भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 कब लागू हुआ? - bhaarateey vany jeev sanrakshan adhiniyam 1972 kab laagoo hua?

(3) यह किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में, जिस पर इसका विस्तार है4*** ऐसी तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे तथा इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिये और विभिन्न राज्यों या संघ राज्य क्षेत्रों के लिये विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी।

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2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

5{(1) “प्राणी” के अन्तर्गत स्तनी, पक्षी, सरीसृप, जलस्थल चर, मत्स्य, अन्य रज्जुकी तथा अकशेरूकी हैं और इनमें उनके बच्चे तथा अंडे भी सम्मिलित हैं;}

(2) “प्राणी वस्तु” से ऐसी वस्तु अभिप्रेत है जो पीड़कजन्तु से भिन्न किसी बन्दी या वन्य प्राणी से बनी है और इसके अन्तर्गत ऐसी कोई वस्तु या पदार्थ है, जिसमें ऐसे पूरे प्राणी या उसके किसी भाग का 6{उपयोग किया गया है और भारत में आयातित हाथी दाँत तथा उससे बनी वस्तुएँ;}

5{(4) “बोर्ड” से धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन गठित राज्य वन्य जीव बोर्ड अभिप्रेत है;}

(5) “बन्दी प्राणी” से अनुसूची 1, अनुसूची 2, अनुसूची 3, या अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट ऐसा कोई प्राणी अभिप्रेत है जो पकड़ा गया या बन्दी हालत में रखा गया है अथवा बन्दी हालत में प्रजनित हुआ है;

(7) “मुख्य वन्य जीव संरक्षक” से धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन उस रूप में नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है;

8{(7क) “सर्कस” से ऐसा स्थापन अभिप्रेत है, चाहे वह स्थायी हो या चल, जहाँ पूर्णतया या मुख्यतया करतब या कलाबाजियाँ दिखाने के प्रयोजन के लिये प्राणी रखे या प्रयोग किये जाते हैं;}

1{(9) “कलक्टर” से किसी जिले के राजस्व प्रशासन का मुख्य भारसाधक अधिकारी या ऐसा कोई अन्य अधिकारी जो उप-कलक्टर की पंक्ति से नीचे का न हो, जिसे इस निमित्त धारा 18ख के अधीन राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाये, अभिप्रेत है;}

(10) इस अधिनियम के “प्रारम्भ” से-

(क) किसी राज्य के सम्बन्ध में, उस राज्य में इस अधिनियम का प्रारम्भ अभिप्रेत है;
(ख) इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के सम्बन्ध में सम्बद्ध राज्य में उस उपबन्ध का प्रारम्भ अभिप्रेत है;

2{(11) “व्यापारी” से किसी बन्दी प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी, असंसाधिक ट्राफी, मांस या विनिर्दिष्ट पादपों के सम्बन्ध में, ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो ऐसे किसी प्राणी या वस्तु के क्रय या विक्रय का कारबार करता है और इसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति भी है जो किसी एकल संव्यवहार में कारबार करता है;}

(12) “निदेशक” से धारा 3 की उपधारा (1) खण्ड (क) के अधीन वन्य जीव परिरक्षण निदेशक के रूप से नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है;

2{(12क) “वन अधिकारी” से भारतीय वन अधिनियम, 1927 (1927 का 16) की धारा 2 के खण्ड (2) के अधीन या किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियम के अधीन नियुक्त किया गया वन अधिकारी अभिप्रेत है;

(12ख) “वन उत्पाद” पद का वही अर्थ है जो भारतीय वन अधिनियम, 1927 (1927 का 16) की धारा 2 के खण्ड (4) के उपखण्ड (ख) में है;}

(14) “सरकारी सम्पत्ति” से धारा 39 4{या धारा 17ज} में निर्दिष्ट कोई सम्पत्ति अभिप्रेत है;

(15) “आवास” के अन्तर्गत ऐसी भूमि, जल और वनस्पति है जो किसी वन्य प्राणी का प्राकृतिक गृह है;

(16) व्याकरणिक रूपभेदों और सजातीय पदों सहित “आखेटन” के अन्तर्गत है:-

2{(क) किसी वन्य प्राणी या बन्दी प्राणी को मारना या उसे विष देना और ऐसा करने का प्रत्येक प्रयत्न;
(ख) किसी वन्य प्राणी या बन्दी प्राणी को पकड़ना, शिकार करना, फंदे में पकड़ना, जाला में फाँसना, हाँका लगाना या चारा डालकर फँसाना तथा ऐसा करने का प्रत्येक प्रयत्न;}

(ग) किसी ऐसे प्राणी के शरीर के किसी भाग को क्षतिग्रस्त करना; या नष्ट करना या लेना अथवा वन्य पक्षियों या सरीसृपों की दशा में, ऐसे पक्षियों या सरीसृपों के अंडों को नुकसान पहुँचाना अथवा ऐसे पक्षियों या सरीसृपों के अंडों या घोसलों को गड़बड़ाना;

(17) “भूमि” के अन्तर्गत हैं नहरें, संकरी खाड़ियाँ और अन्य जल सरणियाँ, जलाशय; नदियाँ, सरिताएँ और झीलें, चाहे वे कृत्रिम हों या प्राकृतिक, 5{दलदल और आर्द्र भूमि, तथा इसके अन्तर्गत बोल्डर और चट्टाने भी हैं;}

(18) “अनुज्ञप्ति” से इस अधिनियम के अधीन दी गई अनुज्ञप्ति अभिप्रेत है;

2{(18क) “पशुधन” से, कृषि में काम आने वाले प्राणी अभिप्रेत हैं और इसके अन्तर्गत भैंस, सांड, बैल, ऊँट, गाय, गधा, बकरा, भेड़, घोड़ा, खच्चर, याक, सूअर, बत्तख, हंस, कुक्कुट और उनके बच्चे आते हैं किन्तु इसमें अनुसूची 1 से अनुसूची 5 तक में विनिर्दिष्ट कोई प्राणी सम्मिलित नहीं है;}

2{(19) “विनिर्माता” से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो, यथास्थिति, अनुसूची 1 से अनुसूची 5 और अनुसूची 6 में विनिर्दिष्ट, किसी प्राणी या पादप से, वस्तुओं का विनिर्माण करता है;

(20) “मांस” के अन्तर्गत है, पीड़क जन्तु से भिन्न, किसी वन्य प्राणी या बन्दी प्राणी का रक्त, उसकी हड्डियाँ, स्नायु, अंडे, कवच या पृष्ठ वर्म, चर्बी और गोश्त, खाल के साथ या उसके बिना, चाहे वे कच्चे हों या पकाए हुए हों;

(20क) “राष्ट्रीय बोर्ड” से धारा 5क के अधीन गठित राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड अभिप्रेत है;}

(21) “राष्ट्रीय उपवन” से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो धारा 35 या धारा 38 के अधीन राष्ट्रीय उपवन के रूप में घोषित किया गया है और जो धारा 66 की उपधारा (3) के अधीन राष्ट्रीय उपवन घोषित किया गया समझा जाता है;

(22) “अधिसूचना” से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;

(23) “अनुज्ञापत्र” से इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अधीन दिया गया अनुज्ञापत्र अभिप्रेत है;

(24) “व्यक्ति” के अन्तर्गत फर्म है;

1{(24क) “संरक्षित क्षेत्र” से अधिनियम की धारा 18, धारा 35, धारा 36क और धारा 36ग के अधीन अधिसूचित कोई राष्ट्रीय उपवन, अभयारण्य, संरक्षण आरक्षिति या सामुदायिक आरक्षिति अभिप्रेत है;}

(25) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

2{(25क) “मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर” से धारा 38ज के अधीन मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर अभिप्रेत है;

3{(25ख) “आरक्षिति वन” से राज्य सरकार द्वारा भारतीय वन अधिनियम, 1927 (1927 का 16) की धारा 20 के अधीन आरक्षिति करने के लिये घोषित या किसी अन्य राज्य अधिनियम के अधीन उक्त रूप में घोषित वन अभिप्रेत है;}

(26) “अभयारण्य” से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के अध्याय 4 के उपबन्धों के अधीन अधिसूचना द्वारा अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया है और इसके अन्तर्गत धारा 66 की उपधारा (4) के अधीन अभयारण्य समझा गया क्षेत्र भी है;}

4{(27) “विनिर्दिष्ट पादप” से अनुसूची 6 में विनिर्दिष्ट कोई पादप अभिप्रेत है;}

(29) संघ राज्य क्षेत्र के सम्बन्ध में “राज्य सरकार” से उस संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक अभिप्रेत है जो राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त किया गया है;

3{(30) व्याकरणिक रूपभेदों और सजातीय पदों सहित, “चर्मप्रसाधन” से ट्राफियों का संसाधन, उनको तैयार करना या उनका परिरक्षण या आरोपण अभिप्रेत है;}

2{(30क) “राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड” का वही अर्थ है जो राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड, महाद्वीपीय मग्नतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्र अधिनियम, 1976 (1976 का 80) की धारा 3 में है;}

(31) “ट्राफी” से पीड़कजन्तु से भिन्न कोई पूरा बन्दी प्राणी या वन्य प्राणी या उसका कोई भाग अभिप्रेत है जिसे किन्हीं साधनों द्वारा चाहे वे कृत्रिम हों या प्राकृतिक, रखा या परिरक्षित किया गया है और इसके अन्तर्गत है:-

(क) ऐसे प्राणी के चर्म, त्वचा और नमूने जो चर्म प्रसाधन की प्रक्रिया द्वारा पूर्णतः या भागतः मढ़े गए हैं; और

6{(ख) हिरण का सींग, हड्डी, पृष्ठ वर्म, कवच, सींग, गैंडे का सिंग, बाल, पंख, नाखून, दाँत, हाथी दाँत, कस्तूरी, अंडे, घोंसले और मधुमक्खी छत्ता;

(32) “असंसाधित ट्राफी” से पीड़क जन्तु से भिन्न कोई पूरा बन्दी प्राणी या वन्य प्राणी या उसका कोई भाग अभिप्रेत है जिस पर चर्म प्रसाधन की प्रक्रिया नहीं हुई है और 7{उसके अन्तर्गत ताजा मारा गया वन्य प्राणी, कच्चा अंबर, कस्तूरी और अन्य प्राणी उत्पाद है;}

(33) “यान” से भूमि, जल या वायु में संचलन के लिये प्रयुक्त सवारी अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत भैंस, सांड, बैल, ऊँट, गधा, घोड़ा और खच्चर हैं;

(34) “पीड़कजन्तु” से अनुसूची 5 में विनिर्दिष्ट कोई वन्य प्राणी अभिप्रेत है;

(35) “आयुध” के अन्तर्गत गोला बारूद, धनुष और बाण; विस्फोटक, अग्न्यायुध, काँटे, चाकू, जाल, विष, फंदे और फाँसे तथा कोई ऐसा उपकरण या साधित्र है जिससे किसी प्राणी को संवेदनाहृत किया जा सकता है, धोखे से पकड़ा जा सकता है, नष्ट किया जा सकता है, क्षतिग्रस्त किया जा सकता है या मारा जा सकता है;

1{(36) “वन्य प्राणी” से ऐसा प्राणी अभिप्रेत है जो अनुसूची 1 से अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट है और प्रकृति से ही वन्य है;}

1{(37) “वन्य जीव” के अन्तर्गत जलीय या भूवनस्पतिक ऐसा कोई प्राणी है जो किसी प्राकृतिक वास का भाग है;}

(38) “वन्य जीव संरक्षक” से धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन उस रूप में नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है;

2{(39) “चिड़ियाघर” से ऐसा स्थापन अभिप्रेत है, चाहे वह स्थायी हो या चल, जहाँ बन्दी प्राणी सर्वसाधारण के प्रदर्शन के लिये रखे जाते हैं 3{और इसके अन्तर्गत सर्कस और बचाव केन्द्र हैं किन्तु अनुज्ञप्त व्यौहारी का कोई स्थापन नहीं है।}}

अध्याय 2


इस अधिनियम के अधीन नियुक्त या गठित किये जाने वाली प्राधिकारी


3. निदेशक और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति


(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये,-

(क) एक वन्य जीव परिरक्षण निदेशक;
(ख) ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी, जो आवश्यक हों,नियुक्त कर सकेगी।

(2) निदेशक इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अपने कर्तव्यों का पालन करने में और अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में ऐसे साधारण या विशेष निदेशों के अधीन होगा, जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर दे।

5{(3) इस धारा के अधीन नियुक्त किये गए अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों से निदेशक की सहायता करने की अपेक्षा की जाएगी।}

4. मुख्य वन्य जीव संरक्षक और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति


(1) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजन के लिये,-

(क) एक मुख्य वन्य जीव संरक्षक;
(ख) वन्य जीव संरक्षक6***
7{(खख) अवैतनिक वन्य जीव संरक्षक;}
(ग) ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी, जो आवश्यक हों,नियुक्त कर सकेगी।

(2) मुख्य वन्य जीव संरक्षक, इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अपने कर्तव्यों का पालन करने में और अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में ऐसे साधारण या विशेष निदेशों के अधीन होगा, जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर दे।

(3) इस धारा के अधीन नियुक्त 8{वन्य जीव संरक्षक, अवैतनिक वन्य जीव संरक्षक, और अन्य अधिकारी और कर्मचारी मुख्य वन्य जीव संरक्षक के अधीनस्थ होंगे।

5. प्रत्यायोजन करने की शक्ति


(1) निदेशक, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, लिखित आदेश द्वारा, इस अधिनियम के अधीन अपनी समस्त या कुछ शक्तियों और कर्तव्यों को अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को, ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, प्रत्यायोजित कर सकेगा।

(2) मुख्य वन्य जीव संरक्षक, राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से, लिखित आदेश द्वारा धारा 11 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन शक्तियों और कर्तव्यों के सिवाय इस अधिनियम के अधीन अपनी समस्त या कुछ शक्तियों और कर्तव्यों को अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, प्रत्यायोजित कर सकेगा।

(3) निदेशक या मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा दिये गए किसी साधारण या विशेष निदेश के या उसके द्वारा अधिरोपित किसी शर्त के अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति, जो किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करने के लिये निदेशक या मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा प्राधिकृत हैं, उन शक्तियों का प्रयोग उसी रीति से और वैसे ही प्रभाव के साथ करेगा मानो वे उस व्यक्ति को प्रत्यायोजन द्वारा नहीं अपितु इस अधिनियम द्वारा सीधे प्रदत्त की गई हों।

1{5क. वन्य जीव के लिये राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड का गठन (1) केन्द्रीय सरकार, वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारम्भ से तीन मास के भीतर राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड का गठन करेगी, जो निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात:-

(क) अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री;
(ख) उपाध्यक्ष के रूप में वन और वन्य जीव का भारसाधक मंत्री;
(ग) संसद के तीन सदस्य, जिनमें से दो लोकसभा से तथा एक राज्यसभा से होगा;
(घ) सदस्य, योजना आयोग में वन और वन्य जीव का भारसाधक;
(ङ) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले गैर-सरकारी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले पाँच व्यक्ति;
(च) केन्द्रीय सरकार द्वारा सुविख्यात संरक्षण विज्ञानियों, परिस्थितिकीय विज्ञानियों तथा पर्यावरण विज्ञानियों में से नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले दस व्यक्ति;
(छ) वन और वन्य जीव से सम्बन्धित भारत सरकार में केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक सचिव;
(ज) थल सेना अध्यक्ष;
(झ) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का भारसाधक सचिव;
(ञ) भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय का भारसाधक सचिव;
(ट) भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग का भारसाधक सचिव;
(ठ) भारत सरकार के जनजाति कल्याण मंत्रालय का सचिव;
(ड) वन और वन्य जीव से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का वन महानिदेशक;
(ढ) पर्यटन महानिदेशक, भारत सरकार;
(ण) महानिदेशक, भारतीय वन अनुसन्धान और शिक्षा परिषद, देहरादून;
(त) निदेशक, भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून;
(थ) निदेशक, भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण;
(द) निदेशक, भारतीय वनस्पति विज्ञान सर्वेक्षण;
(ध) निदेशक, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान;
(न) सदस्य-सचिव, केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण;
(प) निदेशक, राष्ट्रीय महासागर विज्ञान संस्थान;
(फ) दस राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों से प्रत्येक में से चक्रानुक्रम के आधार पर केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाने वाला एक-एक प्रतिनिधि;
(ब) निदेशक, वन्य जीव परिरक्षण जो राष्ट्रीय बोर्ड का सदस्य-सचिव होगा।

(2) उन सदस्यों से, भिन्न सदस्यों की पदावधि, जो पदेन सदस्य हैं, उपधारा (1) के खण्ड (ङ), खण्ड (च) और खण्ड (फ) में निर्दिष्ट रिक्तियों को भरने की रीति और राष्ट्रीय बोर्ड के सदस्यों द्वारा उनके कृत्यों के निर्वहन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ऐसी होगी जो विहित की जाये।

(3) सदस्य (पदेन सदस्यों के सिवाय) अपने कर्तव्यों के पालन में उपगत व्ययों के सम्बन्ध में ऐसे भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो विहित किये जाएँ।

(4) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रीय बोर्ड के सदस्य का पद लाभ का पद नहीं समझा जाएगा।

5ख. राष्ट्रीय बोर्ड की स्थायी समिति- (1) राष्ट्रीय बोर्ड, अपने विवेकानुसार, ऐसी शक्तियों का प्रयोग करने और ऐसे कर्तव्यों का अनुपालन करने के प्रयोजन के लिये, जो राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा समिति को प्रत्यायोजित किये जाएँ, एक स्थायी समिति गठित कर सकेगा।

(2) स्थायी समिति उपाध्यक्ष, सदस्य-सचिव तथा राष्ट्रीय बोर्ड के सदस्यों में से उपाध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले दस से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी।

(3) राष्ट्रीय बोर्ड उसको सौंपे गए कृत्यों के उचित निर्वहन के लिये समय-समय पर समितियाँ, उप-समितियाँ या अध्ययन समूह, जो भी आवश्यक हों, गठित कर सकेगा।

5ग. राष्ट्रीय बोर्ड के कृत्य-(1) राष्ट्रीय बोर्ड का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे उपायों द्वारा, जो वह ठीक समझे, वन्य जीव और वनों के संरक्षण और विकास का संवर्धन करे।

(2) पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इसमें निर्दिष्ट अध्युपाय निम्नलिखित के लिये उपबन्ध कर सकेंगे,-

(क) नीतियाँ बनाना और वन्य जीव संरक्षण का संवर्धन करने तथा वन्य जीव और उसके उत्पादों की चोरी और उसके अवैध व्यापार पर प्रभावी रूप से नियंत्रण करने के लिये उपायों और साधनों पर केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को सलाह देना;
(ख) राष्ट्रीय उपवनों, अभयारण्यों और अन्य संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और प्रबन्ध पर तथा उन क्षेत्रों में क्रियाकलापों के निर्बन्धन से सम्बन्धित विषयों पर सिफारिशें करना;
(ग) वन्य जीव या उनके आवासों से सम्बन्धित विभिन्न परियोजनाओं और क्रियाकलापों का प्रभाव निर्धारण करना या करवाना;
(घ) देश में वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में हुई प्रगति का समय-समय पर पुनर्विलोकन करना और उसके सुधार के लिये उपाय सुझाना; और
(ङ) देश में वन्य जीवन पर दो वर्ष में कम-से-कम एक बार प्रास्थिति रिपोर्ट तैयार करना और उसे प्रकाशित करवाना।

1{6. राज्य वन्य जीव बोर्ड का गठन-(1) राज्य सरकार वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारम्भ की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर एक राज्य वन्य जीव बोर्ड का गठन करेगी, जो निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात:-

(क) राज्य का मुख्यमंत्री और संघ राज्य क्षेत्र की दशा में, यथास्थिति, मुख्यमंत्री या प्रशासक-अध्यक्ष;
(ख) वन और वन्य जीव का भारसाधक मंत्री-उपाध्यक्ष;
(ग) राज्य विधानमंडल के तीन सदस्य या विधानमंडल वाले संघ राज्य क्षेत्र की दशा में, उस संघ राज्यक्षेत्र की विधानसभा के दो सदस्य;
(घ) राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले वन्य जीव से सम्बन्धित गैर-सरकारी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने के लिये तीन व्यक्ति;
(ङ) राज्य सरकार द्वारा सुविख्यात संरक्षण विज्ञानियों, पारिस्थितिकी विज्ञानियों और पर्यावरण विज्ञानियों, में से जिनके अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति के कम-से-कम दो प्रतिनिधि होंगे नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले दस व्यक्ति;
(च) यथास्थिति, राज्य सरकार या संघ राज्य क्षेत्र सरकार का सचिव जो वन और वन्य जीव का भारसाधक हो;
(छ) राज्य वन विभाग का भारसाधक अधिकारी;
(ज) राज्य सरकार के जनजाति कल्याण विभाग का सचिव;
(झ) प्रबन्ध निदेशक, राज्य पर्यटन विकास निगम;
(ञ) राज्य के पुलिस विभाग का एक अधिकारी जो महानिरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो;
(ट) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाने वाला सशस्त्र बलों का एक प्रतिनिधि जो ब्रिगेडियर की पंक्ति से नीचे का न हो;
(ठ) निदेशक, राज्य पशुपालन विभाग;
(ड) निदेशक, राज्य मत्स्य विभाग;
(ढ) निदेशक, वन्य जीव परिरक्षण द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाने वाला एक अधिकारी;
(ण) भारतीय वन्य संस्थान, देहरादून का एक प्रतिनिधि;
(त) भारतीय वनस्पति विज्ञान सर्वेक्षण का एक प्रतिनिधि;
(थ) भारतीय प्राणीविज्ञान सर्वेक्षण का एक प्रतिनिधि;
(द) मुख्य वन्य जीव संरक्षक, जो सदस्य-सचिव होगा।

(2) पदेन सदस्य से भिन्न सदस्यों की पदावधि और उपधारा (1) के खण्ड (घ) और खण्ड (ङ) में निर्दिष्ट रिक्तियों को भरने की रीति तथा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ऐसी होगी जो विहित की जाये।

(3) सदस्य (पदेन सदस्यों के सिवाय) अपने कर्तव्यों के पालन में उपगत व्ययों के सम्बन्धों में ऐसे भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे जो विहित किये जाएँगे।

7. बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया


(1) बोर्ड का अधिवेशन वर्ष में कम-से-कम दो बार ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार निदेश दे।

(2) बोर्ड अपनी प्रक्रिया (जिसके अन्तर्गत गणपूर्ति है) स्वयं विनियमित करेगा।

(3) बोर्ड का कोई भी कार्य या कार्यवाही केवल उसमें किसी रिक्ति के विद्यमान होने या उसके गठन में किसी त्रुटि या बोर्ड की प्रक्रिया में किसी अनियमितता के कारण जिससे मामले के गुणागुण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अविधिमान्य नहीं होगी।

8. 1{राज्य वन्य जीव बोर्ड, के कर्तव्य-1{राज्य वन्य जीव बोर्ड} का कर्तव्य राज्य सरकार को-

2{(क) उन क्षेत्रों के चयन और प्रबन्ध के बारे में जिन्हें संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाता है;}

3{(ख) वन्य जीव और विनिर्दिष्ट पादपों के परिरक्षण और संरक्षण के लिये नीति-निर्धारित करने में;}
(ग) किसी अनुसूची के संशोधन से सम्बद्ध किसी विषय के बारे में,4***
5{(गग) जनजातियों और अन्य वनवासियों की आवश्यकताओं तथा वन्य जीव के परिरक्षण और संरक्षण के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिये किये जाने वाले उपायों के सम्बन्ध में; और}

(घ) वन्य जीव के संरक्षण से सम्बन्धित किसी अन्य विषय के बारे में जो उसे राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाये, सलाह देना होगा।

अध्याय 3


वन्य प्राणियों का आखेट करना


6{9. शिकार का प्रतिषेध कोई भी व्यक्ति अनुसूची 1, अनुसूची 2, अनुसूची 3, और अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट किसी वन्य प्राणी का, धारा 11 और धारा 12 के अधीन यथा उपबन्धित के सिवाय, शिकार नहीं करेगा।}

11. कुछ परिस्थितियों में वन्य प्राणियों के आखेट की अनुज्ञा का दिया जाना-


(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी और अध्याय 4 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए-

(क) यदि मुख्य वन्य जीव संरक्षक का यह समाधान हो जाता है कि अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट कोई वन्य प्राणी मानव जीवन के लिये खतरनाक हो गया है या ऐसा निःशक्त या रोगी है कि ठीक नहीं हो सकता है, तो वह लिखित आदेश द्वारा और उसके लिये कारण कथित करते हुए किसी व्यक्ति को ऐसे प्राणी का आखेट करने की या उसका आखेट करवाने की अनुज्ञा दे सकेगा:

8{परन्तु किसी वन्य प्राणी को मारने का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा प्राणी पकड़ा नहीं जा सकता, प्रशान्त नहीं किया जा सकता या स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता:

परन्तु यह और कि ऐसे पकड़े गए किसी भी प्राणी को तब तक बन्दी बनाकर नहीं रखा जाएगा जब तक कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसे प्राणी को वन में पुनर्वासित नहीं किया जा सकता और उसके लिये कारण अभिलिखित नहीं कर दिये जाते हैं।

स्पष्टीकरण


खण्ड (क) के प्रयोजनों के लिये ऐसे प्राणी के, यथास्थिति, पकड़ने या स्थानान्तरण करने की प्रक्रिया, ऐसी रीति से की जाएगी जिससे कि उस प्राणी को न्यूनतम अभिघात कारित हो;}

(ख) यदि मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि अनुसूची 2, अनुसूची 3 या अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट कोई वन्य प्राणी मानव जीवन के लिये या सम्पत्ति (जिसके अन्तर्गत किसी भूमि पर खड़ी फसलें हैं) के लिये खतरनाक हो गया है या ऐसा निःशक्त या रोगी है कि ठीक नहीं हो सकता है तो यह लिखित आदेश द्वारा और उसके लिये कारण कथित करते हुए किसी व्यक्ति को 1{किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र में ऐसे प्राणी या प्राणियों के समूह का आखेट करने या उस विनिर्दिष्ट क्षेत्र में ऐसे प्राणी या प्राणियों के समूह का आखेट करवाने की, अनुज्ञा दे सकेगा।

(2) अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिरक्षा में किसी वन्य प्राणी को सद्भावपूर्वक मारना या घायल करना अपराध नहीं होगाः

परन्तु इस उपधारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को विमुक्त नहीं करेगी, जो उस समय जब ऐसी प्रतिरक्षा आवश्यक हो गई है, इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के किसी उपबन्ध के उल्लंघन में कोई कार्य कर रहा था।

(3) किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा में मारा गया या घायल किया गया कोई वन्य प्राणी सरकारी सम्पत्ति होगा।

12. विशेष प्रयोजनों के लिये अनुज्ञापत्र देना


इस अधिनियम में अन्यत्र किसी बात के होते हुए भी, मुख्य वन्य जीव संरक्षक के लिये यह विधिपूर्ण होगा कि वह2*** पूर्ण लिखित आदेश द्वारा, उसके लिये कारण कथित करते हुए, किसी व्यक्ति को ऐसी फीस का सन्दाय करने पर जो विहित की जाये, अनुज्ञापत्र दे, जो ऐसी अनुज्ञप्ति के धारक को, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएँ ऐसे अनुज्ञापत्र में विनिर्दिष्ट किसी वन्य प्राणी का, निम्नलिखित प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिये आखेट करने के लिये हकदार बनाएगा, अर्थात:-

(क) शिक्षा;
3{(ख) वैज्ञानिक अनुसन्धान;
(खख) वैज्ञानिक प्रबन्ध।

स्पष्टीकरण


खण्ड (खख) के प्रयोजनों के लिये “वैज्ञानिक प्रबन्ध” पद से अभिप्रेत है-

(1) किसी वन्य पशु का किसी अन्य आनुकल्पिक समुचित प्राकृतिक वास के लिये स्थानान्तरण; या
(2) किसी वन्यु पशु का वध किये बिना, या उसे विष दिये बिना या नष्ट किये बिना वन्य जीव संख्या प्रबन्ध;}
4{(ग) निम्नलिखित के लिये नमूनों का संग्रहण,-

(i) धारा 38झ के अधीन अनुज्ञा के अधीन रहते हुए, मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर; या
(2) संग्रहालय और तत्समान संस्थाएँ:
5{परन्तु ऐसा कोई अनुज्ञापत्र-

(क) अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट किसी वन्य पशु की बाबत केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुज्ञा से; और
(ख) किसी अन्य वन्य पशु की बाबत राज्य सरकार की पूर्व अनुज्ञा से,ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं।}
(घ) प्राणरक्षक औषधियों के विनिर्माण के लिये सर्प विष निकालना, संग्रह करना या तैयार करना:}

1अध्याय 3क


विनिर्दिष्ट पादपों का संरक्षण


17क. विनिर्दिष्ट पादपों के तोड़ने, उखाड़ने, आदि का प्रतिषेध


इस अध्याय में जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, कोई व्यक्ति-

(क) किसी विनिर्दिष्ट पादप को किसी वन भूमि से और केन्द्रीय सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट किसी क्षेत्र से जान बूझकर नहीं तोड़ेगा, नहीं उखाड़ेगा, नुकसान नहीं पहुँचाएगा, नष्ट नहीं करेगा, अर्जित या उसका संग्रह नहीं करेगा;

(ख) किसी विनिर्दिष्ट पादप को, चाहे जीवित या मृत, या उसके भाग या व्युत्पन्नी को, कब्जे में नहीं रखेगा, विक्रय नहीं करेगा, विक्रय के लिये प्रस्थापित नहीं करेगा, या दान के रूप में अथवा अन्यथा अन्तरित नहीं करेगा, या उसका परिवहन नहीं करेगा:

परन्तु इस धारा की कोई बात जनजाति के किसी सदस्य को, अध्याय 4 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उस जिले में, जिसमें वह निवास करता है, किसी विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी को अपने सद्भावित व्यक्तिगत प्रयोग के लिये तोड़ने, संग्रह करने या कब्जे में रखने से निवारित नहीं करेगी।

17ख. विशेष प्रयोजनों के लिये अनुज्ञापत्र देना


मुख्य वन्य जीव संरक्षक, राज्य सरकार की पूर्व अनुज्ञा से, किसी व्यक्ति को किसी विनिर्दिष्ट पादप को-

(क) शिक्षा;
(ख) वैज्ञानिक अनुसन्धान;
(ग) किसी वैज्ञानिक संस्था के जड़ी-उद्यान में संग्रहण, परिरक्षण और प्रदर्शन; या
(घ) केन्द्रीय सरकार द्वारा इस बाबत अनुमोदित किसी व्यक्ति, या संस्था द्वारा संवर्धन, के प्रयोजन के लिये किसी वन भूमि या धारा 17क के अधीन विनिर्दिष्ट क्षेत्र से तोड़ने, उखाड़ने, अर्जित करने, संग्रह करने या उसका परिवहन करने के लिये अनुज्ञापत्र ऐसी शर्तों के अधीन जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएँ, दे सकेगा।

17ग. अनुज्ञप्ति के बिना विनिर्दिष्ट पादपों की खेती का प्रतिषेध

(1) कोई भी व्यक्ति, मुख्य वन जीव संरक्षक द्वारा या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा दी गई अनुज्ञप्ति के अधीन और उसके अनुसार के सिवाय, किसी विनिर्दिष्ट पादप की खेती नहीं करेगा:

परन्तु इस धारा की कोई बात ऐसी किसी व्यक्ति को, जो वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ के ठीक पूर्व, किसी विनिर्दिष्ट पादप की खेती कर रहा था, ऐसे प्रारम्भ से छह मास की अवधि के लिये, या जहाँ उसने उस अवधि के भीतर अपने लिये अनुज्ञप्ति दिये जाने का आवेदन किया है वहाँ तब तक जब तक उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जाती है या लिखित में उसे यह जानकारी नहीं दी जाती है कि उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जा सकती है, ऐसे खेती करते रहने से निवारित नहीं करेगी।

(2) इस धारा के अधीन दी गई प्रत्येक अनुज्ञप्ति में वह क्षेत्र जिसमें और वे शर्तें, यदि कोई हों, जिनके अधीन रहते हुए, अनुज्ञप्तिधारी किसी विनिर्दिष्ट पादप की खेती करेगा, विनिर्दिष्ट की जाएँगी।

17घ. अनुज्ञप्ति के बिना विनिर्दिष्ट पादपों में व्यवहार करने का प्रतिषेध


कोई भी व्यक्ति, मुख्य जीव संरक्षक द्वारा या राज्य सरकार द्वारा इस निमित प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा दी गई अनुज्ञप्ति के अधीन और उसके अनुसार के सिवाय, विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी में व्यौहारी के रूप में कारबार या उपजीविका आरम्भ नहीं करेगा या नहीं चलाएगा:

परन्तु इस धारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को, जो वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ के ठीक पूर्व, ऐसा कारबार या उपजीविका चला रहा था, ऐसे प्रारम्भ से साठ दिन की अवधि के लिये, या जहाँ उसने उस अवधि के भीतर अपने लिये अनुज्ञप्ति दिये जाने का आवेदन किया है, वहाँ तब तक जब तक उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जाती है या लिखित में उसे यह जानकारी नहीं दी जाती है कि उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जा सकती है, ऐसा कारबार या उपजीविका करते रहने से निवारित नहीं करेगी।

(2) इस धारा के अधीन दी गई प्रत्येक अनुज्ञप्ति में वह परिसर जिसमें और वे शर्तें, यदि कोई हों, जिनके अधीन रहते हुए, अनुज्ञप्तिधारी अपना कारबार चलाएगा, विनिर्दिष्ट की जाएँगी।

17ङ. स्टाक की घोषणा


(1) प्रत्येक व्यक्ति, जो विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी की खेती या उसमें व्यवहार करता है, वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ से तीस दिन के भीतर मुख्य वन जीव संरक्षक या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी के समक्ष, यथास्थिति, ऐसे पादपों और उनके भाग या व्युत्पन्नी के, ऐसे प्रारम्भ की तारीख को, अपने स्टाक की घोषणा करेगा।

(2) धारा 44 की उपधारा (3) से उपधारा (8) तक (जिसमें ये दोनों उपधाराएँ भी हैं), धारा 45, धारा 46 और धारा 47 के उपबन्ध, जहाँ तक हो सके, धारा 17ग और धारा 17घ में निर्दिष्ट किसी आवेदन और अनुज्ञप्ति के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे प्राणी या प्राणी-वस्तुओं की अनुज्ञप्ति और कारबार को लागू होते हैं।

17च. अनुज्ञप्तिधारी द्वारा पादपों का कब्जा, आदि


इस अध्याय के अधीन कोई अनुज्ञप्तिधारी,-

(क) निम्नलिखित को अपने नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में नहीं रखेगा, अर्थात:-

(i) कोई विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी, जिसके सम्बन्ध में धारा 17ङ के उपबन्धों के अधीन घोषणा की जाती है किन्तु की नहीं गई है;

(ii) कोई विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी, जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उपबन्धों के अधीन विधिपूर्वक अर्जित नहीं की गई है।

(ख) निम्नलिखित में से कोई कार्य, उन शर्तों के, जिनके अधीन रहते हुए अनुज्ञप्ति दी गई है और ऐसे नियमों के, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएँ, अनुसार ही करेगा, अन्यथा नहीं, अर्थात:-

(i) किसी विनिर्दिष्ट पादप को तोड़ना, उखाड़ना या उसका संग्रह या अर्जन करना; या
(ii) किसी विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी को अर्जित करना, प्राप्त करना, अपने नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में रखना या विक्रय करना, विक्रय के लिये प्रस्थापित करना या परिवहन करना;

17छ. विनिर्दिष्ट पादपों का क्रय, आदि


कोई भी व्यक्ति किसी विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी को किसी अनुज्ञप्त व्यौहारी से ही क्रय करेगा, प्राप्त या अर्जित करेगा, अन्यथा नहीं:परन्तु इस धारा की कोई बात धारा 17ख में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति को लागू नहीं होगी।

17ज. पादपों का सरकारी सम्पत्ति होना


(1) प्रत्येक विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी, जिसके सम्बन्ध में इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के विरुद्ध कोई अपराध किया गया है, राज्य सरकार की सम्पत्ति होगी और जहाँ ऐसा पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी सरकार द्वारा घोषित किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन से संगृहीत या अर्जित की गई है वहाँ ऐसा पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी केन्द्रीय सरकार की सम्पत्ति होगी।

(2) धारा 39 की उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबन्ध, जहाँ तक हो सके, विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे वे उस धारा की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट वन्य प्राणियों और वस्तुओं के सम्बन्ध में लागू होते हैं।}

अध्याय 4


1{संरक्षित क्षेत्र}


अभयारण्य


18. अभयारण्य की घोषणा


2{(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, किसी आरक्षिति वन में समाविष्ट किसी क्षेत्र से भिन्न किसी क्षेत्र या राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड को अभयारण्य गठित करने के अपने आशय की घोषणा कर सकेगी, यदि वह यह समझती है कि ऐसा क्षेत्र, वन्य जीव या उसके पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन या विकास के प्रयोजन के लिये पर्याप्त रूप से पारिस्थितिक, प्राणी-जात, वनस्पति-जात, भू-आकृति विज्ञान-जात, प्रकृति या प्राणी विज्ञान-जात महत्त्व का है।}

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिसूचना में, यथासम्भव निकटतम रूप से, ऐसे क्षेत्र की स्थिति और सीमाएँ विनिर्दिष्ट की जाएँगी।

स्पष्टीकरण


इस धारा में प्रयोजनों के लिये क्षेत्र की सड़कों, नदियों, टीलों या अन्य सुज्ञात या सरलता से बोध गम्य सीमाओं से वर्गित करना पर्याप्त होगा।

3{18क. अभयारण्यों की सुरक्षा


(1) जब राज्य सरकार धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन किसी ऐसे क्षेत्र को, जो उस उपधारा के अधीन किसी आरक्षिति वन या राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड में समाविष्ट नहीं है, अभयारण्य के रूप में गठित करने के अपने आशय की घोषणा करती है, तो धारा 27 से धारा 33क तक के (जिनके अन्तर्गत दोनों धाराएँ हैं) उपबन्ध तत्काल प्रभावी होंगे।

(2) जब तक धारा 19 से धारा 24 (जिसमें दोनों धाराएँ सम्मिलित हैं) के अधीन प्रभावित व्यक्तियों के अधिकारों का अन्तिम रूप से निपटारा नहीं किया जाता, तब तक राज्य सरकार, सरकारी अभिलेखों के अनुसार प्रभावित व्यक्तियों के लिये उनके अधिकारों के अनुसार ईंधन, चारा और अन्य वन उत्पाद उपलब्ध कराने के लिये अपेक्षित वैकल्पिक व्यवस्था करेगी।

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 कब लागू हुआ?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 (Wildlife Protection Act 1972 in Hindi) को भारत की संसद द्वारा 12 अगस्त 1972 को पारित किया गया था और 9 सितंबर 1972 को अधिनियमित किया गया था।

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में कितने अध्याय हैं?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 (Wildlife Protection Act 1972 in Hindi) में 66 धाराएं हैं और इसमें 6 अनुसूचियां हैं जो उनमें से प्रत्येक के तहत रखी गई प्रजातियों के लिए विभिन्न प्रकार की सुरक्षा प्रदान करती हैं

धारा 1972 क्या है?

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 है । [(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है ।] (3) यह किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में, जिस पर इसका विस्तार है । । ।

भारत में वन्य जीव अभ्यारण कब लागू हुआ?

सही उत्तर 1972 है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत की संसद का एक अधिनियम है जो पौधों और जानवरों की प्रजातियों के संरक्षण के लिए लागू किया गया है।