संक्रांति के आसपास लोहड़ी, पोंगल और बिहू पर्व मनाया जाता है। ये सभी संक्रांति के ही स्थानीय रूप हैं। बिहू असम में फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है। यह फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है। Show *बिहू का अर्थ क्या? बिहू शब्द दिमासा लोगों की भाषा से है। 'बि' मतलब 'पूछना' और 'शु' मतलब पृथ्वी में 'शांति और समृद्धि' है। यह बिशु ही बिगड़कर बिहू हो गया। अन्य के अनुसार 'बि' मतलब 'पूछ्ना' और 'हु' मतलब 'देना' हुआ। *बिहू नाम के तीन त्योहार एक वर्ष में यह त्योहार तीन बार मनाते हैं। पहला सर्दियों के मौसम में पौष संक्रांति के दिन, दूसरा विषुव संक्राति के दिन और तीसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है। पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू, विषुव संक्रांति को रोंगाली बिहू और कार्तिक माह में कोंगाली बिहू मनाया जाता है। *भोगाली बिहू मनाते हैं मकर संक्रांति के आसपास पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू मनाते हैं, जो कि जनवरी माह के मध्य में अर्थात मकर संक्रांति के आसपास आता है। इस माघ को बिहू या संक्रांति भी कहते हैं। *बिहू को क्यों कहते हैं भोगाली? भोगाली बिहू पौष संक्रांति के दिन अर्थात मकर संक्रांति के दिन या आसपास आता है। इसे भोगाली इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें भोग का महत्व है अर्थात इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है और तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई और खिलाई जाती है। *कैसे मनाते हैं त्योहार? भोगाली या माघ बिहू के पहले दिन को उरुका कहते हैं। इस दिन लोग खुली जगह में धान की पुआल से अस्थायी छावनी बनाते हैं जिसे भेलाघर कहते हैं। इस छावनी के पास ही 4 बांस लगाकर उस पर पुआल एवं लकड़ी से ऊंचे गुम्बज जैसे का निर्माण करते हैं जिसे मेजी कहते हैं। गांव के सभी लोग यहां रात्रिभोज करते हैं। उरुका के दूसरे दिन स्नान करके मेजी जलाकर बिहू का शुभारंभ किया जाता है। गांव के सभी लोग इस मेजी के चारों ओर एकत्र होकर भगवान से मंगल की कामना करते हैं। अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग विभिन्न वस्तुएं भी मेजी में भेंट चढ़ाते हैं। बिहू उत्सव के दौरान वहां के लोग अपनी खुशी का इजहार करने के लिए लोकनृत्य भी करते हैं। *बिहू के पकवान नारियल के लड्डू, तिल पीठा, घिला पीठा, मच्छी पीतिका और बेनगेना खार के अलावा अन्य पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं। जानें, कब और कैसे मनाया जाता है माघ बिहू का पर्वजानकारों की मानें तो असम में तीन बिहू मनाई जाती है। माघ महीने में माघ बिहू वैशाख में बोहाग बिहू और कार्तिक में काटी बिहू मनाया जाता है। माघ बिहू फसल पकने और तैयार होने की ख़ुशी में मनाया जाता है। माघ बिहू को उत्स्व माना जाता है। सूर्यदेव वर्षभर सभी राशियों में भ्रमण करते हैं। सूर्यदेव का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। जब सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। सनातन धर्म में मकर संक्रांति तिथि का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने हेतु मां गंगा धरती पर प्रकट हुई थी। अत: इस दिन गंगा स्नान का विधान है। इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं। देशभर में मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है। वहीं, देश के अन्य हिस्सों में मकर संक्रांति के दिन कई अन्य पर्व मनाए जाते हैं। असम में मकर संक्रांति के मौके पर माघ बिहू मनाया जाता है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं- माघ बिहू जानकारों की मानें तो असम में तीन बिहू मनाई जाती है। माघ महीने में माघ बिहू, वैशाख में बोहाग बिहू और कार्तिक में काटी बिहू मनाया जाता है। माघ बिहू फसल पकने और तैयार होने की ख़ुशी में मनाया जाता है। माघ बिहू को उत्स्व माना जाता है। बच्चे-बूढ़े सभी इस उत्स्व में शामिल होते हैं। यह बिल्कुल लोहड़ी की तरह होता है। इसमें भी अग्नि जलाकर उसमें आहुति दी जाती है। लोग आग के समीप एकत्र होकर ख़ुशी का इजहार गीत गाकर और नाच करते हैं। कैसे मनाते हैं बिहू माघ बिहू की शुरुआत लोहड़ी के दिन होती है। इसे उरुका कहते हैं। इस दिन सभी लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद नदी या सरोवर के समीप सार्वजनिक स्थल पर पुआल की छावनी बनाते हैं। इस घर को भेलाघर कहा जाता है। इस स्थल पर उरुका की रात्रि को भोज का आयोजन किया जाता है। इसमें सात्विक भोजन बनाया जाता है। भोजन सर्वप्रथम ईश्वर को भोग लगाया जाता है। इसके बाद सभी लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं। भेलाघर यानी पुआल की छावनी के समीप बांस और पुआल की मदद से झोपड़ी बनाए जाते हैं। इस गुंबद या झोपड़ी को मेजी कहा जाता है। माघ बिहू यानी मकर संक्रांति की तिथि को लोग स्नान-ध्यान कर मेजी में आग लगाते हैं। सभी लोग मेजी के चारों ओर एकत्र होकर अग्नि में अपनी सुविधा और इच्छा अनुसार खाद्य सामग्री अर्पित करते हैं। इस मौके पर लोग नाचते और गाते हैं। अंत में ईश्वर से शुभ और मंगल की कामना करते हैं। अगले दिन मेजी के राख को अपनी खेतों में छिड़कते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे खेतों की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। डिसक्लेमर 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।' Edited By: Umanath Singh बिहु त्योहार क्यों मनाते है?बिहु असम में फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है। यह फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है। इसी त्योहार को पूर्वोत्तर क्षेत्र में भिन्न भिन्न नाम से मनाते हैं।
बिहू का त्योहार कहां और कब मनाया जाता है?असम प्रदेश में तीन बार बिहू का पर्व मनाया जाता है। पहला भोगाली यानी जनवरी माह में मनाया जाता है। दूसरा बिहू पर्व रोंगाली या बोहाग यानी अप्रैल मास में मनाया जाता है। वहीं तीसरा बिहू पर्व कोंगाली अक्टूबर में मनाया जाता है।
असम में कौन सा फसलों का त्योहार मनाया जाता है?असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल, गन्ना इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है और उसी से तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई जाती है।
बीहू त्योहार कहाँ मनाया जाता है?जानकारों की मानें तो असम में तीन बिहू मनाई जाती है। माघ महीने में माघ बिहू, वैशाख में बोहाग बिहू और कार्तिक में काटी बिहू मनाया जाता है। माघ बिहू फसल पकने और तैयार होने की ख़ुशी में मनाया जाता है।
|