वेगनर का महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत क्या है? - veganar ka mahaadveepeey pravaah siddhaant kya hai?

उत्तर :

उत्तर की रूपरेखा- 

  • महाद्वीपीय विस्थापन का संक्षिप्त परिचय दें।
  • महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करें।
  • महाद्वीपीय विस्थापन और प्लेट विवर्तनिकी में अंतर बताएँ।

महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर द्वारा दिया गया था। इसके अनुसार सभी महाद्वीप एक बड़े भूखंड से जुड़े हुए थे। यह भूखंड एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था। इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया और बड़े महासागर को पैंथालसा नाम दिया गया। 20 करोड़ वर्षों पहले पैंजिया विभाजित होकर लारेशिया और गोंडवाना लैंड नामक दो बड़े भूखंडों में विभक्त हुआ, और बाद में ये खंड विभक्त होकर आज के महाद्वीपों के रूप में परिवर्तित हो गए। 

महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में तर्क

  • महाद्वीपों में साम्य- दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाएँ अद्भुत व त्रुटिरहित साम्य दिखाती हैं। 
  • महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता- 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की एक पट्टी ब्राज़ील तट और पश्चिमी अफ्रीका के तट पर मिलती है, जो आपस में मेल खाती है। 
  • भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के तलछटों के प्रतिरूप दक्षिणी गोलार्द्ध के छः विभिन्न स्थलखण्डों में मिलते हैं। इसी क्रम के प्रतिरूप अफ्रीका, फॉकलैंड द्वीप, मैडागास्कर, अंटार्कटिक और ऑस्ट्रेलिया में मिलते हैं।
  • घाना तट पर सोने के बड़े निक्षेप तथा ब्राज़ील में भी सोनायुक्त शिराओं का पाया जाना आश्चर्यजनक तथ्य है। 
  • जीवाश्मों का वितरण- मेसोसारस नामक छोटे रेंगने वाले जीव केवल उथले खारे पानी में रह सकते थे। इनकी अस्थियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी केप प्रांत और ब्राज़ील में इरावर शैल समूह में ही मिलते हैं। ये दोनों स्थान आज एक दूसरे से 4800 किमी दूर हैं। 

महाद्वीपीय विस्थापन और प्लेट-विवर्तनिकी सिद्धांत में अंतर-

  • महाद्वीपीय विस्थापन में सिर्फ महाद्वीपों का विस्थापन बताया गया है, जबकि प्लेट विवर्तनिकी में महाद्वीपों और महासागरों दोनों का संचरण बताया गया है।
  • महाद्वीपीय विस्थापन वलित पर्वतों के निर्माण का कारण SiMa और  SiAl के घर्षणात्मक संयोग के आधार पर बताता है, जबकि प्लेट विवर्तनिकी इसका कारण टेक्टोनिक प्लेटों के अभिसरण को बताता है।
  • प्लेट विवर्तनिकी ज्वालामुखियों के निर्माण की प्रक्रिया की जानकारी देता है, परंतु महाद्वीपीय विस्थापन से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती।

महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत (Continental Drift Theory) को समझने से पहले हमें उस व्यक्ति के बारे में जानना जरूरी है, जिसने महाद्वीपीय प्रवाह का सिद्धांत (Continental Drift Theory) को प्रस्ताव दिया। उन्होंने यह विचार रखा कि जो महाद्वीप हैं, वह गतिमान है यानी कि इनमें लगातार गति होती रहती है।

अल्फ्रेड वैगनल (Alfred Wegener) कौन है?

  • उस व्यक्ति का नाम हैअल्फ्रेड वैगनल (Alfred Wegener)
  • इनका जन्म जर्मनी (Germany) में हुआ था।
  • इनका जीवन काल 1880 से 1930 तक रहा।
  • Alfred Wegener जर्मनी के ध्रुवीय शोधकर्ता (Polar Researcher), भूभौतिकीविद् (Geophysicist), और मौसम विज्ञानी (Meteorologist) थे।
  • इन्होंने महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत (Continental Drift Theory) 1912 में दिया था।

महाद्वीपीय प्रवाह का सिद्धांत (Continental Drift Theory) क्या है?

उन्होंने कहा कि आज जो विश्व में हम महाद्वीप (Continents) देखते हैं वह पहले आपस में जुड़े हुए थे, जिसे पैंजिया (Pangea) कहा जाता है।

पैंजिया (Pangea) एक जर्मन शब्द (German Word) है। जिसका अर्थ‘संपूर्ण पृथ्वी’होता है। और इसके इलावा जो विशाल महासागर (Huge Ocean) हुआ करता था, वहपंथालसिक महासागर(Panthalassic Ocean)के नाम से जाना जाता है।

महाद्वीप के बनने की प्रक्रिया लगभग 20 करोड़ साल पहले से शुरू हो गई थीं। यानी कि 20 करोड़ वर्ष पूर्व पहली बार पैंजिया (Pangea) का दो भागों में विभाजन हुआ। जिसे अंगारा लैंड (Laurasia) और गोंडवाना लैंड (Gondwanaland) के नाम से जाना जाता है। और फिर इन दोनों जमीनों के बीच की जगह में जब जल का भरा हुआ तो उसे टेथिस सागर (Tethys Sea/Ocean) कहा के नाम से जाना जाता है।

और समय के साथ साथ गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravitational force), समुद्री धाराओं (Ocean Currents) का प्रभाव तथा अन्य शक्तियों के माध्यम से अंगारा लैंड (Laurasia) और गोंडवाना लैंड (Gondwana Land) जमीन के टुकड़ों का विभाजन होने लगा। जो कि आज हम विश्व के महाद्वीपों (Continents) तथा द्वीपों (Islands) के रूप में देखते हैं।

पोस्ट नेविगेशन

महाद्वीपीय विस्थापन (Continental drift) के के एक-दूसरे के सम्बन्ध में हिलने को कहते हैं। यदि करोड़ों वर्षों के भौगोलिक युगों में देखा जाए तो प्रतीत होता है कि महाद्वीप और उनके अंश समुद्र के फ़र्श पर टिके हुए हैं और किसी-न-किसी दिशा में बह रहे हैं। महाद्वीपों के बहने की अवधारणा सबसे पहले 1596 में वैज्ञानिक अब्राहम ओरटेलियस​ ने प्रकट की थी लेकिन 1912 में ऐल्फ़्रेड वेगेनर​ ने स्वतन्त्र अध्ययन से इसका विकसित रूप प्रस्तुत किया। आगे चलकर का सिद्धांत विकसित हुआ जो महाद्वीपों की चाल को महाद्वीपीय प्रवाह से अधिक अच्छी तरह समझा पाया।

महाद्वीपों भर में जीवाश्म आकार.

मेसोसौरस स्केलिटन, मैकग्रेगर, 1908.

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महाद्वीपीय प्रवाह के अब व्यापक साक्ष्य हैं। विभिन्न महाद्वीपों के तटों पर मिलते-जुलते पौधे और पशुओं के पाए जाने से ऐसा लगता है कि वे कभी जुड़े हुए थे। मेसोसौरस, ताजे पानी का एक जो कि एक छोटे घड़ियाल जैसा था, के जीवाश्म का तथा में पाया जाना इसका एक उदाहरण है; एक और उदाहरण लिस्ट्रोसौरस नामक एक जमीनी के जीवाश्म का समसामयिक से , तथा के विभिन्न स्थानों से प्राप्त होना है। कुछ जीवित साक्ष्य भी हैं - इस दोनों महाद्वीपों पर एक जैसे कुछ पशु पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए कुछ के कुछ परिवार/प्रजातियां (जैसे: ओक्नेरोड्रिलिडे, एकेंथोड्रिलिडे, ओक्टोकेतिडे) अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं।

दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के सामने के भागों की पूरक व्यवस्था स्पष्ट है, लेकिन यह एक अस्थायी संयोग है। लाखों वर्षों में स्लैब खिंचाव व रिज दबाव तथा टेक्टोनोफ़िज़िक्स की अन्य शक्तियां इन महाद्वीपों को एक दुसरे से और अधिक दूर ले जायेंगी तथा घुमायेंगी. इन अस्थायी विशेषताओं ने वेगेनर को इसका अध्ययन करने को प्रेरित किया जिसे उन्होंने महाद्वीपीय प्रवाह नाम से पारिभाषित किया, यद्यपि वे अपनी परिकल्पना को लोगों द्वारा स्वीकार किये जाने तक जीवित नहीं रहे.

दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, मैडागास्कर, अरब, भारत, अन्टार्क्टिका, तथा ऑस्ट्रेलिया में पेर्मो-कार्बोनीफेरस हिमनद तलछट का वृहद वितरण महाद्वीपों के प्रवाह का एक बड़ा प्रमाण है। ओरीएंटेड हिमनद श्रृंखला तथा टाईलाइट्स नमक जमाव से बने सतत हिमनद एक बहुत बड़े महाद्वीप के अस्तित्व की पुष्टि करते हैं जिसे महाद्वीपीय प्रवाह के सिद्धांत का केन्द्रीय तत्त्व माना जाता है। ये श्रृंखलाएं आधुनिक निर्देशांकों में भूमध्य रेखा से दूर होती हुई तथा ध्रुवों की ओर जाती हुई हिमनदीय बहाव को दर्शाती हैं, साथ ही यह भी प्रदर्शित करती हैं दक्षिणी महाद्वीप भूतकाल में नाटकीय रूप से अलग स्थानों पर थे तथा एक दूसरे से जुड़े भी हुए थे।

वेगेनर के सिद्धांत की अस्वीकृति

हालांकि अब यह माना जाने लगा है कि पृथ्वी की सतह पर महाद्वीप गतिशील रहते हैं - यद्यपि उनकी गति दिशा निर्देशित होती है ना कि वे दिशाहीन रूप से चलन करते हैं - फिर भी सैद्धांतिक रूप से इस प्रवाह को कई वर्षों तक स्वीकार नहीं किया गया। एक समस्या यह थी कि कोई विश्वसनीय लगने वाली चालन शक्ति नहीं दिख रही थी। साथ ही वेगेनर का भूगर्भ वैज्ञानिक नहीं होना भी एक समस्या थी।

1953 में कैरे द्वारा सिद्धांत का परिचय दिए जाने से पांच वर्ष पूर्व - महाद्वीपीय प्रवाह के सिद्धांत को भौतिकशास्त्री शीडिगर (Scheiddiger) द्वारा निम्नलिखित आधारों पर ख़ारिज कर दिया गया था।

  • सबसे पहले, यह देखा गया कि एक घूमते हुए जिओइड पर तैरते हुए द्रव्यमान भूमध्य पर एकत्रित हो जाते हैं तथा वहीं बने रहते हैं। यह सिर्फ एक बात की व्याख्या कर सकता है और वह है किसी महाद्वीपीय जोड़े के बीच पर्वतों के बनने की घटना; यह अन्य ओरोजेनिक घटनाओं की व्याख्या करने में अक्षम है।
  • दूसरे, किसी तरल में अधःस्तर पर मुक्त रूप से तैरते पिंडों, जैसे महासागर में बर्फ का पहाड़, को आइसोस्टेटिक साम्य (ऐसी स्थिति जहां उत्प्लवन तथा गुरुत्व के बल संतुलन में रहते हैं) में होना चाहिए. गुरुत्वाकर्षण माप दिखाते हैं कि कई क्षेत्रों में आइसोस्टेटिक संतुलन नहीं है।
  • तीसरे, एक समस्या यह थी कि पृथ्वी की सतह (क्रस्ट) का कुछ भाग ठोस है तथा अन्य भाग द्रव क्यों है। इसकी व्याख्या करने के कई प्रयासों ने कई अन्य कठिनाइयों को बढ़ा दिया.

यह अब ज्ञात है कि पृथ्वी पर दो प्रकार की क्रस्ट होती हैं, महाद्वीपीय क्रस्ट व महासागरीय क्रस्ट, जहां पहली वाली एक भिन्न संरचना वाली तथा मूलरूप से हल्की होती है, दोनों ही प्रकार की क्रस्ट एक कहीं गहरे द्रवीकृत आवरण पर स्थित होती हैं। इसके अलावा, महासागरीय क्रस्ट अब भी फैलते हुए केन्द्रों पर बन रही हैं, तथा यह सब्डक्शन के साथ, प्लेटों की प्रणाली को अव्यवस्थित रूप से चलाता है जिसके परिणामस्वरूप सतत ओरोजेनी तथा आइसोस्टेटिक असंतुलन उत्पन्न होता है। के द्वारा इन सब तथा महाद्वीपों की गति को कहीं बेहतर रूप से स्पष्ट किया जा सकता है।

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वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है?

महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर द्वारा दिया गया था। इसके अनुसार सभी महाद्वीप एक बड़े भूखंड से जुड़े हुए थे। यह भूखंड एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था। इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया और बड़े महासागर को पैंथालसा नाम दिया गया।

वेगनर ने अपना महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत कब दिया?

जमनी के प्रसिद्ध जलवायुवेता प्रोफेसर अल्फ्रेड वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत 1912 ई. में प्रस्तुत किया था।

वैगनआर का मुख्य उद्देश्य क्या था?

यद्यपि वेगनर का प्रारंभिक उद्देश्य अतीत में हुए जलवायु संबंधी परिवर्तनों का ही समाधान करना था परंतु समस्याओं के क्रम में वृद्धि होने से सिद्धांत बढ़ता चला गया और वेगनर कई गलतियाँ कर बैठे, उनके सिद्धांत में कुछ दोष पाए जाते है जैसे- वेगनर द्वारा प्रयुक्त बल महाद्वीपों के प्रवाह के लिये सर्वथा अनुपयुक्त है।

वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन के लिये कौन सा बल उत्तरदायी हैं *?

वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन के लिए अवकल गुरुत्वाकर्षण बल तथा प्लवनशीलता बल (Differential gravitational force and force of buoyancy) तथा ज्वारीय बल (Tidal Force) को उत्तरदायी माना है.

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