सूक्ष्म शिक्षण क्या है इसकी प्रकृति तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए? - sookshm shikshan kya hai isakee prakrti tatha visheshataon ka varnan keejie?

हम इस आर्टिकल में सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) से जुड़े तथ्यों का अध्ययन करेंगे जिसमें मुख्य रूप से सूक्ष्म शिक्षण क्या है? सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के चरण (Steps in Micro-Teaching), सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro Teaching), सूक्ष्म शिक्षण के लाभ (Advantages of Micro Teaching), सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएँ (Limitations of Micro Teaching), सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग (Use of Micro Teaching) आदि हैं।

  • सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching)
  • सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के चरण (Steps in Micro-Teaching)
    • सूक्ष्म शिक्षण की सैद्धान्तिक जानकारी (Orientation of Micro Teaching)
    • शिक्षण कौशलों की चर्चा (Discussion of teaching skills)
    • विशिष्ट शिक्षण कौशल का चयन (Selection of a particular teaching skill)
    • कौशल को परिभाषित करना (Defining the skill)
    • कौशल का प्रदर्शन (Demonstrating the skills)
    • पाठ योजना (Planning the lesson)
    • शिक्षण अथवा पाठ पढ़ाना (Teaching the lesson)
    • विचार-विमर्श एवं पृष्ठपोषण (Discussion and feedback)
    • पुनः नियोजन (Replanning)
    • पुन: शिक्षण (Reteaching)
    • पुनः विचार-विमर्श एवं पुनः पृष्ठपोषण (Rediscussion and Feedback)
    • चक्र की पुनरावृत्ति (Repeating the cycle)
  • सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro Teaching)
  • सूक्ष्म शिक्षण के लाभ (Advantages of Micro Teaching)
  • सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएँ (Limitations of Micro Teaching)
  • सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग (Use of Micro Teaching)
    • सिद्धान्त एवं व्यवहार का एकीकरण (Integration of Theory and Practice)
    • व्यावसायिक परिपक्वता (Professional Maturity)
    • सेवारत प्रशिक्षण हेतु उपयोग (In Service Training)
    • निरन्तर प्रशिक्षण का साधन (Continuous Training)
    • स्व-मूल्यांकन (Self Evaluation)
    • पर्यवेक्षण का नया स्वरूप (Supervision of Student Teaching)
    • अनुसंधान साधन (Resource of Research)
    • आदर्श पाठ (Model Lesson)

सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) एक प्रशिक्षण धारणा है। पूर्व सेवा-कालिक (Pre-service) तथा सेवाकालिक (In-service) स्तरों पर अध्यापकों के व्यावसायिक विकास के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण अध्यापकों को शिक्षण अभ्यास की ऐसी स्थिति प्रदान करता है जिसमें कक्षा की सामान्य जटिलताएँ बहुत कम होती हैं और अध्यापकों को अपने शिक्षण कार्य का तुरन्त पृष्ठपोषण (Feedback) प्राप्त हो जाता है।

सामान्य शिक्षण की जटिलताओं को कम करने के लिए कुछ सीमित आयाम निर्धारित किये जाते हैं। पाठ की लम्बाई कम कर दी जाती है, पाठ के क्षेत्र को संकुचित कर दिया जाता है और अध्यापक को बहुत कम विद्यार्थियों को पढ़ाना होता है।

बुनियादी तौर पर सूक्ष्म शिक्षण प्रशिक्षणार्थी सरलीकृत लघु रूप (Scaled-down) शिक्षण स्थिति में व्यस्त रहता है। कक्षा के आकार को घटा दिया जाता है क्योंकि अध्यापक को केवल 5 से 10 विद्यार्थियों को पढ़ाना होता है। पाठ की लम्बाई को घटा दिया जाता है और कक्षा के समय को घटाकर पाँच से दस मिनट कर दिया जाता है। इसमें शिक्षण कार्यों को भी घटा दिया जाता है।

शिक्षण कार्यों में किसी विशिष्ट शिक्षण कौशल जैसे भाषण देना, शिक्षक द्वारा व्याख्या करना, प्रश्नों द्वारा विवेचन को आगे बढ़ाना आदि के अभ्यास एवं निपुणता प्राप्ति को सम्मिलित किया जाता है। एक समय में एक ही कौशल (Skill) या कार्य को लिया जाता है। यदि सम्भव हो सके तो उसी समय सूक्ष्म शिक्षण को वीडियो (Video) या टेप पर रिकार्ड कर लिया जाता है।

विद्यार्थी-अध्यापक उसी समय अपने शिक्षण को देख लेता है, उसका मूल्यांकन करता है, उसमें वांछित सुधार करता है, विद्यार्थियों के दूसरे समूह को वही पाठ पढ़ाता है और फिर उसका समीक्षण एवं मूल्यांकन करता है। सूक्ष्म शिक्षण की कुछ सुविख्यात परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

एलन एवं इव-“यह नियन्त्रित अभ्यास की विधि है जो विशिष्ट शिक्षण व्यवहार पर ध्यान केन्द्र को आसान बनाती है तथा नियन्त्रित परिस्थितियों में शिक्षण अभ्यास को सम्भव बनाती है।”

बी० के० पासी के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) एक प्रशिक्षण तकनीक है जो छात्र-अध्यापकों से यह अपेक्षा रखती हैं कि वे किसी तथ्य को थोड़े से छात्रों को कम समय में किसी विशिष्ट शिक्षण कौशल के माध्यम से शिक्षण दें।”

शिक्षा विश्वकोश के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) वास्तविक निर्मित तथा अध्यापन अभ्यास का न्यूनीकृत अनुमाप है जो शिक्षक-प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम विकास व अनुसंधान में प्रयुक्त किया जाता हैं।”

एलेन के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाटना हैं।”

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ

सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के चरण (Steps in Micro-Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के चरणों (Steps in Micro-Teaching) को में निम्नलिखित ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है –

सूक्ष्म शिक्षण की सैद्धान्तिक जानकारी (Orientation of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण द्वारा शिक्षण कौशलों का प्रयोगात्मक अभ्यास कराने से पहले छात्राध्यापकों को सूक्ष्म शिक्षण से सम्बन्धित आवश्यक सैद्धान्तिक जानकारी देनी चाहिए। सूक्ष्म शिक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसकी अवधारणा अथवा संप्रत्यय (अर्थ तथा विशेषताएँ), इसकी प्रमुख मान्यताएँ, शिक्षा कॉलेजों में सूक्ष्म शिक्षण आरम्भ करने के लक्ष्य, इसके महत्व एवं उपयोग, कार्य पद्धति, सूक्ष्म शिक्षण तकनीक के प्रयोग के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ एवं साधन आदि का ज्ञान करना आवश्यक है।

शिक्षण कौशलों की चर्चा (Discussion of teaching skills)

सूक्ष्म शिक्षण का सैद्धान्तिक ज्ञान देने के पश्चात् शिक्षण प्रक्रिया में निहित विभिन्न शिक्षण कौशलों से परिचित कराना चाहिए। इसके लिए शिक्षण कौशलों के घटकों (Components of teaching skills), शिक्षण कार्य में शिक्षण कौशलों का उपयोग और महत्व आदि बताया जाना चाहिए।

विशिष्ट शिक्षण कौशल का चयन (Selection of a particular teaching skill)

सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया में छात्राध्यापकों को एक बार में प्रायः एक ही शिक्षण कौशल का अभ्यास कराया जाता है। अत: उन्हें किसी एक शिक्षण कौशल का चयन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। तदुपरान्त उस चयन के लिए शिक्षण कौशल के अभ्यास के बारे में पर्याप्त आवश्यक जानकारी दी जानी चाहिए, जिससे छात्राध्यापक उस शिक्षण कौशल का ठीक से नियोजन एवं अभ्यास कर सकें।

कौशल को परिभाषित करना (Defining the skill)

छात्राध्यापक को विशिष्ट कौशल की परिभाषा दी जाती है और उसी कौशल में ही उसका अभ्यास कराया जाता है।

कौशल का प्रदर्शन (Demonstrating the skills)

विशेषज्ञों द्वारा छात्राध्यापकों के सम्मुख इस कौशल का स्पष्ट प्रदर्शन किया जाता है। इस प्रदर्शन में कभी- कभी वीडियो टेप या फिल्म का भी प्रयोग किया जाता है।

पाठ योजना (Planning the lesson)

छात्राध्यापक अपने निरीक्षक की सहायता से एक छोटी (सूक्ष्म) पाठ-योजना तैयार करता है जिसमें उसे निर्धारित शिक्षण कौशल का अभ्यास करना होता है।

शिक्षण अथवा पाठ पढ़ाना (Teaching the lesson)

छात्राध्यापक शिष्यों के एक छोटे से समूह (5 से 10 शिष्यों) को लघु अवधि (6 मिनट) में पाठ पढ़ाता है। पाठ का निरीक्षण निरीक्षक या पीयरों (Peers) या वीडियो टेप या आडियो टेप या CCTV द्वारा किया जाता है।

विचार-विमर्श एवं पृष्ठपोषण (Discussion and feedback)

पृष्ठपोषण प्रदान करने के लिए शिक्षण के पश्चात् विचार-विमर्श किया जाता है। इस प्रकार उसे अपने शिक्षण कार्य का ज्ञान होता है और उसमें चेतनता उत्पन्न होती है।

पुनः नियोजन (Replanning)

विचार-विमर्श तथा सुझावों के प्रकाश में  छात्राध्यापक अपने पाठ का पुन: नियोजन करता है।

पुन: शिक्षण (Reteaching)

पुनः आयोजित पाठ उसी कक्षा के विद्यार्थियों के नये समूह को उतनी ही अवधि (6 मिनट) में पढ़ाया जाता है।

पुनः विचार-विमर्श एवं पुनः पृष्ठपोषण (Rediscussion and Feedback)

विद्यार्थी-अध्यापक द्वारा दोबारा पढ़ाए गये पाठ पर पुनः विचार-विमर्श किया जाता है, नये सुझाव दिये जाते हैं और उसे उत्साहित किया जाता है। इस प्रकार उसे फिर पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है।

चक्र की पुनरावृत्ति (Repeating the cycle)

‘शिक्षण एवं पुनः शिक्षण’ की बार-बार आवृत्ति की जाती है जब तक कि शिक्षण कौशल के वांछित स्तर की प्राप्ति न हो जाए। इस चक्र में छात्राध्यापक पुनः पाठ योजना बनाकर पुनः शिक्षण प्राप्त करता रहता है और उसे पुनः पृष्ठपोषण मिलता रहता है। इस प्रकार उसे विशिष्ट कौशल में दक्षता प्राप्त हो जाती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सूक्ष्म शिक्षण में विद्यार्थी-अध्यापक 5 R’s का चक्र पूरा करने का प्रयास करता है-

Recording (रिकार्ड करना), Reviewing (समीक्षा करना), Responding (अनुक्रिया करना), Refining (सुधारना) और Redoing (दोबारा करना)।

सूक्ष्म शिक्षण चक्र को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-

नियोजन → शिक्षण → विचार-विमर्श एवं पृष्ठपोषण → पुनः नियोजन → पुनः शिक्षण  → पुनः विचार-विमर्श → पुनः पृष्ठपोषण।

(Plan → Teach → Discuss and Feedback → Re-plan → Re-teach → Re-discuss → Re-feedback)

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro Teaching) निम्नलिखित हैं-

(1) सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षण के जितने भी तत्व होते हैं उनका स्वरूप सूक्ष्म कर दिया जाता है।

(2) यह व्यक्तिशः प्रशिक्षण की विधि है।

(3) शिक्षण के बाद छात्राध्यापक या प्राध्यापक प्रतिपुष्टि देते हैं। जिससे प्रशिक्षणार्थी कौशल के विकास में सहायता पाता है।

(4) वह पुनर्योजना करके उन्हीं छात्रों को विषय बदलकर लेकिन उसी कौशल पर आधारित या अन्य छात्रों को वही पाठ उसी अवधि में पुनः पढ़ाता है।

(5) वही पर्यवेक्षक पुनः छात्राध्यापक को प्रतिपुष्टि देता है।

(6) यदि आवश्यकता समझी गई तो उसी दिन अथवा अगले दिन पुनः इसी कौशल पर आधारित पाठ पढ़ाता है जब तक कि उसे इस कौशल का पूर्ण अभ्यास नहीं हो जाता।

(7) इस प्रविधि की सहायता से छात्राध्यापकों को प्रभावशाली ढंग से पृष्ठपोषण दिया जाता है जिससे अपेक्षित व्यवहार करने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है।

(8) प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षण व्यवहार से सम्बन्धित प्रतिपुष्टि तुरन्त मिल जाती है।

(9) इसको अन्य प्रविधियों के साथ भी प्रयुक्त कर सकते हैं, जैसे—अनुकरणीय शिक्षण, अन्तःप्रक्रिया विश्लेषण आदि के साथ इसका उपयोग हो सकता है।

(10) सूक्ष्म अध्यापन में छात्राध्यापक अथवा छात्राध्यापिका 5 से 10 तक के छात्रों की कक्षा में अध्यापन करता है।

(11) छात्र या तो वास्तविक होते हैं अथवा प्रशिक्षणार्थियों से ही उनकी भूमिका का निर्वाह कराया जाता है।

(12) कालांश का समय 5 से 10 मिनट तक होता है।

(13) कक्षा का आकार, विषय वस्तु, पढ़ाने की अवधि, छोटा कर दिया जाता है तथा अनेक कौशलों के स्थान पर केवल एक कौशल का एक बार में अभ्यास कराया जाता है।

(14) सूक्ष्म पाठ की विषय वस्तु एक ही सम्प्रत्यय तक सीमित होती है।

(15) सूक्ष्म-शिक्षण, शिक्षण का अति लघु एवं सरलीकृत रूप है।

(16) इसको अनुसंधान की एक प्रविधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

सूक्ष्म शिक्षण के लाभ (Advantages of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण के लाभ(Advantages of Micro Teaching) इस प्रकार हैं-

(1) सूक्ष्म शिक्षण से छात्राध्यापकों में आत्मविश्वास पैदा होता है।

(2) कार्यरत शिक्षकों के व्यवहार में आयी हुई कड़ाई को न्यूनतम करने और शिक्षण की बुरी आदतों में सुधार लाने के लिए यह उपयोगी है।

(3) यह कक्षा शिक्षण की जटिलताओं को न्यूनतम करती है।

(4) यह शिक्षण विधि छात्राध्यापकों को कम समय में अधिक सिखाती है।

(5) इसके सहयोग से छात्राध्यापकों को विद्यालय में सीधा पढ़ाये जाने की अपेक्षा छोटी कक्षा, कम छात्र तथा छोटी पाठ योजना से अध्ययन कार्य सिखाया जाता है जो छात्राध्यापक के लिए अत्यन्त उपयोगी है।

(6) छात्राध्यापक क्रमशः अपनी योग्यतानुसार शिक्षण कौशलों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उन्हें विकसित करता है और सीखने का प्रयत्न करता है।

(7) प्रतिपुष्टि (Feedback) सम्पूर्ण तथा सभी दृष्टिकोणों को स्वीकार करती है।

(8) छात्राध्यापकों का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाता है।

(9) मूल्यांकन में छात्राध्यापक को अपना पक्ष रखने का पूर्ण अधिकार होता है और मूल्यांकन चरण में उसे सक्रिय रखा जाता है।

(10) निरीक्षक, छात्राध्यापक के परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है।

(11) इससे शिक्षण प्रक्रिया सरल होती है।

(12) इससे व्यावसायिक परिपक्वता विकसित होती है।

(13) सूक्ष्म शिक्षण यदि यथार्थ परिस्थितियों में कराया जाता है तब वास्तविक विद्यालय न मिलने पर भी समुचित प्रशिक्षण सम्भव होता है।

(14) सूक्ष्म शिक्षण से छात्राध्यापकों की शिक्षण प्रक्रिया पूर्णरूपेण स्पष्ट हो जाती है और वे अपने शिक्षण कार्य को भली-भाँति समझ लेते हैं।

(15) सूक्ष्म शिक्षण छात्राध्यापकों के व्यवहार परिवर्तन में अधिक प्रभावशाली होता है।

(16) इसमें शिक्षण कौशल का अभ्यास वास्तविक जटिल परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक सरल परिस्थितियों में कराया जाता है।

(17) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा छात्राध्यापक शिक्षण कौशलों पर पूर्ण निपुणता अर्जित कर लेते हैं। परिणामस्वरूप वे कम समय में आवश्यक कौशल का प्रयोग करने में समर्थ हो जाते हैं।

(18) सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापकों की व्यक्तिगत विभिन्नता ध्यान रखी जाती है।

सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएँ (Limitations of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएँ (Limitations of Micro Teaching) निम्नलिखित हैं –

सूक्ष्म शिक्षण यद्यपि प्रशिक्षण विधि के रूप में अपने अन्दर अनेक अच्छे बिन्दुओं को समेटे हुए हैं, फिर भी इस विधि की अपनी कुछ सीमाएँ हैं; जैसे-

(1) यह सीमा से ज्यादा नियन्त्रित तथा संकुचित शिक्षण की ओर ले जाती है।

(2) यह शिक्षण को कक्षा-कक्षगत शिक्षण से दूर ले जाती है।

(3) सूक्ष्म कक्षा में वास्तविक कक्षा-शिक्षण का वातावरण नहीं बन सकता।

(4) सूक्ष्म शिक्षण की प्रयोगशाला की सामग्री और साज-सज्जा व्ययसाध्य है। सभी प्रशिक्षण महाविद्यालयों में इसे उपलब्ध कराना सम्भव नहीं है।

(5) सूक्ष्म कक्षाओं की रचना करना और समय-सारणी की व्यवस्था करना कोई सरल कार्य नहीं।

(6) इस प्रकार के प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षित पर्यवेक्षकों का अभाव है।

(7) एक समय में एक ही शिक्षण कौशल का विकास करती है। फलस्वरूप बाद में उनमें एकीकरण करना कठिन होने लगता है।

(8) इसमें समय अधिक लगता है।

(9) इसमें प्रतिपुष्टि एकदम छात्राध्यापक को मिलना मुश्किल होता है।

(10) छात्राध्यापक को ‘शिक्षण कौशल दक्षता’ प्राप्त करने के लएि उचित प्रेरणा का अभाव रहता है।

(11) यह शिक्षण Diagnostic तथा Remedial work पर ध्यान नहीं देता।

उपर्युक्त सीमाओं के कारण सूक्ष्म शिक्षण विधि में अनेक परिवर्तन तथा सुधार किये जा रहे हैं। परिसूक्ष्म शिक्षण (Mini-teaching) इसका एक उदाहरण है।

निष्कर्ष-

निष्कर्ष के रूप में हम पासी और शाह के निम्नलिखित शब्द उद्धृत कर सकते हैं- “सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग निदानात्मक और उपचारात्मक साधन के रूप में होना चाहिए। यह कक्षा-शिक्षण का स्थान नहीं ले सकता। यह केवल एक पूरक उपागम ही है। मितव्ययी और उपयोगी होते हुए भी यह सब कुछ नहीं है।”

सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग (Use of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग (Use of Micro Teaching) सामान्यत: निम्नलिखित बिन्दुओं के लिए किया जाता है-

सिद्धान्त एवं व्यवहार का एकीकरण (Integration of Theory and Practice)

सूक्ष्म शिक्षण का आधार मनोविज्ञान के अधिगम के नियम और शैक्षिक समाजशास्त्र का व्यावहारिक पक्ष है। छात्राध्यापकों में अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया की सफलता के लिए उचित एवं पर्याप्त अभिप्रेरणा का होना अनिवार्य है। शिक्षण अभ्यास के विस्तृत एवं दीर्घकालीन कार्यक्रम की अपेक्षा घटक कौशल के छोटे-छोटे संक्षिप्त चक्रों में ज्यादा अभिप्रेरण होगा। अलग-अलग कौशल में पर्याप्त अभ्यासोपरान्त सभी कौशल योग्यताओं का एकीकरण विस्तृत पाठ में किया जाता है। इस तरह ‘अंश से पूर्ण की ओर’ सूत्र के आधार पर शिक्षण कला में प्रवीणता अर्जित की जा सकती है। इस प्रणाली में कुशल एवं प्रभावशाली अध्यापक सरलतापूर्वक अत्यल्प समयावधि में प्रशिक्षित कर दिये जाते हैं।

व्यावसायिक परिपक्वता (Professional Maturity)

व्यावसायिक परिपक्वता अर्जित करने के लिए अनुभवी शिक्षक भी सूक्ष्म शिक्षण प्रणाली का एक सुरक्षित साधन के रूप में उपयोग कर सकते हैं। विशिष्ट विषय अथवा अध्यापन प्रणाली का चयन कर इस प्रविधि में कम समय में अभ्यास कर वे उसके प्रभाव एवं सफलता का मूल्यांकन कर सकते हैं। इससे व्यावहारिक लाभ के साथ-साथ परिपक्वता भी विकसित होती रहती है।

सेवारत प्रशिक्षण हेतु उपयोग (In Service Training)

सेवापूर्व शिक्षण प्रशिक्षण में तो सूक्ष्म शिक्षण का उपयोग हो रहा है। सेवारत प्रशिक्षण में भी प्रयोगशालाओं में सेवारत शिक्षकों के कौशल में सुधार एवं विकास के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है। सेवारत शिक्षकों के व्यवहार में अनेक बार कठोरता आ जाती है और कुछ बातें उनकी आदत सी बन जाती हैं। इस कठोरता को कम करने और इन आदतों में सुधार लाने हेतु भी यह उपयोगी है।

निरन्तर प्रशिक्षण का साधन (Continuous Training)

शिक्षण एक कला है और शिक्षक एक कलाकार। जैसे कला में निरन्तर अभ्यास और प्रशिक्षण से कलाकार की शैली में निखार आता है उसी भाँति शिक्षक के निरन्तर प्रशिक्षण से उसके शिक्षण व्यवहार में निखार और कार्यकुशलता आती है। शिक्षकों को सूक्ष्म शिक्षण शैली से कम समय में वांछित कौशल व प्रणाली का भी प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है।

स्व-मूल्यांकन (Self Evaluation)

सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षण के विभिन्न कौशलों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक अपने पाठ का स्वमूल्यांकन व स्वालोचन करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। टेपरिकार्डर की सहायता से अपने पाठ की रिकार्डिंग करके वह स्वयं सुनकर उसमें सुधार की योजना बनाता है। आत्मसुधार की दृष्टि से यह बहुपयोगी मूल्यांकन करने की विधि है।

पर्यवेक्षण का नया स्वरूप (Supervision of Student Teaching)

शिक्षण अभ्यास की परम्परागत पर्यवेक्षण प्रणाली में छात्राध्यापक को सर्वव्यापी दृष्टिकोण से सम्पूर्ण विद्याओं को ध्यान में रखते हुए जाँचा जाता है। कम समय में भी सभी तरह के सुधारों के एक साथ सुझाव दिए जाने से छात्राध्यापक में बौखलाहट स्वाभाविक है। इसके विपरीत सूक्ष्म शिक्षण में कम समय का सम्पूर्ण पाठ देखकर एक ही कौशल पर ध्यान केन्द्रित कर पर्यवेक्षक सुझाव देता है जिसे हृदयंगम कर छात्राध्यापक शीघ्र ही सुधार कर पुनः पाठ पढ़ाने की स्थिति में आ जाता है। पर्यवेक्षक विविध उपकौशल पर समुचित ध्यान देता है। छात्राध्यापक जिनका प्रयोग सही करता है, उनके लिए उसकी सराहना की जाती है और जिनके प्रयोग में कमी हो, उसके लिए सुझाव प्रदान किये जाते हैं। अत: पर्यवेक्षण वस्तुनिष्ठ होता है।

अनुसंधान साधन (Resource of Research)

सूक्ष्म शिक्षण का उदय मात्र अनुसंधान की परिस्थिति में हुआ था। तब से अब तक अनुसंधान की सीमा में अध्ययन कला के एक संयम तन्त्र के रूप में ही उपयोग में आता रहा है। कुछ समय पहले से वह प्रशिक्षण साधन के रूप में स्वीकृत होकर उपयोग में लाया जाने लगा है। अभी भी इसके कौशल पूरी तरह निश्चित नहीं हैं। इनके विभिन्न उपयोग एवं विभिन्न विधाओं पर विश्व में अनेक स्थानों पर अभी अनुसंधान कार्य किया जा रहा है।

आदर्श पाठ (Model Lesson)

ख्याति प्राप्त व कुशल शिक्षकों द्वारा पढ़ाये गये विभिन्न कौशलों पर आधारित आदर्श पाठों की वीडियो टेप निर्मित करके इन टेपों के सहयोग से छात्राध्यापकों को आदर्श पाठ दिखाये व सुनाये जाते हैं जिन्हें वे चाहे जितनी बार देख सुन सकते हैं। इस तरह विशिष्ट कौशल के विषय में उच्च ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।

उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग (Use of Micro Teaching) सिद्धान्त एवं व्यवहार का एकीकरण, सेवारत प्रशिक्षण हेतु, स्व-मूल्यांकन एवं अनुसंधान कार्यों के लिए करते हैं।

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सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं क्या है?

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषता (Characteristics of Micro Teaching) 1- यह कम समय में अधिक गुणवत्ता प्रदान करने की प्रविधि हैं। 2- सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) एक व्यक्तिगत शिक्षण हैं। 3- सूक्ष्म शिक्षण में एक समय में एक ही कौशल का विकास करने का लक्ष्य रखा जाता हैं।

सूक्ष्म शिक्षण से आप क्या समझते हैं सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताओं की व्याख्या करें?

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ (sukshm shikshan kya hai) सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी शिक्षक-शिक्षण विधि है जो कक्षा-अध्यापन की जटिलता तथा विस्तार को घटाकर उन्हें लघु रूप देती हैं एवं शिक्षण कौशलों तथा निपुणताओं के उन्नयन के लिए कार्य करती है। इसका प्रयोग शिक्षक प्रशिक्षणार्थियों के व्यवहार-परिवर्तन हेतु भी किया जाता हैं

सूक्ष्म शिक्षण से क्या तात्पर्य है?

सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया यह शिक्षण प्रशिक्षण की प्रयोगशास्त्रीय प्रविधि है, जिसमें सामान्य कक्षा शिक्षण की जटिलताएँ दूर की जाती है। इसमें एक छात्र-शिक्षक एक शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए संक्षिप्त विषयवस्तु पर सूक्ष्म पाठ-योजना बनाकर 5 या 10 सहपाठी छात्र-शिक्षकों की छोटी कक्षा को पढ़ाता है।

सूक्ष्म से आप क्या समझते हैं?

एक बिंदु p को एक वृत्त के भीतरी भाग से यादृच्छिक रूप से चयन किया जाता है, तो वह, प्रायिकता क्या होगी जिससे यह वस्तुतः वृत्त की परिसीमा के नजदीक होने की बजाय वृत्त के केंद्र से अधिक नजदीक होगा।

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