Show ◆ आ. रामचंद्र शुक्ल के कथन :-💐💐 कबीर बारे में कथन :-• “कबीर ने अपनी झाड़-फटकर के द्वारा हिन्दुओं और मुसलमानों के कट्टरपन को दूर करने का जो प्रयास किया वह अधिकतर चिढ़ाने वाला सिद्ध हुआ, हृदय को स्पर्श करने वाला नहीं।”• “ज्ञानमार्ग की बातें कबीर ने हिंदू साधु, संन्यासियों से ग्रहण की जिनमें सूफियों के सत्संग से उन्होंने प्रेम तत्वों का मिश्रण किया।”• “कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे पर उनकी प्रतिभा बड़ी प्रखर थी जिससे उनके मुंह से बड़ी चुटीली और व्यंग्य – चमत्कार पूर्ण बातें निकलती थी।”• “कबीर तथा अन्य निर्गुण पंथी संतों के द्वारा अंतस्साधना में रागात्मिकता भक्ति और ज्ञान का योग तो हुआ है पर कर्म की दिशा वही रही जो नाथ पंथियों के यहाँ थी।”• “कबीर की भाषा सधुक्कड़ी अर्थात् राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली है।”💐💐 तुलसीदास बारे में कथन :-• “जिस प्रकार रामचरितमानस का गान करने वाले भक्त कवियों में तुलसीदास का स्थान सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार कृष्ण चरित गाने वाले भक्त कवियों में महात्मा सूरदास का।वास्तव में ये हिन्दी काव्यंगगन के सूर्य और चंद्र हैं।”• “रामचरितमानस में तुलसी केवल कवि रूप में ही नहीं, उपदेशक के रूप में भी सामने आते हैं।”• रामचरितमानस को ‘लोगों के हृदय का हार’ कहा है।• “तुलसीदास जी उत्तरी भारत की समग्र जनता के हृदय मन्दिर में पूर्ण प्रतिष्ठा के साथ विराज रहे है।”• “गोस्वामी जी की भक्ति पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है उसकी सर्वांगपूर्णता।”• “इनकी भक्ति रसभरी वाणी जैसे मंगलकारिणी मानी गई वैसी और किसी की नहीं।”【तुलसीदास के संबंध में】• “तुलसीदास जी अपने ही तक दृष्टि रखने वाले भक्त न थे बल्कि संसार को भी दृष्टि फैलाकर देखने वाले भक्त थे।”• “तुलसीदास की रचना विधि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अपनी सर्व़तोमुखी प्रतिभा के बल पर सबके सौंदर्य की परकाष्ठा अपनी दिव्य वाणी में दिखाकर साहित्य क्षेत्र में प्रथम पद के अधिकारी हुए।”• “हिंदी कविता के प्रेमी मात्र जानते हैं कि उनका ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं का समान अधिकार था। ब्रजभाषा का जो माधुर्य हम सूरसागर में पाते हैं वहीं माधुर्य और भी संस्कृत रूप में हम गीतावली और कृष्णगीतावली में पाते थे। ठेठ अवधी की जो मिठास हमें जायसी की पद्मावत में मिलती है, वही जानकी मंगल,पार्वती मंगल,बरवै रामायण और रामलला नहछू में हम पाते हैं। यह सूचित करने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सूर का अवधि पर अधिकार था और न जायसी का ब्रजभाषा पर।”• “प्रेम और श्रृंगार का ऐसा वर्णन जो बिना किसी लज्जा और संकोच के सबके सामने पढ़ा जा सके, गोस्वामी जी का ही है।”• “उन्होंने रचनानैपुण्य का भद्दा प्रदर्शन कहीं नहीं किया है और न वे शब्द चमत्कार आदि से खिलवाड़ों में फंसे हैं।”【 तुलसीदास के बारे म़े】• ” दोहावली के कुछ दोहे के अतिरिक्त और सर्वत्र भाषा का प्रयोग उन्होंने भावों और विचारों को स्पष्ट रूप से रखने के लिए किया है, कारीगरी दिखाने के लिये नहीं।उनकी – सी भाषा की सफाई और किसी कवि में नही मिलती।”【तुलसीदास की भाषा के संबंध में】• “हम नि:संकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि ही हिन्दी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।” 【 तुलसीदास के बारे मे】• “गोस्वामीजी खानपान का विचार रखने वाले स्मार्त्त वैष्णव थे।”• ” प्रंबधकार कवि की भावुता का सबसे अधिक पता यह देखने से चल सकता है कि वह किसी आख्यान को अधिक मर्मस्पर्शी स्थलों को पहचान सका है या नहीं।”【 तुलसीदास के बारे मे】💐💐 सूरदास बारे में कथन :-• “भ्रमरगीत सूर साहित्य का मुकुटमणि है। यदि वात्सल्य और श्रृंगार के पदों को निकाल भी दिया जाय तो हिन्दी साहित्य में सूर का नाम अमर रखने के लिए भ्रमरगीत ही काफी है।”• “वात्सल्य और श्रृंगार के क्षेत्रों का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बन्द आँखों से किया उतना किसी और ने नहीं, इन क्षेत्रों का कोना-कोना झाँक आए हैं। “• “श्रृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक इनकी दृष्टि पहुँची वहाँ तक और किसी कवि की नहीं।”• “सूरदास की रचना में संस्कृत की कोमलकांत पदावली और अनुप्रासों की छटा नहीं है जो तुलसी की रचना में दिखाई पड़ती है।”• “सूर की बड़ी भारी विशेषता है नवीन प्रसंगों की उद्भावना।”• “सूर ही वात्सल्य है, वात्सल्य ही सूर है• सूरसागर में कृष्ण जन्म से लेकर श्री कृष्ण के मथुरा जाने तक की कथा अत्यंत विस्तार से फुटकल पदों में गाई गई है । भिन्न – भिन्न लीलाओं के प्रसंग को लेकर इस सच्चे रसमग्न कवि ने अत्यंत मधुर और मनोहर पदों की झड़ी सी बांधी दी है।”• “यह रचना इतनी प्रगल्भ और काव्यपूर्ण है कि आगे होने वाले कवियों की श्रृंगार और वात्सल्य की उक्तियाँ सूर की जूठी सी जान पडती है।”【सूरसागर के बारे में】• “तुलसी के स्थान पर सूर का काव्यक्षेत्र इतना व्यापक नहीं है कि उसमें जीवन की भिन्न-भिन्न दिशाओं का समावेश हो जिस परिमित पुण्यभूमि में उनकी वाणी ने संचरण किया है उसका कोई कोना अछूता न छूटा।”💐💐 जायसी के बारे में कथन :-• “ये काने और देखने में कुरूप थे। कहते हैं कि शेरशाह ने इनके रूप को देखकर हँसा था । इस पर यह बोले’मोहिका हँसेसि कि कोहरहि ?”【जायसी के संबंध में】• “कबीर ने केवल भिन्न प्रतीत होती हुई परोक्ष सत्ता की एकता का आभास दिया था जबकि प्रत्यक्ष जीवन की एकता का दृश्य सामने रखने की आवश्यकता बनी हुई थी जो जायसी द्वारा पूरी की गई।”• ”प्रेमगाथा की परम्परा में पद्मावत सबसे प्रौढ़ और सरस है।”• “जायसी बड़े भावुक भगवद्भक्त थे और अपने समय में बड़े ही सिद्ध और पहुंचे हुए फकीर माने जाते थे, पर कबीरदास के समान अपना एक निराला पंथ निकालने का हौसला उन्होंने कभी न किया। जिस मिल्लत या समाज में उनका जन्म हुआ, उसके प्रति अपने विशेष कर्त्तव्यों के पालन के साथ- साथ वे सामान्य मनुष्य – धर्म के सच्चे अनुयायी थे।”💐💐 नूर मोहम्मद के बारे में कथन :-• ”सूफ़ी आख्यान काव्यों की अखंडित परम्परा की यहीं समाप्ति मानी जा सकती है।” (नूर मुहम्मद कृत अनुराग बांसुरी के बारे में)• “नूर मोहम्मद फारसी के अच्छे आलिम थे और इनका हिंदी काव्यभाषा का भी ज्ञान ओर सब सूफी कवियों से अधिक था।”• ”नूर मुहम्मद को हिन्दी भाषा में कविता करने के कारण जगह-जगह इसका सबूत देना पड़ा है कि वे इस्लाम के पक्के अनुयायी थे।”💐 💐अन्य कवियों के बारे में कथन :-• कबीर के मुख से मूर्तिपूजा, तीर्थाटन,देवार्चन आदि का खंडन सुनकर इनका झुकाव ‘निर्गुण’ संतमत की ओर हुआ। 【धर्मदास के संबंध में】• “इनका डीलडौल बहुत अच्छा, रंग गोरा और रूप बहुत सुंदर था। इनका स्वभाव अत्यंत कोमल और मृदुल था। ये बाल ब्रह्मचारी थे और स्त्री की चर्चा से सदा दूर रहते थे । निर्गुणपंथियों में यही एक ऐसे व्यक्ति हुए थे,जिन्हें समुचित शिक्षा मिली थी और जो काव्यकला की रीति आदि से अच्छी तरह परिचित थे।”【 सुंदरदास के संबंध में】• “प्रेममार्ग का एक ऐसा प्रवीण और धीरज पथिक तथा जबादानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है।”【घनानंद के संबंध में】• “इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत प्रेम का स्वरूप दिखाया है।” 【कुतबन कृत मृगावती के बारे में】• “इस परम्परा में मुसलमान कवि हुए हैं। केवल एक हिन्दू मिला है।” 【सूफी मत के अनुयायी सूरदास पंजाबी के संबंध में】• ”यहीं प्रेममार्गी सूफी कवियों की प्रचुरता की समाप्ति समझनी चाहिए।” 【शेख नबी के बारे में】• “जनता पर चाहे जो प्रभाव पड़ा हो पर उक्त गद्दी के भक्त शिष्यों ने सुन्दर-सुन्दर पदों द्वारा जो मनोहर प्रेम संगीत धारा बहाई उसने मुरझाते हुए हिंदू जीवन को सरस और प्रफुल्लित किया।” 【श्री बल्लभाचार्य जी के संबंध में】• “यह बड़े भारी कृष्णभक्त और गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के बड़े कृपापात्र शिष्य थे।” 【रसखान के बारे में】◆ डॉ. नगेन्द्र के कथन :- 💐💐कबीरदास के बारे कथन :- |