एकादशी का व्रत क्यों रहना चाहिए? - ekaadashee ka vrat kyon rahana chaahie?

ज्योतिषियों का कहना है कि साल में लगभग 24 एकादशी होती हैं। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। लेकिन जो लोग इस दिन व्रत नहीं करते उन्हें खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ज्योतिषियों का कहना है कि एकादशी के दिन प्यास, लहसुन, मांस, मछली और अंडा नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा चावल भी खाना वर्जित बताया गया है।

एकादशी के दिन चावल ना खाने की सलाह दी जाती है क्योंकि ज्योतिषियों के मुताबिक जो लोग एकादशियों के दिन चावल नहीं खाना चाहिए। क्योंकि जो लोग चावल खाने से अगले जन्म में रेंगने वाले जीव बनते हैं। लेकिन अगर कोई द्वादशी को चावल खाता है तो इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है।

एकादशी के बारे में हमारे शास्त्रों में लिखा गया है, ”न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतं” इसका अर्थ है एकादशी के व्रत से बढ़कर कोई व्रत नहीं होता और विवेक के सामान कोई बंधु नहीं होता है। ज्योतिषियों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति पांच ज्ञान इन्द्रियों को साध लेता है तो वह प्राणी पवित्र हो जाता है।

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एकादशी के व्रत के बारे में जानकारों का कहना है कि इस दिन शरीर में पानी कम होना चाहिए। व्रत के दिन शरीर में जितना पानी कम होगा। व्रत करने में उतनी ही आसानी रहेगी। इसके बारे में एक कथा भी है, जिसके अनुसार भगवान व्यास ने भीम को निर्जला एकादशी के दिन व्रत करने का सुझाव दिया था। शास्त्रों में लिखा गया है कि देवर्षि नारद ने एक हजार साल तक निर्जल एकादशी का व्रत करके भगवान नारायण की भक्ति प्राप्त की थी। इस व्रत को सर्वश्रेष्ठ व्रत बताया जाता है।

शास्त्रों में जल का संबंध चंद्रमा से बताया गया है। वहीं चावल का संबंध जल से बताया गया है। कहा जाता है कि हमारी पाचों इन्द्रियों पर मन का अधिकार होता है। मन ही व्यक्ति से तरह-तरह के काम करवाता है। कहा जाता है कि जिन राशि का स्वामी चंद्रमा होता है वो लोग अक्सर धोखा खाते हैं। ये लोग किसी पर भी जल्द ही भरोसा कर लेते हैं।

सभी धर्मों में व्रत-उपवास करने का महत्व बहुत होता है और हर व्रत के आने नियम कायदे भी होते हैं. खास कर हिंदू धर्म के अनुसार एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से ही कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना चाहिए. ऐसा करने से उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और व्रत का पूरा फल मिलता है.

ये हैं एकादशी व्रत के महत्वपूर्ण नियम...

- दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए.

- रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

- एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ साफ कर लें. वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है इस‍लिए स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें.

- यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें. फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें.

- फिर प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि 'आज मैं चोर, पाखंडी़ और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा. रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा.'

- तत्पश्चात 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मंत्र का जाप करें. राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाएं.

- भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें और कहे कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है इसलिए मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना.

- यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्री‍हरि की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए.

- एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है. इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए. न नही अधिक बोलना चाहिए.

- इस दिन यथा‍शक्ति दान करना चाहिए लेकिन स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि ग्रहण न करें.

- एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए.

हर माह में दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस व्रत को श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है. यहां जानिए कि कैसे हुई थी एकादशी व्रत की शुरुआत, क्या है इस व्रत की महिमा और अगर लोग इस व्रत को रखना चाहें, तो किस एकादशी से इस व्रत की शुरुआत करनी चाहिए.

एकादशी का व्रत (Ekadashi Vrat) काफी पुण्यदायी माना जाता है. कहा जाता है कि ये व्रत आपको जन्म मरण के चक्र से मुक्ति दिला सकता है. सालभर में कुल 24 एकादशी के व्रत पड़ते हैं. हर माह एक एकादशी व्रत शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में रखा जाता है. सभी एकादशियों के नाम और महत्व भी अलग अलग हैं. आमतौर पर जब किसी को एकादशी व्रत रखना होता है, तो वो किसी भी शुक्ल पक्ष की एकादशी से इस व्रत की शुरुआत कर देते हैं. लेकिन वास्तव में एकादशी व्रत की शुरुआत उत्पन्ना एकादशी से करनी चाहिए. ये एकादशी मार्गशीर्ष माह में आती है और इसे ही पहली एकादशी माना जाता है. यहां जानिए कि कैसे हुई थी एकादशी व्रत की शुरुआत.

ऐसे हुई थी एकादशी व्रत की शुरुआत

एकादशी व्रत की उत्पत्ति को लेकर एक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार मुर नाम के एक असुर के साथ भगवान विष्णु का लंबे समय तक युद्ध हुआ. जब युद्ध करते करते विष्णु भगवान थक गए तो वे बद्रीकाश्रम में गुफा में जाकर विश्राम करने लगे. नारायण को ढूंढते हुए मुर भी उस गुफा में पहुंच गया और निद्रा में लीन भगवान को मारने का प्रयास किया. उसी समय भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ और उस देवी ने मुर का वध कर दिया.

इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने कहा कि आज मार्गशीर्ष माह की एकादशी के दिन तुम्हारा जन्म हुआ है, इसलिए आज से तुम एकादशी के नाम से ही जानी जाओगी. ये तिथि तुम्हें समर्पित होगी और इस दिन जो भी विधिवत व्रत रखकर मेरा पूजन करेगा, वो सभी तरह के पापों से मुक्त हो जाएगा. उसे मृत्यु के बाद भी सद्गति प्राप्त होगी. चूंकि एकादशी भगवान विष्णु की माया के प्रभाव से जन्मी थीं, इसलिए एकादशी का व्रत रखने वाले मोह माया के झंझट से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं.

भगवान कृष्ण ने भी समझाया था एकादशी व्रत का महत्व

द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने भी पांडवों को एकादशी के व्रत का महत्व बताया था. कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि हे माधव ऐसा कोई मार्ग बताइए जिससे समस्त दुखों और त्रिविध तापों से मुक्ति मिल जाए, हजारों यज्ञों के अनुष्ठान के समान पुण्यदायी फल प्राप्त हो और इस जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाए. तब श्रीकृष्ण ने पांडवों को एकादशी व्रत को विधिवत रहने की सलाह दी थी.

ये हैं एकादशी व्रत के नियम

एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि से शुरु होकर द्वादशी तक चलते हैं. दशमी की शाम को सूर्यास्त से पहले सात्विक भोजन करें और रात में जमीन पर आसन बिछाकर सोएं. सुबह स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प लें और विधिवत नारायण का पूजन करें, व्रत कथा पढ़ें. इसके बाद अपनी क्षमतानुसार फलाहार लेकर या बिना लिए जैसे भी संभव हो, वैसे व्रत रखें. रात में जागकर नारायण का ध्यान करें, भजन कीर्तन करें. अगले दिन स्नान आदि के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं. उसे सामर्थ्य के अनुसार दान दें और इसके बाद पैर छूकर आशीर्वाद लें, फिर व्रत का पारण करें.

एकादशी का व्रत करने से क्या लाभ होता है?

-इस एकादशी व्रत के करने के 26 फायदे हैं- व्यक्ति निरोगी रहता है, राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिलता है, पापों का नाश होता है, संकटों से मुक्ति मिलती है, सर्वकार्य सिद्ध होते हैं, सौभाग्य प्राप्त होता है, मोक्ष मिलता है, विवाह बाधा समाप्त होती है, धन और समृद्धि आती है, शांति मिलती है, मोह-माया और बंधनों से ...

एकादशी का व्रत क्यों किया जाता है?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि इस दिन बिना कुछ खाए पिए व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

एकादशी का व्रत किसका होता है?

ekadashi vrat : एकादशी का पावन दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है।

एकादशी का व्रत कितना करना चाहिए?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है।

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