कबीरदास रहीम बिहारीलाल में से किसी एक कवि काव्यात्मक परिचय दीजिए? - kabeeradaas raheem bihaareelaal mein se kisee ek kavi kaavyaatmak parichay deejie?

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कवि परिचय- सूरदास

रचनाएँ- सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी

भावपक्ष- सूरदास जी कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। वे उच्च कोटि के कृष्ण भक्त थे। प्रेम निरूपण सूर की काव्य साधना का मुख्य ध्येय है। सूरदास जी ने विनय, वात्सल्य और श्रृंगार तीनों प्रकार के पदों की रचना की थी। उन्होंने संयोग और वियोग दोनों प्रकार के पद रचे। सूर का वात्सल्य वर्णन हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। बाल रूप के चित्रण में उन्होंने कोना-कोना छान मारा है। राधा और गोपियों के प्रेम-प्रसंग, रास-लीला, मथुरा गमन, कंस वध, व्रज विरह और उपालंभ इनके प्रमुख वर्ण्य विषय हैं।

कलापक्ष- सूरदास की काव्य भाषा ब्रजभाषा है। माधुर्य और प्रसाद उनके मुख्य गुण हैं। सूर के सभी पद गेय हैं। उनकी शैली में भी विविधता है। उन्होंने अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। रस के आयोजन में, अलंकारों के प्रयोग में और भाषा को सजाने-सँवारने में सूर भावी कवियों के पथ प्रदर्शक हैं। सूरदास मानवीय मनोभावों और चित्तवृत्तियों को लोकोत्तर स्वरूप प्रदान कर देते हैं और यही सूरकाव्य लोक और परलोक को एक साथ प्रतिबिंबित करता है।

साहित्य में स्थान- भक्तिकाल के प्रमुख कवि सूरदास अपनी रचनाओं, काव्यकला और साहित्यिक प्रतिभा के कारण निस्संदेह साहित्यकाश के 'सूर' ही हैं। इन सारी विशेषताओं के कारण यह दोहा अक्षरशः सत्य है-

"सूर सूर तुलसी शशि, उडुगन केशवदास,
अब के कवि खद्योत सम, जहँ-तहँ करत प्रकाश।"

कवि परिचय- तुलसीदास

रचनाएँ- रामचरित मानस (महाकाव्य), विनय पत्रिका, जानकी मंगल (खंडकाव्य), पार्वती मंगल (खंड काव्य)

भावपक्ष- तुलसीदास जी का भावलोक अत्यधिक संपन्न है। थोड़े से शब्दों में बहुत से भावों की अभिव्यक्ति कर देना उनके काव्य का वैशिष्ट्य है। राम राज्य की परिकल्पना उनके काव्य का प्रमुख आधार रही है। उन्होंने अपने इष्टदेव राम में शील, शक्ति और सौंदर्य के दर्शन किये हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी जन-जन के मन में बसे हैं। उनके साहित्य में लोकहित, लोक मंगल की भावना सर्वत्र मुखर है। ब्रज और अवधी दोनों भाषाओं का मधुर, सरस और प्रौढ़ रुप तुलसी के काव्य में सहज ही दृष्टव्य है।

कलापक्ष- भावपक्ष के समान ही तुलसी का कलापक्ष भी पर्याप्त समृद्ध है। तुलसी ने अपने समय की सभी काव्य शैलियों में रचनाएँ की। तुलसीदास का अलंकार विधान परम मनोहर है। उनकी उपमाएँ भी बड़ी सुन्दर होती हैं। उनका उपमा अलंकार कहीं रुपक, कहीं उत्प्रेक्षा और कहीं दृष्टान्त बनकर बैठा है। तुलसीदास की प्रतिभा अनुपम है। भावों और रसों का संचार प्रभावी है। आपके काव्य में नवों रसों का परिपाक् स्पष्ट है। छंद योजना में तुलसी ने दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि का सृजन किया है।

साहित्य में स्थान- गोस्वामी तुलसीदास लोककवि हैं। उनके काव्य से जीवन जीने की कला सीखी जा सकती है। तुलसी दास को गौतम बुद्ध के बाद सबसे बड़ा लोक नायक माना जाता है। अयोध्या सिंह हरिऔध ने सच ही कहा है-

"कविता करके तुलसी न लसै,
कविता ली पा तुलसी की कला।"

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कवि परिचय- केशवदास

रचनाएँ- रामचंद्रिका, रसिक प्रिया, कवि प्रिया

भावपक्ष- नीति-निपुण, निर्भीक एवं स्पष्टवादी केशव की प्रतिभा बहुमुखी है। उनकी रचनाओं में उनके आचार्य, महाकवि और इतिहासकार का रूप दिखाई देता है। आचार्य का आसन ग्रहण करने पर इन्हें संस्कृत की शास्त्रीय पद्धति को हिंदी में प्रचलित करने की चिंता हुई, जो जीवन के अंत तक बनी रही। इनके पहले भी रीतिग्रंथ लिखे गए, किंतु व्यवस्थित और सर्वांगीण ग्रंथ सबसे पहले इन्होंने ही प्रस्तुत किए। अनुप्रास, यमक और श्लेष अलंकारों के ये विशेष प्रेमी हैं। इनके श्लेष संस्कृत पदावली के हैं। अलंकार संबंधी इनकी कल्पना अद्भुत है।

कलापक्ष- इनका कवि रूप इनकी प्रबंध एवं मुत्तक दोनों प्रकार की रचनाओं में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। संवादों के उपयुक्त विधान का इनमें विशिष्ट गुण है। मानवीय मनोभावों की इन्होंने सुंदर व्यंजना की है। संवादों में इनकी उक्तियाँ विशेष मार्मिक हैं तथापि प्रबंध के बीच अनावश्यक उपदेशात्मक प्रसंगों का नियोजन उसके वैशिष्ट्य में व्यवधान उपस्थित करता है। इनके प्रशस्ति काव्यों में इतिहास की सामग्री प्रचुर है। मध्यकाल में किसी के पाण्डित्य अथवा विद्वता की परख की कसौटी थी- केशव की कविता। केशव यदि 'रसिक प्रिया' जैसी भाषा लिखते रहते तो ये 'कठिन काव्य के प्रेत' कहलाने से बच जाते।

साहित्य में स्थान- कल्पना शक्ति संपन्न और काव्यभाषा में प्रवीण होने पर भी केशव पाण्डित्य प्रदर्शन का लोभ संवरण नहीं कर सके।

कवि परिचय- मीराबाई

रचनाएँ- नरसी जी रो माहेरो, गीत गोविंद की टीका, राग गोविंद

भाव पक्ष- मीराबाई हिंदी की भक्त कवयित्री थीं। उनकी भक्ति में एकाग्रता है। उनके अनुसार संसार निरर्थक है। अतः इससे अधिक अनुराग नहीं करना चाहिए, जबकि हरि अविनाशी हैं। इसी भाव से उन्होंने अपने प्रियतम रुपी इष्ट देव की उपासना की। मीरा ने अपनी भक्ति भावना को पदों में व्यक्त किया है। उनके सभी पद माधुर्य भाव से ओतप्रोत हैं। 'मेरे तो गिरधर-गोपाल दूसरो न कोई' कहकर मीरा ने कृष्ण के प्रति अपने समर्पण भाव को व्यक्त किया है। भक्ति का यह भी एक लक्षण है।

कला पक्ष- मीरा के पद राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा में हैं। उनके सभी पदों में आलंबन गिरधर गोपाल हैं। वियोग श्रृंगार का चित्रण उनके पदों में सहज ही देखा जा सकता है। मीरा के पदों में प्रसाद और माधुर्य गुणों की प्रधानता है। मीरा ने शुद्ध साहित्यिक भाषा का नहीं बल्कि जन भाषा का प्रयोग किया है। मीरा के पद गेय हैं। इनमें विभिन्न अलंकारों की छटा देखी जा सकती है। मीरा ने मुक्त भाव से सभी भक्ति संप्रदायों से प्रभाव ग्रहण किया है। इनका विरह पक्ष साहित्य की दृष्टि से मार्मिक है।

साहित्य में स्थान- भक्तिकाल के स्वर्ण युग में मीरा के भक्ति भाव से संपन्न पद आज भी अलग ही जगमगाते दिखाई देते हैं।

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कवि परिचय- कबीर दास

रचनाएँ- बीजक- साखी, सबद और रमैनी इसके तीन भाग हैं।

भावपक्ष- कबीर शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा अनुभव को महत्व देते हैं। उन्होंने माना ब्रह्म एक है, जो कुछ भी दृश्य है वह माया है, मिथ्या है। उन्होंने माया का मानवीकरण कर उसे कंचन और कामिनी का पर्याय माना। उनका ईश्वर निर्विकार और अरूप है। उसे अवतार में प्रतिष्ठित न कर उन्होंने प्रतीकों में स्थापित किया। ब्रह्म को पति रूप मानने पर आत्मा उसकी प्रेयसी बन जाती है। प्रीयतम और प्रेयसी के इसी संबंध में जो दांपत्य प्रेम लक्षित है, वही कबीर का रहस्यवाद है। कबीर ज्ञान की उत्कृष्टा में विश्वास रखते थे। वे समाज सुधारक और क्रांतिधारी युगद्रष्टा थे।

कलापक्ष- कबीर की काव्य शैली में सहजता, सजीवता और निर्द्वन्द्वता है। इनकी कविता में विरोधाभास, दुर्बोधता और व्यंग का तीखापन विद्यमान है। कबीर के काव्य में सहज ही अलंकारिता व्याप्त है। उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति, सांगरूपक, अन्योक्ति, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास आदि अलंकारों की प्रचुरता है। कबीर ने दोहा, पद और चौपाई छंदों का प्रयोग किया है। कहरवा छंद भी प्रयुक्त हुआ है। आध्यात्म का मर्म समझाने के लिए उन्होंने रूपक और प्रतीकों के साथ उलटबांसी का प्रयोग किया।

साहित्य में स्थान- समाज सुधारक और युग निर्माता कबीर हिंदी काव्य जगत में सदैव सादर स्मरण किए जायेंगे। वे सच्चे अर्थों में आदर्श कवि हैं।

कवि परिचय- मैथिलीशरण गुप्त

रचनाएँ- साकेत (महाकाव्य), पंचवटी (खण्डकाव्य), जयद्रथ-वध (खण्डकाव्य)

भावपक्ष- गुप्त जी ने अपने साहित्य से राष्ट्रीय चेतना जाग्रत की। गुप्त जी भारतवासियों में एकता स्थापित करने तथा सद्भाव, सौजन्य व सौहार्द्र विकसित करने के लिए आजीवन साहित्य रचना करते रहे। उनका काव्य रामभक्ति एवं राष्ट्रभक्ति का अनूठा संगम है। वे पूर्णतः मानवतावादी थे। विश्व-प्रेम एवं लोक-सेवा के माध्यम से उन्होंने अपने काव्य में इसी विचारधारा को व्यक्त किया है। काव्यों में उन्होंने मंगलाचरण के रूप में राम की स्तुति की है। गुप्त जी का हृदय राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत है।

कलापक्ष- राष्ट्रकवि गुप्त जी ने खड़ी बोली में काव्य रचना की है। यमक, अनुप्रास, श्लेष, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, विभावना, अपन्हुति आदि अलंकारों का प्रयोग आपके काव्य में हुआ है। रोला, छप्पय, सवैया, दोहा व हरीगीतिका छंद का उपयोग भी आपने किया है। आपकी भाषा परिमार्जित, व्याकरण सम्मत तथा प्रवाहमयी है। आपके काव्य में ओज, प्रसाद तथा माधुर्य की त्रिवेणी प्रवाहित है। आपने अपने काव्य में प्रमुखतः भावात्मक शैली का प्रयोग किया है।

साहित्य में स्थान- गुप्त जी हिंदी साहित्याकाश में सर्वत्र अग्रणी कवि हैं। अपने काव्य में शाश्वत मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा से ही वे राष्ट्र कवि के सम्मान से विभूषित किए गए।

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कवि परिचय- जयशंकर प्रसाद

रचनाएँ- कामायनी (महाकाव्य), आँसू, झरना, लहर

भावपक्ष- प्रसाद जी के साहित्य में नैतिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना का समावेश है। उन्होंने भारतीय अतीत के गौरवपूर्ण रूप को अपने साहित्य में उभारा है। उनके साहित्य में उत्साह और उमंग का आलोक है। प्रेम करुणा तथा सौंदर्य की स्निग्ध आभा है। उनके कावय में सर्वत्र एक गहन वेदना की अभिव्यक्ति मिलती है। भावानुभूति के साथ-साथ प्रसाद जी की कविताओं में कल्पना की अधिकता भी है। उनके काव्य में प्रकृति के सभी मनोहारी रूपों का बड़ा ही रमणीय चित्रण हुआ है। इनका काव्य अपनी अद्भुत छटा बिखेरता हुआ भ्रमित मनुष्यों का पथ प्रदर्शन कर रहा है।

कलापक्ष- प्रसाद जी की भाषा में सहज प्रवाह तथा काव्य सौंदर्य है। रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, संदेह, विरोधाभास आदि अलंकारों के साथ-साथ मानवीयकरण का सफल प्रयोग उन्होंने किया है। उनके गीतों में गेयता, सरसता, अनुभूति की गहनता, संक्षिप्तता तथा प्रभावोत्पादकता विद्यमान है। प्रबंध काव्य में रसपूर्णता, छंद विविधता तथा कथा-क्रम का पूर्ण निर्वाह है। भावों की गहराई और कवि कौशल के कारण प्रसाद जी की लाक्षणिक और व्यंजनामयी भाषा में चित्रोपमता आ गई है।

साहित्य में स्थान- हिंदी के छायावादी कवियों में प्रसाद जी का प्रमुख स्थान है। अपनी बहुमुखी तथा सर्वतोन्मुखी प्रतिभा से प्रसाद जी ने हिंदी साहित्य में एक नूतन युग का आरंभ किया।

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क कबीरदास रहीम बिहारीलाल में से किसी एक कवि का काव्यात्मक परिचय दीजिए?

अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना या रहीम, एक मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न था।

कबीरदास का काव्यात्मक परिचय दें अथवा?

कबीरदास या कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिक्खों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

कबीरदास का काव्यात्मक?

कबीर की रचनाओं के अनेक रूप मिलते हैं, जैसे साखी, शबद, रमैनी, उलटभाषी तथा वसंत। साखी का मूल शब्द है, साक्षी अर्थात देखा हुआ। कबीर की रचनाओं में कई दोहे हैं जिनके विषय में कहा जाता है कि उनकी रचना उन्होंने तब की जब उन्होंने ऐसा कुछ देखा जिसने उनके मन-मस्तिष्क में अनेक विचार उत्पन्न किये।

कबीर का साहित्यिक परिचय देते हुए भक्ति साहित्य में उनका स्थान निर्धारित कीजिए?

कबीरदास का साहित्यिक परिचय ( Kabirdas Ka Sahityik Parichay ) - Dr. Charan's Competition Platform.

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