बच्चों की गलतियां क्या बताती हैं? - bachchon kee galatiyaan kya bataatee hain?

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बच्चे को उसकी गलतियां कबूल करना सिखाएं (Teach the child to accept his mistakes)

छोटे बच्चे “क्यों” सवालों के जवाब देने में बहुत अच्छे नहीं होते हैं इसलिए गलती होने के बाद अगर आप उनसे “क्यों” पूछते है, तो गलत जवाब मिलता है। इसके बजाय उनसे ये दो सवाल पूछें “आपने क्या किया?” (ऐसे में वे जिम्मेदारी का दावा कर सकते हैं) और “क्या हुआ जो आपने यह किया?” (ताकि वे समझ सकें कि उनके कार्यों की प्रतिक्रिया हुई है)। जब वे इन सवालों का जवाब देते हैं, तो वे अपनी गलती मानकर उसका जवाब दे सकते हैं।

उन्हें आगे देखना सिखाएं

अपने बच्चों को सिखाएं कि गलती अंत नहीं है, यह सीखने की शुरुआत है। जैसे कि अगर आपके बच्चे को एक टेस्ट में खराब ग्रेड मिले हैं, तो शायद उन्हें लंबे समय तक पढ़ाई करने, एक्सट्रा हेल्प लेने या अलग तरीके से पढ़ने की जरूरत होती है। उन्हें उनकी गलतियों को ठीक करने के अलग-अलग तरीकों के बारे में सोचने के लिए मदद करें।

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बच्चों की गलतियां (Share your mistakes with them) मानने की आदत है सही

बच्चों का गलतियां करना आसान है लेकिन उसे मानना उनके लिए मुश्किल हो सकता है। इसलिए जब आपका बच्चा सच्चाई के साथ आपके पास आए, तो उनकी सराहना करें। ऐसा करने से आगे आने वाले समय में जब भी आपका बच्चे से कुछ गलत होगा, तो वह आपके पास मदद के लिए आएगा।

अपने बच्चों को सीखाना कि कैसे अपनी गलतियों को गले लगाना भी काफी मुश्किल हो सकता है। हम इस प्रक्रिया में गलतियां भी कर सकते हैं। लेकिन इससे घबराएं नहीं बल्कि अपने बच्चे को समझाएं। बच्चों की गलतियां (Children’s mistakes) कई बार उनके लिए भी शर्मनाक हो सकती है इसलिए आपको उन्हें कंफर्टेबल फील कराने की जरूरत है।

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परिस्थितियों के आधार पर कुछ माता-पिता अपने बच्चे को सांत्वना देकर अपने बच्चे की गलतियों पर प्रक्रिया देते हैं। वहीं दूसरे लोग इस बात पर ध्यान देते हैं कि बच्चे ने क्या गलत किया है या चिंता करते हैं कि उनका बच्चा अच्छा नहीं कर रहा है। कुछ मामलों में माता-पिता अपने बच्चे से नाराज हो सकते हैं।

अपने बच्चों की गलतियों पर नाराज होना आम बात है लेकिन इसके बाद आपके बच्चों को आपकी जरूरत होती है। अपने बच्चे को आश्वस्त करें कि उनके साथ आप हमेशा है। आप उनको यह बताएं कि आपके पास उनकी भावनाओं और विचारों के बारे में बात करने के लिए हमेशा समय है। उन्हें बताएं कि अपनी गलती मानना गलत नहीं है और वह अपनी गलती के बारे में आपसे बात कर सकते हैं।

उम्मीद करते हैं कि आपको बच्चों की गलतियां (Children’s mistakes) कैसे सुधारनी हैं इससे संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

जब बच्चे गलतियाँ करते हैं या कुछ गलत करते हैं, तब सच्चा रास्ता यह है की आप उनसे मित्र की जैसे बात करे की, बेटा, आप जो यह कर रहे हो उसके लिए आपने सोचा है?‘ और क्या ऐसा आपको ठीक लगता है? अब यदि वह कहे कि ‘मुझे ठीक नहीं लगता!’ तो फिर आपको उनसे पूछना चाहिए कि ‘तो आप ऐसा क्यों करते रहते हो?’ वे निर्णय लेने और समझने में सक्षम हैं। जब वे कब कुछ गलत करते हैं तो खुद समझते तो हैं ही। लेकिन जब आप उनकी निंदा करने लगोगे, तब वे सामने हो जाएँगे। और क्रोधित हो जाएँगे।

इस तरह बात करनी चाहिए कि जिससे सामनेवाले का अंहकार खड़ा ही न हो। जब आप अपने बच्चों के साथ बात करें तब आदेशात्मक लहज़े में न बोलें। बल्कि इस तरह से बात करें जो उन्हें उनकी गलतियों से सीखने में मदद करें। जब परम पूज्य दादाश्री लोगों से बात करते हैं तो किसी के अहंकार को ठेस नहीं पहुँचती क्योंकि उनकी वाणी अंहकार रहित होती है और उनके शब्द आदेशात्मक नहीं होते।

परम पूज्य दादाश्री बताते हैं कि, बच्चों को पंद्रह साल की उम्र तक इच्छानुसार ढ़ाला जा सकता है।

यहाँ बच्चों की गढ़ाई के कुछ तरीके दिए गए हैं ताकि वे अपने बचपन की गलतियों से सीख सकेः

  • उनका प्रेम और विश्वास जीतने के लिए उनकी बातों को सुने और अपनी सहमती में कुछ कहें अथवा मौन रहें परंतु किसी निष्कर्ष पर ना पहुँचे। और दैनिक बातचीत में उनका विरोध न करें जैसेः
    1. जब बच्चा स्कूल से आए और कहे कि-‘ओह, आज मैं बहुत थक गया हूँ और इतना सारा होमवर्क करना है,’ तो बस इतना ही कहो ‘ओह!, आज तुम्हारा दिन बहुत व्यस्त रहा!’
    2. जब कभी बच्चा गुस्से में या गुस्से के मूड़ में आए और कहे कि- ‘ओह!, मुझे तो वह पसंद ही नहीं है हमेशा धोखा देती है।’ तब सिर्फ इतना ही कहना ‘अरे, मुझे भी कोई धोखा दे वह पसंद नहीं है।’ ऐसा कहने के बजाय हम कभी-कभी आवेश में आकर उन्हें डाँटने लगते हैं कि ‘देखो, तुम्हें धोखा नहीं देना चाहिए’, अथवा ‘तुम भी पहले ऐसा ही करते थे।’
  • अपने चेहरे के हावभाव बिगाड़े बिना डाँटें। बच्चों को डाँटना भी एक कला है। अपने चेहरे के भावों को खुश रखें और फिर डाँटे! यदि आप ऐसा कर सकते हो, तो इसका मतलब है कि आप नाटकीय रुप से डाँट रहे हो। और इससे उसके अहंकार को दु:ख नहीं होगा, लेकिन उससे बच्चो को सही बात समझ में आएगी। दूसरी ओर, यदि डाँटते समय आपका मुँह बिगड़ जाए तो इसका मतलब यह है कि आप जो डाँटते हो वह आप अहंकार करके डाँटते हो। और इससे उनमें बदले की भावना पैदा होती है।
  • बिना पूर्वाग्रह के डाँटना उपयोगी है। बच्चों से आप ऐसा कहें, ‘तुम मुझे हमेशा परेशान करते हो!’ ‘तुम मेरी बात कभी नहीं सुनते!’ ‘मैं तुमसे कुछ भी कहना नहीं चाहती!’ ओर ऐसा तो बहु कुछ, तो ये सब ‘एक्सट्रा आइटम्स’ हैं जो उनके प्रति आपके पूर्वाग्रह को दर्शाते हैं जब वे गलती करते हैं।
  • अपने बच्चों को कभी कोई लेबल या टैग नहीं दे जैसे-‘तुम मूर्ख हो’, ‘तुम हमेशा लापरवाही करते हो, ‘तुम हमेशा धोखा देते हो’, ‘तुम कभी पढ़ाई नहीं करते’, ‘तुम कोई काम के नहीं हो’, ‘तुम मोटे हो’ आदि। आपके द्वारा किया गया व्यवहार क्षणिक है, लेकिन आपके द्वारा दिया गया लेबल हमेशा उनके साथ रहेगा। इस तरह के नेगेटिव शब्द हमेशा उन्हें दुखी करते हैं जिसके कारण वे अपनी गलतियों से कभी नहीं सीख पाएँगे।
  • जब भी आप कोई महत्वपूर्ण बात कहना चाहते हैं तो घटना के तुरंत बाद न कहें बल्कि कम से कम २४ घंटे परिस्थिति के सामान्य होने का इंतजार करें। इससे आप बिना भावुक हुए परिस्थिति को संभाल सकेंगे।
  • जिन्हें आप गलती मानते हैं वे साधारण आवश्यकताएँ हैं। दैनिक जीवन में छोटी-छोटी बातें जैसे कि रूम को साफ न रखना, जल्दी नहीं उठना, गलतियाँ नहीं कहलाती। ऐसी बातें जो उसके चरित्र या उसके भविष्य को प्रभावित करें वे गलती कहलाएगी। और उसके लिए भी आपको रोज़ कहने की जगह सिर्फ महीने में एक बार बोलना चाहिए। और इसे हर दिन नहीं कहेना चाहिए।

नीचे दिए गए संवाद द्वारा परम पूज्य दादाश्री ने यह समझाया है कि - बच्चों से किस तरह बात करें ताकि एक संतुलित व्यक्ति के रूप में उनका विकास हो सके।

बच्चों का पालन-पोषण प्रेम से करें

प्रश्नकर्ता : व्यवहार में कोई गलत कर रहा हो तो उसे टोकना पड़ता है, तो उससे उसे दुख होता है। तो वह किस तरह उसका निकाल करें?

दादाश्री : टोकने में हर्ज नहीं है, पर हमें आना चाहिए न! कहना आना चाहिए न, क्या?

प्रश्नकर्ता : किस तरह?

दादाश्री : बच्चे से कहें, ‘तुझमें अक्कल नहीं, गधा है।’ ऐसा बोलें तो फिर क्या होगा, वहाँ। उसे भी अहंकार होता है या नहीं? आपको ही आपका बोस कहे कि ‘आपमें अक्कल नहीं, गधे हो।’ ऐसा कहे तो क्या हो? नहीं कहते ऐसा। टोकना आना चाहिए।

प्रश्नकर्ता : किस तरह टोकना चाहिए?

दादाश्री : उसे बैठाओ। फिर कहो, हम हिन्दुस्तान के लोग, आर्य प्रजा अपनी, हम कोई अनाड़ी नहीं और अपने से ऐसा नहीं होना चााहिए। ऐसा-वैसा सब समझाएँ और प्रेम से कहें तब रास्ते पर आएगा। नहीं तो आप तो मार, लेफ्ट एन्ड राइट, लेफ्ट एन्ड राइट ले लो तो चलता होगा?

परिणाम प्रेम से किए बिना आता नहीं। एक पौधा भी पालना-पोसकर बड़ा करना हो तो भी प्रेम से करते हो, तो बहुत अच्छा उगता है। पर वैसे ही पानी डालो न, और चीखो-चिल्लाओ तो कुछ नहीं होता। एक पौधा बड़ा करना हो तो! आप कहते हो कि ओहोहो, बहुत अच्छा हुआ पौधा। तो उसे अच्छा लगता है! वह भी अच्छे फूल देता है बड़े-बड़े!! तो फिर ये मनुष्य को तो कितना अधिक असर होता होगा?

चिढ़ने से अगले भव (जन्म) के लिए पाप कर्म बंधते हैं।

प्रश्नकर्ता : संसार में रहने के बाद कितनी ही जिम्मेदारियाँ पूरी करनी पड़ती है और जिम्मेदारियाँ अदा करनी, वह एक धर्म है। उस धर्म का पालन करते हुए, कारण या अकारण कटुवचन बोलने पड़ते हैं, तो वह पाप या दोष माना जाता है? ये संसारी धर्मों का पालन करते समय कड़वे वचन बोलने पड़ते हैं, तो वह पाप या दोष है?

दादाश्री : ऐसा है न, कड़वा वचन बोलें, उस समय हमारा मुँह कैसा हो जाता है? गुलाब के फूल जैसा, नहीं? अपना मुँह बिगड़े तो समझना कि पाप लगा। अपना मुँह बिगड़े ऐसी वाणी निकली, वहीं समझना कि पाप लगा। कड़वे वचन नहीं बोलते। धीरे से, आहिस्ता से बोलो।

थोड़े वाक्य बोलो, पर आहिस्ता रहकर, समझकर कहो, प्रेम रखो, एक दिन जीत सकोगे। कड़वे से जीत नहीं सकोगे। पर वह सामने विरोध करेगा और उल्टे परिणाम बांधेंगा। वह बेटा उल्टा परिणाम बांधेगा। ‘अभी तो छोटी उम्र का हूँ, इसलिए मुझे इतना झिड़कते हैं। बड़ी उम्र का हो जाऊँगा तब वापिस दूँगा।’ ऐसे परिणाम अंदर बांधता है। इसलिए ऐसा मत करो। उसे समझाओ। एक दिन प्रेम जीतेगा। दो दिन में ही उसका फल नहीं आएगा। दस दिन, पंद्रह दिन, महीने तक प्रेम रखा करो। देखो, उस प्रेम का क्या फल आता है, वह तो देखो!

प्रश्नकर्ता : हम अनेक बार समझाएँ, फिर भी वह न समझे तो क्या करें?

दादाश्री : समझाने की ज़रूरत ही नहीं है। प्रेम रखो। फिर भी हम उस समझाएँ धीरे से। अपने पड़ोसी को भी ऐसा कड़वा वचन बोलते हैं हम?

माता-पिता को अपना रोल पूरी तरह निभाना चाहिए

दादाश्री : एक बैंक मेनेजर ने मुझसे कहा, दादाजी, मैंने तो कभी भी वाइफ या बच्चों को एक अक्षर भी नहीं बोला है। चाहे कितनी भी भूल करें, कुछ भी करें, लेकिन मैं कुछ नहीं कहता।’

वह ऐसा समझा होगा कि दादाजी मेरी बहुत तारीफ करेंगे। वह क्या आशा करता था समझ में आया न? और मुझे उसके ऊपर बड़ा गुस्सा आया कि तुझे किस ने बैंक का मैनेजर बनाया? तुझे बाल-बच्चे सम्हालना नहीं आता और बीवी सम्हालना नहीं आता! तब वह तो घबरा गया बेचारा। उल्टा मैंने उसे कहा, आप अंतिम प्रकार के बेकार आदमी हो! आप इस दुनिया में किसी काम के नहीं हो!’ वह आदमी मन में समझ रहा था कि मैं ऐसा कहूँगा तो ‘दादा’ मुझे बड़ा इनाम देंगे। पगले, इसका इनाम होता होगा? बच्चा गलत करे तब हमें ‘तूने ऐसा क्यों किया? फिर ऐसा मत करना।’ इस तरह नाटकीय रूप से कहना चाहिए; नहीं तो बच्चा समझेगा कि वह जो कुछ कर रहा है वह ‘करेक्ट’ ही है, क्योंकि पिता ने ‘एक्सेप्ट’ किया है। ऐसा नहीं बोलने के कारण ही घरवाले मुँहफट हो गए। सब कुछ कहना, लेकिन नाटकीय! हमें अपना रोल बिना किसी राग-द्वेष के पूरी तरह निभाना चाहिए।

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