42वें संविधान संशोधन अधिनियम (सीएए) के बारे में
- यह इंदिरा गांधी सरकार के दौरान अधिनियमित किया गया था। इसे संविधान में सर्वाधिक विवादास्पद संशोधनों में से एक कहा जाता है क्योंकि इसने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की शक्ति को कम करने एवं कई अन्य सामाजिक-राजनीतिक स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध आरोपित करने लगाने का प्रयास किया।
- इसने संविधान के मूल ढांचे को परिवर्तित करने का प्रयास किया। 42वें संशोधन द्वारा समाविष्ट किए गए प्रमुख संशोधनों की एक सूची नीचे दी गई है:
42वें संशोधन द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमुख संशोधनों की सूची:
सूची में मात्र वे संशोधन समावेशित हैं जो अभी भी संविधान का भाग हैं एवं न्यायपालिका अथवा संसद द्वारा निरस्त नहीं किए गए हैं।
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संशोधन | प्रमुख विवरण |
प्रस्तावना | प्रस्तावना में तीन शब्द ‘समाजवादी‘, ‘धर्मनिरपेक्ष‘ और ‘अखंडता‘ जोड़े गए |
भाग VI के अंतर्गत जोड़े गए नए निर्देश | डीपीएसपी की विद्यमान सूची में तीन नए डीपीएसपी जोड़े गए एवं एक में संशोधन किया गया:
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सातवीं अनुसूची के अंतर्गत समवर्ती सूची | राज्य सूची से पांच विषयों को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया:
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नया भाग IV ए (अनुच्छेद 51 ए) जोड़ा गया | नागरिकों के लिए 10 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए। (नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को 1976 में सरकार द्वारा गठित स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर जोड़ा गया था)। *11वां मौलिक कर्तव्य 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था: माता-पिता अथवा अभिभावक को अपने बच्चे या, जैसा भी मामला हो, छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चे को शिक्षा का अवसर प्रदान करना है)। |
भाग XIV ए (अनुच्छेद 323 ए एवं 323 बी) जोड़ा गया | ‘प्रशासनिक न्यायाधिकरण’ एवं ‘अन्य विषयों के लिए अधिकरण’ का प्रावधान किया |
अनुच्छेद 74(1) में संशोधन किया | राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने हेतु । इसे 44वें संशोधन द्वारा संशोधित किया गया था जिसमें यह प्रावधान था कि राष्ट्रपति एक बार पुनर्विचार के लिए सलाह हेतु वापस भेज सकते हैं। किंतु, पुनर्विचार के पश्चात दी गई राय राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी होगी। |
अनुच्छेद 102 (1) (ए) में संशोधन किया | यह उपबंध करने के लिए कि यदि कोई व्यक्ति भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का ऐसा कोई पद धारण करता है, जिसे संसदीय विधि द्वारा अनर्ह घोषित किया गया है, तो उसे अनर्ह घोषित कर दिया जाएगा, यह शक्ति राज्य विधानमंडल के स्थान पर संसद में निहित होगी। |
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980
महत्त्वपूर्ण संविधान संशोधन भाग-2
- 03 Jun 2020
- 10 min read
39वाँ संशोधन अधिनियम, 1975:
- कारण
- यह संशोधन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले की प्रतिक्रिया के संदर्भ में लाया गया था जिसमें न्यायालय ने समाजवादी नेता राजनारायणा की याचिका पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लोकसभा में निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया था।
- संशोधन
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित विवादों को न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार से बाहर किया गया।
- यह तय किया गया कि इनसे संबंधित विवादों का निर्धारण संसद द्वारा सुनिश्चित किये गए प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा।
- नौंवी अनुसूची में कुछ केंद्रीय अधिनियमों को जोड़ा गया।
42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976:
- संशोधन
- यह सबसे महत्त्वपूर्ण संशोधन है इसे लघु संविधान के रूप में भी जाना जाता है तथा इसने स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों को प्रभावी बनाया।
- संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष तथा अखंडता तीन नए शब्दों को जोड़ा गया।
- एक नये भाग-iv (क) में नागरिकों के लिये मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया।
- कैबिनेट की सलाह मानने के लिये राष्ट्रपति को बाध्य कर दिया गया।
- प्रशासनिक अधिकरणों तथा अन्य मामलों के लिये अधिकरणों की व्यवस्था की गई। (भाग (xiiv) (क) जोड़ा गया)
- वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर वर्ष 2001 तक लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की सीटों की संख्या को निश्चित कर दिया गया।
- संवैधानिक संशोधन को न्यायिक जाँच से बाहर किया गया।
- SC और HC के न्यायीक समीक्षा तथा रिट (writ) न्यायक्षेत्र की शक्तियों में कटौति की गई।
- लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल में 5 से 6 वर्ष की बढ़ोतरी की गई।
- यह व्यवस्था की गई कि DPSP के क्रियान्वयन हेतु बनाए गए कानूनों को इस आधार पर अवैध करार नहीं दिया जा सकता है कि ये कानून मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं।
- संसद को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से निपटने के लिये विधि बनाने की शक्तियाँ दी गई तथा यह स्पष्ट किया गया कि ये कानून मौलिक अधिकारों से प्रभावित नहीं होगें।
- तीन नये नीति-निदेशक तत्व जोड़े गए ये हैं- समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों की सहभागिता, पर्यावरण संरक्षण तथा संवर्द्धन और वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण करना।
- भारत के किसी भाग में राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा की व्यवस्था की गई।
- किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधि को एक-बार में 6 माह से बढ़ाकर एक वर्ष तक कर दिया गया।
- किसी भी राज्य में कानून और व्यवस्था की गंभीर स्थिति से निपटने के लिये केंद्र को सशस्त्र बलों को भेजने का अधिकार/शक्तियाँ दी गई।
- पाँच विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में भेजा गया। ये हैं- शिक्षा, वन, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नापतौल एवं न्याय प्रशासन, उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों को छोड़कर अन्य सभी न्यायालयों का गठन एवं संगठन।
- संसद एवं राज्य विधानसभाओं से कोरम की आवश्यकता की समाप्ति की गई।
- अखिल भारतीय विधि सेवा के सृजन की व्यवस्था की गई।
- जाँच के पश्चात् दूसरे चरण में प्रतिनिधित्व करने के किसी सिविल सेवक के अधिकार को हटाकर अनुशासनात्मक कार्यवाही की प्रक्रिया को छोटा कर दिया गया (प्रस्तावित दंड के संदर्भ में)
43वाँ संशोधन अधिनियम, 1997:
- संशोधन
- न्यायीक समीक्षा तथा रिट जारी करने के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायिक क्षेत्रधिकारों को पुनःस्थापित कर दिया गया।
- राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के संदर्भ में विधि बनाने की संसद की विशेष शक्तियों को समाप्त कर दिया।
44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978:
- संशोधन
- लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं के वास्तविक कार्यकाल को पुनःस्थापित कर दिया गया (अर्थात् पुनः 5 वर्ष कर दिया गया।)
- संसद एवं राज्य विधानमंडलों में कोरम की व्यवस्था को पूर्ववत रखा गया।
- संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ को हटा दिया गया।
- संसद एवं राज्य विधानमंडलों की कार्यवाहियों की खबरों को समाचार पत्रों में प्रकाशन को संवैधानिक संरक्षण दिया गया।
- कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिये एक बार लौटाने/ वापस भेजने की राष्ट्रपति को शक्तियाँ दी गई। परंतु पुनर्विचारित सलाह को राष्ट्रपति को मानने के लिये बाध्य कर दिया गया।
- अध्यादेशों को जारी करने के संदर्भ में राष्ट्रपति, राज्यपालों एवं प्रशासकों की अंतिम संतुष्टि वाले उपबंध को समाप्त कर दिया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की कुछ शक्तियों को पुनः बहाल कर दिया गया।
- राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में ‘आंतरिक अशांति’ शब्द के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द को रखा गया।
- राष्ट्रपति द्वारा कैबिनेट की लिखित सिफारिश के आधार ही राष्ट्रीय आपात की घोषणा करने की व्यवस्था की गई।
- राष्ट्रपति शासन तथा राष्ट्रीय आपातकाल के संदर्भ में कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा (सेफगार्ड्स) के उपाय किये गये।
- मौलिक अधिकारों की सूची में संपत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा उसे केवल एक विधिक अधिकार के रूप में रखा गया।
- अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान निलंबित नहीं किये जा सकने की व्यवस्था की गई।
- उस उपबंध को हटा दिया गया जिसने न्यायपालिका की राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों पर निर्णय देने की शक्ति छीन ली थी।
50वाँ संशोधन अधिनियम, 1984:
- संशोधन
- संसद को खुफिया संगठनों या सशस्त्र बलों या खुफिया सूचना हेतु स्थापित दूरसंचार प्रणालियों में कार्य करने वाले व्यक्तियों के मौलिक अधिकारेां को प्रतिबंधित करने की शक्ति दी गई।
52वाँ संशोधन अधिनियम, 1985:
- कारणः
- ‘दल-बदल’ तथा आया राम और गया राम’ राजनीति को रोकने के लिये।
- संशोधन
- संसद तथा विधानमंडलों के सदस्यों को दल-बदल के आधार पर अयोग्य ठहराने की व्यवस्था की गई तथा इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी के लिये एक नई अनुसूची (दसवीं अनुसूची) जोड़ी गई।
58वाँ संशोधन अधिनियम, 1987:
- संशोधन
- राष्ट्रपति को संविधान का प्राधिकृत हिंदी पाठ प्रकाशित कराने का अधिकार दिया गया (अनुच्छेद 394)।
61वाँ संशोधन अधिनियम, 1989:
- संशोधन
- लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं के चुनावों में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
65वाँ संशोधन अधिनियम, 1990:
- संशोधन
- SC और ST के लिये राष्ट्रीय आयोग में विशेष अधिकारी के स्थान पर एक बहुसदस्यीय राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था की गई। (SC अनुसूचित जाति। ST अनुसूचित जनजाति।)
69वाँ संशोधन अधिनियम, 1991:
- संशोधन
- केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को विशेष दर्जा देते हुए उसे ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ बनाया गया।
- दिल्ली के लिये 70 सदस्यीय विधानसभा तथा 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद की व्यवस्था भी की गई।
71वाँ संशोधन अधिनियम, 1992:
- संशोधन
- कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। इसके साथ ही अनुसूचित भाषाओं की संख्या 18 हो गई।