महर्षि व्यास कृत महाभारत एक विस्तृत ग्रंथ है, जिसमें अनेक पहलू और अनेक घटनाएं संकलित हैं। यूं तो कौरव-पांडवों के बीच हुए कुरुक्षेत्र के भयंकर युद्ध से सभी वाकिफ हैं। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र के इस भीषण युद्ध में इतने लोगों की जानें गई थीं, जिससे कि आज भी कुरुक्षेत्र की मिट्टी का रंग लाल है। Show
2/17 2 महाभारत की कहानियांहम अक्सर महाभारत के युद्ध से जुड़ी बातें सुनते रहते हैं लेकिन फिर भी कुछ कहानियां छूट जाती हैं। आज हम आपको उन्हीं छूटी हुई कहानियों से अवगत करवाएंगे, जो लाइमलाइट से थोड़ी दूर ही रही हैं। 3/17 3 कर्ण का पूर्वजन्मकुंती का पुत्र होने के कारण कर्ण का नाम भी पांडवों में शुमार था। पांडवों में ज्येष्ठ होने के बावजूद हालातों ने कर्ण को एक सूतपुत्र बना दिया। एक अच्छा योद्धा और अर्जुन से भी बेहतर धनुर्धर होने के बावजूद कभी भी कर्ण को वह सम्मान नहीं मिला जिसका वह हकदार था। कारण, कर्ण एक सूतपुत्र था। 4/17 4 धर्म की राहसदैव धर्म की राह पर चलने वाला कर्ण एक महान योद्धा और एक समर्पित मित्र था। यह जानते हुए भी कि दुर्योधन अन्याय का ही एक नाम है, कर्ण ने अपनी आखिरी सांस तक दुर्योधन का साथ दिया। लेकिन फिर भी कभी कर्ण को वह सम्मान नहीं हासिल हुआ, जिसक वो हकदार था। कर्ण ने पूरे जिन्दगी सिर्फ कष्ट ही भुगते। आप जानते हैं यह सब कर्ण के पूर्व जन्म में किए पापों का बोझ ही था। 5/17 5 असुर दंबोधवदंबोधव नाम के एक असुर ने सूर्य देव की कठिन तपस्या कर उनसे यह वरदान हासिल कर लिया था कि उसे सौ कवच हासिल होंगे। इतना ही नहीं इन कवचों पर केवल वही व्यक्ति प्रहार कर सकता था, जिसने करीब हजार सालों तक तप किया हो। दंबोधव की इच्छा यहीं पूरी नहीं हुई। उसने सूर्य देव से यह भी वर मांगा कि जो भी उसके कवच को भेदने का प्रयास करे, उसकी उसी क्षण मृत्यु हो जाए। 6/17 6 दंबोधव का तपसूर्य देव, दंबोधव के तप से बेहद प्रसन्न थे, जिसके चलते उन्होंने यह जानते हुए भी कि दंबोधव इस वर का प्रयोग बुराई को बढ़ावा देने के लिए ही करेगा, दंबोधव को प्रदान किया। इसके बाद वह सहस्त्र कवच नाम से पहचाना जाने लगा। 7/17 7 तपस्या का फलजैसा कि निश्चित था दंबोधव ने वरदान मिलते ही चारो ओर हाहाकार मचा दिया। जंगलों का विनाश, तपस्वियों की तपस्या भंग करना, यह सब उसका एक कार्य बन गया। उसके प्रकोप से तंग आकर प्रजापति दक्ष की पुत्री मूर्ति, जिनका विवाह ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक धर्म के साथ हुआ था, ने भगवान विष्णु की आराधना कर उनसे सहस्त्र कवच के अंत का वरदान मांगा। 8/17 8 नर-नारायणभगवान विष्णु ने उनसे कहा कि वह स्वयं सहस्त्रचक्र का अंत करेंगे, जिसका माध्यम मूर्ति ही बनेंगी। कुछ समय बाद मूर्ति ने नर-नारायण नाम के दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया, जिनके शरीर तो अलग थे लेकिन कर्म, मन और आत्मा से वे एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। 9/17 9 सहस्त्र कवचनर और नारायण के संयुक्त प्रयास से सहस्त्र कवच का अंत हुआ। जब नर सहस्त्र कवच से युद्ध में व्यस्त थे तब नारायण कठोर तपस्या में लीन हो गए। नर ने सहस्त्र कवच के 999 सुरक्षा कवच काट डाले। जब एक कवच रह गया तब सहस्त्र कवच ने सूर्य लोक में शरण ली। 10/17 10 सूर्य देव के कथननर और नारायण, दोनों सूर्य लोक पहुंचे और सूर्य देव से असुर को वापस करने की मांग की। सूर्य देव ने कहा “हे ईश्वर, मैं मानता हूं दंबोधव एक बुरी आत्मा है, लेकिन इसने अपनी कठोर तपस्या के बल पर वरदान हासिल किया, इसका फल उससे मत छीनिए। वह मदद के लिए मेरी शरण में आया है”। 11/17 11 सूर्य देव को श्रापसूर्य देव की इस बात से क्रोधित होकर सूर्य समेत दंबोधव असुर को नर ने यह श्राप दिया कि अगले जन्म में दोनों को ही अपनी करनी का दंड भोगना पड़ेगा। द्वापर में सूर्य के वरदान से असुर दंबोधव का कर्ण के रूप में जन्म हुआ। कर्ण का जन्म उसी सुरक्षा कवच के साथ हुआ जो असुर दंबोधव के पास शेष रह गया था। 12/17 12 कीचक वधजुए के खेल में कौरवों से हारने के बाद द्रौपदी समेत पांचों पांडवों को 13 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भुगतने का दंड मिला। 13 वर्ष का वनवास तो बीत गया लेकिन अब बारी थी अज्ञातवास की। इस अज्ञातवास की शर्त थी कि अगर किसी ने भी पांडवों को पहचान लिया तो उन्हें दोबारा से वनवास से गुजरना होगा। 13/17 13 अज्ञातवासपांचों पांडव वेष बदलकर विराटनगर के राजा विराट के महल में रहने लगे। द्रौपदी ने मालिनी का नाम धारण किया और विराटनगर की रानी सुदेशना की केश सज्जा का कार्य संभाल लिया। सुदेशना का भाई कीचक, विराटनगर की सेना का सेनापति भी था। कीचक बहुत आकर्षक और शक्तिशाली व्यक्तित्व वाला इंसान था। रानी का भाई होने का फायदा वह हर समय उठाता था। उसकी एक बड़ी कमजोरी थी, सुंदर स्त्री। 14/17 14 द्रौपदी का असम्मानएक बार उसने द्रौपदी को महल में देखा और वह उसे देखते ही उस पर मंत्रमुग्ध हो गया। वह किसी भी हाल में द्रौपदी को अपनी पटरानी बनाना चाहता था लेकिन द्रौपदी ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। एक बार बहाने से उसने द्रौपदी को अपने कक्ष में बुलाया और उसके साथ दुष्कृत्य करने का प्रयास किया। 15/17 15 भीमउसी समय महल में रसोइए के तौर पर कार्य कर रहे भीम ने आकर द्रौपदी के सम्मान की रक्षा की। इस घटना के पश्चात समस्त पांडवों और द्रौपदी ने कीचक को उसकी करनी का फल देने की ठान ली। उन्होंने मिलकर कीचक के वध की योजना बनाई। 16/17 16 कीचक पर प्रहारमौका पाकर द्रौपदी ने कीचक को रात के अंधकार में महल के बाहर मिलने के लिए बुलाया। कीचक को लगा आज तो उसकी इच्छा पूरी हो ही जाएगी। जैसे ही कीचक वहां पहुंचा, भीम ने कीचक पर प्रहार करना शुरू कर दिया। 17/17 17 गलती का फलमहल के भीतर कोई कीचक की चीख ना सुन ले इसलिए बृहन्नला नाम से नृत्य शिक्षिका के तौर पर महल में उपस्थित अर्जुन ने जोर-जोर से मृदंग बजाना शुरू कर दिया। भीम ने कीचक के अंगों को एक-दूसरे से अलग कर कीचक को उसकी निम्न मानसिकता का दण्ड दिया। 0 कमेंट Write चर्चित विषय
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