उत्तर :उत्तर की रूपरेखा- Show
संविधान की आधारभूत संरचना का तात्पर्य संविधान में निहित उन प्रावधानों से है, जो संविधान और भारतीय राजनीतिक और लोकतांत्रिक आदर्शों को प्रस्तुत करता है। इन प्रावधानों को संविधान में संशोधन के द्वारा भी नहीं हटाया जा सकता है। वस्तुतः ये प्रावधान अपने आप में इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि इनमें नकारात्मक बदलाव से संविधान का सार-तत्त्व, जो जनमानस के विकास के लिये आवश्यक है, नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा। यद्यपि संविधान में आधारभूत ढाँचा वस्तुनिष्ठ रूप से उल्लिखित नहीं है किंतु न्यायालय के विभिन्न वादों के निर्णयों के माध्यम से इसे स्पष्टत: समझा जा सकता है। भारत में संविधान की आधारभूत संरचना के सिद्धांत को केशवानंद भारती मामले से जोड़ कर देखा जा सकता है। संविधान के 24वें संशोधन पर विचार करते समय न्यायालय ने निर्णय दिया कि विधायिका अनु. 368 के तहत संविधान की मूल संरचना को नहीं बदल सकती। न्यायालय का एक तर्क यह था कि संविधान सभा का महत्त्व वर्तमान के विधायिका की तुलना में अधिक है, इसलिये विधायिका संविधान के सार-तत्त्व को नहीं बदल सकती। साथ ही इसमें संविधान की सर्वोच्चता, संविधान की धर्मनिरपेक्षता, व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा जैसे तत्त्वों को संविधान की आधारभूत संरचना का भाग बताया गया है। आगे, न्यायपालिका के विभिन्न निर्णयों में इसे महत्त्व प्रदान करते हुए कई अन्य महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को संविधान के आधारभूत ढाँचे का भाग बताया गया। इसे निम्न रूप में देखा जा सकता है :-
वास्तव में संविधान में आधारभूत अवसंरचना को स्पष्ट नहीं किये जाने के कारण इसका निर्धारण न्यायपालिका के विवेक पर ही निर्भर करता है। विवेकाधीन शक्ति होने के कारण यह सिद्धांत भी विवादों से परे नहीं है। उदाहरण के लिये हाल में ही न्यायपालिका द्वारा न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन को संविधान के आधारभूत ढाँचे के विरूद्ध बताना विवाद का विषय है, क्योंकि न्यायधीशों की नियुक्ति की वर्तमान व्यवस्था शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के अनुकूल नहीं है। किन्तु, इसे सीमा मान कर संविधान के आधारभूत ढाँचे के सिद्धांत के महत्त्व को कम नहीं। किया जा सकता है। यह विधायिका की संविधान संशोधन की शक्ति को नियंत्रित कर विधायिका की निरंकुशता से बचाता है और लोकतंत्र के आधार को सुदृढ़ करता है। संविधान की मूल संरचना सिद्धांत (उड़ान)
संविधान की सर्वोच्चता + संप्रभुता + लोकतन्त्र + पंथ निरपेक्षता + शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त + संघीय व्यवस्था + एकता और अखंडता + कल्याणकारी राज्य + न्यायिक समीक्षा + वैयक्तिक स्वतंत्रता एवं गरिमा + संसदीय प्रणाली + न्यायपालिका की स्वतंत्रता + विधि का शासन + समानता + राज्य के नीति-निदेशक तत्वों के बीच संतुलन + स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव + न्याय के लिए प्रभावकारी पहुंच + न्याय का प्राकृतिक सिद्धान्त+ संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के अंतर्गत उच्च न्यायालय की शक्ति+ संविधान संशोधन करने की संसद की सीमित शक्ति+सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 32,136,141 और 142 के तहत प्राप्त शक्तियाँ। संविधान की मूल संरचना क्या है?संविधान की आधारभूत संरचना का तात्पर्य संविधान में निहित उन प्रावधानों से है, जो संविधान और भारतीय राजनीतिक और लोकतांत्रिक आदर्शों को प्रस्तुत करता है। इन प्रावधानों को संविधान में संशोधन के द्वारा भी नहीं हटाया जा सकता है।
भारतीय संविधान का मूल ढांचा क्या है?भारत का संविधान लोकतांत्रिक है जिसमें लोकहित संविधान का मूल ढांचा है । जनता के मूल अधिकार और मूल अधिकारों से संबंधित कानूनों में किसी प्रकार का कोई भी संशोधन नहीं किया जा सकता है । भारतीय संविधान में संशोधन कितनी विधियों द्वारा किया जाता है?
भारत के संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत का स्रोत क्या है?Detailed Solution. सही उत्तर है, संविधान की कुछ विशेषताएं हैं जो इसके लिए आवश्यक हैं कि उन्हें निरस्त नहीं किया जा सकता है। मूल संरचना सिद्धांत मुख्य रूप से अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संविधान संशोधन शक्ति के बारे में है। अनुच्छेद 368 - संविधान में संशोधन करने का अधिकार रखता है।
संविधान का मुख्य कार्य क्या है?यदि संसद को कानून बनाने का अधिकार है, तो पहले उसे यह 2022-23 Page 5 संविधान- क्यों और कैसे ? अधिकार देने वाला कोई कानून होना चाहिये । यह काम संविधान करता है ।
|