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उडी़सा के जनजातीय कुटिया कोंध समूह की एक महिला आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी बनी । भारत की जनसंख्या का 8.6% (10 करोड़ जो 2011 जनगणना के अनुसार हैं जिसमे धार्मिक अलग मान्यता की मांग के लिए नॉर्थ ईस्ट के 8 राज्य के लोगो ने जनगणना का बहिस्कार किया था उससे डाटा काम आया हैं) आज अगर जनगणना की जानती हैं जब देश की जनता 140 करोड़ हो गए हैं इस अनुसार आज आदिवासी लोगो की जनसंख्या 18.4 करोड़ के लगभग हैं जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका कहा गया है (संस्कृत ग्रंथों में)। महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन (क्योंकि अधिकतर आदिवासी लोग जंगल और पहाड़ों पर रहने वाले लोग हैं जो जल जंगल जमीन के सच्चे रखवाले हैं) कह कर पुकारा है और वो ऐतिहासिक श्रोत के अनुसार मानते थे की आदिवासी इंडिया के मूल निवासी हैं जो लाखो सालो से यहां रह रहे हैं। भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए 'अनुसूचित जनजाति' पद का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में आंध, गोंड, खरवार, मुण्डा, खड़िया, बोडो, कोल, भील, कोली, सहरिया, संथाल, भूमिज, उरांव, लोहरा, बिरहोर, पारधी, असुर, भील, भिलाला,मीना,टाकणकार आदि हैं। डूंगरपुर, राजस्थान की दो आदिवासी लडकियाँ भारत में आदिवासियों को प्रायः 'जनजातीय लोग' के रूप में जाना जाता है। आदिवासी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान झारखंड नॉर्थ ईस्ट के 8 राज्य में आदिवासी में बहुसंख्यक व गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक है जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहुसंख्यक हैं, जैसे मिजोरम। भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में " अनुसूचित जनजातियों " के रूप में मान्यता दी है। अक्सर इन्हें अनुसूचित जातियों के साथ एक ही श्रेणी " अनुसूचित जाति एवं जनजाति " में रखा जाता है। चंदा समिति ने सन् 1960 में अनुसूचति जातियों के अंर्तगत किसी भी जाति को शामिल करने के लिये 5 मानक निर्धारित किया: 1. भौगोलिक एकाकीपन2. विशिष्ट संस्कृति3. पिछड़ापन4. संकुचित स्वभाव5. आदिम जाति के लक्षणबहुत से छोटे आदिवासी समूह आधुनिकीकरण के कारण हो रहे पारिस्थितिकी पतन के प्रति काफी संवेदनशील हैं। व्यवसायिक वानिकी और गहन कृषि दोनों ही उन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं जो कई शताब्दियों से आदिवासियों के जीवन यापन का स्रोत रहे हैं। आदिवासी समाज की समस्या 1.अशिक्षा 2.अंधविश्वास&पाखण्डवाद 3.बेरोजगारी 4.भुखमरी 5.दहेजप्रथा आदिवासी भाषाएँ[संपादित करें]भारत में सभी आदिवासी समुदायों की अपनी विशिष्ट भाषाएं है। भाषाविज्ञानियों ने भारत के सभी आदिवासी भाषाओं को मुख्यतः तीन भाषा परिवारों में रखा है-गोंडी, द्रविड़, आस्ट्रिक और लेकिन कुछ आदिवासी भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत भी आती हैं। आदिवासी भाषाओं में ‘भीली’ बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है जबकि दूसरे स्थान पर ‘गोंडी’ भाषा और तीसरे स्थान पर ‘संताली’ भाषा है। भारतीय राज्यों में एकमात्र झारखण्ड में ही 5 आदिवासी भाषाओं - संताली, मुण्डारी, हो, कुड़ुख और खड़िया - को 2011 में द्वितीय राज्यभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। भारत की 114 मुख्य भाषाओं में से 22 को ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इनमें हाल में शामिल की गयी संताली और बोड़ो ही मात्र आदिवासी भाषाएं हैं। अनुसूची में शामिल संताली (0.62), सिंधी, नेपाली, बोड़ो (सभी 0.25), मिताइ (0.15), डोगरी और संस्कृत भाषाएं एक प्रतिशत से भी कम लोगों द्वारा बोली जाती हैं। जबकि भीली (0.67), गोंडी (0.25), टुलु (0.19) और कुड़ुख 0.17 प्रतिशत लोगों द्वारा व्यवहार में लाए जाने के बाद भी आठवीं अनुसूची में दर्ज नहीं की गयी हैं। (जनगणना 2001) आदिवासियों के धार्मिक विश्वास[संपादित करें]आदिवासियों का अपना धर्म भी है। ये प्रकृति-पूजक हैं और वन, पर्वत, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। आधुनिक काल में जबरन बाह्य संपर्क में आने के फलस्वरूप इन्होंने हिन्दू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म को भी अपनाया है। अंग्रेजी राज के दौरान बड़ी संख्या में ये ईसाई बने तो आजादी के बाद इनके हिूंदकरण का प्रयास तेजी से हुआ है। परन्तु आज ये स्वयं की धार्मिक पहचान के लिए संगठित हो रहे हैं और भारत सरकार से जनगणना में अपने लिए अलग से धार्मिक कोड (सरना कोड )की मांग कर रहे हैं। माना जाए तो इनका धर्म हिन्दू धर्म से ज्यादा मेल खाता है क्युकी आदिवासी और हिन्दू दोनों लोग शंभूसेक (महादेव) को अपना अस्तित्व मानते है। भारत में 1871 से लेकर 1941 तक हुई जनगणनाओं में आदिवासियों को अन्य धमों से अलग धर्म में गिना गया है, जिसे एबओरिजिन्स, एबोरिजिनल, एनिमिस्ट, ट्राइबल रिलिजन या ट्राइब्स इत्यादि नामों से वर्णित किया गया है। हालांकि 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को अलग से गिनना बन्द कर दिया गया है। भारत में आदिवासियों को दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति। हिन्दू और आदिवासी मे समानता[संपादित करें]
कुल मिलाकर आदिवासी प्रकृति की पूजा करता है और हिन्दू (33 प्रकार) देवी-देवताओं का पूजा करता है। भारत की प्रमुख जनजातियाँ[संपादित करें]भारत में 461 जनजातियां हैं, जिसमें से 424 जनजातियों भारत के सात क्षेत्रों में बंटी हुई हैं: उत्तरी क्षेत्र[संपादित करें]जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेशजातियाँ: लेपचा, भूटिया, थारू, बुक्सा, जॉन सारी, खाम्पटी, कनोटा। इन सब में मंगोल जाति के लक्षण मिलते हैं। जैसे:- तिरछी छोटी आंखे (चाइनीज, तिब्बती), पीला रंग, सीधे बाल, चेहरा चौड़ा, चपटा नाक। तराई जिलों में थारु, बोक्सा, भूटिया, राजी, जौनसारी,केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में गोंड़, धुरिया, ओझा, पठारी, राजगोड़, तथा देवरिया बलिया, वाराणसी, सोनभद्र में खरवार, व ललितपुर में सहरिया,सोनभद्र में बैगा, पनिका,पहडिया, पंखा, अगरिया, पतरी, चेरो भूइया। बिहारअसुर, अगरिया, बैगा, बनजारा, बैठुडी, बेदिया, खरवार, भूमिज, संथाल आदि। पूर्वोत्तर क्षेत्र[संपादित करें]नागा, मिजो, गारो, खासी, जयंतिया, आदि, न्याशी, अंगामी, भूटिया, कुकी, रेंगमा, बोडो और देवरी वगैरा जनजाति हैं। पूर्वी क्षेत्र[संपादित करें]
संथाल:- भारत की सबसे बड़ी जनजाति। संथाली भाषा को संविधान में मान्यता प्राप्त हैं।
पहचान : रंग काला, चॉकलेटी कलर, लंबा सिर, चौड़ी छोटी व चपटी नाक, हल्के घुंघराले बाल। यह सभी प्रोटो ऑस्टेलाइड प्रजाति से संबधित हैं। मध्य क्षेत्र[संपादित करें]गोंड, कोल, परधान, बैगा, मारिया, अबूझमाडिया, धनवार/धनुहार, धुलिया, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, हल्बा,कंवर। ये सभी प्रजातियां छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, पूर्वी आंध्र-प्रदेश में निवास करते हैं। ये सभी प्रोटो ऑस्टेलाइड प्रजाति से संबधित हैं। पश्चिमी भारत में[संपादित करें]गुजरात की एक आदिवासी महिला
दक्षिण भारत में[संपादित करें]
द्विपीय क्षेत्र[संपादित करें]
यह जातियां नीग्रिये प्रजाति से संबधित हैं। ये लुप्त होने के कगार पर हैं। भारतीय स्वतंत्रता के पूर्व के आदिवासी विद्रोह[संपादित करें]आदिवासी झण्डा[संपादित करें]आदिवासी समाज के लोग अपने धार्मिक स्थलों, खेताें, घरों आदि में एक विशिष्ट प्रकार का झण्डा लगाते है, जो अन्य धमों के झण्डों से अलग होता है। आदिवासी झण्डें में सूरज, चांद, तारे इत्यादी सभी प्रतीक विद्यमान हैं। आदिवासी के झण्डे सभी रंग के होते है। वो किसी रंग विशेष से बंधे हुये नहीं होते। आदिवासी प्रकृति पूजक होते है। वे प्रकृति में पाये जाने वाले स्ाभी जीव, जन्तु, पर्वत, नदियां, नाले, खेत इन सभी जीवीत वस्तुओं की पूजा करते है। आदिवासी मानते है कि प्रकृति की हर एक वस्तु में जीवन होता है। भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के आदिवासी कहे जाने वाले आदिवासीयों के झण्डों में सूरज, चांद, तारे आदि कहीं ना कहीं बने हुये होते है। आदिवासी राजा[संपादित करें]
प्रमुख आदिवासी व्यक्ति[संपादित करें]
5वीं और 6ठी अनुसूची[संपादित करें]इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
आदिवासी पत्र-पत्रिकाएं[संपादित करें]
आदिवासी में सबसे बड़ी जाति कौन सी है?संथाल:- भारत की सबसे बड़ी जनजाति। संथाली भाषा को संविधान में मान्यता प्राप्त हैं। पश्चिम बंगाल:- मुण्डा, भूमिज, उराँव, संथाल, कोड़ा।
भारत की सबसे बड़ी आदिवासी जनजाति कौन सी है?2011 की जनगणना के अनुसार भील भारत का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है। वे भारत की कुल अनुसूचित जनजातीय आबादी का लगभग 38% हिस्सा बनाते हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और त्रिपुरा में भील जनजातियाँ शामिल हैं।
सबसे ज्यादा आदिवासी कौन से राज्य में है?भारत में सर्वाधिक आदिवासी आबादी वाला राज्य - मध्य प्रदेश।. मध्य प्रदेश में सबसे अधिक जनजातीय आबादी है। ... . मध्य प्रदेश में सबसे अधिक जनसंख्या भील जनजाति की है।. दूसरी सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी उड़ीसा की है।. 2001 की जनगणना में मिजोरम की जनसंख्या 888,573 थी।. आदिवासियों के भगवान कौन है?जनजातीय समुदाय के लोग भगवान बिरसा मुंडा को अपना आइडियल मानते हैं। मुंडा ने अंग्रेजों का डंटकर सामना किया था और लगान वापसी के लिए उन्होंने अंग्रेजों को मजबूर कर दिया था। यही नहीं उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध भी छेड़ दिया था।
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