Ameter Ko Kis Kram Me Joda Jata Hai
Pradeep Chawla on 12-05-2019
सम्बन्धित प्रश्न
Comments Meghraj on 11-12-2020
Amita ko shreni kram mein kaise jodte hain
Swana on 23-10-2020
Volet meter kis karm meh jode jate h
Rai varma on 14-10-2020
Ammeter hamesha.... Me joda jata hai. Ek वोल्ट meter....हमेशा में joda jata hai
Shaktipal Shaktipal on 28-08-2020
Vaidhut flux ka sutra
Puspendar Gurjar on 29-06-2020
Kisi bidut pripat me amitar ko joda jata h kis kir me
Puspendar Gurjar on 29-06-2020
Kisi Vidyut paripath Mein Amita ko Joda jata hai
Kaushl raj on 24-06-2020
Aamiter ko samanter krm me jorrne se kundali jal jati hai kyu
Yaman sahu on 05-02-2020
Ameter ko kis karn me joda jata he
Yaman sahu on 05-02-2020
Ameter or voltrametr ko koi karn me joda jata he
Deepanshu on 17-01-2020
Voltmeter ko Kisse jodte hai
Samina on 07-01-2020
voltmeter ए मीटर परिपथ में कैसे जोड़े जाते हैं
Sagar Roy on 13-12-2019
Amita ko Hamesha Shreni kram mein aur voltmeter ko samantar kram Mein Joda Jata Hai Kyon
Shivam raj on 05-12-2019
Amita ko Shreni kram Mein Kyon jodte Hain
shobha kumari on 17-11-2019
Ammeter or voltmeter ko Vidyut paripath ke sath gramsabha Shreni kram aur samantar kram mein Kyon Joda jata hai
Voltmeter ko kis krm me jodrte hai on 11-11-2019
Voltmeter ko Kis kram Mein Joda jata hai
Pratirodh ka SI unit kya hai on 11-11-2019
Pratirodh ka SI unit kya hai
Harmish on 04-11-2019
Ameter ko shreni karm me joda jata kyu
S on 02-11-2019
Ammeter ko series me kyu connect karte hai
Nikita on 09-10-2019
Agr a meter ko smantar kram me jod dete h to ameter jal kyu jata h
Rinku on 20-09-2019
Volt meter ko kis kram me jodte hai
Rahul yaduvanshi on 25-08-2019
अमीटर को परिपथ में किस क्रम में जोड़ा जाता है आर क्यों ?
Shivendra on 22-08-2019
A miter ka difference our paribhasa
चौधरी संजय on 06-08-2019
अमीटर को सीरीज में क्यो जोड़ा जाता है
shailendar kumar class 12th on 12-05-2019
Kya karng hai ki amiter ko vidhut pripath se shengi kram me joda jata hai kyo.
Ritesh gangle on 12-05-2019
Camper meter ko series me kyo lgate he?
Vi sharma on 10-03-2019
Gharelu paripath me pratirodh kis kram me jude rahte hai
Shriram yadav on 31-01-2019
Amiter ko kis varg Karm me Joda jata hai
Jagdish Lodha on 09-09-2018
Ek Adarsh voltmeter pratirodh kya hai
manoj on 24-08-2018
dori konsi rasi hai
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Latest RRB Group D Updates
Last updated on Nov 2, 2022
The RRB Group D Results are expected to be out soon! The Railway Recruitment Board released the RRB Group D Answer Key on 14th October 2022. The candidates will be able to raise objections from 15th to 19th October 2022. The exam was conducted from 17th August to 11th October 2022. The RRB (Railway Recruitment Board) is conducting the RRB Group D exam to recruit various posts of Track Maintainer, Helper/Assistant in various technical departments like Electrical, Mechanical, S&T, etc. The selection process for these posts includes 4 phases- Computer Based Test Physical Efficiency Test, Document Verification, and Medical Test.
जिस धारा को नापना है, उसे वहन करने वाला तार
स्प्रिंग रोटर की गति का विरोध करते हुए बल लगाती है
अमीटर, जिसका शून्य बीच में है।
ऐमीटर या 'एम्मापी' (ammeter या AmpereMeter) किसी परिपथ की किसी शाखा में बहने वाली विद्युत धारा को मापने वाला यन्त्र है। बहुत कम मात्रा वाली धाराओं को मापने के लिये प्रयुक्त युक्तियोंको "मिलिअमीटर" (milliameter) या "माइक्रोअमीटर" (microammeter) कहते हैं।
अमीटर की सबसे पुरानी डिजाइन डी'अर्सोनल (D'Arsonval) का धारामापी या चलित कुण्डली धारामापी था।
अमीटर के बारे में मुख्य बातें[संपादित करें]
- जिस शाखा में बहने वाली धारा मापनी हो, उस शाखा को तोड़कर उसके श्रेणीक्रम (सीरीज) में अमीटर लगाया जाता है।
- इसका प्रतिरोध न्यूनतम (आदर्श रूप में शून्य) होना चाहिये।
- धारामापी (गैल्वानोमीटर) को अमीटर में बदलने के लिये उसके कुण्डली के समान्तर क्रम में एक छोटा प्रतिरोध (या शन्ट) डाला जाता है।
- किसी अमीटर की परास (रेंज) बढ़ानी हो तो भी उसके समानतर क्रम में शन्ट लगाया जाता है।
- आजकल आंकिक (डिजिटल) एमीटर प्रचलित हो गये हैं।
- अमीटर के श्रेणीक्रम में प्रतिरोध जोड़ कर इससे विभवानतर माप सकते हैं।
प्रकार[संपादित करें]
- चल कुण्डल ऐमीटर (Moving-coil ammeters)
- विद्युत् गतिकीय ऐमीटर (Electrodynamic ammeters)
- चल लोह ऐमीटर (Moving-iron ammeters)
- तप्त-तार ऐमीटर (Hot-wire ammeters)
- आंकिक ऐमीटर (Digital ammeters)
- समाकलनी ऐमीटर (Integrating ammeters)
चलकुंडल धारामापी (Moving Coil Galvanometer)[संपादित करें]
सन् १८२० ई. में ऐंपियर ने आविष्कार किया कि यदि किसी चालक (तार) को, जिसमें विद्युतधारा प्रवाहित हो, चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाए, तो उसपर एक बल कार्य करता है। इस बल का मान चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता, धारामान और चालक की लंबाई के गुणनफल के बराबर होता है। इस बल की दिशा फ्लेमिंग (Fleming) के बाएँ हाथ वाले नियम से ज्ञात की जाती है। अपने बाएँ हाथ का अँगूठा, उसके पास की उँगली (तर्जनी) और बीच की उँगली मध्यमा का इस प्रकार फैलाएँ कि वे तीनों एक दूसरे के लंबरूप रहें। यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में और मध्यमा विद्युत्धारा की दिशा में संकेत करें, तो चालक की गति अँगूठे की दिशा में होगी।
चुंबकीय क्षेत्र में रखी हुई किसी कुंडली में जब विद्युत्धारा प्रवाहित होती है, तो कुंडली पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है, जिसस वह घूमने लगती है। इस सिद्धांत को काम में लाकर जो धारामापी बनाए गए, हैं उन्हें चलकुंडल धारामापी कहते हैं। इसमें एक आयताकार कुंडली होती है, जिसमें पतले और विद्युतरोधित (insulated) ताँबे के तार के बहुत चक्कर होते हैं। यह कुंडली फास्फार ब्रांज की बहुत पतली पत्ती द्वारा एक पेंच से लटकी रहती है, कुंडली का एक सिरा इसी पत्ती से जुड़ा रहता है और पत्ती का संबंध धारामापी के ए संयोजक पेंच से होता है। इस पत्ती में एक वृत्ताकार समतल या नतोदर दर्पण भी लगा रहता है, जो पत्ती के साथ साथ घूमता है। कुंडली का दूसरा सिरा धातु की एक सर्पिल कमानी से जुड़ा रहता है, जिसका संबंध दूसरे संयोजक पेंच से होता है। यह कुंडली एक शक्तिशाली स्थायी नाल चुंबक के ध्रुवों के बीच में लटकी रहती है। चुंबक के ध्रुव नतोदर बेलनाकार आकृति में कटे रहते हैं। एक नर्म लोहे का छोटा सा बेलन दोनों ध्रुवखंडों के बीच में कुंडली के भीतर एक पेच द्वारा धारामापी की पीठ में कसा रहता है। ये सब वस्तुएँ एक अचुंबकीय बक्स में बंद रखी जाती हैं। बक्स के सामने के भाग में काँच लगा रहता है, जिससे दर्पण का विक्षेप लैंप तथा पैमाना विधि से नापा जा सके। जब कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तब कुंडली के दो भुजाओं पर बलयुग्म कार्य करता है और कुंडली को उसकी स्थिरावस्था से घुमा देता है, जिससे फॉस्फॉर ब्रांज की पत्ती और नीचे की सर्पिल कमानी में ऐंठन आ जाती है और ए ऐंठन बल युग्म कुंडली पर विपरीत दिशा में कार्य करने लगता है। जिससे कुंडली शीघ्र ही संतुलन में आ जाती है। यदि कुंडली का विक्षेप कोण थ हो, तो धारामान (धा) निम्न सूत्र से निकलता है :
धा = क थअर्थात् धारामान विक्षेप कोण का समानुपाती होता है। ये धारामापी अत्यंत स्थायी और यथेष्ट सुग्रांहक होते हैं। इनसे १०-१० ऐंपियर तक की धारा नापी जा सकती है। चलकुंडल धारामापी मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं :
- (१) मृत-स्पंद (Dead-beat)
- (२) प्रक्षेप धारामापी (Ballistic galvanometer)।
मृत-स्पंद धारामापी (Dead-beat Galvanometer)[संपादित करें]
इसमें कुंडली एक धातु के ढाँचे पर लपेट दी जाती है, जिससे धारा प्रवाहित होने पर कुंडली विक्षेपित हो शीघ्र स्थिर हो जाती है। जैसे ही कुंडली घूमती है, उसमें और उसके धातु के ढांचे में भंवर धाराएँ उत्पन्न होती हैं और कुंडली को रोक देती हैं। कुंडली दोलन नहीं करती, इसी से इस यंत्र को मृत-स्पंद कहते हैं। धारा के हटते ही कुंडली अपनी पूर्व स्थिति में पहुँच जाती है। अतएव धारा का मान कुंडली की पूर्वस्थिति तथा धारा प्रवाहित होने पर की स्थिति के ज्ञान से बड़ी सरलता से ज्ञात किया जा सकता है।
प्रक्षेप धारामापी (Ballistic Galvanometer)[संपादित करें]
इस धारामापी में कुंडली एक अचालक ढाँचे पर बँधी रहती है और इस कारण उसमें भंवर धारा नहीं उत्पन्न होती। अत: कुंडली के विक्षेप में बहुत कम प्रतिरोध पड़ता है। कुंडली धातु के ढाँचे पर आविष्ट न होने से धारा प्रवाहित किए जाने पर, अपनी विक्षेपस्थिति के दोनों ओर दोलन करती है। यह अति सूक्ष्मग्राही होता है और क्षणिक आवेश को भी बड़ी सुगमतापूर्व इससे हम ज्ञात कर सकते हैं।
विद्युत् गतिकीय ऐमीटर[संपादित करें]
चल लोह ऐमीटर[संपादित करें]
एक पुराना चल-लोह अमीटर
इसका स्केल अरैखिक है।
ये दो प्रकार के होते हैं : आकर्षणवाले तथा प्रतिकर्षणवाले।
आकर्षण प्ररूप (Soft iron, Attraction type)[संपादित करें]
विद्युत्रोधी तारों की एक स्थिर कुंडली से यदि विद्युत्धारा प्रवाहित हो, तो कुंडली के बीच में और आसपास में भी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस कुंडली के पास यदि कच्चे लोहे का एक टुकड़ा लटका दिया जाए, तो वह कुंडली की ओर आकर्षित हो जाता है। इस लोहे के टुकड़े में अगर एक संकेतक लगा हो, तो संकेतक भी विक्षेपित हो जाएगा। यदि कोई ऐसी व्यवस्था हो कि लोहे के टुकड़े पर जो आकर्षण बल है उसके विपरीत बल लगाकर उसे संतुलन में लाया जा सके, तो धारा का मान संकेतक के विक्षेप से पता चल सकेगा। बहुधा एक सर्पिल कमानी द्वारा इस आकर्षणबल का विरोध किया जाता है। आकर्षण बल धारा-मान के वर्ग के समानुपाती होता है। इसलिए संकेतक का विक्षेप भी धारा मान के वर्ग के समानुपाती होगा। इसी कारण यह प्रत्यावर्ती धारा का मान भी ज्ञात कर सकता है।
प्रतिकर्षण प्ररूप (Soft iron, Repulsion type)[संपादित करें]
विद्युतरोधी तारों के कई चक्कारों की स्थिर कुंडली के बीच, दो नरम लोहे के पतले छड़ कुंडली के अक्ष के समांतर लगे हैं। एक छड़ तो स्थिर रहता है, दूसरा एक संकेतक से जुड़ा है जो स्वयं एक कील पर लगा है। संकेतक का दूसरा सिरा एक डायल (Dial) पर घूमता है। जब कुंडली में धारा प्रवाहत होती है, तब दोनों छड़ एक ही प्रकार के प्रेरित चुंबक हो जाते हैं। चुंबकीय नियमों के अनुसार उनमें प्रतिकर्षण होतो है और संकेतक से जुड़ा लोहा घूम जाता है, जिससे संकेतक में विक्षेप होता है। इसमें भी विक्षेपणकोण धारामान के वर्ग का समानुपाती होता है। ये यंत्र अत्यंत सरल और सस्ते होते हैं। जब नापने में बहुत यथार्थता की आवश्यकता नहीं होती और अनेक पुष्ट यंत्रों की आवश्यकता होती है, तब इसी सिद्धांत पर बने अमीटर (ammeter) और वोल्टमापी (volmeter) प्रयोग में लाए जाते हैं। बिजली घरों में स्विचबोर्ड पर नर्म लोहे के यंत्रों का ही प्रयोग अधिकतर होता है। प्रेरित चुंबक में आकर्षण या प्रतिकर्षण धाराप्रवाह की दिशा पर निर्भर नहीं होता। बल धारामान के वर्ग का समानुपाती होता है। इस कारण धारा प्रवाह की दिशा कुछ भी हो, बल की दिशा एक ही होती है। इन्हीं कारणों से ये यंत्र दिष्ट धारा अथवा प्रत्यावर्तीं धारा दोनों को नापने के प्रयोग में लाए जाते हैं। कुंडली के प्रेरकत्व के कारण ये उच्च आवृत्ति की प्रत्यावर्तीं धारा के मापनकार्य में नहीं प्रयुक्त किए जा सकते।
तप्त-तार ऐमीटर[संपादित करें]
इस प्रकार के ऐमीटर विद्युत्धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर निर्भर होते हैं। जब धारा किसी चालक से प्रवाहित होती है, तब वह चालक तप्त हो जाता है। उत्पन्न ऊष्मा का मान (धारा)२ x (प्रतिरोध) के समानुपाती होता है। यदि धारा ऐंपियर में और प्रतिरोध ओम में हो, तो
ऊष्मा = (धा)२ (प्रतिरोध) जूल प्रति सेकंड (वाट)ऊष्मा का मान धारामान के वर्ग के समानुपाती होता है, अर्थात् धारा की दिशा पर निर्भर नहीं हैं। इसलिए ऐसे ऐमीटर दिष्टधारा अथवा प्रत्यावर्ती धारा दोनों ही के नापने के प्रयोग में लाए जा सकते हैं। इस प्रभाव का प्रयोग मापनविधि में दो प्रकार से किया गया है :
- (१) जनित ऊष्मा के कारण तार में प्रसार होता है, जिसके कारण संकेतक में विक्षेप होता है,
- (२) जनित ऊष्मा से एक तापयग्म का संगम गरम किया जाता है, जिसके कारण तापयुग्म में विद्युत् वाहक बल उत्पन्न होता है और किसी दूसरे दिष्ट धारामापी में धारा प्रवाहित करता है।
पहले प्रकार का यंत्र सबसे पहले १८८३ में मेजर कारड्यू (Major Cardew) ने बनाया था। हार्टमान-ब्रॉन (Hartman Braun) ने इसमें सधार किया। तार में धारा बहती है और तप्त होने के कारण उसमें प्रसार होता है। इस समय तार के बीच में जुड़ी हुई कमानी तार को खींचती है और घिरनी प्रसार के अनुसार घूम जाती है। साथ ही साथ घिरनी में लगा संकेतक भी विक्षेपित होता है और धारा का मान डायल पर दर्शित करता है। धारा की अनुपस्थिति में तार ठंढा हो कर सिकुड़ता है और संकेतक फिर अपनी पूर्व दशा में आ जाता है। ऐसे धारामापी सरल और सस्ते होने के कारण बहुत प्रयोग में लाए गए हैं।
इनमें कुंडली नहीं होती, इस कारण उनमें प्रेरकत्व नहीं होता और उच्च आवृत्ति की प्रत्यावर्तीं धारा भी नापी जाती है, परंतु ये पर्याप्त रूप से यथार्थ नहीं होते और अधिक मात्रा की धारा को सहन करने में असमर्थ होते हैं। इनसे अधिक सुविधाजनक और यथार्थ तापयुग्म वाले धारामापी होते हैं। आजकल उच्च आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा का मापन अधिकतर उन्हीं यंत्रों से होता है। धारा तार से प्रवाहित होकर उसे तप्त करती है। इस तार से जुड़े हुए तांबा कान्सटैंटन तापयुग्म का संगम भी गरम होता है। इस कारण तापयुग्म में ताप के अनुपात में विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। यह एक दिष्ट धारामापी में धारा प्रवाहित करता है। इसके डायल (dial) में अंशांकन (caIibration) रहने पर वह पहली प्रत्यावर्ती धारा का मान प्रदर्शित करता है।
आंकिक ऐमीटर[संपादित करें]
== समाकलनी ऐमीटर ==hiiuu
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- धारामापी (Galvanometer)
- बहुमापी (Multimeter)
- ओममापी (Ohmmeter)
- वोल्टमापी (Voltmeter)