1984 में सिखों को किसने मारा - 1984 mein sikhon ko kisane maara

1984 Anti Sikh Riots: साल 1984 में भारत एक ऐसे मंजर का गवाह बना था, जिसे हमेशा याद रखा जाएगा. दरअसल, इस दौरान हुए दंगों में कई लोगों को अपने परिवार वालों को खोना पड़ा था.

31 अक्टूबर 1984 को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी. इसके अगले ही दिन यानी 1 नवंबर 1984 से दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे. इन दंगों से कई लोग प्रभावित हुए, कई बेघर हुए तो कई परिवारों ने अपने परिजनों को खो दिया. इस दंगे में कितने लोगों की मौत हुई, इस पर तो अलग अलग रिपोर्ट सामने आ चुकी है, लेकिन माना जाता है कि सिर्फ दिल्ली में ही करीब 2500 लोग मारे गए थे, जबकि देशभर में मरने वालों का आंकड़ा 3500 के करीब था.

इन दंगों से दिल्ली सबसे ज्यादा प्रभावित हुई और दंगे में कई लोग मारे गए. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि उस दिल्ली के क्या हालात थे और हर थाने की ओर से पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर जानते हैं कि दिल्ली में हर थाने में कितने लोगों मारे गए थे.

बता दें कि साल 2015 में केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश(रिटायर्ड) न्यायमूर्ति जी.पी. माथुर की अध्यक्षता में गठित समिति ने दंगों को लेकर एक रिपोर्ट पेश की थी. इस कमिटी ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की फिर से जांच करने के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने की सिफारिश की थी. इस रिपोर्ट में ही दिल्ली के पुलिस थानों के आधार पर भी आंकड़े पेश किए गए हैं, जिनमें हर थाने के हिसाब से उस वक्त की स्थिति बताई गई है.

दिल्ली कैंट पुलिस स्टेशन

इस थाने के आंकड़ों के अनुसार, यहां 31 अक्टूबर की रात से दंगे भड़कना शुरू हो गए थे और 2 नवंबर तक काफी खतरनाक हालात थे. पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार इस इलाके में 31 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच 246 सिखों की हत्या कर दी गई थी. जबकि दंगों को लेकर बनी अन्य कमिटियों में ये आंकड़ा 341 तक भी है. वहीं, पुलिस के अनुसार, इस इलाके में 6 गुरुद्वारा, 385 घर, 110 दुकानें और 45 वाहन जला दिए गए थे.

सीमापुरी पुलिस स्टेशन

उस वक्त सीमापुरी थाने में आरसी ठाकुर स्टेशन हाउस ऑफिसर थे. उस दौरान इस थाने के अंतर्गत आने वाले कई इलाके भी दंगों से प्रभावित हुए. वैसे पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार, इस थाना क्षेत्र में 32 सिखों की हत्या की गई थी, लेकिन आहूजा कमेटी की रिपोर्ट में सामने आया था कि यहां 247 सिख मारे गए थे. जबकि जस्टिस मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में 203 लोगों का आंकड़ा बताया गया है. वहीं, दिल्ली प्रशासन ने 205 लोगों को मुआवजा दिया था.

गांधी नगर पुलिस स्टेशन

अगर गांधी नगर की बात करें तो पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, इस इलाके में 30 लोगों की मौत हुई थी. जबकि रिलीफ कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 1 नवंबर से 3 नवंबर के बीच इस इलाके में 51 लोगों की मौत हुई है. वहीं, सिर्फ इस इलाके में 4 गुरुद्वारा, 56 दुकान और 24 गाड़ियों को जला दिया गया था.

कल्याणपुरी पुलिस स्टेशन

कहा जाता है कि यह वो इलाका था, जहां काफी तेज दंगा भड़का था और काफी लोग इससे प्रभावित हुए. यहां 1 नवंबर 1984 से लेकर 3 नवंबर 1984 के बीच तक नरसंहार देखा गया था. पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, यहां 154 सिख मारे गए थे, जबकि आहूजा कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि इस इलाके में इससे कई गुना ज्यादा 610 सिखों की मौत हो गई थी. इसके अलावा यहां लूट आदि के कई मामले सामने आए थे.

शाहदरा पुलिस स्टेशन

उस वक्त दिल्ली के हर कोने में सिख दंगों की आग भड़की थी. पुलिस स्टेशन की ओर से जारी किए गए रिकॉर्ड के अनुसार, इस थाना क्षेत्र में 114 आगजनी के केस, 36 लूटपाट के केस और 33 हत्या के केस दर्ज किए गए थे. यहां 1 से 5 नवंबर के बीच हिंसा फैला थी. लेकिन जस्टिस मिश्रा की रिपोर्ट में इस इलाके में 580 से ज्यादा मौत के एफिडेफिट जमा किए गए.

सुल्तानपुरी पुलिस स्टेशन

सुल्तानपुरी पुलिस स्टेशन का क्षेत्र भी काफी प्रभावित हुआ था. इसमें भी यहां A-4, C-4 और F ब्लॉक काफी ज्यादा प्रभावित हुआ था. यहां भी 150 से ज्यादा मर्डर के मामले ,सामने आए थे.

नांगलोई पुलिस स्टेशन

नांगलोई थाना क्षेत्र में भी 1 नवंबर से 3 नवंबर के बीच काफी खतरनाक हालात थे. इन तीन दिन में इस इलाके में 122 सिखों की हत्या कर दी गई थी. 5 गुरुद्वारा और 34 वाहनों को जला दिया गया था. कहा जाता है कि उस वक्त जेजे कॉलोनी में रह रहे गुरुबचन सिंह के घर पर 500 से 700 लोगों ने एक साथ हमला कर दिया था.

ऐसे में आप हर थाने क्षेत्र में मरने वालों की संख्या से अंदाजा लगा सकते हैं कि उस वक्त क्या हालात थे. कहा जाता है कि लोगों ने अलग अलग तरीकों से अपनी जान बचाई थी.

34 साल पहले 1 नवंबर, 1984 को भारत के इतिहास की सबसे भयानक घटना घटी थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिख विरोधी दंगा फैल गया था और हजारों सिखों को निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया था। 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी के दो सिख बॉडीगार्ड ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। उनकी हत्या के बदले का बहाना बनाकर निर्दोष सिखों को निशाना बना गया। उनको मौत के घाट उतारा गया, उनके दुकान और मकान को लूटा गया और महिलाओं का बलात्कर किया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली, कानपुर, राउरकेला और देश के अन्य शहरों में दिन दहाड़े 15,000 सिखों की हत्या कर दी गई। अकेले दिल्ली में ही दिन दहाड़े 6 से 7 हजार निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी।

दिल्ली में क्या हुआ?
रिपोर्ट के मुताबिक, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भीड़ सड़कों पर उतर आई और 'खून के बदले खून' का नारा लगा रहा थी। लाजपत नगर, जंगपुरा, डिफेंस कॉलोनी, फ्रेंड्स कॉलोनी, महारानी बाग, पटेल नगर, सफदरजंग एंक्लेव और पंजाबी बाग जैसे मिड्ल और अपर मिड्ल क्लास वाले इलाकों में जमकर लूटपाट और हत्याएं की गईं। यहां दुकानों, घरों और गुरुद्वारों में लूटपाट करने के बाद उनमें आग लगा दी गई। बस, ट्रक, कार और स्कूटर समेत बड़ी संख्या में गाड़ियों को भी आग लगा दी गई। कुछ लोग घायल हुए जबकि अन्यों की हत्या कर दी गई। ये तो दिल्ली के पॉश इलाके का हाल था।

पाकिस्तान से आए सिखों की बस्तियों, स्लम और गावों में हत्या और रेप के साथ लूटपाट और आगजनी की वारदातों को अंजाम दिया गया। त्रिलोकपुरी, कल्याणपुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, नंद नगरी, पालम गांव और शकूरपुर इलाके में बड़ी संख्या में निर्दोषों को मौत के घाट उतारा गया। घरों में आग लगा दी गई और पुरुषों एवं जवान लड़कों की पीट-पीटकर, तलवार से हत्या कर दी गई। कुछ को जिंदा जलाकर मार दिया गया। बड़ी संख्या में महिलाओं का अपहरण और रेप किया गया। अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं जिनके सदस्य अब तक नहीं लौटे हैं। आशंका है कि अपहरण के बाद उनकी हत्या कर दी गई होगी। गुरुद्वारा और घरों को लूटा गया।

गलियों, ट्रेनों, बसों, बाजारों और फैक्ट्री-कारखानों एवं दुकानों में सिख पुरुषों और युवकों पर हमला किया गया। उनमें से कई लोगों की निर्ममता से हत्या की गई। कुछ को या तो जिंदा जला दिया गया या फिर चलती गाड़ियों से बाहर फेंक दिया गया।

हत्या और लूटपाट की घटनाएं दिल्ली के ज्यादातर इलाके में लगभग एक जैसी थीं लेकिन पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की गरीब बस्तियां हिंसा का कुछ ज्यादा शिकार हुई थीं।

बाकी भारत की स्थिति
दिल्ली के अलावा हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, एमपी और यूपी में भी बड़े पैमाने पर सिखों की हत्या और लूटपाट की घटना को अंजाम दिया गया। लखनऊ, कानपुर, रांची और राउरकेला हिंसा में बुरी तरह झुलसने वाले शहरों में शामिल थे।

दंगे की जांच और सुनवाई
दंगे की जांच के लिए दस आयोग और कमिटियां बनी। दंगे में कांग्रेस नेताओं की भूमिकाओं पर भी सवाल उठे थे। जांच में सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर कांग्रेस के दो दिग्गज नेता थे जिन पर दंगा भड़काने और दंगाइयों के नेतृत्व का आरोप था लेकिन 2013 में एक निचली अदालत ने सज्जन कुमार को बरी कर दिया और पूर्व पार्षद बलवान खोखर, सेवानिवृत्त नौसैनिक अधिकारी कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और दो अन्य को एक नवंबर, 1984 को दिल्ली छावनी के राज नगर इलाके में एक परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के मामले में दोषी ठहराया। खोखर, बागमल और गिरधारी लाल को आजीवन कारावस की सजा सुनाई गई जबकि अन्य दो दोषियों पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर को तीन-तीन साल जेल की सजा सुनाई गई। जगदीश टाइटलर को भी क्लीन चिट मिल गई।

1984 के दंगों में कितने हिंदू मारे गए?

अगले दिन यानी 1 नवंबर 1984 को दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। दंगे में कितने लोगों की मौत हुई, इस पर अलग-अलग रिपोर्ट सामने आ चुकी है। PTI के मुताबिक तब सिर्फ दिल्ली में ही करीब 2700 लोग मारे गए थे, जबकि देशभर में मरने वालों का आंकड़ा 3500 के करीब था।

1984 के सिख दंगों में क्या हुआ था?

1984 के सिख विरोधी दंगे पूर्व भारतीय पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली से शुरू हुए थे. 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके दो सिख गार्ड ने हत्या कर दी थी. दिल्ली से शुरू होकर दंगे देश के कई हिस्सों में फैल गए थे. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इन दंगों में दिल्ली में ही 2733 लोगों की जान गई थी.

1984 के सिख दंगों के पीछे कौन है?

उस महीने, दिल्ली की कड़कड़डूमा जिला अदालत ने दिल्ली छावनी में सिखों के खिलाफ भीड़ को उकसाने के लिए पांच लोगों—बलवान खोखकर (पूर्व पार्षद), महेन्द्र यादव (पूर्व विधायक), किशन खोकर, गिरधारी लाल और कप्तान भागमल को दोषी ठहराया। अदालत ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को बरी कर दिया, जिसके कारण विरोध प्रदर्शन हुआ।

सिख दंगे क्यों हुए?

31 अक्टूबर 1984 को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी. इसके अगले ही दिन यानी 1 नवंबर 1984 से दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे. इन दंगों से कई लोग प्रभावित हुए, कई बेघर हुए तो कई परिवारों ने अपने परिजनों को खो दिया.