नई कहानी आंदोलन की शुरुआत कब हुई? - naee kahaanee aandolan kee shuruaat kab huee?

नयीकहानीकी वैचारिकबहस : एक अवलोकन

                                                                 पंकजशर्मा

सारांश

                  नयीकहानीके शुरुआतीदिनोंमेंही इसमेंदोधाराएँस्पष्ट रूपमेंझलकनेलगी थीं।एकधाराउन प्रगतिशीललेखकोंकीथी जोमार्क्सवादीविचारधारा सेप्रेरितथेऔर शोषितों, उपेक्षितोंकिसानोंमजदूरों केदुखदर्दको कहानीकाविषयबना रहेथेजबकिदूसरी धाराकेकहानीकार मध्यवर्गीयटूटन, पारिवारिक विघटन, सैक्स, कुंठा आदिकोकहानीका कथ्यबनाकरप्रस्तुतकर रहेथे।उसदौर मेंहुईवैचारिकबहस कालेखा-जोखा प्रस्तुतकियाजारहा है।

 बीजशब्द

1. कहानी
2. विचारधारा
3. नवीनता
4. आधुनिकता
5. मध्यवर्ग


विस्तार

'नयीकहानी' की शुरुआतसन् 1950 से मानीजातीहै।इससे पहलेहिन्दीकहानीमें तोइतनीविविधता थीऔरहीइतनीव्यापकता।नयीकहानी सेपूर्वहिन्दीकहानी घटनाप्रधानथी।समूची कहानीआदर्शात्मकहोती थीऔरनिश्चितमूल्यों केआधारपररची जातीथी।इनसभी प्रवृत्तियोंसेइतरनयी कहानीकेदौरमें विशिष्टभावबोधकी कहानियाँलिखीजाने लगीं।पुरानीऔरनयी कहानीमेंफर्ककरते हुएभैरवप्रसादगुप्त नेलिखाहै- "यशपाल, इलाचन्दजोशी, अमृतलालनागर, भगवतीचरणवर्मायावेलेखकजो प्रेमचन्दकेजमानेसे लिखतेचलेरहे थे, उनकीकहानियाँ नाटकीयहोतीथीं, काल्पनिकहोतीथीं, येलेखककिसीसवाल यासमस्याकोउठा लियाकरतेथे।लेकिन जोनयेकहानीकारआये, उन्होंनेसचमुचजीवनके यथार्थकोअपनाविषय बनायाऔरउसीतरह भाषाऔरशिल्पको अपनाया।नयेकहानीकारों कीकहानियाँहररूप मेंभिन्नथीं-कथ्य कीदृष्टिसे, कला कीदृष्टिसे, भाषा औरशिल्पकीदृष्टि सेभी।’’¹ हालांकि शुरुआतीदिनोंमेंनयी कहानीआन्दोलनकातीव्र विरोधभीहुआथा, किन्तुआगेचलकरयही नामहिन्दीकहानीके इतिहासमेंप्रतिष्ठित हुआ।

                        ‘नयी कहानीआन्दोलनमें अनेकविचारधाराके कहानीकारकहानियाँलिख रहेथे।इसीकारण इसमेंएकसाथकई प्रवृत्तियाँदेखनेको मिलतीहैं।निश्चितरूप सेइनप्रवृत्तियोंको अलगापानाआसान था।नयीकहानीके सन्दर्भमें नयेपुरानेकाजो विवादशुरूहुआथा उसेसुलझानेकाप्रयास अनेकरचनाकारोंतथा आलोचकोंनेकिया।नामवर सिंहनेलिखा है-‘‘इस कहानीचर्चामें उपलब्धिसम्बन्धीऐतिहासिक प्रश्नइतनेरूपों  मेंउठायेगयेहैं। कभी 'ग्रामकथा' बनाम 'शहरीकथा' का प्रश्नउठाहै, तो कभीपरम्पराबनामप्रयोग याप्रगतिका।कुछ लोगोंनेजातीय कहानीकाभीनारा दियाहैऔरकुछ नेनयीकहानीकेसम्भावितखतरनाकअर्थ कीओरसेआगाह करतेहुएहिन्दीकहानी केअपनेऐतिहासिक दायकीयाददिलायी है।कहानियोंकीएक प्रवृत्तिकोएकदम विदेशीकरारदेनाऔर कुछशिल्पप्रयोगों कोकहानीमानने सेइनकारकरनाभी इसीसैध्दान्तिकसंघर्ष कापहलूहै।व्यक्तिवादी दृष्टिऔरसमूचेसामाजिक तथासाहित्यिक परिवेशबोधकेअभाव केकारणहीइस बहसमेंभटकावआये हैं।’’² इसभटकावके बावजूदनयीकहानीकीअनेकतरहसे व्याख्याहुईहैं।कहानी केक्षेत्रमेंदिलचस्पी रखनेवालेलगभगसभी महत्त्वपूर्णलेखकोंने अपनेअपनेविचार व्यक्तकियेऔर प्राय: सभीनेइसे एकस्वरमेंहिन्दी कहानीकासबसेउर्वर दौरघोषितकियाहै। फिरभीइसआन्दोलन कोलेकरवैचारिकबहस गहरातीगयी।शुरुआती दिनोंमेंनयी कहानीकेनामपर हीसन्देहव्यक्तकिया जारहाथा।

                        श्रीकान्तवर्माकी शिकायतथीकि ‘‘वह नयीक्योंहै, बल्कि यहहैकिवह नयीक्योंनहीं है।’’³ दरअसलवे मानतेथेकिनयी कहानी ‘‘आत्मछलसे पैदाहुईहै।यह भीएकसंयोगनहीं किहिन्दीकहानीअपने नयेपनकाजरूरतसे ज्यादाशोरकररही है।वह, असलमें आपकोनहीं, अपने आपकोविश्वासदिलाना चाहतीहैकिवह सचमुचनयी है।’’सचतो यहहैकिकिसी भीनवीनताकोसहजता सेस्वीकारकरपाना आसाननहींहोताहै कमलेश्वरनेलिखा है-‘‘नवीनताको स्वीकारकरपानाहरेक केवशमेंनहीं होता, खासतौरसेउस पीढ़ीकेलिएजो अपनेसमयके मानमूल्यस्थापित करउनकेप्रतिप्रतिबद्ध होचुकीहै।’’ नयीकहानीकेनयेपन कोस्पष्टकरतेहुए मार्कण्डेयनेलिखा है-"नवीनताकागहरा सम्बन्धलेखककीदृष्टि औरउससेभीजीवन कोदेखने, समझनेके कोणसेहै।आदमी नयाहोताहैविचारों से, इसलिएनयालेखक वहीहैजोइस बातपरध्यानलगाकर बैठाहैकिआदमी कहाँबदलरहाहै। यहसचहैकि सच्चाइयोंकेइस परिवर्तनमेंआर्थिक, सामाजिकऔरराजनीतिकपरिस्थितियों कामुख्यहाथहै परइसकेसजगसम्पर्क मेंबिनाकिसीकुंठा केबनेरहनेवाले कोहमनया मानेंगे।’’मार्कण्डेय नवीनताकाआग्रहजीवन दृष्टिकेसन्दर्भमें करतेहैं।उन्होंने स्वीकारकियाहैकि सिर्फगाँवोंकी संवेदनाओंकोनयानहीं मानाजासकता है। 

                        वास्तव मेंनयीकहानीआन्दोलन केकहानीकारोंनेनयी दृष्टिअपनायी।उनकीनयी दृष्टिकाहीपरिणाम थाकिउनपहलुओं औरसंवेदनाओंपरभी कहानियाँलिखीजाने लगीं, जोबिल्कुल नयीबातथी।नामवर सिंहनेलिखा है-‘‘यहनवीनताकेवल शिल्पगतनहींहै, बल्किइसकेमूलमें कहानीकारकीनवीनदृष्टि है।इसकामतलबयह हैकिआजका यहकहानीकारवस्तुओंको उसीरूपमेंनहीं देखता, जिसरूपमें वेदेखीजातीरही हैंरचनात्मकदृष्टि कायहपरिवर्तनकहानीकार केसमूचेव्यक्तित्वके परिवर्तनकाद्योतक है।’’इसनवीन दृष्टिकोअपनानेके बावजूदनयीकहानीके कहानीकारोंपरविचारधारा उसतरहहावीनहीं हुईजिसतरहलोगों नेउसे प्रचारितप्रसारितकिया। वास्तवमें ‘‘नयी कहानीकाआग्रहजीवन यथार्थपरथा, विचारधाराविशेषकेआलोक मेंदेखेगयेयथार्थ परनहीं।’’जब यथार्थकीअनेकपरतें होंतबयहतय करनाआवश्यकहोजाता हैकियथार्थका स्वरूपकैसाहै।इसी स्वरूपकेसन्दर्भमें मार्कण्डेयनेलिखा है-‘‘कहानीजीवनकी कलाहै, उसकेबाह्य औरअन्तरकोबहुत दूरतकझुठलानाभी सम्भवनहींहै।इसीलिए जबहमनयेजीवन सत्योंकीबातकरते हैंऔरउसेकहानी केसन्दर्भमेंढूँढते हैंतोयथार्थजीवन केप्रकाशमेंउसका मानदंडभीढूँढना होगा।’’इस मानदंडकोढूँढनेके प्रयासमेंकुछनये कहानीकारोंनेयथार्थके वृत्तसेबाहरभी झाँकनाप्रारम्भकर दिया।चंचलचौहानने ठीकहीलिखा है-‘‘नयीकहानीके कथाकारोंनेयथार्थवाद कोकिसीसंकरेदायरे जाकरनहींछोड़ा, हालाँकिमोहनराकेश, कृष्णबलदेववैद, निर्मलवर्माऔर कमलेश्वरसरीखे दोचारकहानीकारऐसे जरूरथेजोअस्तित्ववाद केटोटकेउधारलेकर हिन्दीकहानीपरआधुनिक कीछापलगारहे थेऔरउन्होंनेएक हदतकफार्मूलेबाजीशुरु करदीथी।’’¹

                       नयीकहानी आन्दोलनमेंएकसाथ कईप्रभावशालीकथाकारों काउदयहुआथा। सभीअलग-अलग विचारधारासम्बद्धथे। इसकारणइननये कहानीकारोंकेबीच वाद-विवादकी स्थितियाँखूबनिर्मित होतीथी।रमेशउपाध्याय नेइसओरसंकेत करतेहुएलिखाहै ‘‘नयीकहानीके आन्दोलनकारीविभिन्नदृष्टियोंऔरविचारधाराओंकेरचनाकार थे।उनमेंअमरकान्त, मार्कण्डेय, भैरवप्रसाद गुप्त, भीष्मसाहनी, शेखरजोशी, हरिशंकरपरसाई आदिप्रगतिशीललेखकभी थेतोदूसरीओर, मोहनराकेश, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, शिव प्रसादसिंह, धर्मवीर भारतीऔररघुवीरसहाय जैसेआधुनिकतावादीलेखक भीथे, जिनकीकोई स्पष्टविचारधारानहीं थीयाजोउदारतावादी अथवाढुलमुलथेया जोअवसरानुकूलकिसी विचारधाराकेसमर्थकया विरोधीहोसकते थे।’’¹¹ यहठीकहै किनयीकहानीआन्दोलन मेंस्पष्टरूपसे कोईनिश्चितविचारधारा उभरकरसामनेनहीं पातीहै।फिर भी-‘‘नयीकहानीकेदौरानहोनेवाली लम्बीवैचारिकबहसइस बातकाप्रमाणहै किउससमयका मध्यवर्गअपनेसब स्वप्नोंकेबावजूद राजनीतिकचेतनाविकसित करनेकीक्षमतारखता था, लेकिनइस आन्दोलनमेंदोधाराएँ थी-एकधारा प्रेमचन्दसेशुरूहोने वालीपरम्पराकोआगे बढ़ानेवालीथी, जिसमेंउद्देश्यपूर्णलेखन कावहरूपदिखाई देताहै, जो शीतयुद्धकेदौरानविकृत औरगलत सौन्दर्यदृष्टिसे टक्करलेनेकीकोशिश मेंविकसितहुआथा। यहधाराभैरवप्रसाद गुप्त, अमरकान्त, रांगेय राघव, मार्कण्डेय, शेखर जोशी, भीष्मसाहनी, शिवप्रसादसिंहआदि कीकहानियोंमेंलगातार औरराजेन्द्रयादव कमलेश्वर, मन्नूभंडारी आदिकीकहानियोंके प्रारम्भिकदौरमेंदेखी जासकतीहै।’’¹² नयी कहानीकीप्रगतिशीलधारा केलेखक मजदूरोंकिसानों, उपेक्षितों, शोषितोंकीपीड़ाको अपनीकहानियोंमें चित्रितकररहेथे। गाँवोंमेंसरलऔर सहजजीवनव्यतीतकरने वालेमानवसमुदायकी संवेदनाकोकेन्द्रमें रखकरकहानियाँलिखरहे थे। 

                        इस धाराकेरचनाकारोंने प्रेमचन्दकीपरम्पराको सिर्पफस्वीकाराही नहीं, बल्किउसेआगे भीबढ़ाया।भैरवप्रसाद गुप्तनेएकसाक्षात्कार मेंकहा था-‘‘प्रगतिशीलआन्दोलन केदौराननिश्चियही लेखकोंनेप्रेमचन्दकी विरासतकोसम्भालाऔर उसेआगेबढ़ानेका प्रयासकिया।वह साम्राज्यवादकेविरोध कादौरथा।लेकिन प्रगतिशीलआन्दोलनसिर्फ साम्राज्यवादविरोधतक सीमितनहींरहा, बल्किराष्ट्रीयपूँजीपतियों औरसामन्तोंकेखिलाफ भीउसनेकामकिया औरसबसेबड़ीबात यहथीकिप्रगतिशील लेखकोंनेप्रेमचन्दसे आगेबढ़करमजदूरोंऔर किसानोंपरलिखनाशुरू किया।यहएकबहुत बड़ामोड़था।’’¹³ यह बातध्यानरखनेवाली हैकिप्रगतिशीलधारा केकहानीकारोंनेसिर्फ गाँव, किसानऔरउसके दुखदर्दतकही सीमितनहींरखाबल्कि उन्होंनेमध्यवर्गीयअर्न्तद्वन्द्व कोभीबहुतप्रभावशाली ढंगसेअपनीकहानियों मेंउजागरकिया।इतना जरूरथाकिवे व्यक्तिवादीमनोवृत्तिसे मुक्तथे।

                        प्रगतिशीलधाराके कहानीकारोंकी विषयवस्तुबिल्कुल भिन्नथी।वे निम्नवर्गीयविपन्नता, शोषितों, उत्पीड़ितोंकेपक्षमें कहानीलिखरहेथे। मध्यवर्गीयसंवेदनातथा आत्मकेन्द्रितभावों कोवर्जितमानकरखुद कोउससेअलगापाने मेंसफलरहेथे। प्रगतिशीलधाराके कहानीकारोंनेनगरीयबोध तथाआधुनिकताकाआवरण ओढ़नेसेइनकारकर दियाशिवप्रसादसिंह नेस्पष्टशब्दोंमें लिखाहै-'‘यदिनगर केजीवनकाअर्थ ऑफिसोंयाकॉलेजोंकी लड़कियोंकेपीछे चीलकौओंसा मंडरानामात्रहैया आधुनिकसभ्यताकेनाम परहरप्राचीनको तोड़नेकेलिए चिल्लानाभरहै, तोसाफहैकि यहनगरकाजीवन नहीं, उसकहानीकार काअपनाजीवन है।’’¹

              यहअकारणनहींथा किशेखरजोशी, अमरकांत, मार्कण्डेय, भैरवप्रसाद गुप्त, हरिशंकरपरसाई, भीष्मसाहनीआदि कहानीकारोंनेव्यक्तिवादी खाँचेमेंखुदको फिटनहींकिया, बल्किउनअसहायोंकी मुखरआवाजबनकरकहानी कोप्रस्तुतकिया जिन्हेंलम्बेसमयसे दबायाजारहाथा। उन्होंनेकमजोरवर्गों केलोगोंकीसामाजिक, आर्थिकऔरराजनीतिक स्थितिकोएकहद तकसन्तुलितकरनेका भरसकप्रयासकिया।एक बातऔरध्यानदेने वालीहैकिनये कहानीकारोंनेफार्मूलेबाजी सेअपनानातातोड़ लियाऔरअतिरेकभावुकता सेभीखुदको अलगकरलिया।इस सन्दर्भमेंअमरकान्तने कहाहै-‘‘नयी कहानीआन्दोलनके जमानेमेंभावुकतासे मुक्तहोनेकीकुछ कोशिशकीगयीऔर जीवनतथासमाजके अन्तर्विरोधोंकोपकड़ने कीभीकोशिश हुई।’’¹

                        इनकहानीकारोंनेअपने आस-पासकेदबाव कोशिद्दतसेमहसूस किया, मानवीयविद्रूपताओं कोअपनीकहानियोंमें चित्रितकिया।जिन सामाजिकपरिस्थितियोंके कारणकुछकहानीकारोंने दर्द, कुंठा, निराशा आदिकोअपनीकहानी काविषयबनायाऔर समाजसेविमुखहोकर कहानियाँलिखीउसेनये कहानीकारोंनेदरकिनार करदिया।हरिशंकरपरसाई नेलिखाहैµ‘‘यद्यपि इससारीपरिस्थितिको मानवसमाजकी प्रवृत्तिकेऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यमेंदेखा, परन्तुकिसीढाँचेके आधारपरनहींबल्कि जीवनसेवास्तविक, निकटसम्पर्कस्थापित कर, सच्चेअनुभवसम्वेदनग्रहणकर, कहानियाँ लिखीहैं, जिनमें यथार्थकेविभिन्नस्तर औरविभिन्नकोणउभरे हैं’’¹

                       मुख्यरूपसे दोखेमोंमेंबँटी नयीकहानीकारोंने एकदूसरेकाजमकर विरोधभीकिया।जहाँ एकओरप्रगतिशीलधारा केनयेकहानीकारोंको पुराना, बासी, घटिया, नकलीऔरनिरर्थकबताया वहीदूसरीओरवे टूटन, घुटन, पीड़ा, निराशाआदिकीबातें कररहेथेऔर ‘‘अनुभवकीप्रामाणिकताकेनारेदेकरसारे प्रगतिशीललेखनकोखारिज कररहेथे। ग्रामकथाकी निरर्थकताकीबातकरते हुए।राजेन्द्रयादवने लिखाहै-‘‘ग्राम परिवेशपरमिलनेवाली इधरकीकहानियाँ गुणात्मकरूपसेउन कहानियोंसेअलगहैं जो 50–60 केदौरान लिखीगयीथी।तब कीअधिकांशकहानियाँ, शहरसेछुट्टियोंमें लौटेहुएयुवकया प्रौढ़कीऐसीकहानियाँ थींजोकिसी बूढ़ेबूढ़ी, या पेड़याविगतप्यार केलिएश्रद्धांजलिकी तरहलिखीजातीथी औरजबतकयह नायकउसकेसाथजुड़ना शुरूकरें, तबतक पढ़ाईयानौकरीपर उसकेलौटनेकासमय होजाता था।’’¹वास्तव में, ग्रामकथाका तीव्रविरोधहोनेके बावजूदनयीकहानीमें अपनाएकखासस्थान बनायाऔरयहधारा सततगतिशीलबनीरही। ग्रामकथानेसभी काध्यानअपनीओर आकृष्टकिया।

                      प्रगतिशीलधाराके कहानीकारोंके बीचबहसकेमुद्दे नगरऔरग्रामकथा मेंअन्तर्निहितथा बल्किउन्होंनेजीवनको करीबसेदेखनेऔर उसकीविसंगतियोंको उजागरकरनेकासमर्थन किया।शिवप्रसादसिंहने ठीकहीलिखा है-‘‘सवालनगरऔर ग्रामकथाकीश्रेणी बँटवारेकानहींहै, सवालजिन्दगीकोसही देखनेऔरउसेव्यक्त करनेकाहै।इसलिए तथाकथितनगरकथाकारों को, जोगलेमें ढोलबाँधकरहल्लामचा रहेहैंकि ग्रामकथाकेप्रति कियेगयेपक्षपातके कारणनगरकथाखतरे मेंहैमैंआश्वस्त करतेहुएकहनाचाहता हूँकिखतरा ग्रामकथासेकतई नहींहै, खतरा उन्हेंदूसरीओरसे औरदुहरा है।’’¹

                        नयेकहानीकारोंकेपास पहलेसेनिष्कर्षमौजूद नहींथे।चाहेवे प्रगतिशीलधाराके कहानीकारहोंअथवा मध्यवर्गीय, शहरी,कस्बाई बोधकोअभिव्यक्तकरने वालेकथाकार।राजेन्द्र यादवनेठीकही लिखाहै-"हमसब एकहीपरिवेशमें जीनेसाँसलेनेवाले लोगहैंजोसंक्रमण कीएकप्रक्रियाको अपनेअपनेस्तरोंपर भोगाऔरसमझरहे हैं।यहअपनाअपनास्तरहीनयीकहानीकी विविधताऔरविकासशीलता है।कोईभीरचनाकार अपनीपरम्पराकाविरोध करसकताहैकि वहअपनीपरम्परासे कटकरसृजननहींकर सकता।

निष्कर्ष

                        नयीकहानी आन्दोलनमेंजबरदस्त वैचारिकबहसहोनेके बावजूदयहअनेक विशिष्टताओंकोखुदमें समेटेहुएहै।नयी कहानीकीउपलब्धियोंकी बातकरेंतोनिश्चित रूपसेऐसीअनगिनत बातेंकहीजासकती हैंजोनयीकहानी कोअर्थगरिमा प्रदानकरतीहैं।इसी आन्दोलननेपुरानीकहानी कीजड़ताकोतोड़ा औरबनेबनाएसाँचे सेमुक्तकिया। 

सन्दर्भसूची

1 भैरव प्रसादगुप्त, जनवादी कहानी, सं, रमेशउपाध्याय, पृ 289–90

2 नामवरसिंह, कहानीनयीकहानी, पृ. 42

3          श्रीकान्त वर्मा,नयीकहानी: सन्दर्भऔरप्रकृति, सं. देवीशंकरअवस्थी, पृ– 148

4.         वही, पृ. 148

5.         कमलेश्वर, नयीकहानी कीभूमिका, पृ. 57

6.         मार्कण्डेय, कहानीकी बात, पृ.12-13

7. नामवर सिंह, कहानीनयी कहानी, पृ. 46 

8. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय, समकालीनकहानी कीभूमिका, पृ. 5

9. मार्कण्डेय, कहानीकी बात, भूमिका, पृ. 12

10.  चंचलचैहान, आलोचना कीशुरुआत, पृ. 218

11.       रमेशउपाध्याय, जनवादी कहानीकीसमाजशास्त्रीय समीक्षा, पृ.152

12. रमेश उपाध्याय, जनवादीकहानी, पृष्ठभूमिसेपुनर्विचार तक, पृ– 55

13. भैरव प्रसादगुप्त, जनवादी कहानी, पृष्ठभूमिसे पुनर्विचारतक, रमेशउपाध्याय, पृ– 289

14.  शिवप्रसादसिंह, नयीकहानी, सन्दर्भ औरप्रकृति, संदेवीशंकरअवस्थी, पृ.140

15. अमरकान्त, कथारंग, सं. सुरेन्द्रतिवारी, पृ. 152

16.       हरिशंकरपरसाई, नयीकहानी: सन्दर्भ औरप्रकृति, सं. देवीशंकरअवस्थी, पृ. 59

17. राजेन्द्र यादव, कहानीअनुभव औरअभिव्यक्ति, पृ. 183

18 शिवप्रसादसिंह, नयी कहानीसन्दर्भऔर प्रकृति, पृ. 143

19.       राजेन्द्रयादव, कहानी: स्वरूपऔरसम्वेदना, पृ. 238

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नई कहानी का प्रारंभ कब हुआ?

नयी कहानी का जन्म 1956 से माना जाता है। 1956 में भैरव प्रसाद गुप्त के संपादन में नयी कहानी नाम की पत्रिका का एक विशेषांक निकाला। इसी विशेषांक के आधार पर अगली कड़ी की कहानियों को नयी कहानी के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा।

नई कहानी आंदोलन से आप क्या समझते हैं?

'कहानी' पत्रिका में छपनेवाली कहानियों के कारण 1955 ई. में 'नयी कविता' के तर्ज पर नयी कहानी आंदोलन का नाम चल पड़ा जिसे 'नयी कहानियाँ' ने आगे बढ़ाया । हिन्दी में कहानी की एक पुष्ट समर्थ और स्वस्थ परंपरा है और वर्तमान कहानी उसका ही एक विकसित रूप है ।

नई कहानी आंदोलन के लेखक कौन है?

मोहन राकेश हिंदी साहित्य के उन चुनिंदा साहित्यकारों में हैं जिन्हें नई कहानी आंदोलन का नायक माना जाता है और साहित्य जगत में अधिकांश लोग उन्हें उस दौर महानायक कहते हैं।

नई कहानी आंदोलन का सूत्रपात कब हुआ?

सन् 1979 ई0 में राकेश वत्स ने मंच पत्रिका के माध्यम से सक्रिय कहानी आंदोलन के नाम से एक नया कहानी आंदोलन चलाया, उनके अनुसार कहानी में पात्रों का सक्रिय होना आवश्यक है.

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