हिमालय को भारत का सिर क्यों कहा गया है? - himaalay ko bhaarat ka sir kyon kaha gaya hai?

प्रश्न 11. कवि ने हिमालय को 'देश का मुकुट' क्यों कहा है?

उत्तर- हिमालय भारत की उत्तर दिशा में स्थित है। मानचित्र में वह सबसे ऊपर है। वह उसी प्रकार शोभायमान है जिस प्रकार राजा के सिर पर मुकुट शोभा देता है। बर्फ से ढंका होने के कारण उसका वर्ण भी चाँदी जैसा सफेद है। इसीलिए कवि ने हिमालय को भारत देश का मुकुट कहा है।

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हिमालय को भारत का शीश क्यों कहा गया है?...


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बस हिमालय को भारत का सीन इसलिए कहा गया है क्योंकि उत्तर में स्थित है और यह जो है बाकी सारे देशों से इसकी रक्षा करती है इसलिए मालिक को भारत का शीश कहा गया धन्यवाद

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हिमालय को भारत का सिर क्यों कहा गया है? - himaalay ko bhaarat ka sir kyon kaha gaya hai?

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हिमालय को भारत का सिर क्यों कहा गया है? - himaalay ko bhaarat ka sir kyon kaha gaya hai?

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क्या हिमालय को भारत का मुकुट कहा जाता है?...


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विजय हिमालय को जो भारत का मुकुट कहा जाता है उसका सबसे जो मेन कारण यह है कि जिस तरह मुकुट सिर पर रखकर मनुष्य की शोभा बढ़ाता है उसी प्रकार हिमालय भारत के सबसे ऊपरी भाग में स्थित होकर भारत की शोभा बढ़ा रहा है के विभिन्न पर्यटन स्थल नदी नाले झरने पहाड़ माउंटेन जितने भी हैं यह भारत की खूबसूरती को बढ़ा देते हैं और जानते हैं कि हिमालय इसके लिए कितने टूरिस्ट आते ही मालूम ने के लिए हिमालय की चढ़ाई करने के लिए ट्रांस मामले को देखने के लिए इस फैसले जम्मू कश्मीर यह जो है शिमला यह जितने भी हिमालय राज्य हैं यह टूरिज्म के लिए सबसे परफेक्ट मैंने आते हैं तो इस यह भारत की सुंदरता को दोगुना कर देता है इसीलिए हिमालय को भारत का मुकुट कहा जाता है

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NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन) are part of NCERT Solutions for Class 7 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन)

Board CBSE
Textbook NCERT
Class Class 7
Subject Hindi Vasant
Chapter Chapter 3
Chapter Name हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन)
Number of Questions Solved 17
Category NCERT Solutions

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
(पृष्ठ 15-17)

लेख से

प्रश्न 1.
नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?
उत्तर-
हमारी भारतीय संस्कृति में नदियों को माँ मानने की परंपरा काफ़ी पुरानी है। लेकिन इस निबंध में लेखक ने बेटी, प्रेयसी तथा बहन के रूप में प्रस्तुत किया है। इस पाठ में नदियाँ हिमालय की बेटियाँ हैं। नदियों को बादलों की प्रेयसी के रूप प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त लेखक ने नदियों को बहन के रूप में दिखाया है।

प्रश्न 2.
सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
उत्तर
सिंधु और ब्रह्मपुत्र हिमालय की दो ऐसी नदियाँ हैं जिन्हें ऐतिहासिकता के आधार पर पुल्लिग रूप में नद भी माना गया है। कहा जाता है कि ये दो ऐसी नदियाँ हैं जो दयालु हिमालय के पिघले हुए दिल की एक-एक बूंद से निर्मित हुई हैं। इनका रूप विशाल और विराट है। इनका रूप इतना लुभावना है कि सौभाग्यशाली समुद्र भी पर्वतराज हिमालय की इन दो बेटियों का हाथ थामने पर गर्व महसूस करता है।

प्रश्न 3.
काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?       [Imp.]
उत्तर
नदियाँ हमें जल प्रदान कर जीवनदान देती हैं। ये युगों-युगों से पूजनीय व मनुष्य हेतु कल्याणकारी रही हैं। इनका जल भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाने में विशेष भूमिका निभाता है। मानव के आधुनिकीकरण में जैसे-बिजली बनाना, सिंचाई के नवीन साधनों आदि में इन्होंने पूरा सहयोग दिया है। मानव ही नहीं अपितु पशु-पक्षी, पेड़-पौधों आदि के लिए जल बहुत जरूरी है।

इतनी कल्याणकारी होने पर भी नदियों को कल-कारखानों से निकलने वाले विष रूपी प्रदूषित जल, गंदे रसायन पदार्थ, लोगों द्वारा दूषित किया गया जल जैसे-कपड़े धोना, पशु नहलाना व अन्य कूड़ा-करकट भी अपने आँचल में ही समेटना पड़ता है। लेकिन फिर भी ये नदियाँ कल्याण ही करती हैं। ‘अपार दुख सहकर भी कल्याण’ केवल ‘माता’ ही कर सकती है।

इसीलिए हम कह सकते हैं कि काका कालेलकर का नदियों को लोकमाता की संज्ञा देना कोई अतिशयोक्ति नहीं।

प्रश्न 4.
हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है?
उत्तर
हिमालय की यात्रा में लेखक ने नदियों, झरनों, हिमालय की बर्फीली चोटियों, गगनचुंबी पर्वतों, विशाल मैदानों, सागरों तथा महासागरों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

लेख से आगे

प्रश्न 1.
नदियों और हिमालय पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं। उन कविताओं का चयन कर उनकी तुलना पाठ में निहित नदियों के वर्णन से कीजिए।
उत्तर-
यह लघु सरिता का बहता जल,
कितना शीतल कितना निर्मल।
हिमगिरि के हिम से निकल-निकल,
यह विमल दूध-सा हिम का जल,
कर-कर निनाद कल-कल छल-छल
बहता आता नीचे पल-पल।
तन का चंचल, मन का विह्वल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
निर्मल जल की यह तेज़ धार,
करके कितनी श्रृंखला पार,
बहती रहती है लगातार
गिरती उठती है बार-बार
रखता है तन में उतना बल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
करके तरु फूलों का सिंचन,
लघु जल-धारों से आलिंगन
जल कुंडों में करते नर्तन,
करके अपना बहु परिवर्तन।
आगे बढ़ता जाता केवल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
मिलता है इसको जब पथ पर,
पथ रोके खड़ा कठिन पत्थर,
आकुल आतुर दुख से कातर
सिर पटक-पटककर रो-रोकर
करता है कितना कोलाहल,
यह लघु सरिता का बहता जल॥
हिम के पत्थर वे पिघल-पिघल,
बन गए धरा के वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकल,
पी-पी कर अंजलि भर मृदु जल।
नित जलकर भी कितना शीतल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
कितना कोमल, कितना वत्सल,
रे! जननी का वह अंतस्तल,
जिसका यह शीतल करुणा जल,
बहता रहता युग-युग अविरल।
गंगा, यमुना, सरयू निर्मल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
-गोपालसिंह ‘नेपाली’

प्रस्तुत कविता में नदी की गति, रूप, रंग और स्वभाव का अत्यंत सुंदर चित्रण हुआ है। नदी हिमालय से निकलती है, इसलिए इसका जल धवल, निर्मल एवं शीतल होता है। यह कलकल स्वर में गाती, बाधा विघ्नों में संघर्ष करती हुई आगे बढ़ती जाती है। समतल भूमि पर भी इसके कोमल पैर को कंकड़ पर पैदल चलना पड़ता है, फिर भी यह सदानीरा कभी विश्राम नहीं करती। सूर्य की गरमी में जलकर भी यह हमें शीतलता प्रदान करती है। नदी की चंचलता और शीतलता देखकर कवि को आश्चर्य होता है। नदियों के जीवन का मूल उद्देश्य प्राणी मात्र का पालन करना है और एक माँ के समान समस्त जीवों का बिना किसी भेदभाव के पालन-पोषण करती हुई अपना कर्तव्य पूरा करना है। इस कविता को पढ़कर सुंदरता का आनंद तो मिलता ही है, साथ ही मानव के लिए संदेश है कि वह सदैव कार्यरत रहे।

हिमालय पर कविता

खड़ा हिमालय बता रहा है।
डरो न आँधी पानी में।
खड़े रहो तुम अविचल होकर
सब संकट तूफ़ानों में।।
डिगो न अपने प्रण से, तो तुम
सब कुछ पा सकते हो प्यारे,
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो
छू सकते हो नभ के तारे।
अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में ।
मिली सफलता जग में उसको
जीने में मर जाने में।
-सोहनलाल द्विवेदी

उपरोक्तं कविता में हिमालय द्वारा मुसीबतों से न घबराते हुए जीवन में आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रहे हैं जबकि इस कविता में अपनी बेटियों द्वारा घर का त्याग कर जाने से हिमालय पछताता रहता है।

प्रश्न 2.
गोपालसिंह नेपाली की कविता ‘हिमालय और हम’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘हिमालय’ तथा जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हिमालय के आँगन में पढ़िए और तुलना कीजिए।
उत्तर

कविता-हिमालय और हम
कवि-गोपालसिंह नेपाली

  1. इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही ।
    पर्वत–पहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वतराज यही
    अंबर में सिर-पाताल चरन
    मन इसका गंगा का बचपन
    तन वरन-वरन मुख निरावरन
    इसकी छाया में जो भी है, वह मस्तक नहीं झुकाता है।
    गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा नाता है।
  2. जैसा यह अटल, अडिग-अविचल, वैसे ही हैं भारतवासी
    हैं अमर हिमालय धरती पर, तो भारतवासी अविनाशी
    कोई क्या हमको ललकारे
    हम कभी न हिंसा से हारे
    दुख देकर हमको क्या मारे
    गंगा का जल जो भी पी ले, वह दुख में भी मुसकाता है।
    गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।
  3. अरुणोदय की पहली लाली इसको ही चूम निखर जाती ।
    फिर संध्या की अंतिम लाली इस पर ही झूम बिखर जाती
    इन शिखरों की माया ऐसी ।
    जैसा प्रभात, संध्या वैसी
    अमरों को फिर चिंता कैसी
    इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्त अपनाता है।
    गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।।

इस कविता की तुलना यदि हम पाठ हिमालय से करें तो पाएँगे कि गोपाल सिंह नेपाली ने इस कविता में यह दर्शाया है कि हिमालय का भारतवासियों से प्राचीन काल से ही अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। भारत-धरती का मुकुट हिमालय पर्वत अपनी जड़ों को पाताल तक ले जाए हुए है। उसके धवल शिखर आकाश का चुंबन करते हैं। सुबह और शाम के समय सूर्य की लालिमा इसे चूम कर निखर उठती है। इसकी छाया सागर और गंगा के समान लंबी है। यह अचल और अडिग है। बादल और तूफ़ान इससे टकराकर अपनी हार मान लेते हैं। भारतवासियों के जीवन पर हिमालय का स्पष्ट प्रभाव है क्योंकि वे भी हिमालय की तरह आत्माभिमानी और दृढ़निश्चयी है। हिमालय से निकलने वाली गंगा की पावनधारा सभी के दुखों को समाप्त कर देती है। यही कारण है कि यहाँ गांधी जैसे कर्मठ और युगचेता महापुरुषों ने जन्म लिया है।

जबकि पाठ हिमालय में लेखक नागार्जुन ने यह दर्शाया है कि हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँ किस स्वरूप से हिमालय की गोद से निकलती हैं? हिमालय उनका पिता और निकलने वाली नदियाँ उसकी बेटियाँ प्रतीत होती हैं।

प्रश्न 3.
यह लेख 1947 में लिखा गया था। तब से हिमालय से निकलनेवाली नदियों में क्या-क्या बदलाव आए हैं?
उत्तर
1947 से लेकर कुछ दशकों तक तो नदियाँ निर्मल, कांतिमान और नीरोगता प्रदान करने वाली थीं। किंतु जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक क्रांति, मननीय तथा प्रशासकीय उपेक्षा के कारण इनमें औषधीय गुण समाप्त हो गए हैं। निरंतर प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जगह-जगह बांध बनने के कारण जल-प्रवाह में न्यूनती हो गई जोकि मानव के लिए हितकर नहीं है।

प्रश्न 4.
अपने संस्कृत शिक्षक से पूछिए कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा क्यों कहा है?
उत्तर
हिमालय पर्वत पर देवताओं का वास माना जाता है। ऋषि-मुनि यहाँ निरंतर पूजा-अर्चना व तपस्या करते हैं इसीलिए कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
लेखक ने हिमालय से निकलनेवाली नदियों को ममता भरी आँखों से देखते हुए उन्हें हिमालय की बेटियाँ कहा है। आप उन्हें क्या कहना चाहेंगे? नदियों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं? जानकारी प्राप्त करें और अपना सुझाव दें।
उत्तर
लेखक का नदियों को हिमालय की बेटियाँ कहना बिल्कुल सही है हम भी उन्हें हिमालय की बेटियाँ ही कहेंगे क्योंकि हिमालय की गोदी में नदियाँ बच्चियों की भाँति खेलती हुई निकलती हैं। वर्तमान में नदियों की सुरक्षा हेतु निम्न कार्य किए जा रहे हैं-

  1. नदियों के जल को प्रदूषण से बचाना।
  2. बहाव को सही दिशा देना।
  3. अधिक नहरें न निकालना।
  4. जल का कटाव रोकना।

नोट-इस हेतु अधिक जानकारी इंटरनेट की सहायता से प्राप्त करें व नदियों की सुरक्षा हेतु अपने सुझाव सोचिए।

प्रश्न 2.
नदियों से होनेवाले लाभों के विषय में चर्चा कीजिए और इस विषय पर बीस पंक्तियों का एक निबंध लिखिए।
उत्तर-
नदियाँ हमारे जीवन में प्राचीन काल से ही उपयोगी रही हैं। ये हमारी संस्कृति की पहचान हैं। ये हमारे जीवन का आधार हैं। नदियों के किनारे हमारे तीर्थस्थल हैं। इनके आस-पास का क्षेत्र उपजाऊ होता है। गंगा-यमुना का क्षेत्र इसी कारण अधिक उपजाऊ है, क्योंकि सिंचाई के लिए सरलता से जल वहीं मिल सकता है। सदियों से नदियाँ आगमन तथा व्यापार का माध्यम रही हैं तथा नदियों की सीमा होने से शत्रुओं से रक्षा भी हो जाती थी क्योंकि सेना लेकर नदी पार करना कठिन कार्य था। आज के समय में भी नदियों की उपयोगिता कम नहीं हुई है। इनका जल सिंचाई के काम में आता है। अनगिनत जीव इनसे जीवन पाते हैं। नदियों के किनारे लोग अपनी छोटी-बड़ी सभी आवश्यकताएँ जैसे सिंचाई करने, पानी पीने, कपड़े धोने, नहाने, जानवरों के लिए पानी आदि का उपयोग करते हैं। नदियों पर बाँध बनाए गए हैं। इनसे बिजली तैयार की जा रही है। इसे ‘हाइड्रो इलेक्ट्रिीसिटी’ कहा जाता है। इस प्रकार नदियों ने रोजगार में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया है तथा आधुनिकीकरण में भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
अपनी बात कहते हुए लेखक ने अनेक समानताएँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी तुलना से अर्थ अधिक स्पष्ट एवं सुंदर बन जाता है। उदाहरण
(क) संभ्रांत महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं।
(ख) माँ और दादी, मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में डुबकियाँ लगाया करता।
• अन्य पाठों से ऐसे पाँच तुलनात्मक प्रयोग निकालकर कक्षा में सुनाइए और उन सुंदर प्रयोगों को कॉपी में भी लिखिए।
उत्तर

  1. दादी माँ शापभ्रष्ट देवी-सी लगीं।
  2. सागर की हिलोर की भाँति उसका यह मादक गान-गली भर के मकानों में इस ओर से उस ओर| तक लहराता हुआ पहुँचता और खिलौने वाला आगे बढ़ जाता।
  3. बच्चे ऐसे सुंदर थे जैसे सोने के सजीव खिलौने।
  4. संध्या को स्वप्न की भाँति गुजार देते हैं।
  5. मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर जब वह नाचता | था तब उस नृत्य में एक सहजात लय ताल रहती थी।

प्रश्न 2.
निर्जीव वस्तुओं को मानव-संबंधी नाम देने से निर्जीव वस्तुएँ भी मानो जीवित हो उठती हैं। लेखक ने इस पाठ में कई स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए हैं, जैसे
(क) परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं।
(ख) काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है।
• पाठ से इसी तरह के और उदाहरण ढूंढिए।
उत्तर

  1. संभ्रांत महिला की भाँति प्रतीत होती थी।
  2. इनका उछलना और कूदना, खिलखिलाकर हँसते जाना, इनकी भाव-भंगी, इनका यह उल्लास कहाँ गायब हो जाता है।
  3. पिता का विराट प्रेम पाकर भी अगर इनका हृदय अतृप्त ही है तो कौन होगा जो इनकी प्यास मिटा सकेगा।
  4. बुङ्का हिमालय अब इनकी नटखट बेटियों के लिए कितना सिर धुनता होगा।
  5. हिमालय की छोटी-बड़ी सभी बेटियाँ आँखों के सामने नाचने लगती हैं।

प्रश्न 3.
पिछली कक्षा में आप विशेषण और उसके भेदों से परिचय प्राप्त कर चुके हैं। नीचे दिए गए विशेषण और विशेष्य (संज्ञा) का मिलान कीजिएविशेषण

हिमालय को भारत का सिर क्यों कहा गया है? - himaalay ko bhaarat ka sir kyon kaha gaya hai?

उत्तर-

हिमालय को भारत का सिर क्यों कहा गया है? - himaalay ko bhaarat ka sir kyon kaha gaya hai?

प्रश्न 4.
द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में ‘और’ शब्द का लोप हो जाता है, जैसे-राजा-रानी द्वंद्व समास है जिसका अर्थ है राजा और रानी। पाठ में कई स्थानों पर द्वंद्व समासों का प्रयोग किया गया है। इन्हें खोजकर वर्णमाला क्रम (शब्दकोश-शैली) में लिखिए।
उत्तर-
पाठ में आए द्वंद्व समास के अन्य उदाहरण
उछलना-कूदना
माँ-बाप
दुबली-पतली
भाव-भंगी
नंग-धडंग

प्रश्न 5.
नदी को उलटा लिखने से दीन होता है जिसका अर्थ होता है गरीब। आप भी पाँच ऐसे शब्द लिखिए जिसे उलटा लिखने पर सार्थक शब्द बन जाए। प्रत्येक शब्द के आगे संज्ञा का नाम भी लिखिए, जैसे-नदी-दीन (भाववाचक संज्ञा)।
उत्तर

  1. याद – दया    (भाववाचक संज्ञा)
  2.  मरा – राम    (व्यक्तिवाचक संज्ञा)
  3.  भला – लाभ   (भाववाचक संज्ञा)
  4.  राही – हीरा   (द्रव्यवाचक संज्ञा)
  5.  नशा – शान   (भाववाचक संज्ञा)

प्रश्न 6.
समय के साथ भाषा बदलती है, शब्द बदलते हैं और उनके रूप बदलते हैं, जैसे-बेतवा नदी के नाम का दूसरा रूप ‘वेत्रवती’ है। नीचे दिए गए शब्दों में से हूँढकर इन नामों के अन्य रूप लिखिए-

हिमालय को भारत का सिर क्यों कहा गया है? - himaalay ko bhaarat ka sir kyon kaha gaya hai?

उत्तर

हिमालय को भारत का सिर क्यों कहा गया है? - himaalay ko bhaarat ka sir kyon kaha gaya hai?

प्रश्न 7.
उनके खयाल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढे हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला करती हैं।’
• उपर्युक्त पंक्ति में ‘ही’ के प्रयोग की ओर ध्यान दीजिए। ‘ही’ वाला वाक्य नकारात्मक अर्थ दे रहा है। इसीलिए ‘ही’ वाले वाक्य में कही गई बात को हम ऐसे भी कह सकते हैं-उनके खयाल में शायद यह बात न आ सके।
• इसी प्रकार नकारात्मक प्रश्नवाचक वाक्य कई बार ‘नहीं’ के अर्थ में इस्तेमाल नहीं होते हैं, जैसे-महात्मा गाँधी को कौन नहीं जानता? दोनों प्रकार के वाक्यों के समान तीन-तीन उदाहरण सोचिए और इस दृष्टि से उनको विश्लेषण कीजिए।
उत्तर

  1. वे शायद ही यह सोच पाएँ कि मैं तुम्हारे साथ आऊँगा।
  2. उन्होंने शायद ही जाना हो कि मैं बीमार हूँ।
  3. राम शायद ही यह सीख पाए कि गरीबों की सेवा करना ही मानव धर्म है।
  1. रमा के स्वभाव को कौन नहीं पहचानता?
  2. दु:शासन की चालें किसने नहीं जानीं?
  3. विभीषण की करतूत कौन नहीं जानता?

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हिमालय को भारत का ऊँचा मस्तक क्यों कहा जाता है?

इसलिए बाबा भोलेनाथ भी हिमालय के अन्दर कंदराओं में निवास करते थे। बाबा भोलेनाथ के शिष्य काफी पैसे वाले एवं प्रभावी थे। तापान्तर रहता है।

3 हिमालय को भारत का शीश क्यों कहा गया है?

भारत की सुंदरता और महानता का श्रेय हिमालय को क्यों दिया गया है।

हिमालय को भारत का क्या कहा गया है?

हिमालय भारत में स्थित एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है | हिमालय को पर्वतराज भी कहते हैं जिसका अर्थ है पर्वतों का राजा |। कालिदास तो हिमालय को पृथ्वी का मानदंड मानते हैं। हिमालय की पर्वतश्रंखलाएँ शिवालिक कहलाती हैं।

हिमालय को भारत का पहले क्यों कहा जाता है?

1 Answer. हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर एक अभेद्य दीवार के रूप में सन्तरी की भाँति अडिग खड़ा है, जिस कारण हिमालय को भारत का प्रहरी कहा जाता है।