सोशल मीडिया पर यह बात भी गाहे बगाहे कही जाती है कि जवाहरलाल नेहरू को किसी नियमित जेल में नहीं बल्कि आरामदायक डाक बंगले में रखा जाता था । उन्हें ब्रिटिश सरकार विशेष सुविधा देती थी । यह बात सच नहीं है। Show
नेहरू, को सावरकर जैसा कष्ट नहीं भोगना पड़ा , यह भी एक सच है। सावरकर के खिलाफ हत्या का मुक़दमा था। वे अंडमान के जेल में थे, जहाँ से पाँच से अधिक बार माफ़ियाँ मांगकर रिहा हुए और उसके बाद कभी कोई ऐसा काम नहीं किया कि अंग्रेज़ी राज में उन पर कोई कार्यवाही हो। देशद्रोह ( सेडिशन धारा 124 A ) के आरोप में तिलक को भी बर्मा की मांडले जेल में रखा गया था। सुभाष चंद्र बोस को भी अंग्रेजों ने कलकत्ता से मांडले जेल भेजा गया था। फिर वही उनकी तबियत खराब हो गयी तो, उन्हें कलकत्ता लाकर, सीधे यूरोप भेज दिया था। लेकिन नेहरू को कभी देशद्रोह या हत्या जैसे अपराध का आरोपी नहीं बनाया गया था । उनकी गिरफ्तारियां अक्सर निरोधात्मक क़ानूनों में की गई थी, जिनमें गम्भीर सजाओ का प्राविधान नहीं है। कारण स्पष्ट है – जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस ने खुले संघर्ष की नीति अपनाई, गोपनीय षड्यन्त्र या हत्याओं की नहीं। अहिंसक आंदोलन और हिंसक प्रतिकार का अंतर समझना मुश्किल नहीं है।
जवाहरलाल नेहरू की जेल यात्राओं का विवरण प्रस्तुत है ।गिरफ्तारियों और रिहाइयों के कारण और स्रोत आप ऊपर दिए वीडियो में देख सकते हैं। तिथियाँ ये रहीं –
इस प्रकार जो लोग, बराबर दुर्भावनावश यह दुष्प्रचार करते रहते हैं कि जेल, नेहरू के लिए आरामदायक गेस्ट हाउस था, उन्हें यह समझ लेना चाहिये कि वे एक भी दिन के लिये किसी गेस्ट हाउस में नहीं रखे गए । उन्होंने जेल यात्रा का समय पढ़ने, किताबें लिखने आदि में उपयोग किया ।
अपने वैज्ञानिक और प्रगतिशील चिंतन पर ज़ोर देने वाले नेहरू में, उस हिन्दू प्रभामंडल की छवि कभी नहीं उभरी, जो गाँधी के व्यक्तित्व का एक स्वाभाविक अंग थी। अपने आधुनिक राजनीतिक और आर्थिक विचारों के कारण वह भारत के युवा बुद्धिजीवियों को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ गाँधी के अहिंसक आन्दोलन की ओर आकर्षित करने में और स्वतन्त्रता के बाद उन्हें अपने आसपास बनाए रखने में सफल रहे। पश्चिम में पले-बढ़े होने और स्वतन्त्रता के पहले, की गयी, यूरोपीय यात्राओं के कारण उनके सोचने का ढंग पश्चिमी साँचे में ढल चुका था। 17 वर्षों तक सत्ता में रहने के दौरान उन्होंने लोकतांत्रिक समाजवाद, के विचार को अपनी मूल विचारधारा में रखा। उनके कार्यकाल में संसद में कांग्रेस पार्टी का ज़बरदस्त बहुमत था, पर विपक्ष की संसदीय आवाज़ और बहसों की उन्होंने कभी उपेक्षा भी नहीं की। लोकतन्त्र, समाजवाद, एकता और धर्मनिरपेक्षता उनकी घरेलू नीति के चार स्तंभ थे। वह जीवन भर इन चार स्तंभों से सुदृढ़ अपनी इमारत को काफ़ी हद तक बचाए रखने में कामयाब रहे। अंत में यह प्रसंग पढ़ें, एक बार चर्चिल ने उनसे पूछा था
निष्कर्ष
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