कर्मवीर कवितादेख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं। Show रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं। काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं। भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं। हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले। सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।1। आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही। सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही। मानते जी की हैं सुनते हैं सदा सब की कही। जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही। भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं। कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।2। जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं। काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं। आजकल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं। यत्न करने में कभी जो जी चुराते हैं नहीं। बात है वह कौन जो होती नहीं उनके किए। वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए।3। व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर। वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर। गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर। आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लवर। ये कँपा सकतीं कभी जिसके कलेजे को नहीं। भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।4। चिलचिलाती धूप को जो चाँदनी देवें बना। काम पड़ने पर करें जो शेर का भी सामना। जो कि हँस हँस के चबा लेते हैं लोहे का चना। ”है कठिन कुछ भी नहीं” जिनके है जी में यह ठना। कोस कितने ही चलें पर वे कभी थकते नहीं। कौन सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं।5। ठीकरी को वे बना देते हैं सोने की डली। रेग को करके दिखा देते हैं वे सुन्दर खली। वे बबूलों में लगा देते हैं चंपे की कली। काक को भी वे सिखा देते हैं कोकिल-काकली। ऊसरों में हैं खिला देते अनूठे वे कमल। वे लगा देते हैं उकठे काठ में भी फूल फल।6। काम को आरंभ करके यों नहीं जो छोड़ते। सामना करके नहीं जो भूल कर मुँह मोड़ते। जो गगन के फूल बातों से वृथा नहिं तोड़ते। संपदा मन से करोड़ों की नहीं जो जोड़ते। बन गया हीरा उन्हीं के हाथ से है कारबन। काँच को करके दिखा देते हैं वे उज्ज्वल रतन।7। पर्वतों को काटकर सड़कें बना देते हैं वे। सैकड़ों मरुभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वे। गर्भ में जल-राशि के बेड़ा चला देते हैं वे। जंगलों में भी महा-मंगल रचा देते हैं वे। भेद नभ तल का उन्होंने है बहुत बतला दिया। है उन्होंने ही निकाली तार तार सारी क्रिया।8। कार्य्य-थल को वे कभी नहिं पूछते ‘वह है कहाँ’। कर दिखाते हैं असंभव को वही संभव यहाँ। उलझनें आकर उन्हें पड़ती हैं जितनी ही जहाँ। वे दिखाते हैं नया उत्साह उतना ही वहाँ। डाल देते हैं विरोधी सैकड़ों ही अड़चनें। वे जगह से काम अपना ठीक करके ही टलें।9। जो रुकावट डाल कर होवे कोई पर्वत खड़ा। तो उसे देते हैं अपनी युक्तियों से वे उड़ा। बीच में पड़कर जलधि जो काम देवे गड़बड़ा। तो बना देंगे उसे वे क्षुद्र पानी का घड़ा। बन ख्रगालेंगे करेंगे व्योम में बाजीगरी। कुछ अजब धुन काम के करने की उनमें है भरी।10। सब तरह से आज जितने देश हैं फूले फले। बुध्दि, विद्या, धान, विभव के हैं जहाँ डेरे डले। वे बनाने से उन्हीं के बन गये इतने भले। वे सभी हैं हाथ से ऐसे सपूतों के पले। लोग जब ऐसे समय पाकर जनम लेंगे कभी। देश की औ जाति की होगी भलाई भी तभी। —अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ प्रश्न-उत्तरक) देखकर बाधा विविध, ………………………………. वे कर जिसे सकते नहीं | २) कर्मवीर को पछतावा क्यों नहीं होता ? ३) सब जगह, सब काल में फूलने-फलने का क्या मतलब है ? ४) कर्मवीर के लिए कोई भी कार्य असंभव क्यों नहीं है ? ५) कर्मवीर निर्णय किस प्रकार लेते हैं ? ख) जो कभी अपने समय को …………………….. जिसको खोल वे सकते नहीं
| २) कर्मवीर दूसरों के लिए आदर्श क्यों होते हैं ? ३) “कर्मवीर असंभव को भी संभव बना देते हैं”, इस बात को बताने के लिए कवि ने किन उपमाओं का सहारा लिया है ? ४) ‘गाँठ खोलने’ से कवि का क्या तात्पर्य है ? ग) काम को आरम्भ करके …………………………………… तार की सारी क्रिया | २) गगन के फूलों को बातों से तोड़ने का क्या अर्थ है ? ३) कर्मवीर मन से करोड़ों की संपदा क्यों नहीं जोड़ता ? ४) किन उदाहरणों द्वारा कवि ने यह बताया है कि कर्मवीर व्यक्ति साधारण वस्तुओं को भी मुल्यवान बना देते हैं ? ५) प्रस्तुत पद्यांश के अनुसार कर्मवीरों ने किस प्रकार प्रकृति पर विजय पाकर मनुष्य का जीवन आसान बनाया है ? ६) नभ-तल के भेद बतलाने का क्या तात्पर्य है ? घ) कार्य-स्थल को वे कभी नहीं पूछते ……………………………… होगी भलाई भी तभी | २) विकसित देशों की संपन्नता का क्या कारण है ? ३) देश और मनुष्य जाति की भलाई कैसे होगी ? ४) इस पद्य खंड से कवि क्या संदेश दे रहे हैं ? अतिरिक्त प्रश्न१) पुरुषार्थ ही मनुष्य की सफलता का रहस्य है | इस विषय पर अपने विचार लिखिए | २) कर्म को पूजा मानने से क्या तात्पर्य है ? ३) समय का महत्व और सफलता एक दूसरे पर आधारित हैं |’ कविता के आधार पर इस कथन को स्पष्ट कीजिये | लेखक के बारे में जानकारीअयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध (ayodhya-singh-upadhya-hariaodh – 15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) का जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान में हुआ। उनके पिता पंडित भोलानाथ उपाध्याय ने सिख धर्म अपना कर अपना नाम भोला सिंह रख लिया था । हरिऔध जी ने निजामाबाद से मिडिल परीक्षा पास की, किंतु स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। उन्होंने घर पर ही रह कर संस्कृत, उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी आदि का अध्ययन किया और १८८४ में निजामाबाद के मिडिल स्कूल में अध्यापक हो गए । सन १८८९ में हरिऔध जी को सरकारी नौकरी मिल गई। सरकारी नौकरी से सन १९३२ में अवकाश ग्रहण करने के बाद हरिऔध जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रूप में १९३२से १९४१ तक अध्यापन कार्य किया। उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं: – प्रिय प्रवास, वैदेही वनवास, काव्योपवन, रसकलश, बोलचाल, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, पारिजात, कल्पलता, मर्मस्पर्श, पवित्र पर्व, दिव्य दोहावली, हरिऔध सतसई । Post navigationकर्मवीर अपने कार्य कैसे नियोजित करते हैं?वे परिश्रम करने से जी नहीं चुराते हैं । कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कठिन कार्य कर दिखाते हैं। कर्मवीर कार्य करने में थकतें नहीं हैं। जिस कार्य को आरम्भ करते उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं।
3 आप अपने को कर्मवीर कैसे साबित कर सकते हैं?उत्तर – हमें अपने को कर्मवीर साबित करने के लिए कर्तव्यनिष्ठ बनना होगा । समय का महत्व हमें देना होगा । परिश्रमी बनना पड़ेगा तथा आलस्य को त्यागना होगा । मन – वचन और कर्म से एक रहना होगा ।
कर्मवीर की क्या पहचान होती है?→ कर्मवीर बेहद परिश्रमी और साहसी होते हैं। कर्मवीर में अनेक गुण ऐसे होते हैं जो उन्हें संसार में सफलता दिलाते हैं। वह अपने पुरुषार्थ का उपयोग करते हुए हर असंभव कार्य को संभव बना देते हैं। कर्मवीर हमेशा समय का सदुपयोग करते हैं, समय को व्यर्थ नहीं गवांते।
क्या कर्मवीर?स्वामी कर्मवीर का जन्म एक सभ्य और शिक्षित किसान परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनका झुकाव आध्यात्मिक जीवन की ओर था।
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