पल्लवन से आप क्या समझते हैं पल्लवन की विशेषताएं लिखिए? - pallavan se aap kya samajhate hain pallavan kee visheshataen likhie?

पल्लवन का अर्थ एवं परिभाषा

  • पल्लवन का अर्थ एवं परिभाषा
  • पल्लवन की विशेषताएँ
  • पल्लवन के प्रकार (भेद)
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पल्लवन का अर्थ एवं परिभाषा

‘प्रसार अर्थ- ‘पल्लवन’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘विस्तार करना’, ‘फैलाना’, ‘प्रवर्धन’, ‘प्रसार’ ‘विस्तृति’, ‘परिवर्तन’, ‘विशदीकरण’, ‘पल्लव उत्पन्न करना’ अर्थात् ‘विषय का विस्तार करना’ आदि ‘पल्लवन’ का अर्थ है किसी कथन, सूक्ति, विचार-सूत्र, लघु प्रोक्ति या वाक्य-बंध को विभिन्न  उद्धरणों और प्रमाणों द्वारा विस्तार से स्पष्ट करना। अर्थात् ‘किसी भावपूर्ण संक्षिप्त कथन का विस्तारपूर्वक अर्थ लिखना।ट यह ‘संक्षेपण’ का विलोम है। इसे ‘विस्तारण’, ‘भाव-विस्तार’, ‘विचार-विस्तार ‘विशदीकरण’, ‘पल्लवन’ और ‘वृद्धिकरण’ भी कहते हैं। ‘पल्लवन’ को ‘एप्लिफिकेशन’ (Amplification) अथवा ‘एक्सपैंशन’ (Expansion) कहते हैं।

‘परिभाषा– ‘संक्षेपण’ की तरह ‘पल्लवन’ भी हिन्दी के लिए नवागन्तुक है। हिन्दी में यह अंगरेजी भाषा के आया है। इस कारण अभी तक इस पर विद्वानों द्वारा यथेष्ट विचार-विमर्श नहीं हुआ है। पल्लवन एक छोटा-सा सारगर्भित निबन्ध हैं। इसे हम अँगरेजी शब्दावली में ‘मिनिएचर एस्से’ (Miniature Essay) और हिन्दी में ‘लघु निबन्ध’ कह सकते हैं। नीचे हम कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं, जिनसे पल्लवन के स्वरूप को समझने में सहायता मिलेगी-

“किसी सुगठित एवं गुंफित विचार अथवा भाव के विस्तार को ‘पल्लवन’ कहते हैं।” डॉ. वासुदेवनन्दन प्रसाद

“किसी सूक्ति, भावपूर्ण वाक्यांश या वाक्य, लोकोक्ति, कथन आदि में विविध भावों को विस्तार देकर लिखना विस्तारण या भाव-विस्तारण है।” – डॉ. कैलाशचन्द्र भाटिया एवं सुमनसिंह

“सूत्ररूप में या संक्षेप में व्यक्त भाव या विचार के विस्तार को ‘पल्लवन’ कहते हैं।” – डॉ. द्वारिकाप्रसाद सक्सेना

“किसी सूक्ति, सुभाषित अथवा सुसंगठित तथा सुगुम्फित विचार वाले आदर्श वाक्य के मूल भाव का तर्कसम्मत शैली में विभिन्न उदाहरणों, विवरणों और दृष्टान्तों द्वारा किया गया परिवर्द्धन या पल्लवन ही विस्तारण है।” डॉ. ईश्वरदत्त ‘शील’

“किसी सुगठित एवं गूढ़ विचार अथवा भाव के विस्तार को पल्लवन या विस्तारण कहते हैं।”- डॉ. उमेश चन्द्र मिश्र

निष्कर्षतः कह सकते हैं कि किसी सूत्र-वाक्य, कहावत, काव्य-पंक्ति, सूक्ति, वाक्यबंध, सुभाषित अथवा सुसंगठित एवं सुगुम्फित मूल भाव या विचार की तर्कपूर्ण शैली में विविध उपमाओं, दृष्टान्तों, उद्धरणों से संपुष्टि और संवर्धन ‘भाव-पल्लवन’ कहलाता है।

पल्लवन की विशेषताएँ

संरक्षण की भाँति पल्लवन भी एक कला है। एक अच्छे भाव-पल्लवन में अधोलिखित विशेषताओं का होना अपेक्षित है-

1. भाव-पल्लवन में भावों या विचारों की पूर्णता होनी चाहिए।

2. इसमें भावों एवं विचारों को क्रमबद्ध और एक सूत्र रूप में रखना आवश्यक है।

3. पल्लवन में उद्धरणों, दृष्टान्तों और अलंकारों का समुचित प्रयोग किया जाता है।

4. इसमें भाव-प्रधान और अर्थमयी भाषा का प्रयोग होता है।

5. पल्लवन में विवेचनात्मक, भावात्मक, विचारात्मक शैली के अतिरिक्त प्रत्यक्ष और व्यास का भी शैली प्रयोग होता है।

6. विषय के मूल भाव को स्पष्ट करने हेतु इसमें विस्तार का होना अनिवार्य है।

पल्लवन के प्रकार (भेद)

पल्लवन के विविध रूप प्रचलित हैं। पल्लवन के लिए कभी एक शब्द, कभी दो या दो से -अधिक शब्द, कभी एक वाक्य या वाक्य-बन्ध, कभी एक लोकोक्ति या मुहावरा, कभी वार्ता या वार्ता का शीर्षक दिया जाता है। इस आधार पर पल्लवन को हम छह भागों में विभाजित कर सकते है-

1. किसी एक शब्द का पल्लवन यथा— पंचायत, सूर्यग्रहण, वसंत, पुस्तकालय, प्रतिभा, मितव्ययिता, सहकारिता आदि।

2. दो या दो से अधिक शब्दों का पल्लवन- यथा मानसिक संकीर्णता, प्रातःकाल का दृश्य, राजकीय प्रयोजन, वैधानिक व्यवस्था, परीक्षा का माध्यम, राष्ट्रहित की सिद्धि आदि ।

3. किसी एक वाक्य या वाक्य-बांध का पल्लवन- गरीबी हमारा मानसिक रोग है, बैर क्रोध का आचार या मुरब्बा है, श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है, मानव के साथ दुःख सुख का भी जन्म होता है, किंकर्तव्यविमूढ़, आपादमस्तक, अपरिग्रह आदि।

4. किसी लोकोक्ति या मुहावरे का पल्लवन- यथा होनहार बिरवान के होत चीकने पात, समरथ को नहिं दोष गुसाईं, भइ गति साँप-छछूंदर केरी, शौकीन बुढ़िया चटाई का लहँगा, जाके पाँव न फटी बिवाई सो का जानै पीर पराई, कबीरदास की उल्टी बानी बरसे कम्बल भीगे पानी, गढ़े मुर्दे उखाड़ना, ईंट से ईंट बजाना, उल्टी गंगा बहाना, घर का न घाट का, फलना फूलना आदि।

5. किसी कथा या वार्ता की रूपरेखाओं का पल्लवन– यथा— किसी जंगल में शेर का रहना ….. उसका प्रतिदिन जानवरों को मारकर खाना….. जानवरों की सभा करना….. लोमड़ी का शेर के पास जाना…… शेर का कुएँ में झाँकना……उसका कुएँ में गिर कर मर जाना। किसी गाय का जंगल की ओर जाना…..रास्ते में हलवाई की दुकान पड़ना …. गाय का हलवाई की दुकान की ओर मुँह करना……हलवाई का गाय को मारना …..गाय का हलवाई की दुकान को नष्ट करना आदि।

6. किस कथा या वार्ता के शीर्षक का पल्लवन- यथा— नल-दमयन्ती, पन्नाधाय का त्याग, सावित्री और सत्यवान्, रुक्मिणी हरण, लोमड़ी और सारस, बन्दर और मगर, खरगोश और कछुआ आदि ।

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पल्लवन से आप क्या समझते हैं पल्लवन की विशेषताएं?

किसी निर्धारित विषय जैसे सूत्र-वाक्य, उक्ति या विवेच्य-बिन्दु को उदाहरण, तर्क आदि से पुष्ट करते हुए प्रवाहमयी, सहज अभिव्यक्ति-शैली में मौलिक, सारगर्भित विस्तार देना पल्लवन (expansion) कहलाता है। इसे विस्तारण, भाव-विस्तारण, भाव-पल्लवन आदि भी कहा जाता है।

पल्लवन क्या है इसकी आवश्यकता एवं विशेषताएँ लिखिए?

pallavan. जब किसी विचार को कम-से-कम शब्दों में प्रकट किया जाता है या उसे सूक्तियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो उसके अर्थ को ग्रहण करने में कठिनाई होती है। ऐसी स्थिति में इस बात की आवश्यकता होती है कि उन पंक्तियों को व्याख्यायित किया जाए, ताकि उन्हें सरलता से समझा जा सके।

पल्लव से आप क्या समझते हैं?

मामल्ल शैली- इस शैली का प्रमुख केंद्र मामल्लपुरम था। मामल्ल शैली के मंडप अपने स्थापत्य के लिए भी प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी की चट्टानों पर गंगावतरण, शेषशायी विष्णु, महिषासुर वध,वराह अवतार और गोवर्धन धारण के दृश्य बड़ी सजीवता और सुंदरता के साथ उत्कीर्ण किए गए हैं। मामल्ल शैली के रथ 'सप्त पैगोड़ा'के नाम से प्रख्यात हैं

संक्षेपण क्या है इसकी विशेषताएं बताइए?

संक्षेपण अथवा सार-लेखन (अंग्रेज़ी: Précis) का आशय है किसी अनुच्छेद, परिच्छेद, विस्तृत टिप्पणी अथवा प्रतिवेदन को संक्षिप्त कर देना। किसी बड़े पाठ (निबन्ध, लेख, शोध प्रबन्ध आदि) में मुख्य विचारों, तर्कों आदि को लघुतर आकार में प्रस्तुत करना संक्षेपण (critical précis writing) कहलाता है।

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