नहिं परागु नहिं मधुर मधु
नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।
अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥
नायिका में आसक्त नायक को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि न तो अभी इस कली में पराग ही आया है, न मधुर मकरंद ही तथा न अभी इसके विकास का क्षण ही आया है। अरे भौरे! अभी तो यह एक कली मात्र है। तुम अभी से इसके मोह में अंधे बन रहे हो। जब यह कली फूल बनकर पराग तथा मकरंद से युक्त होगी, उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी? अर्थात् जब नायिका यौवन संपन्न सरसता से प्रफुल्लित हो जाएगी, तब नायक की क्या दशा होगी?
स्रोत :
- पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 190)
- रचनाकार : डॉ. हरिचरण शर्मा
- प्रकाशन : श्याम प्रकाशन
- संस्करण : 2007
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ग नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल अलि कलि ही ते बन्ध्यो आगे कौन हवाल?
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल। अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल॥ स्पष्टीकरण - अप्रस्तुत अली ( भौंरा ) प्रस्तुत राजा एवं अप्रस्तुत कली के माध्यम से प्रस्तुत रानी का उल्लेख किया गया है , इसलिए यहाँ अन्योक्ति अलंकार है। इस पंक्ति में राजा जयसिंह और उसकी रानी का वर्णन भंवरा पराग और मधु के माध्यम से हुई है।
नहिं पराग नहिं मधुर मधु किसकी रचना है A घनानंद B बिहारी C रसखान D रसलीन?
(D) तुलसीदास TBC: AKG-APCC-HINDI-A 42.
आज रानी काव्या है ना यह पंक्ति कौन कहता है?
रानी विधवा हुई हाय!
कवि बिहारी के दोहों के संदर्भ में कौनसा मुहावरा विख्यात है?
यमक कनक कनक ते सौ गुणी, मादकता अधिकाय. वा पाए बौराय जग या खाए बौराय..