द्वापर युग की शुरुआत कैसे हुई - dvaapar yug kee shuruaat kaise huee

सत युग से द्वापर और कल युग आते-आते सौर्य मंडल अलग-अलग अवस्थाओं से गुजरता है और इनसे मनुष्यों की चेतना में कई बदलाव आते हैं।  पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा सत युग और त्रेता युग के बारे में। आइये पढ़ते हैं द्वापर और कलयुग के बारे में

सौर मंडल अंतरिक्ष में मौजूद एक बड़े सूरज के चारों ओर चक्कर लगाता है, इसीलिए धरती पर अलग-अलग युग आते हैं। अलग-अलग युगों का इंसानी चेतना पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। सत युग में कभी कभार ही कोई कुछ बोलता है, क्योंकि तब संवाद मानसिक होता है, और त्रेता युग में आँखें संवाद का ज़रिया होती हैं।

कलयुग की कहानी - जबानी संवाद

मानसिक, दृश्य संबंधी और सूघने की क्षमता के धरातल से निकल कर कल युग में बोध पूरी तरह से इंसानों के जबानी संवाद पर आधारित हो जाता है। और तब उनका मुंह ही सबसे बड़ी चीज हो जाता है। जब सौर मंडल युगों से हो कर गुजरता है और अगर आप सौर मंडल से तादात्म बैठा लेते हैं तो आप भी इन युगों के गुजरने लगते हैं। अगर आप इससे ऊपर उठ जाते हैं तो फिर आप जिस युग में चाहें, अपने भीतर उस युग में रह सकते हैं। लेकिन अगर आप अपनी चीजों में ही उलझे रह गए तो भले ही धरती सत युग में हो, लेकिन हो सकता है कि आप अपने भीतर कलियुग में ही रहें। इसका मतलब हुआ कि हर इंसान आजाद है कि वह जिस युग में है, उससे परे निकल जाए या फिर युग की मार से कुचल दिया जाए अथवा जैसा भी युग चल रहा है, उसका आंनद है। उसके सामने ये तीनों ही संभावनाएं खुली हुई हैं।

कल्कि - प्रकाश और बुद्धि

लोग कहते हैं कि कलयुग के अंत में सफेद पंखों वाले घोड़े पर सवाल होकर कल्कि धरती पर आएगा, जो यहां का अंधकार मिटाएगा। अंधियारे को मिटाने के लिए किसी को भी घोड़े पर सवार होकर उड़कर आने की कोई जरूरत नहीं है। इसके लिए बस एक छोटे से प्रकाश की जरूरत है, अंधेरा अपने आप दूर हो जाएगा। अंधेरा सबसे नाजुक चीज है, अगर फिर भी लोग इससे छुटकारा नहीं पा पाते तो इसकी वजह है कि वे इस दूरे करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। एक उड़न घोड़े पर सवार कोई प्रकाशवान हस्ती का नीचे आकर अंधेरा दूर करना एक संकेत मात्र है। यह जरूरी नहीं है कि प्रकाश या ज्ञान या बुद्धिमत्ता आपके जरिए ही सामने आए, यह खगोलीय संभावना से भी प्रकट हो सकती है।

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चूंकि सौर मंडल कलयुग के दौर से बाहर निकल रहा है, ऐसे में एक खगोलीय या दिव्य उपहार के तौर पर आपकी बुद्धि चमक सकती है। आकाश में कुछ ऐसे तारे मंडल या नक्षत्र हैं, जो उड़न घोड़े की तरह नजर आते हैं। इसीलिए कहा गया है कि कल्कि एक उड़न घोड़े पर सवार होकर आपके भीतर प्रवेश करेगा। अगर आपने इसे अपने भीतर रहने दिया तो यह आपका अंधकार दूर करेगा।

द्वापर युग की कहानी - सूंघने की शक्ति

द्वापर युग में सुगंध का भाव या सूंघना बोध या अनुभूति का सबसे प्रभावशाली तरीका हो जाता है। जहां भी जीवन ऊर्जा बेहद उच्च स्तर पर होती हैं, वहां सूंघने की क्षमता काफी संवेदनशील हो जाती है। उदाहरण के लिए जंगल में आपकी आंख, कान व दिमाग से ज्यादा आपकी सूंघने की क्षमता महत्वपूर्ण होती है। किसी को सूंघ कर आप जान सकते हैं कि उस व्यक्ति के साथ क्या चल रहा है। कुछ समय पहले खुशकिस्मती से आश्रम में एक किंग कोबरा मेहमान के तौर पर पधारे। किंग कोबरा इस धरती के सबसे शानदार प्राणियों में एक है। यह लगभग बारह फीट लंबा था और छह फीट तक यह खड़ा हो सकता था। यह आपको स्पर्श करने के लिए दूर से ही अपनी जबान का इस्तेामल करता है। यह आपके भीतर का रसायन जानता है।

यह इतनी तेजी से चलता है और इतना खतरनाक है कि अगर यह इंसान को काट लें तो फिर उसके पास जीवन के मात्र आठ से दस मिनट रह जाते हैं। इसमें इतना जहर होता है कि यह एक हाथी को मार सकता है, लेकिन हम लोग इसके साथ बेहद सहजता से थे। दरअसल, हम जानते हैं कि अगर हम अपने भीतर गलत तरह के रसायन नहीं पैदा करेंगे तो यह हमारे साथ ठीक रहेगा। जितने भी मांसाहारी जीव, बल्कि सभी जंगली जीव इंसान के भीतर के रसायन के प्रति बेहद संवेदनशील हैं, खासकर सांप तो इस मामले में अति संवेदनशील होता है। अगर आप पूरी तरह से सहज हैं, तो आप जंगल में जाकर जहरीले सांप को पकड़ सकते हैं। लेकिन आपके शरीर की रसायनिकता में जरा भी डर या बेचैनी दिखाई दी तो यह आपके लिए भारी पड़ सकती है, क्योंकि इसे तुरंत ही पता चल जाता है कि आपके भीतर क्या चल रहा है।

अकसर योगियों के आसपास कोबरा रहने या शिव के पास कोबरा रहने का भी एक कारण है। धरती के तमाम प्राणियों में से कोबरा ही एक ऐसा प्राणी है, जिसके चारों तरफ सबसे ज्यादा आकाशीय आभामंडल होता है। इसका मतलब हुआ कि इसका बोध जबरदस्त होता है। किसी चीज़ का बोध प्राप्त करने में यह जीव काफी मददगार होता है और इसका बोध ऐसा होता है, जिसके आगे योगी भी नतमस्तक होते हैं। अपने चारों तरफ आकाशीय आभामंडल तैयार करने की वजह से, इसका बोध ज्यादातर इंसानों से बेहतर होता है। उदाहरण के लिए, नागा जनजाति के लोग एक खास तरह के आकाशीय आभामंडल को पाने के लिए जरूरी साधनाएं करते हैं, जिससे उन्हें उन चीज़ों का भी बोध हो जाता है, जो दूसरों को नहीं हो पाता। आपको जिस चीज़ की अनुभूति होती है, आप वहीं जानते हैं, बाकी सब तो बकवास है। भले ही कोई चीज मेरे द्वारा कही हो, भगवान द्वारा कही गई हो या फिर पुराणों या ग्रंथों में बताई गई हो, लेकिन ये सारी चीजें तब तक व्यर्थ हैं, जब तक आप इन्हें खुद अपने बोध या अनुभूति से नहीं जान लेते।

महाभारत कथाएं

Hyperactive mould forest space

द्वापर मानवकाल के तृतीय युग को कहते हैं। यह काल कृष्ण के देहान्त से समाप्त होता है।

ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं:

चारों युग
4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष) सत युग
3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) त्रेता युग
2 चरण (864,000 सौर वर्ष) द्वापर युग
1 चरण (432,000 सौर वर्ष) कलि युग

[1]

यह चक्र ऐसे दोहराता रहता है, कि ब्रह्मा के एक दिवस में 1000 महायुग हो जाते हैं

  • दे
  • वा
  • सं

हिन्दू काल गणना

छोटी इकाइयाँमध्य इकाइयाँबड़ी इकाइयाँसप्ताहतिथिमासहिन्दू संवत

तृसरेणु · त्रुटि · वेध · लव · निमेष · क्षण · काष्ठा · लघु · दण्ड · मुहूर्त · याम · प्रहर · दिवस · अहोरात्रम

समय मापन वेधशाला, दिल्ली

सप्ताह · पक्ष · मास · ऋतु · अयन · वर्ष

दिव्य वर्ष · युग · (सत्य/कृत · त्रेता · द्वापर · कलि) · महायुग · चतुर्युगी · मन्वन्तर · कल्प · ब्रह्मा_की_आयु

सोम · मंगल · बुध · गुरु/बृहस्पति · शुक्र · शनिश्चर · रवि

पूर्णिमा · प्रतिपदा · द्वितीया · तृतीया · चतुर्थी · पंचमी · षष्ठी · सप्तमी · अष्टमी · नवमी · दशमी · एकादशी · द्वादशी · त्रयोदशी · चतुर्दशी · अमावस्या

चैत्र · वैशाख · ज्येष्ठ · आषाढ़ · श्रावण · भाद्रपद · आश्विन · कार्तिक · अग्रहायण · पौष · माघ  · फाल्गुन

कलियुग संवत 3102 ईपू · सप्तर्षि संवत 3076 ईपू · विक्रमी संवत 57 ईपू · शक संवत 78 ई.पू.

द्वापर युग का आरंभ कैसे हुआ?

द्वापर युग कान्हा का युग था। श्रीकृष्ण मथुरा से द्वारका चले गए थे और फिर द्वारका के भालका से बैकुंठ के लिए परायण किया। आज से करीब 5 हजार साल पहले एक शिकारी ने शिकार करते समय गलती से श्रीकृष्ण के पैर में तीर मार दिया था, वह भी कान्हा की ही लीला थी, क्योंकि उनके बैकुंठ लौटने का समय हो गया था।

द्वापर युग कब शुरू हुआ था?

द्वापरयुग:- यह युग 864 000 वर्षों का था, जिसमे एक पत्‍येक व्यक्ति 1000 साल तक जी सकता था, ऐसा माना जाता है जैसे- जैसे धरती पर पाप बढ़ेगा वैसे-वैसे इंसान की जीने की उम्र और उसकी इच्छा की पूर्ती कम होने लगेगी। हनुमान जी हा कहना था कि द्वापरयुग में लोग धर्म के मार्ग से भटकने लगेंगे और धरती पर पाप बढ़ने लगेगा।

द्वापर युग का प्रथम राजा कौन था?

सुखदेव(राजा) - विकिपीडिया

द्वापर युग में कौन से भगवान है?

सतयुग के बाद आया त्रेता युग। इस युग में भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और वह स्वयं श्रीहरि विष्णु का अवतार थे। फिर द्वापर युग की शुरुआत हुई और इस युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया।

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