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खबर की भाषा और शीर्षक से आप संतुष्ट हैं? खबर के प्रस्तुतिकरण से आप संतुष्ट हैं? खबर में और अधिक सुधार की आवश्यकता है? महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजयी हुई। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को राजगद्दी पर बैठाया और राज्य से जुड़े नियम-कानून उन्हें समझाकर वे कौरवों की माता गांधारी से मिलने पहुंचे। कान्हा के आने पर गांधारी फूट-फूटकर रोने लगीं और फिर क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया कि जिस तरह तुमने मेरे कुल का नाश किया है, तुम्हारे कुल का अंत भी इसी तरह होगा। श्रीकृष्ण साक्षात भगवान थे, चाहते तो इस शाप को निष्फल कर सकते थे। लेकिन उन्होंने मानव रूप में लिए अपने जन्म का मान रखा और गांधारी को प्रणाम करके वहां से चले गए। यह भी पढ़ें: शुक्र का कर्क में गोचर, क्या आप पर होनेवाली है धनवर्षा देखें राशि इसलिए दिया ऋषियों ने शापश्रीकृष्ण के पुत्र सांब अपने मित्रों के साथ हंसी-ठिठोली कर रहे थे। उस समय महर्षि विश्वामित्र और कण्व ऋषि ने द्वारका में प्रवेश किया। जब सांब के नवयुवक मित्रों की दृष्टि इन महान ऋषियों पर पड़ी तो वे इन पुण्य आत्माओं का अपमान कर बैठे। इन युवकों ने सांब को एक महिला के वेश में तैयार किया और महर्षि विश्वामित्र तथा कण्व ऋषि के सामने पहुंचकर उनसे बोले, यह स्त्री गर्भवती है। आप देखकर बताइए कि इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा? दोनों ही ऋषि युवकों के इस परिहास से अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने कहा कि इसके गर्भ से एक मूसल उत्पन्न होगा, जिससे तुम जैसे दुष्ट, असभ्य और क्रूर लोग अपने समस्त कुल का नाश कर लेंगे। श्रीकृष्ण ने किया ऋषियों का सम्मानइस घटना का पता श्रीकृष्ण को चला तो उन्होंने कहा यह ऋषियों की वाणी है। व्यर्थ नहीं जाएगी और अगले ही दिन सांब ने एक मूसल उत्पन्न किया। इस मूसल को राजा उग्रसेन ने समुद्र में फिकवा दिया। साथ ही श्रीकृष्ण ने नगर में घोषणा करा दी कि अब कोई भी नगरवासी अपने घर में मदिरा नहीं बनाएगा। क्योंकि कृष्ण नहीं चाहते थे कि उनके कुल के लोग और संबंधी मदिरा के नशे में कोई अनुचित व्यवहार कर परिवार सहित एक-दूसरे का नाश कर बैठें। क्योंकि ऋषियों की वाणी तो सच होनी ही थी। कान्हा ने भेज दिया तीर्थ परधार्मिक पुस्तकों के आधार पर, महाभारत युद्ध के 36वें वर्ष में द्वारका नगरी में बहुत अपशकुन होने लगे थे। कान्हा ने सभी यदुवंशी पुरुषों को तीर्थ पर जाने के लिए कहा। इस पर सभी लोग द्वारका नगरी से तीर्थ के लिए निकल गए। प्रभास क्षेत्र में आने पर विश्राम के दौरान किसी बात पर ये लोग आपस में भिड़ गए। यह बहसबाजी, झगड़े में बदली और झगड़ा मारकाट में बदल गया। इस दौरान ऋषियों का शाप इस रूप में फलिभूत हुआ कि सांब ने जिस मूसल को उत्पन्न किया था, उसके प्रभाव से प्रभास क्षेत्र में खड़ी एरका घास को लड़ाई के दौरान जो भी उखाड़ता, वो एरका घास मूसल में परिवर्तित हो जाती। ऐसा मूसल, जिसका एक प्रहार ही व्यक्ति के प्राण लेने के लिए पर्याप्त था। इस लड़ाई में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न भी मारे गए। यह भी पढ़ें:कितना कुछ बताती है अनामिका आपके व्यक्तित्व के बारे में, जानें सूचना पर पहुंचे श्रीकृष्णसूचना मिलते ही कान्हा प्रभास क्षेत्र पहुंचे। अपने पुत्र और प्रियजनों को मृत देखकर श्रीकृष्ण ने क्रोध में वहां खड़ी एरका घास उखाड़ ली और हाथ में आते ही उस घास ने मूसल का रूप ले लिया। लड़ाई में जो लोग बचे रह गए थे, जिन्होंने अपने परिजनों को मारा था, श्रीकृष्ण ने एक-एक वार से उन सभी का वध कर दिया। अंत में सिर्फ श्रीकृष्ण, उनके सारथी दारुक और बलराम बचे। इस पर श्रीकृष्ण ने दारुक से कहा कि हस्तिनापुर जाकर अर्जुन को यहां ले आओ। फिर बलराम को वहीं रुकने को कहा और स्वयं अपने पिता को इस संहार के बारे में सूचित करने द्वारका चले गए। कान्हा ने वासुदेवजी को इस नरसंहार के बारे में बताया और कहा कि जल्द यहां अर्जुन आएंगे। आप नगर की स्त्रियों और बच्चों को लेकर अर्जुन के साथ हस्तिनापुर चले जाइएगा। बलराम ने त्याग दी देहजब श्रीकृष्ण वापस प्रभास क्षेत्र पहुंचे तब बलरामजी ध्यानावस्था में बैठे थे। कान्हा के पहुंचते ही उनके शरीर से शेषनाग निकले और समुद्र में चले गए। अब श्रीकृष्ण इधर-उधर घूमते हुए अपने जीवन और गांधारी के शाप के बारे में विचार करने लगे और फिर एक पेड़ की छांव में बैठ गए। इसी समय जरा नामक एक शिकारी का वाण उनके पैर में आकर लगा, जिसने दूर से उनके पैर के अंगूठे को हिरण का मुख समझकर वाण चला दिया था। जब वह शिकारी शिकार उठाने पहुंचा तो श्रीकृष्ण के देखकर क्षमा मांगने लगा। कान्हा ने उसे अभय दान देकर देह त्याग दी। यह भी पढ़ें: धरती पर नहीं है ऐसा अनोखा मंदिर, यहां जलमग्न शिव पूरी करते हैं कामना समुद्र में डूब गई द्वारकाअर्जुन ने द्वारका पहुंचकर वासुदेव जी से कहा कि वह नगर में शेष बचे सभी लोगों को हस्तिनापुर चलने की तैयारी का आदेश दें। फिर अर्जुन ने प्रभास क्षेत्र जाकर सभी यदुवंशियों का अंतिम संस्कार किया। अगले दिन वासुदेवजी ने प्राण त्याग दिए। उस पर उनका अंतिम संस्कार कर अर्जुन सभी महिलाओं और बच्चों को लेकर द्वारका से निकल गए। जैसे ही उन लोगों ने नगर छोड़ा द्वारका का राजमहल और नगरी समुद्र में समा गई। उसी नगरी के पिलर और अवशेषों के बारे में समुद्र से जुड़ी अलग-अलग रिसर्च के दौरान जानकारी मिलती रहती है। क्यों कृष्ण द्वारका में ले जाया गया?कृष्ण क्यों गए थे द्वारिका : कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान रखी थी। वह मथुरा और यादवों पर बारंबार आक्रमण करता था। उसके कई मलेच्छ और यवनी मित्र राजा थे। अंतत: यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोडऩे का निर्णय लिया।
क्या राधा द्वारका में थी?कथा के अनुसार राधा का विवाह अनय के साथ हुआ था। लेकिन क्या आपको पता है कि राधाजी द्वारका में कृष्णजी के महल में रही थीं। यही नहीं, भगवान कृष्ण ने राधा की अंतिम इच्छा भी पूरी की थी। श्री कृष्ण से बिछड़ने के बाद राधा रानी एक बार फिर उनसे मिलने उनकी नगरी द्वारका पहुंची।
श्री कृष्ण के संसार से जाने का क्या कारण था?भगवान के फैले हुए गुलाबी पैर उसे हिरण के कान मालूम पड़े और अनजाने में उसने तीर चला दिया, जो निशाने पर लगा। इस तरह गांधारी का श्राप फलित हुआ और अपने वंश का नाश अपनी आंखों के सामने देख, चिंता में डूबे श्री कृष्ण संसार त्याग कर भगवान विष्णु में समाहित हो गए।
द्वारका का रहस्य क्या है?1. पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र तट पर कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम पहले कुशस्थली था। 2. हरिवंश पुराण के अनुसार कुशस्थली के उजाड़ होने के बाद श्रीकृष्ण के आदेश पर मयासुर और विश्वामित्र ने यहां एक भव्य नगर का निर्माण किया जिसका नाम द्वारिका रखा गया।
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