1947 में राष्ट्रीय ध्वज किसने फहराया था? - 1947 mein raashtreey dhvaj kisane phaharaaya tha?

Curated by राघवेंद्र शुक्ला | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Aug 14, 2022, 5:18 PM

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भारत में आजादी के 75 साल के मौके पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। घर-घर पर तिरंगे लगाए जा रहे हैं। भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे को 22 जुलाई 1947 को स्वीकार किया गया। इस ध्वज में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टी लगी है और बीच में अशोक चक्र बना हुआ है। हालांकि, इससे पहले स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलनों में 1857 से लेकर 1947 तक क्रांतिकारियों ने 8 राष्ट्रीय ध्वजों को प्रतीक बनाकर उसने नेतृत्व में लड़ाइयां लड़ीं। आखिर में 1947 में तिरंगे को भारतीय ध्वज की मान्यता मिली।

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    जफर ने फहराया जो झंडा

    साल 1857 में पहली बार हिंदुस्तान में आजादी की संगठित लड़ाई लड़ी गई। सैनिकों की तरफ से हुए इस विद्रोह को अंग्रेजों ने बेरहमी से कुचल दिया था। भारत के इस प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान जो झंडा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में इस्तेमाल किया गया था, वह कुछ ऐसा दिखता था। इसमें हरे रंग की पृष्ठभूमि में एक चांद और कमल का फूल बना हुआ था। बताया जाता है कि इसे बहादुर शाह जफर ने फहराया था।

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    ​भगिनी निवेदिता का ध्वज

    साल 1904 से 1906 के बीच स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने एक ध्वज तैयार किया था। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला राष्ट्रीय ध्वज कहा जाता है। बाद में इसे सिस्टर निवेदिता के ध्वज के नाम से भी जाना जाने लगा था। इस झंडे में पीला और लाल दो रंग थे। लाल का मतलब स्वतंत्रता के लिए संघर्ष से था। वहीं पीला विजय का प्रतीक था। ध्वज पर बांग्ला में 'बोंदे मातोरम' लिखा था। इसमें एक वज्र भी बना था, जो इंद्र का अस्त्र माना जाता है। यह देश की शक्ति का प्रतीक था। बीच में एक कमल भी बना था, जिसे शुद्धता का प्रतीक बताया गया।

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    ​सूर्य-चंद्र वाला कलकत्ता फ्लैग

    सिस्टर निवेदिता के झंडे के बाद साल 1906 में एक और राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया। इसमें तीन पट्टियां थीं, जिसके रंग क्रमशः नीला (शीर्ष पर), पीला (मध्य में) और लाल (नीचे) थे। सबसे ऊपर की पट्टी पर कमल के फूल बने थे। मध्य में देवनागरी में वंदे मातरम लिखा था और नीचे वाली पट्टी पर चांद और सूर्य बने थे। 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक कोलकाता में इसे फहराया गया था।

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    ​भीकाजी कामा का झंडा

    साल 1907 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में भीकाजी कामा ने कुछ निर्वासित क्रांतिकारियों के साथ यह ध्वज फहराया था। यह कलकत्ता फ्लैग जैसा ही दिखता था। बस सबसे ऊपर वाली पट्टी में कमल की जगह सात सितारे लगा दिए गए थे, जो सप्तर्षियों का संकेत करते थे। बर्लिन के सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में भी इसे फहराया गया था, इसलिए इसे बर्लिम कमिटी फ्लैग भी कहा जाता है।

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    पिंगलि वेंकैया का ध्वज

    साल 1916 में लेखक और जियोफिजिसिस्ट पिंगलि वेंकैया गांधी जी से मिले और उन्हें एक ध्वज दिखाते हुए उसे अप्रूव करने को कहा। यह ध्वज खादी के कपड़े पर बना था, जिसमें तीन रंग की पट्टियां थीं और बीच में चरखा बना हुआ था। चरखा भारत के आर्थिक उन्नयन का प्रतीक था। इसमें दो हरा और केसरियां रंग की पट्टियां थीं। गांधी जी ने इस झंडे को मंजूरी देने से इनकार कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि हरा रंग मुस्लिम और केसरिया हिंदू धर्म से संबंधित है। ऐसे में इस झंडे में देश के बाकी धर्मों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।

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    ​होमरूल फ्लैग

    लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने होमरूल लीग के साल 1917 में बनाए इस राष्ट्रीय ध्वज को फहराया था। उस समय में भारत को एक डोमिनियन स्टेट बनाने की मांग की जा रही थी। इस झंडे में ऊपर अंग्रेजों का ध्वज यूनियन जैक बना हुआ था। बाकी के झंडे में 5 लाल और चार हरे रंग की पट्टियां थीं। इनमें सात सितारे भी लगे थे, जो सप्तर्षियों के प्रतीक बताए गए। इसके एक कोने पर चांद-तारा भी बना हुआ था। यह झंडा लोगों में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ।

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    ​विजयवाड़ा ध्वज

    विजयवाड़ा में साल 1921 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस दौरान आंध्र के एक युवा ने एक झंडा तैयार किया और गांधीजी के पास लेकर गया। इस झंडे में दो रंग थे। दोनों रंग दो समुदायों हिंदू और मुस्लिम को रिप्रेजेंट करते थे। इस पर गांधीजी ने सुझाव दिया कि भारत के बाकी समुदायों की प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें सफेद रंग की पट्टी भी जोड़ दिया जाए। साथ ही राष्ट्र की प्रगति को दर्शाने के लिए एक चरखा भी लगा दिया जाए। बताते हैं कि यह झंडा आयरलैंड के झंडे से प्रेरित था, जो उस समय ब्रिटेन से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। हालांकि, कांग्रेस ने इस झंडे को मान्यता नहीं दी लेकिन यह भारत की आजादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में गिना जाता है।

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    ​1931 का राष्ट्रीय ध्वज

    विजयवाड़ा के झंडे से बहुत से लोग नाखुश थे। ऐसे में पिंगलि वेंकैया ने तीन रंगो का इस्तेमाल कर एक नया ध्वज तैयार किया, जिसमें केसरिया, हरा और सफेद रंग थे। बीच में चरखा बना हुआ था। 1931 में कांग्रेस ने इस ध्वज को मान्यता दी और इसे कमिटी के आधिकारिक ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया। साल 1931 भारतीय ध्वजों के इतिहास में एक उल्लेखनीय वर्ष के रूप में दर्ज है। इस ध्वज को सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिंद फौज ने भी अपनाया था।

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    ​आजादी और तिरंगा

    सदियों के संघर्ष के बाद वह दिन भी आने वाला था, जब भारत को अंग्रेजों से पूरी तरह आजादी मिलने वाली थी। इस बीच 22 जुलाई 1947 को राजेंद्र प्रसाद की अगुआई में गठित कमिटी ने स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज को मान्यता दी। इस झंडे में तीन रंग केसरिया, हरा और सफेद बरकरार रखे गए थे। चरखे की जगह पर सम्राट अशोक के धर्मचक्र को रिप्लेस कर दिया गया था। इस तरह से स्वतंत्र भारत को उसका राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मिल गया था।

भारत देश का पहला झंडा कब फहराया गया था?

पहली बार कब और कहां फहराया गया था भारत का झंडा? भारत की आजादी के 40 साल पहले यानी 22 अगस्त 1907 में पहली बार भारत का झंडा जर्मनी के स्टूटगार्ट नगर में फहराया गया था

आजादी से पहले भारत का झंडा क्या था?

​सूर्य-चंद्र वाला कलकत्ता फ्लैग इसमें तीन पट्टियां थीं, जिसके रंग क्रमशः नीला (शीर्ष पर), पीला (मध्य में) और लाल (नीचे) थे। सबसे ऊपर की पट्टी पर कमल के फूल बने थे। मध्य में देवनागरी में वंदे मातरम लिखा था और नीचे वाली पट्टी पर चांद और सूर्य बने थे। 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक कोलकाता में इसे फहराया गया था

सबसे पहले झंडा कौन फहराया था?

प्रश्न- भारत का राष्ट्रीय ध्वज पहली बार कब और कहां फहराया गया था? उत्तर- 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) में बंगाल के विभाजन के विरोध में एक रैली का आयोजन हुआ था। यहीं पर सबसे पहली बार तिरंगा झंडा फहराया गया था। इस झंडे में तीन क्षैतिज पटि्टयां थीं, जिसमें लाल, पीला और हरा रंग थे।

लाल किले पर सबसे पहले झंडा कौन फहराया था?

लालकिले पर पहली बार तिरंगा देश के पहले प्रधानमंत्री और महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने फहराया था.