(योग साधना का वास्तविक उद्देश्य क्या है) - (yog saadhana ka vaastavik uddeshy kya hai)

<<   |   <   |  | &amp;nbsp; &lt;a target="_blank" href="//literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/February/v2.9" title="Next"&gt;&lt;b&gt;&amp;gt;&lt;/b&gt;&lt;i class="fa fa-forward" aria-hidden="true"&gt;&lt;/i&gt;&lt;/a&gt; &amp;nbsp;&amp;nbsp;|&amp;nbsp;&amp;nbsp; &lt;a target="_blank" href="//literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/February/v2.21" title="Last"&gt;&lt;b&gt;&amp;gt;&amp;gt;&lt;/b&gt;&lt;i class="fa fa-fast-forward fa-1x" aria-hidden="true"&gt;&lt;/i&gt; &lt;/a&gt; &lt;/div&gt; &lt;script type="text/javascript"&gt; function onchangePageNum(obj,e) { //alert("/akhandjyoti/1952/February/v2."+obj.value); if(isNaN(obj.value)==false) { if(obj.value&gt;0) { //alert("test"); //alert(cLink); location.replace("/hindi/akhandjyoti/1952/February/v2."+obj.value); } } else { alert("Please enter a Numaric Value greater then 0"); } } <div style="float:right;margin-top:-25px"> </div> </div> <br> <div class="post-content" style="clear:both"> <div class="versionPage"> <p class="ArticlePara"> योग का अर्थ है मिलना, जुड़ना। दो वस्तुएं जब आपस में मिलती हैं तो कहा जाता है कि इनका योग हो गया। दो और चार का योग छः है। दवाओं के नुस्खों को योग कहते हैं क्योंकि उनमें कई चीजों का संमिश्रण होता है। आध्यात्मिक भाषा में योग उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके आधार पर दो प्रमुख आध्यात्मिक तत्वों का मिलन होता है। मस्तिष्क और हृदय को, माया और मुक्ति को, पाप और पुण्य को, मन और आत्मा को एक सूत्र में बाँध देने, एक केन्द्र पर केन्द्रीभूत कर देने, द्वैत मिट कर अद्वैत बन जाता है और विछोह दूर होकर एकीकरण का ब्रह्मानन्द प्राप्त होने लगता है। </p><p class="ArticlePara"> योग का कार्य है जोड़ना, मिलाना। आत्मा और परमात्मा को मिलाने वाले जितने भी साधन, उपाय, मार्ग हैं, वे सब आध्यात्मिक भाषा में योग कहे जावेंगे। योगों की संख्या असीमित है। भारतीय योग शास्त्रों में सब मिला कर लगभग 6000 योग साधन अब तक देखे जा चुके हैं, शोध करने पर उनकी संख्या अभी इससे कई गुनी अधिक निकलेगी। संसार के विविध देशों धर्मों और विज्ञानों के अनुसार योगों की संख्या इतनी बड़ी है कि उनकी गणना करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। इतना होते हुए भी इन समस्त योगों का उद्देश्य एवं कार्य एक ही है। वे सभी पृथकता को मिटा कर एकता की स्थापना करते हैं। अभाव को भाव से, अपूर्णता से मिलने की विद्या योग कही जाती है। जीव अपूर्ण है, अभाव ग्रस्त है, दुख द्वन्द्वों से आच्छादित हो रहा है इसको पूर्णता से, साधनों से, ज्ञान से, आनन्द से, परिपूर्ण बनने के लिए जो उपाय काम में लाये जाते हैं वे योग कहलाते हैं। </p><p class="ArticlePara"> योग साधना सबसे बड़ी, सबसे महत्वपूर्ण विद्या है। क्योंकि उसके द्वारा उन वस्तुओं की प्राप्ति होती है जो मनुष्य के लिए सबसे अधिक आवश्यक, सबसे अधिक उपयोगी है। जिस उपाय से जितने बड़े लाभ की प्राप्ति होती है वह उतना ही बड़ा लाभ समझा जाता है। अन्य अनेक साँसारिक चतुरताओं, शक्ति सत्ताओं द्वारा जो लाभ प्राप्त किये जाते हैं वे भौतिक और क्षणिक होते हैं। उनके द्वारा केवल साँसारिक वस्तुएं किसी हद तक प्राप्त की जाती हैं किन्तु योग के द्वारा जो वस्तुएं प्राप्त की जाती हैं वे अधिक ऊँची श्रेणी की होती हैं, उनमें अधिक स्थायित्व होता है उनके द्वारा मनुष्य को सुख भी अधिक ऊँची श्रेणी का, अधिक ऊँची मात्रा में प्राप्त होता है, इसलिए योग को सर्वश्रेष्ठ विद्या माना गया है। </p><p class="ArticlePara"> साँसारिक योग्यताओं तथा शक्तियों द्वारा धन, स्त्री, पुत्र, पद, वैभव, स्वास्थ्य, विद्या आदि को प्राप्त किया जा सकता है। पर इन चीजों की प्राप्ति होने पर भी न तो मनुष्य को तृप्ति मिल सकती है और न अभाव जन्य दुखों की निवृत्ति होती है। क्योंकि वस्तुओं में सुख तभी तक दिखाई पड़ता है जब तक वे प्राप्त होवें। पर थोड़ा बहुत रस उनमें तब तक रहता है जब तक कि उस वस्तु के प्रति आकर्षण की मात्रा विशेष रहती है, जैसे ही वह आकर्षण पड़ा कि वह वस्तु भार, निरर्थक, उपेक्षणीय एवं तुच्छ प्रतीत होने लगती है। फिर उसकी ओर से मन हट जाता है और नई वस्तु में सुख तलाश करने लगता है। यह क्रम चलता ही रहता है, प्राप्ति के साथ साथ तृष्णा बढ़ती है। फलस्वरूप कितनी ही बड़ी मात्रा में, कितनी ही उत्तम वस्तुओं की प्राप्ति हो जाय मनुष्य को संतोष नहीं हो सकता और संतोष के बिना शान्ति असम्भव है। </p><p class="ArticlePara"> सच्ची शान्ति तब मिलती है जब वह वस्तु मिल जाय जिसके बिछुड़ने से आत्मा को बेचैनी रहती हो। वह वधू जिसका हृदयेश्वर प्राण पति बिछुड़ गया है तब तक चैन नहीं पा सकती जब तक उसको अपने बिछुड़े हुए साथी की प्राप्ति न हो जाय। वह माता जिसका बालक खो गया है तब तक चैन से न बैठेगी जब तक अपने बालक को पाकर उसे छाती से न लगा ले। वियोगिनी माता, या विरहिनी वधू को उनके प्रियजन प्राप्त न हो जायं। यदि अन्य वस्तुएँ देकर उनके बिछोह के दूर करने का प्रयत्न किया जावे तो सफलता न मिलेगी। वे किसी अन्य वस्तु को लेकर संतुष्ट न हो सकेंगी। यही बात आत्मा की है। वह परमात्मा के वियोग में अतृप्त, बेचैन, विरहिनी बनी हुई है। हमारा मन उसके सामने तरह तरह के प्रलोभनकारी खेल खिलौने उपस्थित करके बहलाना चाहता है; उसके वियोग को भुलाना चाहता है पर आत्मा की बेचैनी वैसी नहीं है जो इन खेल खिलौनों से दूर हो सके। फलस्वरूप सुख शान्ति के लिए कितनी श्री, समृद्धि, कीर्ति, शक्ति एकत्रित कर ली जाय, पर आत्मा का असंतोष दूर नहीं होता। बेचैनी मिटती नहीं। अशान्त आत्मा को लोक और परलोक में कहीं भी सुख नहीं मिलता। </p> </div> <br> <div class="magzinHead"> <div style="text-align:center"> <a target="_blank" href="//literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/February/v2.1" title="First"> <b>&lt;&lt;</b> <i class="fa fa-fast-backward" aria-hidden="true"></i></a> &nbsp;&nbsp;|&nbsp;&nbsp; <a target="_blank" href="//literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/February/v2.7" title="Previous"> <b> &lt; </b><i class="fa fa-backward" aria-hidden="true"></i></a>&nbsp;&nbsp;| <input id="text_value" value="8" name="text_value" type="text" style="width:40px;text-align:center" onchange="onchangePageNum(this,event)" lang="english"> <label id="text_value_label" for="text_value">&nbsp;</label><script type="text/javascript" language="javascript"> try{ text_value=document.getElementById("text_value"); 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योग साधना का उद्देश्य क्या है?

जीवन को सफल बनाने और सार्थक करने के अनेक तरीके लोगों के बीच प्रचलित हैं।। इनमें एक सबसे सुगम विधि है-योगाभ्यास। जीवन को सफल बनाने और सार्थक करने के अनेक तरीके लोगों के बीच प्रचलित हैं।।

योग साधना का मतलब क्या होता है?

योग-दर्शन में चित्तवृत्तियों को नियंत्रित करने को ही योग साधना माना गया है। योग को साधने वाला योग साधक कहा जाता है और अन्य क्षेत्रों में जो साधना करता है, वह उस क्षेत्र विशेष का साधक माना जाता है। बहरहाल, कई वर्षो से साधना का मतलब आमतौर पर योग साधना से लगाया जाने लगा है

योग साधना कितने प्रकार की होती है?

घेरण्ड संहिता में हठयोग की साधना के सात अंगों का जिक्र मिलता है। ये हैं : षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधि। महर्षि पतंजलि के योग को ही अष्टांग योग या राजयोग कहा जाता है। इसके आठ अंग होते हैं।

योग साधना कैसे की जाती है?

योगियों का ध्यान सूर्य के प्रकाश की तरह होता है..
प्रार्थना से करें शुरुआत- अब आप साफ वातावरण में कुश के आसन पर बैठें. ... .
शरीर की हलचलों को नजरअंदाज करें- ... .
पूरा ध्यान साँसों पर केन्द्रित करें- ... .
महसूस होने के लिए तैयार हों-.

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