छायावादी
कवि और उनकी रचनाएँ Show
छायावाद की कालावधि 1920 या 1918 से 1936 ई. तक मानी जाती है। वहीं इलाचंद्र जोशी, शिवनाथ और प्रभाकर माचवे ने छायावाद का आरंभ लगभग 1912-14 से माना है। द्विवेदी युगीन काव्य की प्रतिक्रिया में छायावाद का जन्म हुआ था।रामचंद्र शुक्ल ने भी लिखा है की ‘छायावाद का चलन द्विवेदी-काल की रुखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।’ छायावाद का सर्वप्रधान लक्षण आत्माभिव्यंजना है। लिखित रूप में छायावाद शब्द के प्रथम प्रयोक्ता मुकुटधर पांडेय थे, इन्होंने ‘हिंदी में छायावाद’ लेख में सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया। यह लेख जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘श्री शारदा’ (1920 ई.) में चार किस्तों में प्रकाशित हुआ था। सुशील कुमार ने भी सरस्वती पत्रिका (1921 ई.) में ‘हिन्दी में छायावाद’ शीर्षक लेख लिखा था। यह लेख मूलतः संवादात्मक निबंध था, इस संवाद में सुशीला देवी, हरिकिशोर बाबू, चित्राकार, रामनरेश जोशी, पंत ने भाग लिया था। आचार्य शुक्ल ने छायावाद का प्रवर्तक मुकुटधर पांडेय और मैथिलीशरण गुप्त को मानते हैं और नंददुलारे वाजपेयी पंत तथा उनकी कृति ‘उच्छ्वास’ (1920) से छायावाद का आरंभ माना है। वहीं इलाचंद्र जोशी और शिवनाथ ने ‘जयशंकर प्रसाद’ को छायावाद का जनक मानते हैं। विनयमोहन शर्मा, प्रभाकर माचवे ने ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ को छायावाद का प्रवर्तक माना है। छायावादी युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ1. जयशंकर प्रसाद (1889-1936)छायावादी रचनाएं: झरना (1918), आंसू (1925), लहर (1933), कामायनी (1935) अन्य रचनाएं: उर्वशी (1909), वन मिलन (1909), प्रेम राज्य (1909), अयोध्या का उद्धार (1910), शोकोच्छवास (1910), वभ्रुवाहन (1911), कानन कुसुम (1913), प्रेम पथिक (1913), करुणालय (1913), महाराणा का महत्व (1914), चित्राधार (1918, ब्रज भाषा में रचित कविताएं) प्रमुख कविताएँ: अशोक की चिंता, आँखों में अलख जगाने को, अब जागो जीवन के प्रभात, बीती विभावरी जाग री 2. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (1897-1962)छायावादी रचनाएं: अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), तुलसीदास (1938) अन्य रचनाएं: कुकुरमुत्ता (1942), अणिमा (1943), बेला (1946), नए पत्ते (1946), अर्चना 1950, आराधना (1953), गीत गुंज (1954), सांध्यकाकली (1969) प्रमुख कविताएँ: सरोजस्मृति (1935), राम की शक्ति पूजा (1936), सांध्यसुंदरी, अपरा, अधिवास, पंचवटी प्रसंग, भिक्षुक, बादलराग, विधवा, शेफालिका, जागो फिर एक बार, स्नेह निर्झर बह गया है, महाराज शिवाजी के पत्र, यमुना के प्रति, ‘वर दे वीणा वादिनी, वर दे’, महँगू महँगा रहा, रेखा, प्रेयसी, गर्म पकौड़ी, प्रेम संगीत, रानी और कानी, खजोहरा, मास्को डायलाग्स, स्फटिक शिला, विप्लवी बादल, बन-बेला आदि। अनुवाद: निराला ने स्वामी विवेकानंद की कविता ‘सखार प्रति’ को 1926 ई. में ‘सखा के प्रति’ शीर्षक से अनुवाद किया। निराला कृत ‘अनामिका’ में संकलित महत्वपूर्ण कविताएँ: सरोज स्मृति (1935 ई.), सम्राट एडवर्ड के प्रति, प्रेयसी, राम की शक्तिपूजा (1936 ई.), रेखा, तोड़ती पत्थर, सच है (1935 ई.) अनामिका नाम से निराला के दो काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए- पहला 1923 ई. में और दूसरा 1938 ई. में। निराला कृत ‘परिमल’ में संकलित महत्वपूर्ण कविताएँ: अधिवास, जुही की कली, बादल राग, विधवा, भिक्षुक, संध्या सुन्दरी, पंचवटी प्रसंग 3. सुमित्रानंदन पंत (1900-1977)छायावादी रचनाएं: उच्छवास (1920), ग्रन्थि (1920), वीणा (1927), पल्लव (1928), गुंजन (1932) प्रगतिवादी रचनाएं: युगान्त (1936), युगवाणी (1939), ग्राम्या (1940) अन्तश्चेतनावादी रचनाएं: स्वर्ण किरण (1947), स्वर्ण धूलि (1947), वाणी, युग पथ (1949) नवमानवतावादी रचनाएं: उत्तरा (1949), कला और बूढ़ा चांद (1959), अतिमा (1955), लोकायतन (1964, महाकाव्य), चिदम्बरा काव्य नाटक: रजत शिखर, शिल्पी, सौवर्ण, अतिमा, मधुवन, युग पुरुष, छाया, मानसी, ज्योत्स्ना प्रमुख कविताएँ: नौका विहार, परिवर्तन, भावी पत्नी के प्रति, पर्वत-प्रदेश में पावस, बादल, छाया, एकतारा, मौन निमंत्रण, सांध्य तारा, भावी पत्नी के प्रति, बापू, बापू के प्रति, मार्क्स के प्रति, साम्राज्यवाद, ताज, प्रथम रश्मि, ज्योति भारत आदि। अनुवाद: मधुज्वाल (1938) 4. महादेवी वर्मा (1907-1988)काव्य संग्रह: नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1935), सांध्यगीत (1936), यामा (1940), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (1960) प्रमुख कविताएँ: जाग बेसुध जाग, जाग तुझको दूर जाना, पंथ होने दो अपरचित, हे धरा के अमर सुत! तुझको अशेष प्रणाम! छायावादी युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:1. जयशंकर प्रसादजयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई. में काशी के प्रसिद्ध ‘सुंघनी साहू’ के परिवार में हुआ था तथा मृत्यु 1937 ई. में हुआ था। इनकी माता का नाम मुन्नीदेवी और पिता देवीप्रसाद था। प्रसाद जी के गुरु मोहिनीलाल थे। इनका बाल्यनाम/उपनाम ‘झारखंडी’ था और ब्रजभाषा में ‘कलाधर’ उपनाम से कविता करते थे, इनकी ब्रजभाषा की कविताएँ ‘चित्राधार’ (1918) में संकलित है। जयशंकर प्रसाद को प्रथम कविता ‘सावन-पंचक’ सन् 1906 ई. में ‘भारतेन्दु’ पत्रिका में ‘कलाधर’ उपनाम से प्रकाशित हुई थी। ‘उर्वशी’ से लेकर ‘महाराणा का महत्व’ तक सभी रचनाएं द्विवेदी युगीन हैं। इनकी प्रथम छायावादी कविता ‘प्रथम प्रभात’ सन् 1918 ई. में प्रकाशित हुई जो 2 संग्रहों- ‘झरना’ और ‘कानन-कुसुम’ में संकलित है। ‘प्रथम प्रभात’ को हिंदी की पहली छायावादी कविता भी मानी जाती है। प्रसाद की प्रथम पुस्तकाकार रचना ‘उर्वशी’ है जो एक चंपूकाव्य है। खड़ी बोली में प्रसाद जी का प्रथम खड़ी बोली का काव्य संग्रह ‘कानन-कुसुम’ है। इनकी कृति ‘झरना’ को छायावाद का प्रथम काव्यसंग्रह माना जाता है। इसे ‘छायावाद की प्रथम प्रयोगशाला’ भी कहा जाता है। जयशंकर प्रसाद कृत ‘आँसू’ 133 छन्दों का विरह प्रधान स्मृति काव्य है जिसे ‘हिन्दी का मेघदूत’ कहा जाता है। जिसके द्वितीय संस्करण में 64 छन्द जोड़े गए हैं। प्रसाद ने ‘आँसू’ में 14 मात्राओं का आनंद छंद या सखी छंद का प्रयोग भी किया है। ‘आँसू’ कविता में प्रसाद ने व्यक्तिगत वेदना से ऊपर उठकर करुणा या विश्व कल्याण की भावना की अभिव्यक्ति की है। प्रसाद जी की ‘लहर’ एक गीतकाव्य है जिसमें मुक्त छंद में रचित ‘शेर सिंह का आत्मसमर्पण’, ‘पेशोला की प्रतिध्वनी’ और ‘प्रलय की छाया’ कविताएँ संकलित हैं। प्रसाद ने ‘प्रेम पथिक’ प्रथमत: ब्रजभाषा में सन् 1909 ई. में लिखा गया था जिसका बाद में परिवर्तित एवं परिवर्धित रूप में खड़ी बोली में प्रस्तुत सन् 1914 ई. में किया था। प्रसाद जी को प्रेम और सौन्दर्य का कवि माना जाता है। इनकी रचनाओं में रहस्यवादी प्रवृत्ति मिलती है। आचार्य शुक्ल ने प्रसाद के संदर्भ में लिखा है कि, ‘इनकी रहस्यवादी रचनाओं को देख चाहें तो कह सकते हैं कि इनकी मधुचर्या के मानस प्रकार के लिए रहस्यवाद का परदा मिल गया अथवा यों कहें कि इनकी सारी प्रणयानुभूति ससीम पर से कूदकर असीम पर जा रही।’
कामायनी के सर्ग 1. चिन्ता, 2. आशा, 3. श्रद्धा, 4. काम, 5. वासना, 6. लज्जा, 7. कर्म, 8. ईर्ष्या, 9. इडा, 10. स्वप्न, 11. संघर्ष, 12. निर्वेद, 13. दर्शन, 14. रहस्य, 15. आनन्द ‘कामायनी’ महाकाव्य के मुख्य पात्र और उनके प्रतीक
‘कामायनी’ के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के मत 2. आचार्य शुक्ल ने कामायनी के संदर्भ में लिखा है कि, ‘यदि मधुचर्या का अतिरेक और रहस्य की प्रवृत्ति बाधक न होती तो इस काव्य के भीतर मानवता की योजना शायद अधिक पूर्ण और सुव्यवस्थित रूप में चित्रित होती।’ 4. आचार्य शुक्ल ने लिखा है कि, ‘इसमें (कामायनी) में अपने प्रिय ‘आनंद’ की प्रतिष्ठा दार्शनिकता के ऊपरी आभास के साथ कल्पना की मधुमती भूमिका बनाकर दी है।’ 5. आचार्य शुक्ल ने कामायनी के संदर्भ में मत है कि, ‘यदि हम इस विशद काव्य की अंतर्योजना पर ध्यान न दें, समष्टि रूप में कोई समन्वित प्रभाव न ढूँढ़े, श्रद्धा, काम, लज्जा, इड़ा इत्यादि को अलग-अलग लें तो हमारे सामाने बड़ी रमणीय चित्रमयी कल्पना, अभिव्यंजना की अत्यंत मनोरम पद्धति आती है।’ 6. नगेंद्र ने ‘कामायनी’ को ‘मानव चेतना के विकास का महाकाव्य’ कहा है। 7. गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ ने कामायनी को फैंटेसी माना है। 8. नंद दुलारे वाजपेयी ने ‘कामायनी’ को नये युग का प्रतिनिधि काव्य माना है। 9. दिनकर ने कामायनी के संदर्भ में ‘दोषरहित-दूषणसहित’ नामक निबंध लिखा है। 2. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’निराला का जन्म बंगाल प्रान्त में मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक रियासत में सन् 1899 ई. में हुआ था और मृत्यु इलाहाबाद (1961 ई.) में। इनका बचपन का नाम ‘सूर्य कुमार’ था। निराला जी ‘गरगज सिंह वर्मा’ छद्मनाम से भी जाने जाते हैं। निराला जी के पिता का नाम रामसहाय त्रिपाठी, पत्नी का मनोहरा देवी और पुत्री सरोज थी। निराला जी का दार्शनिक आधार ‘अद्वैतवाद’ है। इन्होंने ‘मतवाला’ और ‘समन्वय’ नामक पत्रों का सम्पादन भी किया है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का ‘निराला’ उपनाम, ‘मतवाला’ के तुक पर रखा गया था। निराला को ‘महाप्राण’ कवि भी कहा जाता है। निराला अपने समय में सर्वाधिक विवादस्पद कवि रहे लेकिन कालांतर में उतना ही अधिक निर्विवाद और सर्वग्राह्य सिद्ध हुए। रामविलास शर्मा ने निराला की प्रथम प्रकाशित रचना ‘भारत माता की बंदना’ (1920) को मानते हैं। निराला के काव्य संसार में प्रथम व अंतिम तथ्य
निराला की प्रथम कविता ‘जूही की कली’ को महावीर प्रसाद द्विवेदी ने तिरस्कारपूर्वक लौटा दिया था। निराला की काव्य रचना का प्रौढ़ काल 1935-1938 ई. के बीच माना जाता है। निराला कविता को ‘कल्पना के कानन की रानी’ कहा है। निराला की भाषा संस्कृतनिष्ठ समास बहुल किंतु गेयता से युक्त भाषा है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ को हिन्दी में मुक्त छंद का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने ‘परिमल’ की भूमिका में लिखा है कि “मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कमों के बंधन से छुटकाना पाना है और कविता की मुक्ति छंद के शासन से अलग हो जाना।” कुछ आलोचक मुक्त छंद को ‘रबर’ या ‘केंचुआ छंद’ कह कर निराला का उपहास उड़ाया था। नामवर सिंह ने निराला को छंदों का गुरु कहा है। निराला ‘कवित्त’ को ‘हिन्दी का जातीय छंद’ मानते हैं। छंद और काव्य भाषा के संदर्भ में निराला ने लिखा है की, ‘जो गहन भाव, सीधी भाषा, सीधे छंद में चाहता है, वह धोखेबाज़ है।’ निराला का स्पष्ट मत था कि, ‘भावो की मुक्ति छंदों की भी मुक्ति चाहती है। यहाँ भाषा, भाव और छंद स्वछंद हैं’ निराला ओज, औदात्य और विद्रोह के कवि हैं, इनकी तुलना ऊपरी तौर पर अमरीकी कवि वाल्ट व्हिटमैन से की जाती है। निराला अकुंठ एवं वयस्क श्रृंगार-दृष्टि तथा तृप्ति के कवि कहलाते हैं। आचार्य राम चंद्र शुक्ल के अनुसार, ‘बहुवस्तुस्पर्शिनी प्रतिभा निरालाजी में है।’ हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिंदी में कोई नहीं है। सरोज स्मृति निराला की सर्वाधिक व्यक्तिपक रचना है, जिसे कवि ने अपनी प्रिय पुत्री सरोज के देहावसान (पुत्री के शोक) पर लिखा था, आधुनिक हिन्दी काव्य का इसे प्रथम और सर्वश्रेष्ठ शोकगीत कहा जाता है। निराला कृत ‘राम की शक्तिपूजा’ महाकाव्य का कथानक बंगला के ‘कृतवास रामायण से लिया गया है, यही मूल श्रोत है। निराला कृत ‘तुलसीदास’ 101 छंदों में रचित एक खंडकाव्य है, इस रचना में निराला ने तुलसीदास के माध्यम से भारतीय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की है। रामचंद्र शुक्ल ने निराला कृत ‘तुलसीदास’ को ‘अंतर्मुख प्रबंध काव्य’ माना है। निराला के प्रिय कवि तुलसीदास जी ही हैं। निराला ने हास्य और व्यंग्य की रचनाएँ भी प्रस्तुत की है। इन रचनाओं में “कुकुरमुत्ता’ सर्वाधिक प्रसिद्ध है, यह व्यंग प्रधान कविता है। इस रचना में उन्होंने प्रतीक रूप से पूँजीवादी और श्रमिक वर्ग के जीवन की विषमता का चित्रण किया है। पूँजीवादी वर्ग का प्रतीक गुलाब और श्रमिक वर्ग का प्रतीक कुकुरमुत्ता है। 1936 ई. में प्रकाशित ‘गीतिका’ काव्य संग्रह निराला के श्रृंगारिक गीतों का संग्रह है। निराला जी ने ‘दिल्ली’ शीर्षक से कविता लिखी है। 3. सुमित्रानंदन पंतसुमित्रानंदन पंत का जन्म कौशानी, अल्मोड़ा (1900 ई.) में हुआ था और मृत्यु 1977 ई. इलाहाबाद में। सुमित्रानंदन पंत के पिता का नाम गंगादत्त पंत था। पंत जी का बचपन का नाम ‘गुसाई दत्त’ था।इनका प्रथम कविता संग्रह ‘गिरजे का घंटा’ है जो 1916 ई. में प्रकाशित हुआ था। पंत जी को ‘संवेदनशील इन्द्रिय बोध का कवि’ कहा जाता है। सुमित्रानंदन पंत मूल रूप में अरविन्द दर्शन से प्रभावित थे। छायावादी कवियों में तत्काल स्वीकार्य और लोकप्रिय होने वाले कवि थे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने छायावादी कवियों में पंत जी को सर्वाधिक महत्व दिया है। सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं। पंत जी कोमल कल्पना के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। पंत जी ने अपने जीवन के 1945-1959 काल को ‘नव मानवता का स्वप्न काल’ कहा है। छायावादी कवियों में युगबोध के अनुसार अपनी काव्यभूमि का विस्तार करते रहना पंत के काव्य चेतना की विशेषता रही है। नंद दुलारे वाजपेयी के अनुसार ‘नवीन हिंदी कविता में सबसे श्रेष्ठ सृष्टि-प्रतिभा लेकर सुमित्रानंदन पंत का विकास हुआ था। हिंदी के क्षेत्र में पंत की कल्पना की शक्ति अजेय, उनका नवनवोन्मेष अप्रितम है।’ सुमित्रानंदन पंत की प्रथम छायावादी रचना ‘उच्छ्वास’ है तथा अन्तिम छायावादी रचना ‘गुंजन’ है। पंत ने ‘लोकायतन’ नामक महाकाव्य महात्मा गाँधी के जीवन पर लिखा है। पंत जी की महत्वपूर्ण कविताओं का संकलन ‘चिदम्बरा’ शीर्षक से प्रकाशित है। इस पर इन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। पंत जी को ‘कला और बूढ़ा चाँद’ संग्रह पर 1961 में ‘अकादमी पुरस्कार’ प्रदान किया गया है और ‘लोकायतन’ काव्य संग्रह पर ‘सोवियत लैंड पुरस्कार’ मिला है। सुमित्रानंदन कृत ‘पल्लव’ की भूमिका को छायावाद का घोषणा पत्र (मेनोफेस्टो) माना जाता है। पंत जी ने ‘पल्लव’ को ‘कल्पना का विह्वल बाल’ कहा है। इसकी भूमिका में भाषा, अलंकार, छन्द, शब्द चयन पर विचार व्यक्त किए गए हैं। इस कृति में पंत जी ने ‘लाक्षणिक साहस’ दिखाया है। पन्त की ‘परिवर्तन’ कविता अत्यन्त मार्मिक एवं उच्चकोटि की दार्शनिक कविता है। ‘मौन निमन्त्रण’ कविता में रहस्यवादी प्रवृत्ति है। उन्होंने प्रकृति का चित्रण आलम्बन रूप में किया है। मूर्त के लिए अमूर्त उपमान देने की प्रवृत्ति पंत के काव्य में देखी जा सकती है। पंत और बच्चन की सम्मिलित रचनाओं का संग्रह ‘खादी के फूल’ है। 4. महादेवी वर्मामहादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद (1907 ई.) में हुआ था और मृत्यु इलाहाबाद (1987 ई.) में हुआ था। इनके पिता का नाम गोविन्द प्रसाद था। महादेवी वर्मा का दार्शनिक आधार सर्वात्मवाद (बौद्ध दर्शन) है। महादेवी वर्मा को ‘हिन्दी के विशाल मन्दिर की वीणा पाणि’ भी कहा जाता है। छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा शुद्ध रहस्यवादी हैं। रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है की, ‘छायावादी कहे जाने वाले कवियों में महादेवी जी ही रहस्यवाद के भीतर रही हैं।’ दीपक और बादल महादेवी वर्मा के प्रिय प्रतीक है। महादेवी जी के गीतों में अज्ञात सत्ता के प्रति प्रणय निवेदन है, इसलिए उन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। उनके काव्य में विरह की प्रधानता है जो लौकिक न होकर अलौकिक विरह है। महादेवी जी ने अपनी वेदना को ‘मधुमय पीड़ा’ कहा है। महादेवी के अनुसार ‘दुःख मेरे निकट जीवन का ऐसा काव्य है, जिसमें सारे संसार को एक सूत्र में बांध रखने की क्षमता है।’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने महादेवी के संदर्भ में लिखा है कि, ‘इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।’ महादेवी वर्मा कृत ‘यामा’ में उनके नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत (4 कविता संग्रह) के महत्वपर्ण गीतों का संकलन किया गया है। इनका काव्य मूलतः ‘गीत काव्य’ है। महादेवी वर्मा के अनुसार ‘सुख-दुख की भावावेशमयी अवस्था विशेष का गिने-चुने शब्दों में स्वर-साधना के उपयुक्त चित्रण कर देना ही गीत है।’ महादेवी वर्मा को ‘यामा’ पर ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ और ‘नीरजा’ पर ‘सेक्सरिया पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है। महादेवी वर्मा कृत ‘सप्तपर्णा’ में ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी काव्यानुवाद संकलित है। महादेवी के प्रथम काव्य-संकलन ‘नीहार’ की भूमिका अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने सन् 1930 ई० में लिखी थी। महादेवी वर्मा की ब्रजभाषा और आरम्भिक खड़ी बोली की कविताओं का संकलन सन् 1984 ई० में ‘प्रथम आयाम’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। महादेवी वर्मा ने ‘हिमालय’ संकलन का संपादन किया जिसमें हिमालय से संबद्ध पुराने और नये कवियों की चुनी हुई रचनाओं को संग्रहीत किया है। महादेवी जी हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना किया था। प्रमुख छायावादी कवियों के संदर्भ में अन्य तथ्य1. छायावाद के कवि चतुष्टय: जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ तथा महादेवी वर्मा 2. छायावाद के वृहत्त्रयी: जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ 3.छायावाद की लघुत्रयी: महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा और भगवती चरण वर्मा 4.
ब्रह्मा, विष्णु, महेश:
छायावाद के अन्य कवि और उनकी रचनाएँ
राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्य-धारा के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं
राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्य-धारा के प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं के बारे में प्रमुख तथ्यमाखनलाल चतुर्वेदी का का जन्म गाँव बाबई, होशंगाबाद (म. प्र.) में हुआ था। चतुर्वेदी जी का उपनाम ‘एक भारती की आत्मा’ है। इनकी प्रथम रचना ‘रसिक मित्र’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। इन्होंने प्रभा, प्रताप तथा कर्मवीर जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है। चतुर्वेदी जी की प्रसिद्ध कविता ‘कैदी और कोकिला’, ‘पुष्प की अभिलाषा’ आदि है। इनकी रचनाओं का प्रधान स्वर राष्ट्रप्रेम और आत्मोत्सर्ग है। माखनलाल चतुर्वेदी को ‘हिम तरंगिनी’ कृति पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सियाराम शरण गुप्त जी मूलतः गाँधीवादी कवि थे। इनका जन्म चिरगाँव, झाँसी में हुआ था। ये मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई (अनुज) थे। गुप्त जी की प्रथम कविता ‘इन्दु’ में सन् 1910 ई. में प्रकाशित हुई थी। इनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, अहिंसा, सत्य एवं करुणा जैसे मूल्य प्रमुखता से व्याप्त हैं। इनकी ‘एक फूल की चाह’ कविता काफी प्रसिद्ध है। बालकृष्ण शर्मा का का जन्म भयाना गाँव, ग्वालियर में हुआ था। ये ‘नवीन’ उपनाम से कविता लिखते थे। इनका प्रथम काव्य संग्रह ‘कुंकुम’ है। नवीन जी ने उर्मिला खण्डकाव्य की रचना ब्रज भाषा में किया है। नवीन जी ने गणेश शंकर विद्यार्थी के बलिदान पर ‘प्राणार्पण’ नामक खंड काव्य की रचना की। सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म प्रयाग जिले के निहालपुर गाँव में हुआ था। इनकी प्रसिद्ध कविताएँ निम्न हैं- झाँसी की रानी, झण्डे की इज्जत में, स्वदेश के प्रति, जालियाँ वाला बाग में बसंत, राखी की चुनौती आदि हैं। इनकी कविताओं में भारत के सांस्कृतिक गौरव एवं राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति हुई है। सुभद्रा जी ने पारिवारिक संबंधों को लेकर भी काफी कविताएँ लिखी हैं। राष्ट्रप्रेम वाली कविताओं में विशेष रूप से असहयोग आंदोलन के वीरों का चित्रण हुआ है। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने स्वयं को ‘छायावाद की ठीक पीठ पर’ आने वाला माना है। दिनकर की पहली रचना ‘प्रणभंग’ है। इनकी कविताओं में ओज, औदात्य एवं वीर रस की प्रधानता है। इनके काव्य में प्रगतिवादी भावनाएं भी दिखाई पड़ती हैं। दिनकर को उर्वसी गीतनाट्य पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है, यह श्रृंगार प्रधान काव्य है। इसमें कामाध्यात्म का निरूपण पुरुरवा एवं उर्वसी के माध्यम से किया गया है। दिनकर जी ने ‘कुरुक्षेत्र’ रचना में ‘युद्ध और शांति’ की समस्या पर विचार किया है। वहीं ‘रश्मिरथी’ कर्ण के जीवन पर आधारित महाकाव्य है। श्यामनारायण पाण्डेय की ‘हल्दीघाटी’ महाराणा प्रताप के जीवन पर आधारित प्रबंध काव्य है और ‘जौहर’ पद्मिनी के जौहर की कथा पर आधारित काव्य है। श्यामनारायण पाण्डेय मूलतः राष्ट्रीय चेतना और वीर रस के कवि हैं। प्रसिद्ध राष्ट्रगान ‘झण्डा ऊँचा रहे हमारा’ (1924 ई.) के रचयिता श्यामलाल पार्षद हैं, जिसको काट-छाँट कर संपादित पुरुषोत्तमदास टंडन ने किया था। इसको पहली बार कानपुर कांग्रेस के समय 1925 ई. में ध्वजोत्तोलन पर गाया गया था। ‘त्रिधारा’ काव्य-संग्रह में सुभद्राकुमारी चौहान, केशव प्रसाद पाठक, माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएँ संकलित हैं। प्रेम और मस्ती का काव्य (व्यक्तिवादी कवि)
प्रेम और मस्ती का काव्य और कवियों के बारे में प्रमुख तथ्यहरिवंश राय बच्चन प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता हैं। इन्हें हिन्दी साहित्य में ‘हालावाद’ का प्रवर्तक माना जाता है। ‘हाला’ शब्द को बच्चन जी ने ‘व्यवस्था विरोध’ के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया है। इनके मधुकाव्य पर उमर खैय्याम का प्रभाव सर्वाधिक पड़ा है। बच्चन जी को हिन्दी का ‘बायरन’ भी कहा जाता है। इनकी रचनाओं में प्रेम एवं मस्ती, वैयक्तिक अनुभूतियों का चित्रण, प्रणयानुभूति की मधुर अभिव्यक्ति, सरल भाषा का प्रयोग परिलक्षित होता है। रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ को हिन्दी में मांसलवाद का प्रवर्तक माना जाता है। शारीरिक प्रेम की प्रधानता इनकी कविताओं में है। ‘अंचल’ जी के परवर्ती काव्य में प्रगतिवादी भावना है। नरेन्द्र शर्मा की कविताओं में विरह की आकुलता दिखाई देती है। शर्मा जी सहज-सरल कविता के पक्षधर हैं। नरेंद्र शर्मा का सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य-संग्रह ‘प्रवासी के गीत’ (1938) है। छायावादी युग के हास्य-व्यंग्यकार कवि और रचनाएँ
हरिशंकर शर्मा कत ‘पिंजरा पोल’ और ‘चिड़ियाघर’ गद्य-रचना है इसमें कुछ व्यंग्यात्मक कविताएँ संकलित हैं। छायावादी युग में ब्रजभाषा के कवि और काव्य रचनाएँ
वियोगी हरि को ‘वीर सतसई’ रचना पर 1928 ई. में ‘मंगला प्रसाद पारितोषित’ मिला था। रामचन्द्र शुक्ल ने एडविन अर्नाल्ड के काव्य ‘लाइट ऑफ एशिया’ का ‘बुद्धचरित’ शीर्षक से ब्रजभाषा में अनुवाद किया। ‘पाखंड प्रतिषेध’ शुक्ल जी की स्फुट कविताओं का संग्रह है। छायावाद से संबंधित प्रमुख आलोचनात्मक ग्रंथ
छायावाद युग की रचना कौन कौन सी है?' सुमित्रानंदन पंत की प्रथम छायावादी रचना 'उच्छ्वास' है तथा अन्तिम छायावादी रचना 'गुंजन' है। पंत ने 'लोकायतन' नामक महाकाव्य महात्मा गाँधी के जीवन पर लिखा है। पंत जी की महत्वपूर्ण कविताओं का संकलन 'चिदम्बरा' शीर्षक से प्रकाशित है।
छायावाद की पहली रचना कौन सी है?झरना छायावाद की प्रथम रचना मानी जाती है, अत: सही विकल्प 4) झरना ही होगा।
छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियां कौन कौन सी है?'छायावाद' हिन्दी-साहित्य की एक विशिष्ट काव्यधारा है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार - " स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह 'छायावाद' है और यह एक विशेष प्रकार की भावपद्धति है, जीवन के प्रति एक विशेष भावात्मक दृष्टिकोण है।”
छायावाद की परिभाषा क्या है?डॉ. रामविलास शर्मा के शब्दों में-“छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह नहीं रहा वरन् थोथी नैतिकता, रूढ़िवाद और सामन्ती साम्राज्यवादी बन्धनों के प्रति विद्रोह रहा है।” डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में-“छायावाद एक विशेष प्रकार की भाव पद्धति है, जीवन के प्रति एक विशेष भावात्मक दृष्टिकोण है।” इस प्रकार डॉ.
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