धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल: एक विश्लेषण - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकीचर्चा का कारणहाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को रामलला के पक्ष में सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया यह ऐतिहासिक निर्णय अपने आप में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस निर्णय से श्री राम जन्म भूमि के कानूनी विवाद का समाधान हो गया है, साथ ही भारत में धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर नई बहस शुरू हो गई है। Show
परिचयपश्चिमी मॉडल में धर्मनिरपेक्षता से आशय ऐसी व्यवस्था से है जहाँ धर्म और राज्यों का एक-दूसरे के मामले मे हस्तक्षेप न हो, व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्व दिया जाए। वहीं इसके विपरीत भारत में प्राचीन काल से ही विभिन्न विचारधाराओं को स्थान दिया जाता रहा है। यहाँ धर्म को जिंदगी का एक तरीका, आचरण संहिता तथा व्यक्ति की सामाजिक पहचान माना जाता रहा है। इस प्रकार भारतीय संदर्भ में धर्मनिपेक्षता का मतलब समाज में विभिन्न धार्मिक पंथों एवं मतों का सहअस्तित्त्व, मूल्यों को बनाए रखने, सभी पंथों का विकास, और समृद्ध करने की स्वतंत्रता तथा साथ-ही-साथ सभी धर्मों के प्रति एकसमान आदर तथा सहिष्णुता विकसित करना रहा है। भारत में धर्मनिरपेक्षतागौरतलब है कि भारत की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन के बाद पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया, लेकिन धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग भारतीय संविधान के किसी भाग में नहीं किया गया है, वैसे संविधान में कई ऐसे अनुच्छेद मौजूद हैं जो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य साबित करते हैं, जिसकी पुष्टि निम्न बिन्दुओं से होती है-
धर्मनिरपेक्षता का महत्त्वभारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में एक अनूठी अवधारणा है जिसे भारतीय संस्कृति की विशेष आवश्यकताओं और विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए अपनाया गया है। इसके महत्व को निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-
भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में अंतरकभी-कभी यह कहा जाता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की नकल भर है। लेकिन संविधान को ध्यान से पढ़ने से पता चलता है कि ऐसा नहीं है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप से भिन्न है। जिसका जिक्र निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-
धर्मनिरपेक्षता पर नेहरु के विचारः पंडित जवाहर लाल नेहरू ऐसा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र चाहते थे जो ‘सभी धर्मों की हिफाजत करे अन्य धर्मों की कीमत पर किसी एक धर्म की तरफदारी न करे और खुद किसी धर्म को राज्यधर्म के तौर पर स्वीकार न करे। नेहरु भारतीय धर्मनिरपेक्षता के दार्शनिक थे। नेहरु स्वयं किसी धर्म का अनुसरण नहीं करते थे। स्मरणीय हो कि ईश्वर में उनका विश्वास नहीं था, लेकिन उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म के प्रति विद्वेष नहीं था। इस अर्थ में नेहरु तुर्की के अतातुर्क से काफी भिन्न थे। साथ ही वे धर्म और राज्य के बीच पूर्ण संबंध विच्छेद के पक्ष में भी नहीं थे। उनके विचार के अनुसार, समाज में सुधार के लिए धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। धर्मनिरपेक्षता पर गांधी जी के विचारः महात्मा गांधी निजी जीवन में धार्मिक व्यक्ति थे, वे धर्म और राजनीति के माध्य संबंधों को प्रमुखता देते थे। इस मामले में वे पंडित नेहरू से अलग मत रखते थे।
इस प्रकार भारत की धर्मनिरपेक्षता न तो पूरी तरह धर्म के साथ जुड़ी है और न ही इससे पूरी तरह तटस्थ है। विदित हो कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद मामले में दिए अपने निर्णय में धर्मनिरपेक्षता को भारत की आधारभूत संरचना का हिस्सा माना है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने इन्हीं मूल्यों के आधार पर पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से सैद्धान्तिक रूप में भिन्न है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना क्योंभारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने शुरूआती समय से ही तीखी आलोचनाओं का विषय रही है। जिसको लेकर कई तर्क भी दिए जाते रहे हैं। यहाँ हम उन चुनौतियो का जिक्र निम्न बिन्दुओ के अंतर्गत कर सकते हैं-
आगे की राहनिष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारतीय राज्य का धर्मनिरपेक्ष चरित्र वस्तुतः इसी वजह से बरकरार है कि वह न तो धर्मतांत्रिक है और न ही वह किसी धर्म को राजधर्म मानता है। इसके बदले इसने धार्मिक समानता हासिल करने के लिए अत्यंत परिष्कृत नीति अपनाई है। इसी नीति के चलते वह अमेरिकी शैली में धर्म से विलग भी हो सकता है या जरूरत पड़ने पर उसके साथ संबंध भी बना सकता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय राज्य धार्मिक अत्याचार का विरोध करने हेतु धर्म के साथ निषेधात्मक संबंध भी बना सकता है। यह बात अस्पृश्यता पर प्रतिबंध, तीन तलाक, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश जैसी कार्रवाइयों में भी झलकती है। इसके अलावा शांति, स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय राज्य सत्ता तमाम जटिल रणनीतियाँ अपना सकती है। अंततः स्पष्ट है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व अथवा सहिष्णुता से काफी आगे तक जाता है। अब आवश्यकता इस बात की है कि इसकी खामियों को दूर किया जाए। इसके लिए यहाँ कुछ सुझावों को अमल में लाया जा सकता है- क्या भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है कैसे?⇒ भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द की बजाय पंथनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया है। ⇒ संविधान के अधीन भारत एक पंथनिरपेक्ष राज्य हैं, ऐसा राज्य जो सभी धर्मों के प्रति तटस्थता और निष्पक्षता का भाव रखता है।
भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य क्यों माना जाता है?भारतीय संविधान सभी को अपने धार्मिक विश्वासों और तौर-तरीकों को अपनाने की पूरी छूट देता है। सबके लिए समान धार्मिक स्वतंत्रता के इस विचार को ध्यान में रखते हुए भारतीय राज्य ने धर्म और राज्य की शक्ति को एक-दूसरे से अलग रखने की रणनीति अपनाई है। धर्म को राज्य से अलग रखने की इसी अवधारणा को धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है कैसे?Solution : अनुच्छेद 25 के अनुसार भारत के सब नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने की आजादी है। प्रस्तावना में धर्म निरपेक्ष शब्द का प्रयोग :-42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करके धर्म निरपेक्ष शब्द अंकित करके भारत को स्पष्ट रूप से धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है।
धर्मनिरपेक्ष राज्य से आप क्या समझते हैं?धर्मनिरपेक्ष किंवा लौकिक राज्य में ऐसे राज्य की कल्पना की गई हैं, जो सभी धर्मों तथा संप्रदायों का समान आदर करता है। सबको एक समान फलने और फूलने का अवसर प्रदान करता है। राज्य किसी धर्म अथवा संप्रदायविशेष का पक्षपात नहीं करता। वह किसी धर्मविशेष को राज्य का धर्म नहीं घोषित करता।
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