जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है - jisaka janm hua hai usakee mrtyu nishchit hai

जो व्यक्ति उत्पन्न हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है

Publish Date: Fri, 22 Mar 2013 03:02 PM (IST)Updated Date: Fri, 22 Mar 2013 03:02 PM (IST)

गीता के एक श्लोक का आशय यह है कि जो व्यक्ति उत्पन्न हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। हम जन्म होने पर आनंदित होते हैं और मृत्यु के समय दु:खी होते हैं। जन्म और मृत्यु सापेक्ष है। यदि किसी स्थान पर मृत्यु न हुई तो दूसरे स्थान पर जन्म संभव नहीं है। हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं।

गीता के एक श्लोक का आशय यह है कि जो व्यक्ति उत्पन्न हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। हम जन्म होने पर आनंदित होते हैं और मृत्यु के समय दु:खी होते हैं। जन्म और मृत्यु सापेक्ष है। यदि किसी स्थान पर मृत्यु न हुई तो दूसरे स्थान पर जन्म संभव नहीं है। हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं। प्रत्येक जीव की मृत्यु अवश्य होती है, इसे बदला नहीं जा सकता है। इसलिए इस विषय में भय, शोक, मोह आदि से ग्रस्त होना व्यर्थ है।

उपदेशों और लेखों में धैर्य का पाठ पढ़ाने वाले लोग भी मृत्यु की घड़ी में विचलित हो जाते हैं। बिरले ही व्यक्ति होते हैं जो इसे देह परिवर्तन मानकर सहज भाव से स्वीकार करते हैं। मृत्यु का स्वरूप समझने के लिए देह की नश्वरता को जानना आवश्यक है। हमारा दिखाई देने वाला स्थूल शरीर अन्नमय कोश से संबद्ध है। सुषुप्ति (गहरी निद्रा) में हम कारण शरीर में रहते हैं और सूक्ष्म शरीर से संबंध शिथिल हो जाता है। सुषुप्ति में मन भी लीन हो जाता है और स्थूल व सूक्ष्म देह भी सो जाती है। मन के लीन हो जाने के कारण इस समय कुछ भी ज्ञान नहीं रहता, परंतु इस अवस्था की विशेषता यह है कि जो विचार सुषुप्ति के आरंभ में रहता है, वही विचार जागने के बाद भी आता है। सुषुप्ति और स्वप्न में प्राण का संबंध बना रहता है, जो टूटता नहीं है। प्राण का संबंध टूट जाने पर स्वप्न अवस्था और मृत्यु में कोई अंतर नहीं रहेगा। प्राण का संबंध रहने से ही स्वप्न का अनुभव होता है। मृत्यु के बाद स्थूल शरीर पृथ्वी पर रहता है और प्राण के साथ सूक्ष्म, कारण और महाकारण शरीर परमेश्वर द्वारा नियोजित मार्ग पर चल पड़ते हैं। जैसे शरीर के ज्वर, फोड़े और पीड़ा का कष्ट स्वप्न और सुषुप्ति में महसूस नहीं होता, क्योंकि इस स्थिति में स्थूल शरीर का संबंध छूट जाता है ठीक उसी प्रकार मृत्यु के बाद जीव सूक्ष्म शरीर में जाकर रमण करता है। स्थूल शरीर का संबंध छूट जाने से सारे सांसारिक कष्ट दूर हो जाते हैं। इसलिए मृत्यु की अवस्था कष्ट की नहीं बल्कि विश्राम और चिरशान्ति से संबंधित है।

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