भारत में औपनिवेशिक शासन को समझाइए - bhaarat mein aupaniveshik shaasan ko samajhaie

भारत में औपनिवेशिक शासन को समझाइए - bhaarat mein aupaniveshik shaasan ko samajhaie

20 मई 1498 को वास्को डी गामा के कालीकट पहुंचने के साथ ही भारत के यूरोपीय उपनिवेशीकरण का ग्रहण आरम्भ हो गया।

औपनिवेशिक भारत, भारतीय उपमहाद्वीप का वह भूभाग है जिसपर यूरोपीय साम्राज्य था।

पुर्तगालियों के उपनिवेशडच के उपनिवेश ( डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी देखें)अंग्रेजों द्वारा उपनिवेशीकरण (क) ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन (१८५७ तक)(ख) प्रत्यक्ष ब्रिटिश राज फ्रांसीसी उपनिवेशडेनमार्क के उपनिवेश

भारत बहुत दिनों तक इंग्लैंड का उपनिवेश रहा है। सन 1600 ई में स्थापित यह कम्पनी मुगल शासन उत्तराधिकार बनी। प्रारंभ का उद्देश्य व्यापार करना तथा मुंबई कोलकाता और मद्रास के बंदरगाह से होकर शेष भारत में इसका संपर्क रहता था। धीरे-धीरे कंपनी की प्रादेशिक मौत की इच्छा प्रबल होती गई और और शीघ्र विवाह भारत में एक प्रमुख यूरोपीय शक्ति बन गई थी । सन 1773 से 1858 ई. तक का युग ऐसा रहा जिसे हम दोहरी सरकार का काल कहते हैं।कंपनी के साथ साथ ब्रिटिश संसद में भारतीय प्रशासनिक विषयों में अधिक रुचि लेने लगे। बंगाल में दीवानी अधिकार प्राप्त करने के समय से लेकर सन् 1857 ईसवीं तक कंपनी शासन ने अपने आप को एक ऐसी स्थिति में पाया, जिसे मुगलकालीन प्रशासन उसके अपने साम्राज्यवादी उद्देश्य के अनुरूप नहीं था और भारत जैसे देश में अंग्रेजी प्रशासन की विशेषताएं उत्पन्न करना एक कठिन कार्य था।सन् 1858 से 1947 तक क्राउन की सरकार ने संवैधानिक सीमा में रहते हुए संसदीय संस्थाओं को विकसित करने का अनेक प्रयत्न किया। जिसके फलस्वरूप भारतीय प्रशासन को भी राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की दृष्टि से एक नया प्रयोग क्षेत्र माना जाने लगा। रेगुलेटिंग एक्ट से प्रारंभ होने वाले संवैधानिक विकास के चरण जिस महत्वपूर्ण बरसों से गुजरे हैं उसमें 1813, 1833, 1858, 1861, 1893, 1909, 1919 और 1935 महत्वपूर्ण हैं। सन् 1858 में क्राउन द्वारा सत्ता हस्तगत कर लिए जाने पर लंदन में गिरी सरकार की स्थापना हुई और महारानी विक्टोरिया ने उदारवादी घोषणा द्वारा अपनी भावी सुधारों की ओर संकेत किया। 1761 के अधिनियम ने भारत के प्रांतीय और कार्यकारिणी को संगठित बनाया तथा इसके द्वारा आधुनिक प्रांतीय विधान मंडलों की नीव पड़ी। 1858 से 1862 ईसवीं तक की उदारवादी मांगों के फलस्वरुप एक समिति व्यवस्था का जन्म हुआ जिसमें अप्रत्यक्ष चुनाव का वादा किया।

1 858 के पूर्व प्रशासनिक व्यवस्था:- भारतीय संवैधानिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था के विकास में 1773 के अधिनियम का विशेष महत्त्व है। इस अधिनियम के पूर्व भारत में कोई केंद्रीय सत्ता नहीं। ईस्ट इंडिया कंपनी किस शासन शक्तियां तीन स्थानों मुंबई बंगाल और मद्रास में केंद्रित थी।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • ब्रिटिश राज

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • जब थरुर ने अंग्रेजों का बैंड बजाया, वीडियो हुआ वायरल (लाइव हिन्दुस्तान)
  • 8 lessons from Tharoor's electrifying Oxford speech
  • क्या हम अंग्रेजों के अत्याचारों को भूलते जा रहे हैं? (कुलदीप नैयर)

औपनिवेशिक शासन का मतलब क्या होता है?

उपनिवेशवाद से तात्पर्य किसी शक्तिशाली एवं विकसित राष्ट्र द्वारा किसी निर्बल एवं अविकसित देश पर उसके संसाधनों को अपने हित में दोहन करने के लिये राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करना है। इस क्रम में औपनिवेशिक शक्ति अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये उपनिवेशों पर सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक नियंत्रण भी स्थापित करती है।

भारत में औपनिवेशिक शासन की शुरुआत कहाँ से हुई?

औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में स्थापित किया गया था। यही वह प्रांत था जहाँ पर सबसे पहले ग्रामीण समाज को पुनर्व्यवस्थित करने और भूमि संबंधी अधिकारों की नयी व्यवस्था तथा एक नयी राजस्व प्रणाली स्थापित करने के प्रयत्न किए गए थे।

औपनिवेशिक क्या होता है class 8?

औपनिवेशिक क्या होता है class 8? इसे सुनेंरोकेंजब एक देश पर दूसरे देश के दबदबे से इस तरह के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव आते हैं तो इस प्रक्रिया को औपनिवेशीकरण कहा जाता है। महत्वपूर्ण साधन होते हैं। अंग्रेजों को यह भी लगता था कि तमाम अहम दस्तावेशों और पत्रों को सँभालकर रखना शरूरी है।

भारत में औपनिवेशिक नीति का क्या प्रभाव पड़ा?

अंग्रेजों द्वारा उद्योग लगाने के कम में आधारभूत संरचना का विकास किया गया, जिसका लाभ भारत को भी मिला। सीमित मात्रा में लोगों को रोजगार मिला लेकिन मजदूरों को शोषण का शिकार होना पड़ाऔपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के परिणाम स्वरूप सबसे बड़ा लाभ भारत में राष्ट्रवाद का उदय के रूप में मिला।