अजमेर के पड़ोसी जिले कितने हैं? - ajamer ke padosee jile kitane hain?

अजमेर (Ajmer) भारत के राजस्थान राज्य का एक प्रमुख व ऐतिहासिक नगर है। यह अजमेर ज़िले का मुख्यालय भी है। अजमेर अरावली पर्वत श्रेणी की तारागढ़ पहाड़ी की ढाल पर स्थित है। यह नगर सातवीं शताब्दी में अजयराज सिंह नामक एक चौहान राजा द्वारा बसाया गया था। इस नगर का मूल नाम 'अजयमेरु' था। सन् 1365 में मेवाड़ के शासक, 1556 में अकबर और 1770 से 1880 तक मेवाड़ तथा मारवाड़ के अनेक शासकों द्वारा शासित होकर अंत में 1881 में यह अंग्रेजों के आधिपत्य में चला गया।[1][2]

1236 ईस्वी में निर्मित, तीर्थस्थल ख्वाजा मोइन-उद दीन चिश्ती, एक प्रसिद्ध फारसी सुफी संत को समर्पित है। अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खादिम भील पूर्वजों के वंशज हैं। 12 वीं सदी की कृत्रिम झील आना सागर एक और पसंदीदा पर्यटन स्थल है जिसका महाराजा अर्नोराज द्वारा निर्माण करवाया गया था। अजमेर दुनिया के सबसे पुराने पहाड़ी किलों में से एक है – तारागढ़ किला जो चौहान राजवंश की सीट थी। अजमेर जैन मंदिर (जो सोनजी की नसीयाँ के नाम से भी जाना जाता है) अजमेर में एक और पर्यटन स्थल है। तबीजी में यहां पर देश के प्रथम बीजीय मशाला अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई। अजमेर को भारत का मक्का, अंडो की टोकरी, राजस्थान का ह्रदय आदि उपनाम से जाना जाता है। उन्नत नस्ल की मुर्गी सर्वाधिक अजमेर में ही पाई जाती है । लाल्या काल्या का मेला उर्स पुस्कर का मेला प्रसिद्द मेले है।

अजमेर को मूल रूप से अजयमेरु के नाम से जाना जाता था। इस शहर की स्थापना ११वीं सदी के चहमण राजा अजयदेव ने की थी। इतिहासकार दशरथ शर्मा ने नोट किया कि शहर के नाम का सबसे पहला उल्लेख पल्हा की पट्टावली में मिलता है, जिसे 1113 ई. (1170 विक्रमी संवत्) में धारा में कॉपी किया गया था। इससे पता चलता है कि अजमेर की स्थापना 1113 ई. से कुछ समय पहले हुई थी। विग्रहराज चतुर्थ द्वारा जारी एक प्रशस्ति (स्तुति संबंधी शिलालेख), और अढाई दिन का झोपड़ा में पाया गया, कि अजयदेव (अर्थात् अजयराज द्वितीय) ने अपना निवास अजमेर स्थानांतरित कर दिया।[3]

एक बाद के पाठ प्रबंध-कोश में कहा गया है कि यह 8 वीं शताब्दी के राजा अजयराज प्रथम थे जिन्होंने अजयमेरु किले को बसाया था, जिसे बाद में अजमेर के तारागढ़ किले के रूप में जाना जाने लगा।  इतिहासकार आर.बी. सिंह के अनुसार, यह दावा सत्य प्रतीत होता है, क्योंकि 8वीं शताब्दी B.C. के शिलालेख अजमेर में पाए गए हैं।  सिंह का मानना ​​है कि अजयराज द्वितीय ने बाद में नगर क्षेत्र का विस्तार किया, महलों का निर्माण किया, और चाहमना राजधानी को [शाकंभरी] से अजमेर में स्थानांतरित कर दिया।[4]

1193 इस्वी में, अजमेर को दिल्ली सल्तनत के मामलुक्स द्वारा कब्जा कर लिया गया था, और बाद में श्रद्धांजलि की शर्त के तहत राजपूत शासकों को वापस कर दिया गया था। 1556 में, मुगल सम्राट अकबर द्वारा विजय प्राप्त करने के बाद अजमेर मुगल साम्राज्य के अधीन आ गया।   इसे उसी नाम वाले अजमेर सूबा की राजधानी बनाया गया था।  मुगलों के अधीन शहर को विशेष लाभ हुआ, जिन्होंने मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की यात्रा करने के लिए शहर में लगातार तीर्थयात्रा की।  राजपूत शासकों के खिलाफ अभियानों के लिए शहर को एक सैन्य अड्डे के रूप में भी इस्तेमाल किया गया था, और कई अवसरों पर एक अभियान के सफल होने पर उत्सव का स्थल बन गया।  मुगल सम्राटों और उनके रईसों ने शहर को उदार दान दिया, और इसे अकबर के महल और आना सागर के साथ मंडप जैसे निर्माण के साथ संपन्न किया।   उनकी सबसे प्रमुख निर्माण गतिविधियाँ दरगाह और उसके आसपास थीं।  शाहजहाँ की संतान जहाँआरा बेगम और दारा शिकोह, दोनों का जन्म क्रमशः १६१४ और १६१५ में शहर में हुआ था।[5]

औरंगजेब के शासन के अंत के बाद शहर का मुगल संरक्षण समाप्त हो गया।  १७७० में, मराठा साम्राज्य ने शहर पर विजय प्राप्त की, और १८१८ में, अंग्रेजों ने शहर पर अधिकार प्राप्त कर लिया। औपनिवेशिक युग के अजमेर ने अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के मुख्यालय के रूप में कार्य किया और एक केंद्रीय जेल, एक बड़ा जनरल था।  गजेटियर, 1908 के अनुसार अस्पताल, और दो छोटे अस्पताल। यह एक देशी रेजिमेंट और एक रेलवे स्वयंसेवी कोर का मुख्यालय था।  1900 के दशक से, यूनाइटेड फ्री चर्च ऑफ स्कॉटलैंड, चर्च ऑफ इंग्लैंड, रोमन कैथोलिक और अमेरिकन एपिस्कोपल मेथोडिस्ट्स के यहां मिशन प्रतिष्ठान हैं। उस समय शहर में बारह प्रिंटिंग प्रेस थे, जहाँ से आठ साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित होते थे।[6]

आजादी के समय अजमेर अपने स्वयं के विधायिका के साथ एक अलग राज्य के रूप में जारी रहा जब तक कि तत्कालीन राजपुताना प्रांत के साथ विलय नहीं हुआ जिसे राजस्थान कहा जाता था।  अजमेर राज्य के विधानमंडल को उस भवन में रखा गया था जिसमें अब टी. टी. कॉलेज है।  इसमें 30 विधायक थे, और हरिभाऊ उपाध्याय तत्कालीन राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे, भगीरथ चौधरी पहले विधानसभा अध्यक्ष थे।  1956 में, फाजिल अली के प्रस्ताव को स्वीकार करने के बाद, अजमेर को राजस्थान में विलय कर जयपुर जिले के किशनगढ़ उप-मंडल के साथ अजमेर जिला बनाया गया।[7]

अजमेर, राजस्थान के केंद्र में में स्थित जिला है जो  पूर्वी ओर से जयपुर और टोंक के जिलों और पश्चिमी तरफ पाली व नागौर से घिरा हुआ है।

दर्शनीय स्थल तथा स्मारक[संपादित करें]

शहर अपने कई पुराने स्मारकों जैसे कि ब्रह्मा मंदिर(विश्व में एकमात्र) तारागढ़ किला, अढ़ाई-दीन का-झोपड़ा, मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और जैन मंदिर पुष्कर झील, आदि के लिए प्रसिद्ध है। भारत के नक्शे में अजमेर की महत्वपूर्ण भूमिका है। ऐतिहासिक अजमेर भारत और विदेश से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। अजमेर धर्म और संस्कृतियों की परंपराओं के साथ रहता है। कुछ प्रसिद्ध स्थान:

अजमेर भारतीय राज्य राजस्थान का एक जिला है। राजस्थान राज्य का हृदयस्थल अजमेर जिला राजस्थान राज्य के मध्य में 25 डिग्री 38’ से 26 डिग्री 50’ उतरी अक्षांश एवं 73 डिग्री 54’ से 75 डिग्री 22’ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित हैं। अजमेर उत्तर-पश्चिमी रेल्वे के दिल्ली-अहमदाबाद मार्ग पर स्थित हैं जो जयपुर के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। अजमेर तारागढ़ की पहाड़ी, जिसके शिखर पर किला है, निचली ढलानों पर यह शहर स्थित है। पर्वतीय क्षेत्र में बसा अजमेर अरावली पर्वतमाला का एक हिस्सा है, जिसके दक्षिण-पश्चिम में लूणी नदी व पूर्वी हिस्से में बनास की सहायक नदियाँ बहती हैं। मुग़लों की बेगम और शहजादियाँ यहाँ अपना समय व्यतीत करती थी। इस क्षेत्र को इत्र के लिए प्रसिद्ध बनाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था। कहा जाता है कि नुरजहाँ ने गुलाब के इत्र को ईजाद किया था। कुछ लोगों का मानना है यह इत्र नूरजहाँ की माँ ने ईजाद किया था। अजमेर में पान की खेती भी होती है। इसकी महक और स्वाद गुलाब जैसी होती है। वर्तमान मे जिला 12 उपखण्ड, 11 पंचायत समिति समिति व 19 तहसील मे विभाजित है।

अजमेर शहर का नाम अजयमेरू के नाम पर पड़ा हैं। जिसकी स्थापना 1113 ई. में चौहान राजा अजयराज ने की थी। अजमेर से 10 किलोमीटर दूर स्थित अजयपाल का मंदिर आज भी अजमेर के संस्थापक की याद दिलाता हैं। अजमेर नगर घुुुुघरा घाटी को केंद्र मानकर बसाया गया।12 वीं शताब्दी में चौहान राजा अजयराज के समय यह एक महत्त्वपूर्ण नगर बन गया था। अजमेर का वास्तविक संस्थापक अजयराज चौहान को माना जाता हैं। चौहान राजा अजयराज ने 1113 ई. में अजमेर नगर की स्थापना की थी । अजयराज ने अपनी राजधानी का नाम अजयमेरु रखा । जबकि अजयपाल ने 7 वी सदी में बिठली पहाड़ी पर एक क़िला गढ़-बिठली नाम से बनवाया था। जो बाद में अजयराज के द्वारा स्थापित 1113 ई. में अजमेर नगर के नाम से अजयमेरु कहलाया । जिसे कर्नल टाड ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ में राजपूताने की कुँजी कहा है। पर ये चोहनो की कुँजी है जिसका मुख्यालय अजमेर है।जिसका क्षेत्रफल - 8841 वर्ग कि॰मी॰ है। 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 2584913 है।

राजपुताना व बंबई गजट के अनुसार अजमेर पर 700 वर्षों तक चौहान वंश के राजपूतो का राज था। अजमेर में 1153 ई में प्रथम नरेश बीसलदेव चौहान ने एक मन्दिर बनवाया था, जिसे 1192 ई. में मुहम्मद ग़ोरी ने नष्ट करके उसके स्थान पर अढ़ाई दिन का झोंपड़ा नामक मस्जिद बनवाई थी। कुछ विद्वानों का मत है, कि इसका निर्माता कुतुबुद्दीन ऐबक था। कहावत है, कि यह इमारत अढ़ाई दिन में बनकर तैयार हुई थी, किन्तु ऐतिहासिकों का मत है, कि इस नाम के पड़ने का कारण इस स्थान पर मराठा काल में होने वाला अढ़ाई दिन का मेला है। इस इमारत की क़ारीगरी विशेषकर पत्थर की नक़्क़ाशी प्रशंसनीय है। इससे पहले सोमनाथ जाते समय (1124 ई.) में महमूद ग़ज़नवी अजमेर होकर गया था। मुहम्मद ग़ौरी ने जब 1192 ई. में भारत पर आक्रमण किया, तो उस समय अजमेर पृथ्वीराज के राज्य का एक बड़ा नगर था। पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार होने के साथ अजमेर पर भी उनका क़ब्ज़ा हो गया और फिर दिल्ली के भाग्य के साथ-साथ अजमेर के भाग्य का भी निपटारा होता रहा। 1193 में दिल्ली के ग़ुलाम वंश ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। मुग़ल सम्राट अकबर को अजमेर से बहुत प्रेम था, क्योंकि उसे मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की यात्रा में बड़ी श्रृद्धा थी। एक बार वह आगरा से पैदल ही चलकर दरग़ाह की ज़ियारत को आया था। मुईनुद्दीन चिश्ती 12वीं शती ई. में ईरान से भारत आए थे। अकबर और जहाँगीर ने इस दरग़ाह के पास ही मस्जिदें बनवाई थीं। शाहजहाँ ने अजमेर को अपने अस्थायी निवास-स्थान के लिए चुना था। निकटवर्ती तारागढ़ की पहाड़ी पर भी उसने एक दुर्ग-प्रासाद का निर्माण करवाया था, जिसे विशप हेबर ने भारत का जिब्राल्टर कहा है। यह निश्चित है, मुगलकाल में अजमेर को अपनी महत्त्वपूर्ण स्थिति के कारण राजस्थान का नाक़ा समझा जाता था। अजमेर के पास ही अनासागर झील है, जिसकी सुन्दर पर्वतीय दृश्यावली से आकृष्ट होकर शाहजहाँ ने यहाँ पर संगमरमर के महल बनवाए थे। यह झील अजमेर-पुष्कर मार्ग पर है। सन् 1878 में अन्ग्रेजों ने वर्धनोरा (बदनोरा) राज्य में अजमेर और केकड़ी प्रान्त को सामिल कर अजमेर मेरवाड़ा के नाम से संयुक्त स्टेट बनाकर केन्द्रीय शासक प्रदेश बनाया था। 1956 में यह राजस्थान राज्य का हिस्सा बन गया। वर्तमान में अजमेर के जिला प्रमुख विश्वमोहन शर्मा है। बीसलदेव चौहान या विग्रहराज प्रथम 8 वी. शताब्दी के चौहान -राजवंश के प्रतापी राजा थे l अरबों से युद्ध भूमि में लड़ते हुए राणा सांगा की भाती इनका दाहिना हाथ कट गया था l बीसलदेव चौहान चौहान वंश की सबसे प्रतापी राजा जिन्होंने अजमेर पर शासन किया वह अजमेर का साम्राज्य आधुनिक मेवाड़ का साम्राज्य भी इसमें सम्मिलित था जैसे भीलवाड़ा राजसमंद इन्हीं के साम्राज्य में आते थे l

इनके छोटे भाई मांडलजी चौहान ने जिन्होंने मेवाड़ में भीलवाड़ा जिले के पास प्रसिद्ध मंडल झील की स्थापना की थी। मंडलजी, अजमेर के राजा बिसाल देव चौहान (विशाल देव चौहान) केे भाई थे, जिन्होंने ने संभवत: 8 वीं शताब्दी में अजमेर पर शासन किया था और साथ ही अरब घुसपैठ का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और तोमर वंश के शासकों को दिल्ली पर नियंत्रण पाने में मदद की।[7]

अजमेर पहुँचने के लिए सबसे बेहतर विकल्प रेल मार्ग है। दिल्ली से दिल्ली-अहमदाबाद एक्सप्रेस द्वारा आसानी से अजमेर पहुँचा जा सकता है। रेलमार्ग के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से निजी वाहन द्वारा भी बेहरोड और जयपुर होते हुए अजमेर पहुँचा जा सकता है।

अजमेर में कृषि मुख्य व्यवसाय है और मुख्यतः मक्का, गेहूँ, बाजरा, चना, कपास, तिलहन, मिर्च व प्याज़ उगाए जाते हैं। यहाँ पर अभ्रक, लाल स्फटिक घातु और इमारती पत्थर की खुदाई होती है।

सड़क व रेल मार्गों से जुड़ा अजमेर नमक, अभ्रक, कपड़े व कृषि उत्पादों का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है और यहाँ तिलहन, होज़री, ऊन, जूते, साबुन व दवा निर्माण से जुड़े छोटे-छोटे अनेक उद्योग हैं। अजमेर कपड़ों की रंगाई व बुनाई तथा अपने हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है।

दौलत बाग, आनासागर झील, तारागढ़ का किला, श्री देवनारायण भगवान मंदिर ((देव धाम देवमाली मसूदा तहसील)), चामुंडा माता मंदिर बोराज, जगतपीता ब्रम्हा मंदिर पुष्कर, नसीराबाद छावनी, सावित्री माता मंदिर पुष्कर, पृथ्वीराज चौहान स्मारक, मार्बल नगरी किशनगढ़, श्री धोलिया वीर तेजाजी महाराज मंदिर सुरसुरा (रूपनगढ़), पुष्कर झील, ब्यावर, दरगाह शरीफ, अजमेर के क़रीब तीर्थराज पुष्कर है। कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ सुफी संत हजरत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने आख़िरी बार विश्राम किया था। जहाँ लोग दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। मकबरा हजरत ख्वाजा हुसैन चिश्ती (औलाद-ए-ख़्वाजा), मकबरा हजरत अलाउद्दीन चिश्ती (औलाद-ए-ख़्वाजा), सोनी जी की नस्सिया, नारेली तीर्थ, अढाई दिन का झोपडा, फोयसागर, अकबर का किला। अकबर की मैगजीन इसी को कहा जाता है।

अजमेर कितने जिलों से सीमा लगती है?

अजमेर राजस्थान के 6 अन्य जिलों, टोंक, जयपुर, नागौर, पाली, राजसमंद और भीलवाड़ा के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है।

अजमेर जिले में कितने जिले हैं?

अजमेर मंडल में अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर, टोंक जिले हैं

अजमेर कौन से जिले में पड़ता है?

अजमेर भारतीय राज्य राजस्थान का एक जिला है। राजस्थान राज्य का हृदयस्थल अजमेर जिला राजस्थान राज्य के मध्य में 25 डिग्री 38' से 26 डिग्री 50' उतरी अक्षांश एवं 73 डिग्री 54' से 75 डिग्री 22' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित हैं।

अजमेर जिले में कुल कितने गांव हैं?

अजमेर जिले में १०६८ गांव है जो की जिले की ९ तहसीलों में विभाजित है जिनकी संख्या तहसीलो के नाम के अनुसार इस प्रकार से है 1. अजमेर में ८५ गांव है, 2. बीवर तहसील में २१५ गांव है, 3.