दबाव-समूह क्या है? कुछ उदाहरण बताइए।
दबाव समूह में लोग अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करते है। इसका निर्माण तब होता है जब समान इच्छा, हित या विचार वाले लोग समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए एकजुट हो जाते है। उदाहरण के लिए:
(i) किसान संघ- अखिल भारतीय किसान यूनियन
(ii) छात्र संगठन- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्
(iii) व्यापारी संघ- अखिल भारतीय व्यापार मण्डल
(iv) अध्यापक संघ - अखिल भारतीय
अध्यापक परिषद्
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दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
(क) दबाव-समूह समाज के किसी खास तबके के हितों की संगठित अभिव्यक्ति होते हैं।
(ख) दबाव-समूह राजनीतिक मुद्दों पर कोई-न-कोई पक्ष लेते हैं।
(ग) सभी दबाव समूह राजनीतिक दल होते हैं।
अब नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनें:-
क,ख और ग
क और ख
ख और ग
ख और ग
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मेवात हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है। यह गुड़गाँव और फ़रीदाबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था। मेवात के लोगों को लगा कि इस इलाके को अगर अलग ज़िला बना दिया जाय तो इस इलाके पर ज़्यादा ध्यान जाएगा।लेकिन, राजनीतिक दल इस बात पर कोई रुचि नहीं ले रहे थे। सन् 1996 में मेवात एजुकेशन एंड सोशल आर्गेनाईजेशन तथा मेवात साक्षरता समिति ने अलग ज़िला बनाने की माँग उठाई। बाद में सन् 2000 में मेवात विकास सभा की स्थापना हुई।
इसने एक के बाद एक कई जन-जागरण अभियान चलाए। इससे बाध्य होकर बड़े दलों यानी कोंग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल को इस मुद्दे पर अपना समर्थन देना पड़ा। उन्होंने फ़रवरी 2005 में होने वाले विधान सभा के चुनावों से पहले ही कह दिया था कि नया ज़िला बना दिया जाएगा। नया ज़िला सन् 2005 की जुलाई में बना।
इस उदाहरण में आपको आंदोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच क्या रिश्ता नज़र आता है? क्या आप कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो इससे अलग रिश्ता बताता हो?
उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि जब कोई आंदोलन जनता के हित में होता है और उसे व्यापक जन समर्थन भी प्राप्त होता है तब राजनीतिक दल को भी उसे स्वीकार करन पड़ता है। लोकतंत्र में जनमत की अवेहलना करना कठिन और हानिकारक होता है। इसलिए हरियाणा के अधिकांश राजनीतिक दल चुनाव से ठीक पहले ऐसी माँग का समर्थन करने पर मजबूर हुए। अत: एक राजनीतिक दल द्वारा इस माँग को पूरा किया गया।
इस उदाहरण में आंदोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच यह रिश्ता नज़र आता है। दबाव-समूह जनसमर्थन के साथ राजनीतिक दलों पर अपनी बात को मनवाने के लिए दवाब डाल सकते है।
नर्मदा बचाओ ऐसा ही एक अन्य आंदोलन का उदाहरण है। परन्तु जनता का समर्थन होने के बाद भी, राजनीतिक दलों की अलग-अलग राय होने के कारण इस माँग को अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है।
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निम्नलिखित में किस कथन से स्पष्ट होता है कि दबाव-समूह और राजनीतिक दल में अंतर होता है?
राजनीतिक दल राजनीतिक पक्ष लेते हैं जबकि दवाब-समूह राजनीतिक मसलों की चिंता नहीं करते।
- दबाव-समूह कुछ लोगों तक ही सीमित होते हैं जबकि राजनीतिक दल का दायरा ज़्यादा लोगों तक फैला होता है।
दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
C.
दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
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दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
दबाव समूह और आंदोलन राजनीति को निम्नलिखित तरह प्रभावित करते है-
(i) दबाव समूह और आंदोलन सरकार से अपनी बातें मनवाने हेतु हड़ताल और आंदोलन करके सरकार के कार्यविधि में बाँधा डालते है।
(ii) विभिन्न दबाव समूह और आंदोलन अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु कई प्रकार के अभियान चलते है, बैठके आयोजित कर जनता का समर्थन पाने की कोशिश करते है। इस प्रकार राजनीति प्रभावित होती है।
(iii) दबाव समूह अपनी बातों को जनता और सरकार तक पहुँचाने के लिए महंगे विज्ञापनों का साहरा भी
लेते है और विपक्षी नेताओं को अपने पक्ष में करके उनसे भाषणबाजी भी करवाते है।
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दबाव-समूह क्या है? कुछ उदाहरण बताइए।
दबाव समूह में लोग अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करते है। इसका निर्माण तब होता है जब समान इच्छा, हित या विचार वाले लोग समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए एकजुट हो जाते है। उदाहरण के लिए:
(i) किसान संघ- अखिल भारतीय किसान यूनियन
(ii) छात्र संगठन- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्
(iii) व्यापारी संघ- अखिल भारतीय व्यापार मण्डल
(iv) अध्यापक संघ
- अखिल भारतीय अध्यापक परिषद्
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दबाव-समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है?
दबाव समूह और राजनीतिक समूहों में निम्नलिखित अंतर है-
(i) राजनीतिक दल में अनेक नेता होते है जबकि दबाव समूहों का नेतृत्व केवल एक नेता द्वारा होता है।
(ii) राजनीतिक दलों में कुछ चुने हुए लोग ही होते है जबकि दबाव समूहों में पूरा वर्ग शामिल होता है।
(iii) राजनीतिक दल सत्ता में प्रत्यक्ष भूमिका निभाते है और सत्ता पर उनका नियंत्रण होता है इसके विपरीत दवाब समूहों में यह ताकत नहीं होती।
(iv) राजनीतिक दलों के पास शक्ति होती है, इसकी जड़े गहरी होती है जबकि दबाव समूह केवल जनता की शक्ति पर निर्भर करता है।
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दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधो का स्वरूप कैसा होता है, वर्णन करें।
दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते है। सामान्यतः दबाव समूहों का कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं होता न ही
वे देश की सत्ता पर अधिकार जमाना चाहते है। इसके विपरीत राजनीतिक दलों को मुख्य उद्देश्य देश की सत्ता पर अधिकार ज़माने का ही होता है। दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी सम्बन्ध कई रूप धारण कर सकते है। इसमें से कुछ प्रत्यक्ष और कुछ अप्रत्यक्ष भी होते है-
(i) कई बार बड़े आंदोलन, राजनीतिक आंदोलन का रूप धारण कर लेते है इसके राजनीति में उथल-पुथल हो जाती है।
(ii) कई बार दवाब-समूहों राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाये जाते है। उनकी बागडोर राजनीतिक दलों के हाथों में होती है। ऐसी स्थिति में ये राजनीतिक
राजनीतिक दलों के ही विस्तार के रूप में नज़र आते है।
(iii) राजनीतिक दलों को कई बार दबाव-समूहों से नेता प्राप्त होते है।
(iv) काफी विषयों में आंदोलन समूहों द्वारा नये मुद्दे उठाए जाते है जिनको प्रकारांतर में राजनीतिक दल अपना लेते है।
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दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
दबाव समूह और आंदोलन राजनीति को निम्नलिखित तरह प्रभावित करते है-
(i) दबाव समूह और आंदोलन सरकार से अपनी बातें
मनवाने हेतु हड़ताल और आंदोलन करके सरकार के कार्यविधि में बाँधा डालते है।
(ii) विभिन्न दबाव समूह और आंदोलन अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु कई प्रकार के अभियान चलते है, बैठके आयोजित कर जनता का समर्थन पाने की कोशिश करते है। इस प्रकार राजनीति प्रभावित होती है।
(iii) दबाव समूह अपनी बातों को जनता और सरकार तक पहुँचाने के लिए महंगे विज्ञापनों का साहरा भी लेते है और विपक्षी नेताओं को अपने पक्ष में करके उनसे भाषणबाजी भी करवाते है।
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दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती है?
दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में निम्नलिखित प्रकार से उपयोगी होती है:
(i) आंदोलनों के माध्यम से आम जनता सरकार को अपनी समस्याओं से अवगत करवाती है और कुछ विशेष वर्ग के दवाब में आने से रोकती है।
(ii) दबाव-समूह सरकार को निरंकुश होने से रोकते हैं और लोकतंत्र को मजबूत करते हैं।
(iii) दबाव-समूह सरकार को किसी एक हित में कानून बनाने से रोकते हैं।
(iv) ये समाज के विभिन्न समुदयों में संतुलन बनाए रखते हैं।
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