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Class 9 Hindi Sparsh book Chapter 2 Everest Meri Shikhar Yatra (एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा) Summary, Explanation with Video and Question AnswersEverest Meri Shikhar Meri Yatra – एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा CBSE Class 9 Hindi Sparsh Lesson 2 Summary with a detailed explanation of the lesson ‘Everest Meri Shikhar Yatra Summary along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises and Question and Answers given at the back of the lesson यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”स्पर्श – भाग 1” के पाठ 2 “एवरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे – कक्षा 9 स्पर्श भाग 1 पाठ 2 एवरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा”By Shiksha Sambra See Video Explanation of Everest Meri Shikhar Yatra लेखिका परिचयलेखिका – बचेंद्री पाल एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा पाठ प्रवेशइस पाठ में बचेंद्री पाल अपनी एवरेस्ट पर की गई चढ़ाई और एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला बनने के सफर की आत्मकथा को हम सभी के साथ साँझा कर रही हैं। बचेंद्री पाल को एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान क्या-क्या समस्यायें हुई और उन्होंने तथा उनके साथियों ने किस तरह उन समस्याओं का सामना किया बचेंद्री पाल उन सभी यादों को इस पाठ के माध्यम से सभी तक पहुँचाना चाहती हैं। Everest meri shikhar yatra Class 9 Video Explanationएवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा पाठ सारबचेंद्री पाल अपनी एवरेस्ट की चढ़ाई के सफर की बात करते हुए कहती हैं कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाला दल 7 मार्च को दिल्ली से हवाई जहाज़ से काठमांडू के लिए चल पड़ा था। उस दल से पहले ही एक मज़बूत दल बहुत पहले ही एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए चला गया था जिससे कि वह बचेंद्री पाल वाले दल के ‘बेस कैम्प’ पहुँचने से पहले बर्फ के गिरने के कारण बने कठिन रास्ते को साफ कर सके। बचेंद्री पाल कहती हैं कि नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है।यहीं से बचेंद्री पाल ने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि लोगों के द्वारा बचेंद्री पाल को बताया गया कि शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर तूफानों को झेलना पड़ता है, विशेषकर जब मौसम खराब होता है। जब उनका दल 26 मार्च को पैरिच पहुँचा तो उन्हें हमें बर्फ के खिसकने के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःख भरा समाचार मिला। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे। इस समाचार के कारण बचेंद्री पाल के अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाई उदासी को देखकर उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने सभी सदस्यों को साफ़-साफ़ कह दिया कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करना कोई आसान काम नहीं है, वहाँ पर जाना मौत के मुँह में कदम रखने के बराबर है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उपनेता प्रेमचंद, जो पहले वाले दल का नेतृत्व कर रहे थे, वे भी 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने बचेंद्री पाल के दल की पहली बड़ी समस्या बचेंद्री पाल और उनके साथियों को खुंभु हिमपात की स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ते को चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायज़ा ले लिया गया है। उन्होंने बचेंद्री पाल और उनके साथियों का ध्यान इस पर भी दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ की नदी है और बर्फ का गिरना अभी जारी है। जिसके कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और उन लोगों को रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि ‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले उन्हें और उनके साथियों को एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु के सही न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से अब बचेंद्री पाल और उनके साथी आशा उत्पन्न करने स्थिति में नहीं चल रहे थे। सभी घबराए हुए थे। बेस कैंप पहुँचाने पर दूसरे दिन बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। बचेंद्री पाल हैरान होकर खड़ी रह गई। बचेंद्री पाल कहती हैं कि दूसरे दिन नए आने वाले अपने ज़्यादातर सामान को वे हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ मीनू मेहता ने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लठ्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और उनके पहले दल के तकनीकी कार्यों के बारे में उन्हें विस्तार से सारी जानकारी दी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनका तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए पहले से ही निश्चित था। रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल साथ-साथ चढ़ रहे थे। उनके पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे वे अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल ने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप-एक पर पँहुचने वाली केवल वे दो ही महिलाएँ थीं। जब अप्रैल में बचेंद्री पाल कैंप बेस में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ उनके पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जब उनकी बारी आई, तो उन्होंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि वे इस चढ़ाई के लिए बिल्कुल ही नई सीखने वालीं हैं और एवरेस्ट उनका पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और बचेंद्री पाल से कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ बचेंद्री पाल के कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा कि बचेंद्री पाल एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती है। उसे तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि 15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन वह ल्होत्से की बर्फीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। वह गहरी नींद में सोइ हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग उनके सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से उनकी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। एक लंबा बर्फ का पिंड उनके कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका एक बहुत बड़ा बर्फ का टुकड़ा बन गया था। लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से बचेंद्री पाल और उनके साथियों के तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे । उन्होंने बचेंद्री पाल के चारों तरफ की कड़ी जमी बर्फ की खुदाई की और बचेंद्री पाल को उस बर्फ की कब्र से निकाल कर बाहर खींच लाने में सफल हो गए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगली सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक वे सभी कैम्प-दो पर पहुँच गए थे। बचेंद्री पाल और उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने पिछली रात को हुए हादसे को उनके शब्दों में कुछ इस तरह कहा कि यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक अत्यंत साहस से भरा कार्य था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सभी नौ पुरुष सदस्यों को जिन्हें चोटें आई थी और हड्डियां टूटी थी उन्हें बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर बचेंद्री पाल की तरफ मुड़े और कहने लगे कि क्या वह डरी हुई है? इसके उत्तर में बचेंद्री पाल ने हाँ में उत्तर दिया। कर्नल खुल्लर के फिर से पूछने पर कि क्या वह वापिस जाना चाहती है? इस बार बचेंद्री पाल ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया कि वह वापिस नहीं जाना चाहती।बचेंद्री पाल कहती हैं कि दोपहर बाद उन्होंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। उन्होंने बर्फीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। बचेंद्री पाल को जय जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने बचेंद्री पाल के द्वारा लाई गई चाय वगैरह पी लेकिन बचेंद्री पाल को और आगे जाने से रोकने की कोशिश भी की। मगर बचेंद्री पाल को की से भी मिलना था। थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर उन्होंने की को देखा। की बचेंद्री पाल को देखकर चौंक गया और उसने बचेंद्री पाल से कहा कि उसने इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया? बचेंद्री पाल ने भी उसे दृढ़तापूर्वक कहा कि वह भी औरों की तरह एक पर्वतारोही है, इसीलिए वह इस दल में आई हुई है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगले दिन वह सुबह चार बजे उठी। उसने बर्फ को पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चाॅकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद वह लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सुबह 6:20 पर जब अंगदोरजी और वह साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हलकी-हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक थी। बचेंद्री पाल और उनके साथियों ने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और बचेंद्री पाल को भी उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जमे हुए बर्फ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, ऐसा लगता था मानो शीशे की चादरें बिछी हों। उन सभी को बर्फ काटने के फावडे़ का इस्तेमाल करना ही पड़ा और बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्हें इतनी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ की धरती को फावडे़ के दाँते काट सके। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्होंने उन खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया। क्योंकि वहाँ एक छोटी सी भी गलती मौत का कारण बन सकती थी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि दो घंटे से भी कम समय में ही वे सभी शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और उन्होंने कहा कि पहले वाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि अब उनका दल इसी गति से चलता रहे तो वे शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि बचेंद्री पाल इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यतः आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जैसे ही उसने बचेंद्री पाल के रेगुलेटर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्हें महसूस हुआ कि सीधी और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।बचेंद्री पाल कहती हैं कि दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी कुछ भी देख पाना संभव नहीं हो पा रहा था। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है। यह देख कर बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनकी तो साँस मानो रुक गई थी। उन्हें विचार आया कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर वह एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली बचेंद्री पाल प्रथम भारतीय महिला थी।बचेंद्री पाल कहती हैं कि एवरेस्ट की चोटी की नोक पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हजारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए उन सभी के सामने प्रश्न अब सुरक्षा का था। उन्होंने पहले बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से खड़ा रहने लायक जगह बनाई। ख़ुशी के इस पल में बचेंद्री पाल को अपने माता-पिता का ध्यान आया। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जैसे वह उठी, उन्होंने अपने हाथ जोडे़ और वह अपने रज्जु-नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने बचेंद्री पाल को प्रोत्साहित किया और लक्ष्य तक पहुँचाया। बचेंद्री पाल ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने बचेंद्री पाल को गले से लगाया और उनके कानों में फुसफुसाया कि दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। वह बहुत प्रसन्न है। कर्नल खुल्लर उनकी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। बचेंद्री पाल को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि वे बचेंद्री पाल की इस अलग प्राप्ति के लिए बचेंद्री पाल के माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। वे बोले कि देश को बचेंद्री पाल पर गर्व है और अब वह एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो उसके द्वारा अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम अलग होगा। Top एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा पाठ की व्याख्याएवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया। एक मज़बूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे ‘बेस कैम्प’ पहुँचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ कर सके। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल अपनी एवरेस्ट की चढ़ाई के सफर की बात करते हुए कहती हैं कि एवरेस्ट
पर चढ़ाई करने वाला दल 7 मार्च को दिल्ली से हवाई जहाज़ से काठमांडू के लिए चल पड़ा था। उस दल से पहले ही एक मज़बूत दल बहुत पहले ही एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए चला गया था जिससे कि वह बचेंद्री पाल वाले दल के ‘बेस कैम्प’ पहुँचने से पहले बर्फ के गिरने के कारण बने कठिन रास्ते को साफ कर सके। बचेंद्री पाल कहती हैं कि नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाज़ार ही था, जहाँ से बचेंद्री पाल ने सर्वप्रथम
एवरेस्ट को देखा था, जो नेपालियों में ‘सागरमाथा’ के नाम से प्रसिद्ध है। बचेंद्री पाल को एवरेस्ट का यह नाम अच्छा लगा था। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि जब वे एवरेस्ट की तरफ गौर से देख रही थी तब उन्होंने एक भारी बर्फ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो उस पर्वत-शिखर पर लहराता हुआ किसी एक ध्वज-सा लग रहा था। लोगों के द्वारा बचेंद्री पाल को बताया गया कि यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सुखी हुई बर्फ पर्वत पर उड़ती रहती है। बर्फ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता है। उन्हें यह भी बताया गया कि शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफानों को झेलना पड़ता है, विशेषकर जब मौसम खराब होता है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि यह सब बातें उन्हें डराने के लिए काफ़ी थी, फिर भी बचेंद्री पाल कहती हैं कि एवरेस्ट के प्रति वे विशेष रूप से मुग्ध थी और इसकी कठिन से भी कठिन चुनौतियों का सामना करना चाहती थी। जब हम 26 मार्च को पैरिच पहुँचे, हमें हिम-स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान-दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि जब उनका दल 26 मार्च को पैरिच पहुँचा तो उन्हें हमें बर्फ के खिसकने के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःख भरा समाचार मिला। बचेंद्री पाल कहती हैं कि खुंभु हिमपात पर जानेवाले
अभियान-दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे। इस समाचार के कारण बचेंद्री पाल के अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाई उदासी को देखकर उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने सभी सदस्यों को साफ़ – साफ़ कह दिया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु को भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए। उनके कहने का अभिप्राय था कि एवरेस्ट पर चढ़ाई
करना कोई आसान काम नहीं है, वहाँ पर जाना मौत के मुँह में कदम रखने के बराबर है। व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि उपनेता प्रेमचंद, जो पहले वाले दल का नेतृत्व कर रहे थे, वे भी 26 मार्च को पैरिच लौट आए। वे बचेंद्री पाल के दल के लिए एवरेस्ट की चढ़ाई में आने वाली समस्याओं को कम करने के लिए पहले ही एवरेस्ट की ओर बढ़ गए थे। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्होंने
बचेंद्री पाल के दल की पहली बड़ी समस्या बचेंद्री पाल और उनके साथियों को खुंभु हिमपात की स्थिति से के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उनके दल ने कैंप-एक जो 6000 मी. की ऊँचाई पर है और जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है। उन्होंने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता को चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायज़ा ले लिया गया है। उन्होंने बचेंद्री पाल और उनके साथियों का ध्यान इस पर भी दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ की नदी है और
बर्फ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमित और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और उन लोगों को रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि ‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले उन्हें और उनके साथियों को एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु के सही न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से अब बचेंद्री पाल और उनके साथी आशा उत्पन्न करने स्थिति में नहीं
चल रहे थे। सभी घबराए हुए थे। एवरेस्ट शिखर को बचेंद्री पाल ने पहले दो बार देखा था, लेकिन एक दूरी से। बेस कैंप पहुँचाने पर दूसरे दिन बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। बचेंद्री पाल हैरान होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रही। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि हिमपात अपने आपमें एक तरह से बर्फ के टुकड़ों का बिना किसी व्यवस्था के गिरना होता है। बचेंद्री पाल और उनके साथियों को बताया गया कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ में हलचल हो जाती है, जिससे बड़ी-बड़ी बर्फ की चट्टाने अचानक से गिर जाया करती हैं और अन्य कारणों से भी अचानक हमेशा ही खतरनाक स्थिति धारण कर लेती है। सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चैडे़ गढ़ों और दरारों में बदल जाने का केवल खयाल ही
बहुत बचेंद्री पाल और उनके साथी डर गए थे। बचेंद्री पाल कहती हैं कि इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि उनके पुरे सफर के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन चढ़ाई करने वालों और कुलियों को हर दिन छूता रहेगा। शब्दार्थ – व्याख्या –
बचेंद्री पाल कहती हैं कि दूसरे दिन नए आने वाले अपने ज़्यादातर सामान को वे हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ मीनू मेहता ने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लठ्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और उनके पहले दल के तकनीकी कार्यों के बारे में उन्हें विस्तार से सारी जानकारी दी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनका तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए पहले से ही निश्चित था। रीता गोंबू
तथा बचेंद्री पाल साथ-साथ चढ़ रहे थे। उनके पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे वे अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल ने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप-एक पर पँहुचने वाली केवल वे दो ही महिलाएँ थीं। Top शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा अंततः साउथ कोल पहुँच गए और 29 अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। यह सब बचेंद्री पाल और उनके साथियों के लिए राहत भरा कार्य था जो उन्हें ख़ुशी दे रहा था। जब अप्रैल में
बचेंद्री पाल कैंप बेस में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ उनके पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जब उनकी बारी आई, तो उन्होंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि वे इस चढ़ाई के लिए बिल्कुल ही नई सीखने वालीं हैं और एवरेस्ट उनका पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और बचेंद्री पाल से कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार
एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ बचेंद्री पाल के कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा कि बचेंद्री पाल एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती है। उसे तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए। व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि 15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन वह ल्होत्से की बर्फीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और
व्यक्ति थे। लोपसांग, तशारिंग बचेंद्री पाल के तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहने वाले शेरपा दूसरे तम्बुओं में थे। बचेंद्री पाल कहती हैं कि वह गहरी नींद में सोइ हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग उनके सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से उनकी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। तभी बचेंद्री पाल को महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज़ उनके शरीर पर से उन्हें कुचलती हुई चल रही है। उन्हें साँस लेने में भी कठिनाई हो रही
थी। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया था? एक लंबा बर्फ का पिंड उनके कैंप के
ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका एक बहुत बड़ा बर्फ का टुकड़ा बन गया था। हिमखंडों, बर्फ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ के इस विशालकाय टुकड़े ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तज़ गति और भयानक आवाज़ के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को पूरी तरह नष्ट कर दिया। वास्तव में हर व्यक्ति को चोट लगी थी। यह एक आश्यर्च था कि किसी की मृत्यु नहीं हुई थी। लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से बचेंद्री पाल और उनके साथियों के तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे और तुरंत ही बहुत तेज़ी
से बचेंद्री पाल को बचाने की कोशिश में लग गए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि थोड़ी-सी भी देर का सीधा अर्थ था मृत्यु। बडे़-बडे़ बर्फ के टुकड़ों को मुश्किल से हटाते हुए उन्होंने बचेंद्री पाल के चारों तरफ की कड़ी जमी बर्फ की खुदाई की और बचेंद्री पाल को उस बर्फ की कब्र से निकाल कर बाहर खींच लाने में सफल हो गए। शब्दार्थ – व्याख्या –बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगली सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक वे सभी कैम्प-दो पर पहुँच गए थे। बचेंद्री पाल कहती
हैं कि जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे एक खुद के बनाए स्ट्रेचर पर लिटाकर नीचे लाया गया। बचेंद्री पाल और उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने पिछली रात को हुए हादसे को उनके शब्दों में कुछ इस तरह कहा कि यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक अत्यंत साहस से भरा कार्य था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सभी नौ पुरुष सदस्यों को जिन्हें चोटें आई थी और हड्डियां टूटी थी उन्हें बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर बचेंद्री पाल की तरफ मुड़े और कहने लगे कि क्या वह डरी हुई है? इसके उत्तर में बचेंद्री पाल
ने हाँ में उत्तर दिया। कर्नल खुल्लर के फिर से पूछने पर कि क्या वह वापिस जाना चाहती है? इस बार बचेंद्री पाल ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया कि वह वापिस नहीं जाना चाहती। जैसे ही बचेंद्री पाल साउथ कोल कैंप पहुँची, उन्होंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। बचेंद्री पाल ने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, तो उसने बचेंद्री पाल को चाय के लिए पानी गरम करते देखा। की, जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। बचेंद्री पाल चिंतित थी क्योंकि
उन्हें अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि दोपहर बाद उन्होंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। उन्होंने बर्फीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। बचेंद्री पाल कहती
हैं कि जैसे ही वह कैंप क्षेत्र से बाहर आ रही थी उनकी मुलाकात मीनू से हुई। की और जय अभी कुछ पीछे थे। बचेंद्री पाल को जय जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने बचेंद्री पाल के द्वारा लाई गई चाय वगैरह पी लेकिन बचेंद्री पाल को और आगे जाने से रोकने की कोशिश भी की। मगर बचेंद्री पाल को की से भी मिलना था। थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर उन्होंने की को देखा। की बचेंद्री पाल को देखकर चौंक गया और उसने बचेंद्री पाल से कहा कि उसने इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया? बचेंद्री पाल ने भी उसे दृढ़तापूर्वक कहा कि वह
भी औरों की तरह एक पर्वतारोही है, इसीलिए वह इस दल में आई हुई है। शारीरिक रूप से वह बिल्कुल ठीक है। इसलिए उसे अपने दल के सदस्यों की मदद क्यों नहीं करनी चाहिए। बचेंद्री पाल की बात को सुन कर की हँसा और उसने पेय पदार्थ से प्यास बुझाई, लेकिन उसने बचेंद्री पाल को अपना किट ले जाने नहीं दिया। बचेंद्री पाल कहती हैं कि थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा उनसे मिलने नीचे उतर आए। और वे सब साउथ कोल पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट आए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि साउथ कोल ‘पृथ्वी
पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि दो घंटे से भी कम समय में ही वे सभी शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और बचेंद्री पाल से कहा कि क्या वह थक गई है। इसके जवाब में बचेंद्री पाल ने कहा कि वह नहीं थकी है, जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और खुश हुए। उन्होंने कहा कि पहले वाले दल ने शिखर कैंप पर
पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि अब उनका दल इसी गति से चलता रहे तो वे शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे। ल्हाटू अंगदोरजी और बचेंद्री पाल के पीछे-पीछे आ रहा था और जब वे दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, वह भी अंगदोरजी और बचेंद्री पाल के पास पहुँच गया। थोड़ी-थोड़ी चाय पीने के बाद सभी ने फिर चढ़ाई शुरू की। ल्हाटू एक नाइलॉन की रस्सी लाया था। इसलिए अंगदोरजी और बचेंद्री पाल रस्सी के सहारे चढे़, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकडे़ हुए बीच में चला। उसने रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय अंगदोरजी और
बचेंद्री पाल के संतुलन के लिए पकड़ी हुई थी। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि बचेंद्री पाल इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यतः आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जैसे ही उसने बचेंद्री पाल के रेगुलेटर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्हें महसूस हुआ कि सीधी और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई
पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी कुछ भी देख पाना संभव नहीं हो पा रहा था। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है। यह देख कर बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनकी तो साँस मानो रुक गई थी। उन्हें विचार आया कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर वह एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली बचेंद्री पाल प्रथम भारतीय महिला थी। शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि एवरेस्ट की चोटी की नोक पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हजारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए उन सभी के सामने प्रश्न अब सुरक्षा का था। उन्होंने पहले बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से खड़ा रहने लायक जगह बनाई। इसके बाद, बचेंद्री पाल कहती हैं कि वह अपने घुटनों के बल बैठी, बर्फ पर अपने माथे को लगाकर उन्होंने ‘सागरमाथा’ यानि एवरेस्ट के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही उन्होंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और चालीसा निकाली। उन्होंने इनको अपने साथ लाए लाल कपडे़ में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। ख़ुशी के इस पल में बचेंद्री पाल को अपने माता-पिता का ध्यान आया। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जैसे वह उठी, उन्होंने अपने हाथ जोडे़ और वह अपने रज्जु-नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने बचेंद्री पाल को प्रोत्साहित किया और लक्ष्य तक पहुँचाया। बचेंद्री पाल ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने बचेंद्री पाल को गले से लगाया और उनके कानों में फुसफुसाया कि दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। वह बहुत प्रसन्न है। कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए। इस समय तक ल्हाटू ने हमारे नेता को एवरेस्ट पर हम चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब मेरे हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर हमारी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। मुझे बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा!” वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा! शब्दार्थ – व्याख्या – बचेंद्री पाल कहती हैं कि कुछ देर बाद सोनम पुलजर वहाँ पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए। इस समय तक ल्हाटू ने उनके नेता को एवरेस्ट पर उन चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब बचेंद्री पाल के हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर उनकी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। बचेंद्री पाल को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि वे बचेंद्री पाल की इस अलग प्राप्ति के लिए बचेंद्री पाल के माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। वे बोले कि देश को बचेंद्री पाल पर गर्व है और अब वह एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो उसके द्वारा अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम अलग होगा। Everest meri Shikhar Yatra Question Answersनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए – प्रश्न 2- डॉ. मीनू मेहता ने क्या जानकारियाँ दीं? प्रश्न 3- तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ में क्या कहा? प्रश्न 4- लेखिका को किनके साथ चढ़ाई करनी थी? प्रश्न 5- लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ किया? प्रश्न 6- साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरु की? निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखिए- प्रश्न 2- हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं? प्रश्न 3- लेखिका के तंबू में गिरे बर्फ पिंड का वर्णन किस तरह किया गया है? प्रश्न
4- की लेखिका को देखकर हक्का-बक्का क्यों रह गया? प्रश्न 5- एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल कितने कैंप बनाए गए उनका वर्णन कीजिए। प्रश्न 6- चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी
थी? प्रश्न 7- सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है? निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए- प्रश्न 2- सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे चौड़े हिम विदर में बदल जाने का मात्र ख़्याल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के
दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा। प्रश्न
3- बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी सी पूजा अर्चना की और इनको बर्फ में गाड़ दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता पिता का ध्यान आया। Top Check out – Class 9 Hindi Sparsh and Sanchayan Book Chapter-wise Explanation
एवरेस्ट शिखर पर लहराता हुआ प्लूम क्या था?एवरेस्ट की तरफ़ गौर से देखते हुए, मैंने एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल ( प्लूम ) देखा, जो पर्वत - शिखर पर लहराता एक ध्वज - सा लग रहा था। मुझे बताया गया कि यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सूखा बर्फ़ पर्वत पर उड़ता रहता था ।
प्लूम का क्या तात्पर्य है?लेखिका को बड़ा फूल (प्लूम) पर्वत-शिखर पर लहराता हुआ ध्वज-सा लग रहा था। यह फूल पर्वत की ऊपरी शिखर पर लगभग 150 किलोमीटर या इससे भी अधिक गति से हवाएँ चलने पर बनता है।
एवरेÈट पर पहुंच कर बचेûद्री ने क्या क्या किया?Answer: उत्तर:- लेखिका जब एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर घुटनों के बल बैठ कर बर्फ़ पर अपना माथा लगाया और चुंबन किया। उसके बाद एक लाल कपड़े में माँ दुर्गा का चित्र और हनुमान चालीसा को लपेटा और छोटी से पूजा करके बर्फ़ में दबा दिया वह बहुत खुश थी और उसे अपने माता-पिता का स्मरण हो आया। यह लेखिका के लिए अत्यंत गौरव का क्षण था।
लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर कब पहुंच गई?यह देख कर बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनकी तो साँस मानो रुक गई थी। उन्हें विचार आया कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर वह एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली बचेंद्री पाल प्रथम भारतीय महिला थी।
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