गुप्त युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है? - gupt yug ko bhaarateey itihaas ka svarn yug kyon kaha jaata hai?

आज की हमारी पहली post है गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? उम्मीद करता हूँ की आपको ये अच्छी लगेगी |

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गुप्तकाल – स्वर्ण युग

भारतीय इतिहास में गुप्तकाल को ‘स्वर्ण’ युग’ की संज्ञा से विभूषित किया गया है, और इस काल की तुलना पेरिक्लियन, आगस्टन और एलिजाबेधन कालों से किया गई है । डा० रमाशंकर त्रिपाठी का कथन है, गुप्तकाल की तुलना प्रायः यूनान के इतिहास में पेरिक्लीन के काल से अथवा इंग्लैंड में एलिजाबेथ के युग से की जाती है ।

इतिहास के ‘स्वर्ण युग’ उस काल को कहा जाता है जिसमें राज्य और प्रजा का चतुर्दिक विकास होता है । निस्सन्देह गुप्त काल में भारत की बहुमुखी प्रगति हुई और अन्य राष्ट्रों के सम्मुख हमारे देश का मस्तक उन्नत हुआ इस काल में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक विकास हुआ और प्रजा की आध्यात्मिक, मानसिक तथा भौतिक प्रगति हुई।

डा० स्मिथ का कथन है, हिन्दू भारत के इतिहास में महान् गुप्त सम्राटों का काल किसी भी अन्य काल से अधिक सौम्य तथा सन्तोषजनक चित्र उपस्थित करता है। साहित्य, कला तथा विज्ञान की सामान्य से कहीं अधिक उत्पन्न हुई और बिना किसी अत्याचार के धर्म में क्रमागत परिवर्तन सम्पादित किये गये ।

भारतीय इतिहास में गुप्तकाल को स्वर्ण युग कहे जाने के निम्नलिखित मुख्य कारण है –

महान सम्राटों का युग

गुप्त युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है? - gupt yug ko bhaarateey itihaas ka svarn yug kyon kaha jaata hai?
गुप्तकाल महान सम्राट

गुप्त काल के सम्राट वीर योद्धा, कुशल सेनानी महान विजेता तथा सफल शासक थे उन्होंने भारत में एक मुड़ साम्राज्य स्थापित किया। समुद्रगुप्त, जिसे भारतीय नेपोलियन कहा जाता है, ने उत्तर भारत के अति रिक्त मध्य तथा दक्षिण भारत के राज्यों पर विजय प्राप्त की थी।

उसने चीनी सम्राट तक के कुछ प्रान्तों पर अधिकार कर लिया था। इसी प्रकार चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अनेक विजय प्राप्त करके ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी। स्कन्दगुप्त ने हूणों को युद्ध में पछाड़ कर उन्हें देश से बाहर निकाल दिया था। गुप्त सम्राट् केवल युद्ध में हो अद्वितीय न थे, बरन्, वे शासन के क्षेत्र में भी महान थे |

गुप्तकाल राजनीतिक एकता का युग

अशोक की मृत्यु के उपरान्त देश की राजनीतिक एकता लुप्त हो गयी थी और सम्पूर्ण देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया था। गुप्त सम्राटों ने देश में एकछत्र राज्य स्थापित करने का प्रयत्न किया था, जिसमें उनको पर्याप्त सफलता मिली थी। समुद्रगुप्त की दिग्विजय का एक मात्र उद्देश्य अन्य राजाओं का अपनी अधीनता स्वीकार कराना था।

गुप्त युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है? - gupt yug ko bhaarateey itihaas ka svarn yug kyon kaha jaata hai?
राजनीतिक एकता

गुप्तकाल को स्वर्णयुग सिद्ध करते हुए डा० रमाशंकर त्रिपाठी ने लिखा है –

“The period of the Imperial Guptas has often been described as the golden age of Hindu history. It comprised the reigns of a number of able, versatile and mighty, monarchs’ who brought about the consolidation of a large part of Northern India under one political umbrella and ushered in an age of order by govern ement and progress.”

-Dr. R. S. Tripathi.

शान्ति तथा सुव्यवस्थित शासन का युग

गुप्तकाल के शासकों ने एक ऐसे शक्तिशाली और सुव्यवस्थितः साम्राज्य को स्थापना की थी, जो कई सौ वर्षों तक बना रहा । इस काल का शासन पूर्ण उदार तथा न्याय पर नाधारित था । इस काल में शान्ति और समृद्धि होने के कारण जनता को विकास का विशेष अवसर प्राप्त हुआ था। इस काल में न्याय की उत्तम व्यवस्था थी और दण्ड विधान मौर्य काल के समान कठोर न थे । फाह्यान के लेखों के अनुसार देश का शासन बहुत अच्छी प्रकार से चल रहा था।

शासन की उदारता का युग

गुप्तकाल के शासक देश को समृद्धिशाली बनाने के लिए विशेष प्रयत्नशील रहते थे। वे राजमार्ग बनवाने और कृषि की उन्नति के लिए तालाब, झोल तथा बाँधों का निर्माण करवाते थे । राज्य की ओर से व्यापार तथा कृषि के विकास पर विशेष बल दिया जाता था, इस कार्य हेतु प्रोत्साहन के रूप में समय-समय पर कृषि व व्यापारिक गोष्ठियाँ हुआ करती थी।

डा० अस्तेकर ने लिखा है –

“We may, therefore, be well proud of the Gupta administrative system which served as the ideal for contemporary and later states.”

-D. Altekar.

वैदिक धर्म, शिक्षा एवं साहित्य की उन्नति का युग

बंदिक धर्म ने विशेष उन्नति की थी। इस युग में शिव और विष्णु की पूजा का विशेष प्रचलन या । काली, चण्डी, दुर्गा आदि की भी आराधना होती थी । नाग एवं यज्ञ पूजा और सूर्य पूजा का भी प्रचलन था।

अवतारवाद, मन्दिरों में पूजा-पाठ और तीर्थयात्रा को मान्यता प्रदान की गई थी। इस युग में बौद्ध धर्म पर वैदिक धर्म का प्रभाव था । जैन धर्म भी वैदिक धर्म के प्रभाव से नहीं बचा। इन धर्मों में भी पूजा-पाठ, अर्जन आदि का प्रचलन हो गया ।

राजा सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। धार्मिक कलह उस युग में नहीं थी। श्री सत्यकेतु विद्यालंकार लिखते हैं, “सब मतो के आचार्य व पण्डित आपस में शास्त्रार्थ में व्यस्त रहते थे । अपने ग्रन्थों में जहां एक दूसरे का युक्त व तर्फ से खन्डन करते थे, वहाँ पण्डित मण्डलियों और जन साधारण के समक्ष भी उनमें शास्त्रार्थ व वाद-विवाद होते रहते थे पर इनके कारण जनता में धार्मिक विद्वेष उत्पन्न नहीं होता था।

इस काल में राजा धर्म के मामले में सहिष्णु थे। सम्राट चन्द्रगुप्त परम भागवत थे। पर उन्होंने अपने राजकुमारों की शिक्षा के लिए आचार्य वसुबन्धु को नियुक्त किया था। एक ही परिवार में भिन्न-भिन्न व्यक्ति भिन्न-भिन्न धर्म के अनुयायी हो सकते थे। यह इस युग की धार्मिक सहिष्णुता का ज्वलन्त उदाहरण है ।

इस युग में तक्षशिला विश्वविद्यालय का प्रभाव कम हो गया था । इस युग में ज्योतिष, आयुर्वेद, गणित और रसायनशास्त्र में पर्याप्त उन्नति हुई थी ।

वैज्ञानिकों में आर्यभट्ट और वराहमिहिर के नाम बहुत प्रसिद्ध हैं। चरक और सुश्रुत जैसे महानु चिकित्सक भी इस युग में हुए। साहित्य के क्षेत्र में बहुत अधिक उन्नति हुई इस युग के कवियों में कालिदास, मातृगुप्त, भारवि भट्ट आदि के नाम विशेष प्रसिद्ध हैं।

कालिदास और शूद्रक ने नाटक के क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी । डॉ० अम्बेदकर का कथन है ‘पंचतंत्र’ और ‘हितोपदेश’ की रचना इसी युग में हुई। चन्द्रगोमिन का व्याकरण, अमरसिंह का‘अमरकोप’ और दण्डी का ‘काव्यादर्श’ भी इसी युग में रचे गये ।

धार्मिक सहिष्णुता तथा स्वतन्त्रता का युग

गुप्तकाल के सम्राट् विष्णु के उपासक होते हुये भी अन्य धर्मों के प्रति उदार तथा सहिष्णु थे। सभी लोग अपने धर्मों का पालन निर्भय होकर करते थे । इस काल में हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान हो रहा था, साथ ही जैन तथा बौद्ध धर्मों का भी विकास हो रहा था।

सभी धर्म वाले पूर्ण शिष्टतापूर्वक धार्मिक बाद-विवादों में भाग लेते थे ।धर्म-प्रचार के लिये लोगों को मौत के घाट नहीं उतारा जाता था। सभी धर्मावलम्बी अपने धर्म के प्रचार का भगीरथ प्रयास कर रहे थे इस काल में हिन्दू धर्म का विशेष विकास हुआ तथा इस धर्म की विजयपताका विदेशों में भी फहराने लगी।

गुप्तकाल वैज्ञानिक प्रगति का युग

गुप्त युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है? - gupt yug ko bhaarateey itihaas ka svarn yug kyon kaha jaata hai?
वैज्ञानिक प्रगति

इस काल में विज्ञान की अनेक शाखायें जैसे रसायन विज्ञान, धातु विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, ओतिष और गणित की बड़ी उन्नति हुई थी। इस युग में रेखागणित का प्रारम्भ हुआ और अंकगणित में दशमलव भिन्न का अन्वेषण हुआ ।

आर्यभट्ट प्रसिद्ध गणितज्ञ खगोलवेत्ता थे। यह सर्वप्रथम भारतीय थे जिन्होंने यह खोज की थी कि पृथ्वी अपनी कोली पर घूमती है।

इस काल में धन्वन्तरि सरी आयुर्वेदाचार्य और ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर भी मे (सहमिहिर को डा० स्मिथ से ग्रीक विद्याओं का पण्डित कहा है।

वराहमिहिर ‘जातक’ ‘बृहत्संहिता’, ‘बृहज्जातक’ और ‘पंच सिद्धान्तिका’ ग्रन्थों की रचना की थी। इस काल में वैद्यक को उन्नति हुई और चरक तथा सुश्रुत गुप्त काल के प्रसिद्ध वैध थे ।

मूर्तिकला की उन्नति का युग

गुप्तकाल की मूर्तिकला को देखकर आधुनिक काल के विद्वान दाँतों तले उंगली दबा लेते हैं। इस काल में महात्मा बुद्ध की एक मूर्ति मिली है जो बरमियम के अजायबघर में रही है।

सारनाथ की धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में बुद्ध जी की मूर्ति विशेष आकर्षक है। इसी प्रकार मथुरा में भगवान बुद्ध की जो मूर्ति है वह भी कला की दृष्टि से श्रेष्ठ है। गुप्तकालीन मूर्तिकला में सादगी है, परन्तु उसमें आकर्षण है।

चित्रकला की उन्नति का युग

विश्व विकला में गुप्तकालीन चित्र कला को प्रमुख स्थान प्राप्त है। अजन्ता की गुफाओं की चित्रकारी देखकर प्रत्येक मानव का मन-मयूर नाच उठता है। संसार के सभी चित्रकारों ने एकमत होकर अजन्ता की चित्रकला की प्रशंसा की है।

स्वीडेन ने अजन्ता चित्रकारी के सम्बन्ध में लिखा है –

“They represent the climax to which genuine Indian art has achieved everything in which these pictures, from the composition as a whole to the smallest flower testifies to the depth of insight coupled with greatest technical skill.”

-Sweeden.

संगीत और अन्य कलाओं को उन्नति

गुप्तकाल में संगीत कला की भी बड़ी उन्नति हुई थी। प्रत्येक अच्छे कुटुम्ब में लड़कियों को संगीत की उचित शिक्षा दी जाती थी। गायन के अतिरिक्त वादन, नृत्यकला और अन्य ललित कलाओं की भी खूब उन्नति हुई।

इस काल के सम्राट कलाप्रेमी और कलाकारों के संरक्षक थे। समुद्रगुप्त के काल की जो मुद्राए मिली है उन पर उसका वीणा सहित चित्र अंकित है। गुप्तकालीन कला की कुछ विशेषताओं का वर्णन ‘एन्यू हिस्ट्री आफ इण्डियन पीपुल’ पुस्तक में इस प्रकार किया गया है-

“गुप्तकालीन कला को कुछ विशेषतायें हैं, जिन्होंने अपने युग को अमर बना दिया है। स्वाभाविकता बकोटि का सौन्दर्य, सरलता तथा आध्यात्मिकता उस युग की कला की विशेषतायें हैं। उन कलाकारों के सौन्दर्य प्रेम में वासना का सर्वथा अभाव था।”

इनके अतिरिक्त इस काल में उपयोगी कलाओं का भी पर्याप्त विकास हुआ। इस प्रकार कला के उत्कर्ष के दृष्टिकोण से गुप्त काल निस्सदेह स्वर्ण युग था ।

व्यापारिक उन्नति का युग

गुप्तकाल में भारत का व्यापार विदेशों से बहुत अधिक बढ़ गया था। यह व्यापार जल एवं स्थल दोनों ही मार्गों से होता था । आन्तरिक व्यापार की अवस्था भी अत्यन्त संतोषजनक थी। मुद्राओं की उचित व्यवस्था के फलस्वरूप विनिमय में सरलता होती थी और अनेक राजमार्गों की व्यवस्था व्यापारिक उन्नति को दृष्टि में रखकर ही की गई थी। अन्य देशों के व्यापारी भी भारत से व्यापार करने में शोक का अनुभव करते थे |

विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रसार का युग

गुप्तकाल में भारतीय संस्कृति का बहुत अधिक प्रसार हुआ। इण्डोचीन, जावा, सुमात्रा और बोनियो आदि भारतीय संस्कृति के प्रमुख केन्द्र बन गये थे। भारतीय संस्कृति के प्रसार में उत्तरी भारत और दक्षिणी भारत दोनों का ही महान योगदान रहा। सुदूरपूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों आदि का बहुत अधिक प्रचार हुआ।

डॉ० अल्तेकर ने लिखा है-

“उस युग के हिन्दू दर्शन के नये और साहसपूर्ण सम्प्रदायों का विकास करने में उतने ही सफल थे जितने कि समुद्र द्वारा माल ले जाने के लिये सुदृढ़ और विशाल जलमानों का निर्माण करने में ।”

“The Hindus of that age were as successful in evolving new and bold system of philosophy as in building large and steady vessels to carry goods over sea.”

— Dr. Altekar.

आज भी विभिन्न देशों में गुप्तकालीन भारतीय संस्कृति के चिन्ह देखे जा सकते है। निष्कर्ष अन्त में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि गुप्त काल में भारत की सर्वतोमुखी उन्नति हुई। राजनीतिक, सामाजिक और कलात्मक सभी दृष्टियों से यह युग महान था । यहीं कारण है कि विभिन्न विद्वानों ने उसे स्वर्ण युग के नाम से पुकारा है। श्री अरविन्दो ने लिखा है

“The Gupta age witnessed the creative and aesthetic enthusiasm of race in every field. ….. Never in the history, has India seen such a many sided blossoming her force of life.”

-Shri Aurobindo.

प्रसिद्ध इतिहासकार बानेंट ने उसकी तुलना यूनान के पेरिक्लियन युग से करते हुए लिखा है –

“Gupta period is in the annals of classical India, almost, What Pariclean age in the history of Greece.”

-Barnett.

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गुप्तकाल चित्रकला की उन्नति का युग |


विश्व विकला में गुप्तकालीन चित्र कला को प्रमुख स्थान प्राप्त है। अजन्ता की गुफाओं की चित्रकारी देखकर प्रत्येक मानव का मन-मयूर नाच उठता है। संसार के सभी चित्रकारों ने एकमत होकर अजन्ता की चित्रकला की प्रशंसा की है।

गुप्तकाल को वैज्ञानिक प्रगति का युग क्यों कहा जाता है ?


इस काल में विज्ञान की अनेक शाखायें जैसे रसायन विज्ञान, धातु विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, ओतिष और गणित की बड़ी उन्नति हुई थी। इस युग में रेखागणित का प्रारम्भ हुआ और अंकगणित में दशमलव भिन्न का अन्वेषण हुआ । आर्यभट्ट प्रसिद्ध गणितज्ञ खगोलवेत्ता थे।
यह सर्वप्रथम भारतीय थे जिन्होंने यह खोज की थी कि पृथ्वी अपनी कोली पर घूमती है। इस काल में धन्वन्तरि सरी आयुर्वेदाचार्य और ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर भी मे (सहमिहिर को डा० स्मिथ से ग्रीक विद्याओं का पण्डित कहा है। वराहमिहिर ‘जातक’ ‘बृहत्संहिता’, ‘बृहज्जातक’ और ‘पंच सिद्धान्तिका’ ग्रन्थों की रचना की थी। इस काल में वैद्यक को उन्नति हुई और चरक तथा सुश्रुत गुप्त काल के प्रसिद्ध वैध थे ।

गुप्त काल में भारत का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?

गुप्तकाल में विज्ञान प्रौद्योगिकी से लेकर साहित्य, स्थापत्य तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में नये प्रतिमानों की स्थापना की गई जिससे यह काल भारतीय इतिहास में 'स्वर्ण युग' के रूप में जाना गया।

गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग है क्या आप इस मत से सहमत हैं?

गुप्त-काल में आकर विकास की यह धारा अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गयी तथा यह उन्नति बाद की शताब्दियों के लिये मानदण्ड बन गयी । अत: हम गुप्तकाल को भारतीय संस्कृति के चरमोत्कर्ष का काल मान सकते हैं, न कि पुनरुत्थान का । अपनी जिन विशेषताओं के कारण गुप्तकाल भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णयुग का स्थान बनाये हुए हैं

स्वर्ण युग का क्या मतलब होता है?

स्वर्णयुग संज्ञा पुं० [सं०] सुख समृद्धि एवं शांति का काल ।

गुप्त काल का समय क्या है?

इसका शासन काल (320 ई. से 335 ई. तक) था। चंद्रगुप्त ने गुप्त संवत् की स्थापना 319–320 ई.