जगन्नाथ जी की मूर्ति कब बदली जाती है? - jagannaath jee kee moorti kab badalee jaatee hai?

रूप बदलती मूर्ति : यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।

अगले पन्ने पर नौवां चमत्कार...

कोरोना संकट के बीच 23 जून को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को लेकर कोर्ट में सुनवाई चल रही थी और अब यह साफ हो गया है कि भगवान जगन्नाथ कल रथयात्रा पर निकलेंगे। जगन्नाथजी हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को रथयात्रा के लिए निकलते हैं। लेकिन कोरोना को लेकर इस साल उलझन की स्थिति अबतक बनी हुई थी।भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की तरह भव्य है भगवान जगन्नाथ की कहानी भी।

सशरीर मौजूद हैं भगवान जगन्नाथ अपने इस मंदिर में

उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह को नील माधव के नाम से जाना जाता है। भगवान का यह विग्रह अपने आपमें अनुपम और अद्भुत है। ऐसी मान्यता है कि भगवान इस मंदिर में सशरीर मौजूद हैं और उनकी सेवा उसी रूप में की जाती है। भगवान भी सामान्य मनुष्य की भांति बीमार होते हैं और उनका उपचार किया जाता है। हर 12 साल में इनका आवरण बदल दिया जाता है। भगवान की इस मूर्ति के संबंध में अनेक अजब-गजब कथाएं हैं।

राजा के आदेश पर ब्राह्मण निकले खोजने

एक पौराणिक कथा के अनुसार, आदिवासी जनजाति के मुखिया ‘विश्व्वासु’ स्वामी जगन्नाथ को अपने कुल देवता ‘नील माधव’ के रूप में पूजते थे। वहीं दूसरी तरफ, मालवा के राजा इन्द्रद्युम्न भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। एक बार राजा इन्द्रद्युम्न को सपना आया कि उत्कल (ओडिशा का प्राचीन नाम) में भगवान विष्णु अपने श्रेष्ठ स्वरूप में मिलेंगे। राजा ने तुरंत कई ब्राह्मणों को उस मूर्ति की खोज में अलग-अलग दिशाओं में भेजा। इन्हीं ब्राह्मणों में एक थे, विद्यापति। भटकते हुए वह एक कबीले में पहुंचे जहां इन्हें पता चला कि यहां के सरदार भगवान विष्णु के नील माधव विग्रह की पूजा करते हैं। यह विग्रह एक घने जंगल के बीच किसी पहाड़ी में गुप्त स्थान पर विराजमान है।

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कर लिया मुखिया की बेटी से विवाह

विद्यापति ने मूर्ति पाने के लिए मुखिया ‘विश्व्वासु’ की कन्या ‘ललिता’ के साथ विवाह कर लिया। विवाह के कुछ समय बाद विद्यापति ने ललिता से नील माधव के दर्शन की इच्छा प्रकट की। ललिता ने अपने पिता से यह बात बताई और कहा कि उनके पति विद्यापति को नील माधव के दर्शन करा दें। विश्व्वासु इसके लिए राजी नहीं थे लेकिन बेटी के हठ के आगे हार गए। इन्होंने शर्त रखी कि वे विद्यापति को नील माधव के दर्शन करा देंगे लेकिन इसके लिए विद्यापति को पूरे रास्ते अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर रखनी होगी।

विद्यापति ने ऐसे चुराई मूर्ति

विद्यापति इसके लिए तैयार हो गए। इन्होंने चतुराई दिखाई और कुछ सरसों के दानें पोटली में बांधकर अपने साथ रख लिए। रास्ते में सरसों के दाने गिराते गए। बाद में सरसों के दानों को देखते हुए विद्यापति गुफा में पहुंच गए और मूर्ति को चुराकर भाग गए। यही मूर्ति आज जगन्नाथ धाम में विराजमान है। इनका काष्ठ आवरण हर 12 साल के बाद बदल दिया जाता है।

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श्रीकृष्ण का शरीर है जगन्नाथ की मूर्ति में

ऐसी कथा है कि श्रीकृष्ण के देहत्याग के बाद पांडवों ने इनका अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन शरीर ब्रह्मलीन होने के बाद भी भगवान का हृदय जलता ही रहा तो हृदय को जल में प्रवाहित कर दिया। जल में हृदय ने लट्ठे का रूप धारण कर लिया और उड़ीसा के समुद्र तट पर पहुंच गया। राज इंद्रद्युम्न को स्वप्न में भगवान ने बताया कि वह लकड़ी के लट्ठे के रूप में समुद्रतट पर स्थित हैं। इस लकड़ी के लट्ठे से ही भगवान की मूर्ति बनाई गई।

सपने में आया था दिव्य पेड़

इस मूर्ति के निर्माण की कहानी भी अद्भुत है। कहते हैं लकड़ी के लट्ठे से मूर्ति निर्माण कैसे किया जाएगा, इस बात को लेकर राजा चिंतित थे। एक दिन विश्वकर्मा वृद्ध मूर्तिकार के रूप में राजा के पास आए और कहा कि एक कमरे में वह मूर्ति का निर्माण करना चाहते हैं लेकिन जब तक वह ना कहें कमरे का दरवाजा ना खोला जाए। कुछ दिनों तक कमरे से मूर्ति निर्माण की ध्वनि बाहर आती रही इसके बाद आवाज आनी बंद आ गई। राजा को मूर्तिकार के विषय में चिंता होने लगी और उन्होंने कमरे का द्वार खुलवा दिया। कमरा खुलते ही राजा हैरान रह गए क्योंकि कमरे के अंदर कोई नहीं था और भगवान जगन्नाथ के साथ सुभद्रा और बलभद्रजी की अधूरी मूर्ति विराजमान थी। राजा को अपने किए पर बहुत पश्चाताप हो रहा था। लेकिन इसे ही दैवयोग मानकर इसी मूर्ति को मंदिर में स्थापित करवा दिया।

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मूर्ति के अंदर छुपा है यह रहस्य

भगवान जगन्नाथ जी के जिस विग्रह का भक्त दर्शन करते हैं वह उनका काष्ठ का आवरण है जो हर 12 साल के बाद बदला जाता है। इसे बदलते समय पुजारी आंखों पर पट्टी बांध लेते हैं और हाथों में वस्त्र लपेट लेते हैं। कहते हैं इस आवरण के अंदर भगवान का शरीर मौजूद है। मान्यता है कि इन्हें देखने वाले की मृत्यु हो जाएगी इसलिए आज तक मूर्ति के अंदर मौजूद तत्व को कोई देख नहीं पाया।

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति कब बदली जाएगी?

हर 12 साल में बदली जाती है मूर्तियां हर 12 साल बाद जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ , बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्ति को बदला जाता है.

जगन्नाथ मंदिर के पुजारी कौन है?

पुरी के जगन्नाथ जी की सेवा में तैनात सैकड़ों भक्तों में एक अनिल गोच्छिकर भी हैं. वह मंदिर के पुजारी हैं.

जगन्नाथ पुरी कौन से महीने में जाना चाहिए?

सर्दी का समय है यानी कि अक्टूबर से फरवरी का समय है जगन्नाथ पुरी की यात्रा करने का एक अनुकूल समय माना जाता है। आपको बता दें कि अक्टूबर से फरवरी यानी कि सर्दी का समय के दौरान जगन्नाथपुरी में कड़ाके की सर्दी नहीं पड़ती हैं जिसकी वजह से यहां पर लोग घूमने जाने का प्लान अधिक मात्रा में किया करते हैं।

पुरी के जगन्नाथ मंदिर के ऊपर पक्षी और विमान क्यों नहीं उड़ते?

जगन्नाथ पुरी मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज नहीं उड़ते हैं क्योंकि मुख्य रूप से पुरी किसी भी उड़ान मार्ग के अंतर्गत नहीं आते हैं और ऐसा नीलचक्र की उपस्थिति के कारण होता है। नीलचक्र एक आठ धातु चक्र है जिसे जगन्नाथ मंदिर पुरी के ऊपर रखा गया है।

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