इससे बड़ा कलंक किसी भी देश के लिए और क्या हो सकता है ? प्रस्तुत कविता में कवि ने यह प्रश्न उठाया है कि बच्चों के खिलौने, किताबें, बगीचे, मैदान, स्कूल, घर-आँगन सब-कुछ होने के बावजूद उन्हें काम पर क्यों जाना पड़ता है । साथ ही यह इन मासूम बच्चों के प्रति यह संवेदना और सहानुभूति भी प्रकट की है कि आखिर कब तक इन मासूम निरीह बच्चों के बचपन को छीना और रौंदा जाता रहेगा। बच्चे कैसे सड़क से काम पर जा रहे हैं?भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि राजेश जोशी जी के द्वारा रचित कविता बच्चे काम पर जा रहे हैं से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि जोशी जी के द्वारा बाल-श्रम के ज्वलंत मुद्दे पर बल देने का प्रयास किया गया है | कवि कहते हैं कि सुबह-सुबह सड़कों पर कोहरे छाए हुए हैं और बच्चे अपनी दीनता का बोझ कंधों पर लेकर अपने- ..
बच्चों के काम पर जाने के क्या क्या कारण हो सकते हैं बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता के आलोक में लिखिए?Explanation: बच्चों के काम पर जाने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं बच्चों के माता-पिता ना होने के कारण उन्हें मजबूरी में काम पर जाना पड़ता होगा बच्चों के घर में पैसों की तंगी होने के कारण उन्हें काम पर जाना पड़ता होगा
बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता के आधार पर कवि क्या बताना चाह रहा है?इस कविता का प्रतिपाद्य बाल मज़दूरी तथा बाल श्रम है। कवि ने बाल मज़दूरी के कारण बच्चों से उनका बचपन छिन जाने की पीड़ा को जताने का प्रयास किया है। कवि यहाँ उन सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों की ओर हम सबका ध्यान आकषिर्त कराना चाहते हैं जिनके कारण बच्चे अपना बचपन खो देते हैं।
बच्चे काम पर जा रहे हैं यह हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है क्यों?प्रश्न (क) बच्चों के काम पर जाने को कवि भयानक पंक्ति क्यों कहता है ? उत्तरः कवि के अनुसार बच्चें का काम पर जाना इसलिए भयानक है क्योंकि बचपन में उन्हें खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने के अवसर प्राप्त होने चाहिए। इसके अभाव में उनका बचपन नष्ट हो जाएगा व देश की नींव कमजोर होने पर देश भी तरक्की नहीं कर पाएगा।
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