3 पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है? - 3 pache hue bhojan ko avashoshit karane ke lie kshudraantr ko kaise abhikalpit kiya gaya hai?

Q.9: पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?

उत्तर : पचे हुए भोजन को आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है। क्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अंगुली जैसे अनेक प्रवर्ध होते हैं, जिन्हें दीर्घ रोम कहते हैं। ये अवशोषण के सतही क्षेत्रफल को बढ़ा देते हैं। इनमें रुधिर वाहिकाओं की अधिकता होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुंचाने का कार्य करते हैं। यहां इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, नए ऊतकों का निर्माण करने तथा पुराने ऊतकों की मरम्मत के लिए किया जाता है।

3 पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत को कैसे अभिकल्पित किया गया है?

9: पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है? उत्तर : पचे हुए भोजन को आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती हैक्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अंगुली जैसे अनेक प्रवर्ध होते हैं, जिन्हें दीर्घ रोम कहते हैं। ये अवशोषण के सतही क्षेत्रफल को बढ़ा देते हैं।

पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र में कौनसी रचनाएँ पायी जाती है तथा उनकी क्या विशेषता होती है?

Solution : पचे हुए भोजन को आँत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है। क्षुद्रांत्र के आंतरिक अस्तर पैर अंगुली जैसे अनेक प्रवर्ध होते है, जिन्हे रंसाकुर(villi) कहते है। ये अवशोषण के साथी क्षेत्रफल को बढ़ा देते है। इनमे रुधिर वाहिकाओं की अधिकता होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुचाने का कार्य करती है।

क्षुद्रांत्र में दीर्घ रोम की क्या भूमिका होती है?

क्षुद्रांत्र की आंतरिक भित्ति/अस्तर अंगुली जैसी संरचनाओं/प्रवर्ध में विकसित होते हैं जिन्हें दीर्घ रोम कहते हैं। ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं। दीर्घ रोम में रुधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है, जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाते हैं।