विश्व में प्राकृतिक और भौगोलिक विविधता के साथ-साथ राजनैतिक संरचना में भी भिन्नता है। राजतंत्र, तानाशाही सत्ता में केन्द्रीकरण के उदाहरण हैं, जबकि प्रजातंत्र और लोकतंत्र में जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन किया जाता है। भारत लोकतंत्रात्मक गणराज्य है, जिसमें शासन प्रणाली एक लिखित संविधान पर आधारित है। संविधान सभा द्वारा विरचित संविधान 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकृत किया गया और 26 जनवरी, 1950 को प्रवृत्त हुआ। संसदीय शासन प्रणाली में शासन की व्यवस्था के तीनों आधार स्तंभ क्रमश: कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका स्वतंत्र होते हैं।
केन्द्र में कार्यपालिका की शक्तियां राष्ट्रपति तथा राज्यों में राज्यपाल में निहित होती हैं, तथा वे इसका सीधा उपयोग न करते हुए मंत्रि परिषद् की सलाह से कार्य करते हैं। केन्द्र में प्रधानमंत्री तथा राज्यों में मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रि परिषद् सामूहिक रूप से जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की सर्वोच्च विधायी संस्था के प्रति जवाबदेह होती है।
विधायिका का कार्य है विधान बनाना, नीति निर्धारण करना, शासन पर संसदीय निगरानी रखना तथा वित्तीय नियंत्रण करना। दूसरी ओर कार्यपालिका का कार्य है विधायिका द्वारा बनायी गयी विधियों और नीतियों को लागू करना एवं शासन चलाना। राज्यों की विधायिका विधान सभा के लिए निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से गठित होती है। इन जनप्रतिनिधियों को ''विधायक'' कहा जाता है।
संविधान के अनुसार विधान मण्डल राज्यपाल एवं विधान सभा को मिलकर बनता है। विधान सभा को आहूत करना, सत्रावसान करना, विधान सभा द्वारा पारित विधेयक पर अनुमति देना तथा विधान सभा में अभिभाषण देना आदि विधान सभा से संबंधित राज्यपाल के महत्वपूर्ण कार्य हैं।
सभा द्वारा पारित विधेयक तब तक अधिनियम नहीं बनता जब तक कि राज्यपाल उस पर अपनी स्वीकृति नहीं देते हैं। अन्त: सत्रकाल में जब राज्यपाल को यह संतुष्टि हो जाये कि तत्काल कार्यवाही करना आवश्यक है, तब वे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकते हैं। यह कानून की तरह ही लागू होता है।
1 नवम्बर, 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने के साथ ही छत्तीसगढ़ विधान सभा का भी गठन हुआ। छत्तीसगढ़ राज्य की प्रथम विधान सभा में 91 सदस्य थे, जिनमें से 90 जनता द्वारा निर्वाचित तथा 01 नामांकित सदस्य (एंग्लो इंडियन समुदाय) थे। 05 दिसम्बर, 2003 से गठित छत्तीसगढ़ की द्वितीय विधान सभा में 90 निर्वाचित तथा 01 नामांकित सदस्य (एंग्लो इंडियन समुदाय से) थे, जबकि विघटन की तिथि में 88 निर्वाचित, 01 नाम निर्देशित सदस्य थे एवं 02 स्थान रिक्त थे। छत्तीसगढ़ की तृतीय विधान सभा में 90 निर्वाचित तथा 01 नामांकित सदस्य थे। जबकि विघटन की तिथि में 89 निर्वाचित, 01 नाम निर्देशित सदस्य थे एवं 01 स्थान रिक्त था। चतुर्थ विधानसभा का गठन 11 दिसंबर 2013 को हुआ जिसमे 90 निर्वाचित एवं एक नामांकित सदस्य है ।पंचम विधानसभा में 90 निर्वाचित सदस्य है ।
प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ विधान सभा में विभिन्न दलों की दलवार सदस्य संख्या निम्नानुसार है :-
दल | प्रथम विधान सभा | द्वितीय विधान सभा (विघटन के समय) | तृतीय विधान सभा (विघटन के समय) | चतुर्थ विधान सभा (विघटन के समय) | पंचम विधान सभा (गठन के समय) |
भा.ज.पा. | 22 | 52 | 49 | 49 | 15 |
भा.रा.कां | 62 | 34 | 38 | 39 | 68 |
ब.स.पा. | 02 | 01 | 02 | 01 | 02 |
गो.ग.पा. | 01. | - | - | - | - |
रा.कां.पा. | - | 01 | - | - | - |
निर्दलीय | 02 | - | - | 01 | |
असम्बध्द | 01 | - | - | - | - |
रिक्त | - | 02 | 01 | ||
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) | - | - | - | - | 05 |
नाम निर्देशित | 01 | 01 | 01 | 01 | - |
योग | 91 | 91 | 91 | 91 | 90 |
निर्वाचन के पश्चात् प्रत्येक विधायक को विधान सभा के सदस्य के रूप में विधान सभा की कार्यवाहियों में भाग लेने के पूर्व संविधान के अनुच्छेद-188 के अन्तर्गत शपथ लेना होता है।
सभा का अध्यक्ष:-
विधान सभा एवं विधानसभा सचिवालय का प्रमुख, पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष) होता है, जिसे संविधान, प्रक्रिया, नियमों एवं स्थापित संसदीय परंपराओं के अन्तर्गत व्यापक अधिकार होते हैं। सभा के परिसर में उनका प्राधिकार सर्वोच्च है। सभा की व्यवस्था बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी होती है और वे सभा में सदस्यों से नियमों का पालन सुनिश्चित कराते हैं। सभा के सभी सदस्य अध्यक्ष की बात बड़े सम्मान से सुनते हैं। अध्यक्ष सभा के वाद-विवाद में भाग नहीं लेते, अपितु वे विधान सभा की कार्यवाही के दौरान अपनी व्यवस्थाएँ/निर्णय देते हैं। जो पश्चात् नज़ीर के रूप में संदर्भित की जाती हैं।
सभा में अध्यक्ष और उनकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सभा का सभापतित्व करते हैं और दोनों की अनुपस्थिति में सभापति तालिका का कोई एक सदस्य। सभापति तालिका की घोषणा प्रत्येक सत्र में माननीय अध्यक्ष सदन में करते हैं।
विधान सभा के सत्र:-
विधान सभा का सत्र आहूत करने की शक्ति राज्यपाल में निहित होती है। संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।
विधान सभा के गठन के पश्चात् प्रथम सत्र के प्रारंभ में और प्रत्येक कैलेण्डर वर्ष के प्रथम सत्र में राज्यपाल सभा में अभिभाषण देते हैं। राज्यपाल के सदन में पहुंचने की सूचना सदस्यों को दी जाती है, तथा उनके विधान सभा भवन के मुख्य द्वार पर पहुंचने पर विधान सभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, संसदीय कार्य मंत्री, विधान सभा के प्रमुख सचिव, राज्यपाल के प्रमुख सचिव के साथ चल-समारोह में सभाभवन में पहुंचते हैं। जैसे ही राज्यपाल सभा कक्ष में प्रवेश करते हैं, मार्शल उनके आगमन की घोषणा करते हैं। सदस्य अपने स्थानों पर खड़े हो जाते हैं और तब तक खड़े रहते हैं जब तक कि राज्यपाल आसंदी पर पहुंचकर अपना स्थान ग्रहण नहीं कर लेते। उसके तुरंत बाद राष्ट्र गान की धुन बजाई जाती है, राज्यपाल का अभिभाषण होता है। अभिभाषण की समाप्ति के बाद पुन: राष्ट्र गान की धुन बजाई जाती है।
विधान सभा सत्र सामान्य तौर पर वर्ष में तीन बार आहूत किए जाते हैं, जो कि बजट सत्र, मानसून सत्र तथा शीतकालीन सत्र कहलाते हैं। विधान सभा के प्रत्येक सत्र की प्रथम बैठक राष्ट्रगीत एवं राज्य गीत से प्रारंभ होती है और सत्र की अन्तिम बैठक राष्ट्रगान से समाप्त होती है।
सभा की बैठक व्यवस्था :
(क) सदस्यो एवं सचिवालय के अधिकारियों की बैठक व्यवस्था:-
प्रत्येक सदस्य के सभा में बैठने का क्रम अध्यक्ष द्वारा निर्धारित किया जाता है तथा सदस्यों को सभा में अपने नियत स्थान से ही कार्यवाहियों में भाग लेना होता है। सदस्य अध्यक्ष के सामने सदन में बैठते हैं जिसमें सत्ता पक्ष के सदस्य अध्यक्ष के दाईं ओर तथा प्रतिपक्ष के सदस्य बाईं ओर बैठते हैं। पक्ष की ओर से नेता प्रमुख की हैसियत से मुख्यमंत्री दायी ओर की प्रथम सीट पर बैठते हैं और प्रतिपक्ष के नेता बाईं ओर की प्रथम सीट पर बैठते हैं। गर्भगृह के मध्य में लगी मेज पर सचिवालय के अधिकारी तथा प्रतिवेदकगण बैठते हैं। प्रतिवेदक सदन की कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग करते हैं। अध्यक्ष की आसंदी के ठीक नीचे विधान सभा के प्रमुख सचिव बैठते हैं
(ख) दर्शकों/शासन के अधिकारी तथा विशिष्ट अतिथियों की बैठक व्यवस्था :-
दीर्घा
सभाकक्ष के प्रथम तल एवं भू-तल पर निम्नानुसार दीर्घाएँ होती हैं -
(1) दर्शक दीर्घा :-
यदि कोई सामान्य नागरिक सदन की कार्यवाही देखना चाहता है, तो उसके आवेदन करने पर दर्शक के रूप में कार्यवाही देखने के लिए दर्शक दीर्घा में प्रवेश दिया जाता है। ऐसे आवेदन किसी विधायक के द्वारा प्रति हस्ताक्षरित होना आवश्यक है।
(2) अध्यक्षीय दीर्घा
भू-तल पर अध्यक्ष के आसंदी के बाईं ओर अध्यक्षीय दीर्घा स्थित है, जहाँ सार्वजनिक जीवन के विशिष्ट व्यक्तियों को स्थान दिया जाता है।
(3) अधिकारी दीर्घा
अध्यक्ष की आसंदी के दाईं ओर भू-तल पर अधिकारी दीर्घा होती है, जहाँ शासन के वरिष्ठ अधिकारी बैठ सकते हैं।
(4) पत्रकार दीर्घा
सदन की कार्यवाही जन सामान्य तक पहुंचाने के लिए समाचार पत्र, आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं जनसंपर्क विभाग के प्रतिनिधियों को बैठने के लिए स्थान पत्रकार दीर्घा में दिया जाता है।
बैठकें :
बैठकें सामान्यत: प्रात: 11.00 बजे आरंभ होती है और 5.30 बजे समाप्त होती है। सदस्यों को प्रतिदिन की कार्यसूची बैठक आरंभ होने के पूर्व उपलब्ध कराई जाती है।
सभा की कार्यवाही का पहला घण्टा प्रश्न काल होता है और उसके पश्चात् शासन (मंत्री) सभा में रखे जाने वाले पत्र/प्रतिवेदन सभा पटल पर रखते हैं, पश्चात् अत्यंत लोक महत्व के विषय,ध्यानाकर्षण सूचना, विधि निर्माण, वित्तीय आदि कार्य सम्पादित होते हैं।
सभा का कार्य:-
राज्य तथा लोक महत्व के महत्वपूर्ण विषयों पर सदस्यगण सदन में चर्चा करते हैं। जैसे कि -
(1)प्रश्न-उत्तर : प्रश्न-उत्तर के माध्यम से सदस्य किसी विषय पर शासन से जानकारी माँग सकते हैं। प्रश्न पूछते हैं, जिसका उत्तर शासन पक्ष की ओर से संबंधित विभाग के मंत्री देते हैं। शासन के प्रत्येक विभाग के लिए सप्ताह में एक दिन प्रश्नोत्तर हेतु नियत रहता है।
प्रश्नोत्तर काल को सामान्यत: स्थगित नहीं किया जाता।
शासन पर नियंत्रण का यह सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है इस कालखण्ड में मंत्री पूरी जवाबदेही से अपने विभाग के कार्यों की जानकारी देता है।
(2)शून्यकाल
प्रश्नकाल के पश्चात् अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने, निवेदन करने का औपचारिक कार्य जब सदस्य अनुमति अथवा बिना औपचारिक अनुमति के अपनी बात सभा में कहते हैं ''शून्यकाल'' कहलाता है। अब शून्यकाल की प्रक्रिया भी नियमों में सम्मिलित कर ली गई है। (नियम 267-क)
(3) ध्यानाकर्षण सूचना एवं स्थगन प्रस्ताव :
ऐसे महत्वपूर्ण लोकहित के विषय जिस पर सदस्य बिना विलम्ब के शासन का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, इस प्रक्रिया का उपयोग करते हैं। जब कोई विषय अविलम्बनीय व इतना महत्वपूर्ण हो कि पूरा प्रदेश इससे प्रभावित होता है ऐसे विषय पर स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से सभा विचार-विमर्श करती है। अर्थात सभा के समक्ष कार्यसूची के समस्त कार्य रोककर सभा स्थगन प्रस्ताव पर विचार करती है।
प्रस्तावों की ग्राह्यता का सर्वाधिकार अध्यक्ष का होता है।
(4) वित्तीय कार्य
बजट :-
शासन का वार्षिक आय-व्यय विवरण प्रति वर्ष बजट सत्र में सदन में बजट के रूप में वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। वित्त मंत्री शासन की नीतियों एवं योजनाओं का विवरण देते हुए विगत वर्ष के लक्ष्यों की पूर्ति का उल्लेख भी करते हैं। प्रथम चरण में सामान्य चर्चा होती है और द्वितीय चरण में विभागवार अनुदान माँगों पर चर्चा होती है। सभा द्वारा स्वीकृत किए जाने पर ही शासन आबंटित बजट को स्वीकृति अनुसार व्यय कर सकता है। शासन का वित्तीय वर्ष 01 अप्रैल से प्रारंभ होकर अगले वर्ष के 31 मार्च तक की अवधि के लिए रहता है। अत: सामान्यत: बजट सत्र फरवरी-मार्च की अवधि में ही नियत होता है।
मानसून सत्र तथा शीतकालीन सत्र में अनुपूरक अनुमान संबंधी वित्तीय कार्य किये जाते हैं।
(5) विधायी कार्य :
कार्यपालिका का यह कर्तव्य होता है कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत विधान सभा के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषयों पर आवश्यकतानुसार कानून बनाने हेतु विधेयक प्रस्तुत करें। विधान सभा में विधान/कानून बनाने संबंधी विधेयक पेश किए जाने पर उस पर चर्चा/वाद-विवाद होता है तथा जब पूण
विचारोपरांत विधेयक पारित कर दिया जाता है, तब इसे राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास अनुमति के लिये भेजा जाता है और विधेयक पर अनुमति प्राप्त होने पर वह अधिनियम बनता है। इसके बाद इसे क्रियान्वित कराने का उत्तरदायित्व पुन: कार्यपालिका को सौंप दिया जाता है।
असंसदीय शब्दों के विलोपन की कार्यवाही %
वाद-विवाद, चर्चा अथवा सदन की कार्यवाही के दौरान सदस्यों को ऐसे शब्दों अथवा वाक्यांशों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो कि अशिष्ट अथवा असंसदीय हों, यदि कार्यवाही के दौरान कोई सदस्य इनका प्रयोग करते हैं तो अध्यक्ष स्वविवेक से सभा की कार्यवाही से विलोपित करने के निर्देश देते हैं। ऐसे शब्द अथवा वाक्यांश जो विलोपित कर दिये जाते हैं, का प्रकाशन समाचार पत्रों के लिए निषेध रहता है और यदि ऐसे विलोपित अंश प्रकाशित होते हैं तो यह सभा की अवमानना की परिधि में आता है।
समिति प्रणाली
विधान सभाओं का अधिकांश कार्य समितियों द्वारा किया जाता है। विधान सभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली के अंतर्गत जो महत्वपूर्ण समितियाँ हैं, वे इस प्रकार हैं :-
क्र. | समिति का नाम | सदस्य संख्या |
1 | कार्य मंत्रणा समिति | 09 |
2. | लोक लेखा समिति | 09 |
3. | सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति | 09 |
4. | प्राक्कलन समिति | 09 |
5. | अनु.जाति,जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के कल्याण संबंधी समिति | 09 |
6. | प्रत्यायुक्त विधान समिति | 07 |
7. | नियम समिति | 06+01(01 पदेन सदस्य) |
8. | विशेषाधिकार समिति | 07 |
9. | याचिका समिति | 07 |
10. | महिलाओं एवं बालकों के कल्याण संबंधी समिति | 09 |
11. | पटल पर रखे गए पत्रों के परीक्षण करने संबंधी समिति | 07 |
12. | सामान्य प्रयोजन समिति | 21 |
13. | पुस्तकालय समिति | 07 |
14 | गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों संबंधी समिति | 07 |
15 | शासकीय आश्वासनों संबंधी समिति | 07 |
16 | प्रश्न एवं संदर्भ समिति | 07 |
17. | सदस्य सुविधा एवं सम्मान समिति | 09 |
18. | आचरण समिति | 07+02(02 पदेन सदस्य) |
19. | स्थानीय निकाय एवं पंचायती राज लेखा समिति | 09 |
20. | पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति | 25+04(04 पदेन सदस्य) |
इन समितियों में से जॉच करने वाली समितियों में - याचिका समिति और विशेषाधिकार समिति हैं। संवीक्षा करने वाली समितियों में- शासकीय आश्वासनों संबंधी समिति, प्रत्यायुक्त विधान समिति है। सभा के दिन-प्रतिदिन के कार्य संबंधी समितियों में -कार्यमंत्रणा समिति, गैर सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों संबंधी समिति और नियम समिति हैं।
वित्तीय समितियों के अंतर्गत लोक लेखा समिति, सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति तथा प्राक्कलन समिति है। अध्यक्ष को सलाह देने वाली समिति -पुस्तकालय समिति है।
इन समितियों में सदस्यों की संख्या का अनुपात वही होता है, जैसा की सभा में है।
विधान सभा सचिवालय:-
संविधान में यह उपबंध किया गया है कि प्रत्येक विधान सभा का अपना एक पृथक सचिवालय होगा। तद्नुसार छत्तीसगढ़ विधान सभा का एक पृथक सचिवालय है, जिस पर प्रशासकीय नियंत्रण अध्यक्ष, विधान सभा का है। सचिवालय का प्रमुख, सचिव, विधान सभा हैं। सचिवालय में विधान सभा के कार्य संपादित करने हेतु अधिकारी एवं कर्मचारी कार्यरत हैं।
वर्तमान समय में विधान सभा द्वारा जो कार्य संपादित किये जाते हैं, उनका स्वरूप बहुत व्यापक होता है। चूँकि विधान सभा की बैठकें सीमित समय के लिए होती हैं अत: सभा के लिए यह संभव नहीं होता कि वह प्रत्येक कार्य की स्वयं सूक्ष्म जाँच करे अथवा उस पर गहन विचार विमर्श कर सके। अत: विधान सभा कतिपय कार्य समितियों के माध्यम से सम्पादित करती है।
विधान सभा,समितियों के माध्यम से कार्यपालिका पर प्रभावी नियंत्रण करती है। विधान सभा बजट प्रस्तावों पर विचार करती है, किन्तु सभा के पास इतना समय नहीं रहता कि वह धन राशि प्रस्तावों एवं प्राक्कलनों के ब्यौरे तथा उनके तकनीकी पहलुओं पर विचार कर सके। फलस्वरूप वित्तीय समितियाँ यथा - लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति एवं सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति द्वारा शासन तंत्र के प्रस्तावों की गहरी छानबीन किया जाकर मितव्ययिता तथा कार्यपटुता लाने के लिए अनुशंसाएं की जाती हैं।
इस प्रकार सभा की विभिन्न समितियाँ अंत: सत्रकाल में कार्यपालिका पर प्रभावी नियंत्रण करती हैं। इसके लिए समितियाँ शासन से वांछित जानकारी प्राप्त करती हैं, उसका परीक्षण करती हैं। विभागीय सचिवों का मौखिक साक्ष्य लेती हैं। आवश्यकतानुसार स्थल निरीक्षण एवं अन्य राज्यों का अध्ययन दौरा भी करती हैं। परीक्षण उपरान्त समितियाँ अपने प्रतिवेदन सिफारिशों के साथ समय-समय पर सभा में प्रस्तुत करती हैं। यह कार्य पूरे वर्ष अनवरत चलता है।
सुरक्षा व्यवस्था :-
विधान सभा की महत्ता को दृष्टिगत रखते हुए विधान सभा परिसर में सुदृढ़ सुरक्षा व्यवस्था रखी जाती है। सभा भवन व लाबी इत्यादि में विधान सभा के ही सुरक्षा कर्मचारी तैनात रहते हैं, बाहरी परिसर में सुरक्षा हेतु पुलिस कर्मचारी भी तैनात रहते हैं। विधान सभा के मुख्य प्रवेश द्वार एवं अन्य द्वारों पर सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया जाता है और आगंतुक की जाँच हेतु मेटल डिटेक्टर की व्यवस्था भी की जाती है। विधान सभा के सदस्य, अधिकारी, कर्मचारी तथा बाहरी व्यक्तियों को निर्देशों के अनुरूप प्रवेश पत्र के आधार पर ही परिसर में प्रवेश दिया जाता है। इसी प्रकार वाहनों को भी ''वाहन पास'' के आधार पर ही प्रवेश दिया जाता है। विधानसभा भवन एवं परिसर की संपूर्ण व्यवस्था पर अध्यक्ष विधान सभा का नियंत्रण रहता है।
विधान सभा सदस्यों अथवा अन्य किसी को भी सभा में हथियार या शस्त्र लाने की अनुमति नहीं है। इसी प्रकार सदस्य विधान सभा परिसर का उपयोग प्रदर्शन करने, धरना देने, हड़ताल या धार्मिक उत्सव के रूप में नहीं कर सकते और न ही किसी प्रकार की साहित्य सामग्री का वितरण कर सकते हैं।
उपसंहार:-
विधान सभा प्रदेश की एक सर्वोच्च जनप्रतिनिधि सभा तो है ही, यह विधि निर्माण संस्था होने के अतिरिक्त कार्यपालिका के कार्यों पर सतत् निगरानी का कार्य भी करती है। संसदीय लोकतंत्र ने भारत के संतुलित और शांतिपूर्ण विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।
आज राष्ट्र में संसद एवं प्रदेश में विधान सभा सामान्य जन-जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है। माननीय अध्यक्ष छत्तीसगढ़ विधान सभा की पहल के फलस्वरूप सभा की कार्यवाही को प्रसारित करने के प्रयास किए गये हैं, ताकि जनता को संसदीय प्रजातांत्रिक प्रणाली के संबंध में और अधिक परिपक्व किया जा सके। साथ ही ये संस्थाएं आम जन की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के प्रति अधिक उत्तरदायी बन सकें। इस प्रयास के तहत् विधान सभा के दिसम्बर, 2005 सत्र से निरंतर प्रश्न काल की कार्यवाही की रिकार्डिंग दूरदर्शन रायपुर द्वारा प्रतिदिन सायं 5.30 से 6.30 बजे तक प्रसारित की जा रही है।
छत्तीसगढ़ की द्वितीय विधान सभा में दिनांक 27 नवम्बर, 2007 को शासन द्वारा ''छत्तीसगढ़ी राजभाषा (संशोधन) विधेयक 2007'' का पुर:स्थापन किया गया जिसे सभा द्वारा दिनांक 28 नवम्बर, 2007 सर्वसम्मति से पारित किया गया। 11 जुलाई, 2008 को अधिनियम प्रवृत्त हुआ। छत्तीसगढ़ विधान सभा में सदन की कार्यवाही में माननीय सदस्यों को ''छत्तीसगढ़ी'' अथवा हिन्दी में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है। सभा की कार्यवाही का हिन्दी से छत्तीसगढ़ी एवं छत्तीसगढ़ी से हिन्दी में सचिवालय के ही कर्मचारियों द्वारा तत्क्षण अनुवाद की व्यवस्था की गयी है।
छत्तीसगढ़ की प्रथम विधान सभा में कुल 08 सत्र,द्वितीय विधान सभा में कुल 15 सत्र, तृतीय विधानसभा में कुल 13 सत्र हुए तथा 06 जनवरी, 2014 को चतुर्थ विधान सभा के प्रथम सत्र का आरंभ हुआ।
दिनांक 14 दिसम्बर, 2000 को छत्तीसगढ़ विधान सभा का प्रथम ऐतिहासिक सत्र राजधानी रायपुर स्थित राजकुमार कॉलेज के ''जशपुर हॉल'' में संपन्न हुआ तथा द्वितीय सत्र 27 फरवरी, 2001 से नवनिर्मित विधान सभा भवन में प्रारंभ हुआ। यह भवन रायपुर बलौदा बाजार मार्ग पर ग्राम बरौंदा में विधान नगर में स्थित है, जो लगभग 55 एकड़ क्षेत्र में है ।
छत्तीसगढ़ विधान सभा से संबंधित अन्य जानकारी विधान सभा की Website : www.cgvidhansabha.gov.in से भी प्राप्त की जा सकती है।