इसके पीछे की कथाओं को छोड़ दें, तो यौगिक परंपराओं में इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूँ, ‘योग’, तो मैं किसी विशेष अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा। इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवारात्रि की रात, व्यक्ति को इसी का अनुभव पाने का अवसर देती है।
शिवरात्रि – महीने का सबसे ज्यादा अँधेरे से भरा दिन
शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिवस होता है। प्रत्येक माह शिवरात्रि का उत्सव तथा महाशिवरात्रि का उत्सव मनाना ऐसा लगता है मानो हम अंधकार का उत्सव मना रहे हों। कोई तर्कशील मन अंधकार को नकारते हुए, प्रकाश को सहज भाव से चुनना चाहेगा। परंतु शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आँखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे। अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रहने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती। इस विस्तार, इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा जाता है। वर्तमान में, आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है। इस ग्रह के प्रत्येक धर्म व संस्कृति में, सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। यदि हम इसे देखें, तो ऐसी एकमात्र चीज़ जो सही मायनों में सर्वव्यापी हो सकती है, ऐसी वस्तु जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है, वह केवल अंधकार, शून्यता या रिक्तता ही है। सामान्यतः, जब लोग अपना कल्याण चाहते हैं, तो हम उस दिव्य को प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। जब लोग अपने कल्याण से ऊपर उठ कर, अपने जीवन से परे जाने पर, विलीन होने पर ध्यान देते हैं और उनकी उपासना और साधना का उद्देश्य विलयन ही हो, तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं।
Maha Shivratri 2022: महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की अराधना और पूजा-पाठ करने से मनचाहा फल मिलता है. वैसे तो हर महीने शिवरात्रि पड़ती है, लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आने वाली महाशिवरात्रि (Maha Shivratri 2022) का ख़ास महत्व होता है. इस बार महाशिवरात्रि 1 मार्च यानि कल मनाई जा रही है. इस दिन मंदिरों में साधुओं से लेकर श्रद्धालुओं तक की भारी भीड़ उमड़ती है. इस मौके पर भक्तजन मंदिरों में रुद्राभिषेक करते हैं. महाशिवरात्रि का व्रत पूरे विधि-विधान से करने पर शिवजी प्रसन्न होते हैं. इस व्रत को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हैं.
पूजा-अर्चना के इस दिन का क्या महत्व है? महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं? व्रत की विधि क्या है इसे करने से क्या फल मिलते हैं? इन सब के बारे में विस्तार से जान लो.
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Maha Shivratri 2022
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
हिंदू धर्म में कई व्रत और त्योहार हैं, जिनका अपना धार्मिक महत्व है. जिन्हें करने से मनचाहे फल तो मिलते ही हैं साथ ही दुख और दरिद्रता भी दूर होती है. इन्हीं में से एक फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर पड़ने वाली महाशिवरात्रि (Maha Shivratri 2022) भी है. इस दिन को लेकर कई कहानियां जुड़ी हैं. कहते हैं कि इसी दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. विवाह से जुड़ी एक कहानी ये भी है कि मां पार्वती, सती का पुनर्जन्म है. मां पार्वती शिव जी को पति के रूप में पाना चाहती थीं, जिसके लिए उन्होंने त्रियुगी नारायण से 5 किलोमीटर दूर स्थित गौरीकुंड में कठिन साधना की, जिससे शिवजी प्रसन्न हो गए और आज ही के दिन दोनों का विवाह हुआ.
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इसके अलावा, शास्त्रों की मानें तो महाशिवरात्रि की रात ही भगवान शिव ने करोड़ों सूर्यों के समान प्रबाव वाले ज्योतिर्लिंग का रूप धारण किया था. इसलिए इस रात को जागरण की रात्रि भी कहा जाता है.
क्यों करते हैं शिवलिंग की पूजा?
ऐसी मान्याता है कि महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा करने से भक्त और शिवजी का मिलन बहुत क़रीब से होता है क्योंकि इस दिन हर शिवलिंग में शिवजी विराजते हैं. ऐसे में शिवलिंग की पूजा सच्चे मन से की जाए तो पुण्य मिलता है.
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महाशिवरात्रि का महत्व क्या है?
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महाशिवरात्रि का महत्व साधुओं के लिए और आम लोगों के लिए अलग-अलग है क्योंकि आम लोग इसे सिवजी और पार्वती के रूप में मनाते हैं, जो पारिवारिक मोह माया में मग्न हैं. तो वहीं, जो सांसारिक महत्वकांक्षाओं में फंसे हैं वो इस दिन को शिवजी के द्वारा अपने शत्रुओं पर जीत पाने के तौर मानते हैं. इसके अलावा, साधुओं के लिए ये दिन कैलाश पर्वत से उनके जुड़ने का दिन होता है. इस दिन साधू एक पर्वत की तरह स्थिर और निश्चल हो गए थे.
यौगिक परंपरा के अनुसार, शिव जी को देवता की तरह नहीं पूजा जाता, बल्कि इन्हें आदि गुरु माना जाता है, वो गुरू जिसने ज्ञान दिया. एक और किवदंती है कि आज ही के दिन शिवजी पूर्ण रूप से स्थिर हो गए थे, इसलिए भी महा शिवरात्रि मनाते हैं.
महाशिवरात्रि के व्रत का महत्व क्या है?
महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने के साथ-साथ पूजा-पाठ मन से करने से मन से पाप मिटते हैं और कई समस्याओं से लड़ने की क्षमता मिलती है. कहते हैं, अगर अगर कुंवारी लड़कियां इस व्रत को विधि-विधान से करें तो उन्हें बहुत ही अच्छा वर मिलता है साथ ही सभी इच्छाएं पूरी होती है. तो वहीं, सुहागिन औरतें अगर इस व्रत को करती हैं तो उनके वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती हैं और पति की आयु भी लंबी होती है.
पूजन और व्रत विधि
महाशिवरात्रि के दिन सुबह नहा-धोकर शिवजी और मां पार्वती की पूजा करने के लिए घर के मंदिर या जिस मंदिर में शिवलिंग हो वहां जाएं. सबसे पहले शिवलिंग को दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से नहलाएं. इसके बाद, शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र, धतूरा, बेर, चंदन, चावल, सिंदूर, कपूर, दक्षिणा आदि चढ़ाएं. फिर धूप-दीप जलाकर चालीसा, मंत्र और आरती करें. इस दिन सुबह और शाम दोनों समय शिवजी और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करें.
पूजा के दौरान ये ग़लतियां न करें
– शिव जी को चंपा या केतकी का फूल चढ़ाने से बचें. इन्हें कनेर, गेंदा, गुलाब, आक आदि के फूल चढ़ाएं.
– अक्षत के टुकड़े शिवलिंग पर न चढ़ाएं
– रोली और हल्दी भूलकर भी न लगाएं और बल पत्र तीन पत्तों वाला ही चढ़ाएं.
– महादेव की पूजा में तुलसी शामिल न करें.
महाशिवरात्रि का दिन भक्तों और साधुओं के लिए बहुत ही ख़ास होता है इस दिन को पूरी निष्ठा के साथ मनाएं और विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर शिवजी और मां पार्वती को ख़ुश करें.