यूकेलिप्टस सोख रही धरती की कोख
Publish Date: Mon, 16 May 2016 12:23 AM (IST)Updated Date: Mon, 16 May 2016 12:23 AM (IST)
बहराइच : कभी दलदली जमीन को सूखी धरा में में बदलने के लिए अंग्रेजों के जमाने में भारत लाया गया यूकेलि
बहराइच : कभी दलदली जमीन को सूखी धरा में में बदलने के लिए अंग्रेजों के जमाने में भारत लाया गया यूकेलिप्टस का पेड़ आज पर्यावरण के लिए मुसीबतों का सबब बनता जा रहा है। जिले में साल दर साल यूकेलिप्टस का रकबा बढ़ रहा है। पेड़ो की बढ़ती संख्या से भूगर्भ के गिरते जलस्तर को थामने की कोशिशों पर भी खतरा मंडराने लगा है।
आर्थिक रूप से काफी उपयोगी होने के कारण किसान अब आम, अमरूद, जामुन, शीशम के बजाय यूकेलिप्टस की बागवानी को अपना रहे हैं। हर प्रकार के मौसम में बढ़वार की क्षमता, सूखे की दशाओं को झेल लेने की शक्ति, कम लागत व आसानी से उपलब्ध हो जाने के कारण किसान तेजी से यूकेलिटस की बागवानी को अपनाते जा रहे हैं। निर्माण कार्यों की इमारती लकड़ी के अलावा फर्नीचर, प्लाईवुड, कागज, औषिधि तेल, ईंधन के रूप में यूकेलिप्टस की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। बाजार में अच्छी मांग होने के कारण लोग दूसरे फलदार पेंड के बागों के बजाय यूकेलिप्टस की खेती को तवज्जो दे रहे हैं। बीते पांच सालों के दौरान ही सैकड़ों हेक्टेयर खेतों में यूकेलिप्टस के बाग लगाए जा चुके हैं। पेंड़ सीधा ऊपर जाने से लोग खेतों की मेड़ों घरों के बगीचों आदि में इसे लगा देते हैं। एक अनुमान के मुताबिक अकेले विशेश्वरगंज ब्लॉक में ही पिछले पांच वर्षों में 200 से अधिक किसान यूकेलिप्टस की बागवानी को अपना चुके हैं। फखरपुर, कैसरगंज, जरवल, तेजवापुर, महसी ब्लॉकों में भी यूकेलिप्टस के पेड़ों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। इसके चलते चंद पैसों का मुनाफा तो जरूर हो रहा है लेकिन पर्यावरण को होने वाली भारी नुकसान की अनदेखी की जा रही है।
तीन गुना अधिक पानी का खर्च
कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमवी ¨सह ने बताते हैं कि यूकेलिप्टस के पेड़ में दूसरे अन्य पेड़ों की अपेक्षा तीन गुना पानी अधिक सोखने की क्षमता होती है। इसके अलावा इनकी पत्तियों से वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया भी तेजी से होती है। जड़े मिट्टी में सीधी बहुत गहराई तक जाकर पानी खींचती हैं। पेड़ों की संख्या अधिक होने पर क्षेत्र के भूगर्भ जलस्तर में कमी आ सकती है। इसके अलावा अनाज उत्पादन वाले खेतों में इसे लगाने से मिट्टी की उवर्रता को भी नुकसान पहुंचता है।
सामान्य जमीन में न लगाएं
विशेषज्ञों के मुताबिक यूकेलिप्टस के पेड़ों को किसान सामान्य खेतों में लगाने से बचें। इसे नहरों के किनारे की जमीन, तालाब, झील, नदियों के किनारे लगाया जा सकता है।
कुल क्षेत्रफल की गणना नहीं
बहराइच डीएफओ अखिलेश पांडेय ने बताया कि कुल वन क्षेत्र की गणना तो की जाती है, इसमें यूकेलिप्टस का अलग से सर्वेक्षण नहीं किया जाता है। इसलिए इसलिए इसके वर्तमान वास्तविक क्षेत्रफल का आंकडा विभाग के पास मौजूद नहीं है। यूकेलिप्टस पेड़ के ज्यादा पानी सोखने में कुछ भी अस्वाभविक नहीं है।
वृक्षों को आतंकी पौधों से है खतरा
Author: JagranPublish Date: Tue, 18 Jul 2017 07:01 PM (IST)Updated Date: Tue, 18 Jul 2017 07:01 PM (IST)
पूर्णिया। जीवन के लिए श्वास की तरह पर्यावरण के लिए वृक्ष जरूरी है। लेकिन वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है जबकि कुछ आतंकी पौधे भी वृक्षों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
पूर्णिया। जीवन के लिए श्वास की तरह पर्यावरण के लिए वृक्ष जरूरी है। लेकिन वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है जबकि कुछ आतंकी पौधे भी वृक्षों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वन और वृक्षों की घट रही संख्या पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। अमेरिका से लाये गये ओरनामेंटल पौधा पारथेनियम (गाजर घास) अन्य पौधों के लिए आतंक बन गये हैं। जंगली भांग, काश-कुश, यूकेलिप्टस आदि पौधे भी अन्य पौधों के लिए खतरा बन गये हैं। सरकारी स्तर पर उसके उन्मूलन का कोई प्रयास नहीं हो रहा है। बीपीएस कृषि कॉलेज के कृषि वैज्ञानिक पंकज कुमार के अनुसार गाजर घास और यूकेलिप्टस जैसे बुरे पौधे पर्यावरण के लिए खतरा हैं। यूकेलिप्टस को तो अंतरर्राष्ट्रीय आतंकी पौधा घोषित किया गया है। ऐसे बुरे पौधों के उन्मूलन किए जाने के लिए अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
जिले में काफी है बुरे पौधों की संख्या--
आकड़ों पर गौर करें तो देश के करीब 35 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर गाजर घास का आच्छादन हो गया है। गाजर घास का एक पौधा अपने जीवन चक्र 3-4 महीने में करीब 10,000 से 25,000 बीज का उत्पादन करता है। सामान्य रूप से इस पौधे में 6 से 55 पत्तियां मिलती हैं। इसके बीज का जीवनकाल औसत 20 वर्ष तक होता है। जिले में भी इसके घास बड़े भू भाग में फैला हुआ है। कृषि एवं वन विभाग के पास इसके आच्छादन का आंकड़ा मौजूद नहीं है लेकिन हर प्रखंड में यह मौजूद है जिसका उन्मूलन किसान अपने स्तर से कर रहे हैं।इसके अलावा जिले में काफी भू भाग में काश एवं कुश के पौधे आच्छादित हैं। खासकर नदी किनारे एवं दियारा क्षेत्र में यह घास काफी मात्रा मौजूद हैं। जंगली भांग, मोथा घास, कच्चू पत्ता भी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।
यूकेलिप्टस के पौधे लगाने पर है रोक--
गाजर घास अन्य पौधों को बढ़ने नहीं देते जिस कारण इसे पौधों का आतंकी कहा जाता है। वहीं युकेलिप्टस के पेड़ को अंतराराष्ट्रीय आतंकी पौधा कहा जाता है। दरअसल यूकेलिप्टस को पेड़ काफी मात्रा में भू-जल का शोँषण करते हैं। इसके जड़ काफी नीचे जाते हैं तथा अन्य पौधों के मुकाबले अधिक जल सोखते हैं। जिस कारण इसके आस पास के पौधों को कम नमी मिल पाती है और वे सूख जाते हैं। इस वजह से इसे लगाने पर रोक लगा दिया गया है।
फसलों एवं स्वास्थ्य को पहुंचाते हैं नुकसान--
गाजर घास, मोथा एवं जंगली घास आदि पौधे फसलों के साथ साथ लोगों और पशुओं के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। अन्य फसलों के मुकाबले इसका विकास दो गुणा होता है। इस वजह से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों का ये पौधे अधिक शोषण करते हैं और फसल की वृद्धि धीमी हो जाती है। ये पौधे दूसरे पौधों के विकास में भी बाधक होते हैं। जिस कारण फसलों का उत्पादन प्रभावित होता है। करीब 40 फीसद फसलों का नुकसान इन घासों से होता है। वहीं गाजर घास मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। इसके कारण लोगों में श्वास की बीमारी उत्पन्न होती है। गाजर घास के फूलों से निकलने वाले कण दमा रोग का कारक हैं। एलर्जी भी इसके कारण होती है। वहीं पशुओ के लिए भी यह खतरनाक है।
Edited By: Jagran