दंतुरित मुस्कान का अर्थ क्या है? - danturit muskaan ka arth kya hai?

'दंतुरित मुस्कान' को पुविमानता कवि को पाले ही संजीवनी-सी लती रही और "धुनि सहायता" तनाव को छोडकर "छोपहीं में शिलते जलज"' से । यह सोप; मेरी है । प्रवृति का सौंदर्य प्रकृत ही नहीं ...

Nāgārjuna kā racanā saṃsāra - Page 29

छोड़कर तालाब, मेरी झीपडी में खिल रहे जलजात यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज मैं न सकता देख मैं न पाता जान तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी कय !

Sanskrit-Hindi Kosh Raj Sanskaran - Page 52

अनुबन्ध (वि०) [ प्रा० स० ] दंतुरित, 'दावेदार जैसा कि आरा । अनुक्रम [ अनु-ना-क्रम-अर ] 1 उराराधिकार, क्रम, ताता, कम-थाप, क्रमबद्धता, उचितकम--प्रचत्रज यनुमनुक्रमजा-रचु० ६।७०, श्वश्रुजनं ...

kavita Ki zameen Aur Zameen Ki Kavita: - Page 177

जाबद्ध हैं "स्वजन-परिजन के प्यार की ३षेर में, वहुरुपा कल्पना रानी के आलि-गनपत पे, तीसरी-बोयी पीडी के दंतुरित शिशु सुलभ हास में ।'' काने की आवश्यकता नहीं वि; नागार्शन के ये विचार ...

Chambers English-Hindi Dictionary - Page 680

द-दानेदार काटना; चुभता, बेधन, आश. 1118826 बाँतेदार, दंतुरित, विषमधारा, खुरदरा, क्रकचित; अ". ]11880611288 वंतुरता, विषमता; ]:18801. दतर चक्र; (11158]1.8811181100): अ, आटा हाँतेदार, दे.; सिलवटदार; ...

... कनखी मार के और होती जब कि आँखें चतर तब तुम्हारी दंतुरित मुस्कान मुझे लगती बडी अधिमान है" प्रणय के शालीन, अवस्था तथा क-उपन चित्रों के अतिरिक्त दाम्पत्य-प्रणय तथा वात्सल्य की ...

Sāmājika yathārtha ke citere, Nāgārjuna aura Dhūmila - Page 240

[छोड़कर तालाब अरे "य/रे में जिन रोते जलज/त / (यह दंतुरित मुस्कान) न., की कविता की अपना लय है । उन्होंने लय के अनुरूप कविता को सजाया है । अ: नागार्जुन की कविता में संगीत का आकर्षण एवं ...

Khicarī viplava dekhā hamane - Page 58

तीसरी-चौथी पोतियों के दंतुरित शिशु सुलभ हास में" . . लाख-लाख मुखरित के तरुण हुलास मे- . . आख्या हूँ, जी हां, शतधा आबद्ध हूँ ! 1 9 7 5 5 8 'महुवा-र उ-तिरे कां-र-रद उमड़-उमड़ आए खटमल, मैं ...

ई ओहि शिशुक बिहुँसी विक, जकरा अबोध ओहि परदेश चल गेल छलाह ) देखल जाय :तुम्हारी पात: दंतुरित मुस्कान मृतकों भी डाल देगी जान धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात्र-.-"" छोड़कर तालाब मेरी ...

Ādhunika Hindī-kāvyā-bhāshā

... यौगिक शब्दावली के उदाहरण हैं : तृतीय(ग) वर्ग में अधिकांश देशज प्रयोग हैं तथा 'षांदनियर तिलक, दंतुरित आवि नव निर्मित अबतक अपरिचित विचित्र शब्द-प्रयोग है जिन्हें या तो कृदन्तयत ...

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ छ: ‘यह दंतुरित मुस्कान’ तथा ‘फसल’ कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Yah danturit muskan tatha Fasal kavita ka bhavarth)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

6. ‘यह दंतुरित मुस्कान’ तथा ‘फसल’
कवि- नागार्जुन

नागार्जुन का वास्तविक नाम वैधनाथ मिश्र था। साहित्य के क्षेत्र में वे नागार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनका जन्म 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। 1936 में वे श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए और 1938 में स्वेदश लौट आए।
नागार्जुन धुमक्कड़ और फक्कड़ स्वभाव के कारण प्रसिद्ध थे। इन्होनें हिन्दी और मैथिली भाषा में लेखन कार्य किया । युगधारा ,सतरंगे पंखो वाली ,हजार हजार बाँहो वाली, तुमने कहा था ,पुरानी जूतियों का फोरस आदि। नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ हैं। मैथली भाषा के काव्य रचना के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनकी भाषा बहुत ही आसान और सहज व प्रवाहमयी है। इनकी मृत्यु 1998 में हुआ था।
’यह दंतुरित मुस्कान‘ को कवि ने एक छोटे बच्चे की मुसकान का वर्णन किया है। बच्चे की मुसकान को अमुल्य माना गया है। बच्चे की कोमल दंतुरित मुसकान कठोर ह्रदय को भी पिघला देती है। ‘फसल‘ कविता में कवि नें अनेक तत्वों का उल्लेख किया है। जिसकी मदद से फसल की उत्पति होता है। इसकी उत्पति में किसान की भूमिका और उसके मेहनत को बताने के साथ-साथ मिट्टी, जल, सूर्य, हवा आदि सभी के योगदान को भी बताया है। प्रकृति एवं मनुष्य के परस्पर सहयोग का ही परिणाम फसल है।

‘यह दंतुरित मुस्कान’

तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?

भावार्थ- कवि को बच्चे के नए-नए निकले दाँतो की मनमोहक मुसकान में जीवन का संदेश दिखाई देता हैं। वह कहते हैं कि हे बालक तुम्हारे नए-नए दाँतों की मनमोहक मुसकान को देखकर तो जिन्दगी से निराश और उदासीन लोगों के हृदय भी खुशी से खिल उठते हैं। कवि कहते हैं कि तुम्हारे इस शरीर को धुल से सने हुए देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कमल का सुंदर फूल तालाब को छोड़कर मेरी झोपड़ी में आकर खिल गया हो और तुम्हें पत्थर दिल वाले व्यक्ति ने जब तुम्हरा छुवा स्पर्श किया होगा तो वह भी पत्थर की तरह अपनी कठोरता को छोड़कर नर्म बन गया होगा। तुम्हारा स्पर्श त्वचा इतना कोमल है कि बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगे होंगे।

तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान

भावार्थ- कवि को बच्चे की मुसकान मनमोहक लगती है जब बच्चा पहली बार किसी को देखता है तो वह अंजान की तरह उसे घुरता है इसलिए कवि बच्चे से कहता है कि तुम मुझे पहचान नही पाए। इसलिए बिना पलक झपकाए अंजान की तरह मुझे देखे जा रहे हो। कवि कहते है ऐसे लगातार देखते-देखते तुम थक गए हो। इसलिए मैं ही तुम्हारी तरफ से नजर हटा लेता हूँ। अगर तुम मुझे पहली बार में नहीं पहचान सके तो क्या हुआ। अगर तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच का माध्यम का काम न करती तो तुम मुझे देखकर हँसते नहीं और मुझे तुम्हारे इन नए-नए निकले दाँतो वाली मुसकान को देखने का सौभाग्य नहीं मिल पाता।

धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

भावार्थ- कवि बच्चे की मधुर मुसकान देखकर कहता है कि तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य है जो तुम्हे एक दुसरे का साथ मिला मैं तो हमेशा बाहर ही रहा इसलिए मेरा तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा। तुम्हारे लिए तुम्हारे माँ के अंगुलियों में ही आत्मीयता है। जिसने तुम्हें पंचामृत पिलाया। इसलिए तुम उनका हाथ पकड़कर मुझे कनखी से नजारा देख रहे हो। औश्र जब हमारी नजरें तुम्हारी नजरों से मिल रही है। तुम मुसकुरा दे रहे हो। उस समय तुम्हारे नए-नए निकले दाँतों वाली मुसकान मुझे बहुत ही प्रिय लगती है।

फसल कविता का भावार्थ

एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्मः

भावार्थ- कवि ने स्पष्ट बताया है कि फसल को ऊपजाने में प्रकृति और मनुष्य दोनों ही का सहयोग होता है। इसलिए कवि कहता है कि फसल का खुद कोई अस्तित्व नहीं है। वह तो नदियों द्वारा दिए गए उसका पानी का जादू है, वह तो लाखों-करोड़ों मनुष्यों के किए गए मेहनत का फल है। वह तो भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुणधर्म है। जिसमें फसल को बोया था और सुर्य के किरणों का बदला हुआ रूप है जिससे फसलों को रोशनी मिली। साथ ही हवा का समान सहयोग है। इस तरह इन सब के सहयोग और मेहनत से ही खेतों में लहलहाती फसल खड़ी होती है। Yah danturit muskan tatha Fasal kavita ka bhavarth

दंतुरित मुस्कान का क्या अर्थ है?

यह दंतुरित मुसकान कविता की व्याख्या भावार्थ : इस कविता में कवि एक ऐसे बच्चे की सुंदरता का बखान करता है जिसके अभी एक-दो दाँत ही निकले हैं; अर्थात बच्चा छ: से आठ महीने का है। जब ऐसा बच्चा अपनी मुसकान बिखेरता है तो इससे मुर्दे में भी जान आ जाती है।

यह दंतुरित मुस्कान कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?

यह दंतुरित मुसकान ” कविता के कवि नागार्जुन जी हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने उस नन्हे बच्चे की मन को मोह लेने वाली मुस्कान जिसमें कोई छल नहीं है और न ही कोई कपट मात्र है , उस का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है , जिसके अभी – अभी दूध के दांत निकलने शुरू हुए हैं।

दंतुरित मुस्कान का आप पर क्या प्रभाव पड़ा स्पष्ट कीजिए?

बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। वह उसके सुंदर और मोहक मुख पर छाई मनोहारी मुसकान से प्रसन्नता में भर उठा था। उसे ऐसा लगा था कि वह धूल-धूसरित चेहरा किसी तालाब में खिले सुंदर कमल के फूल के समान था जो उसकी झोपड़ी में आ गया था। कवि उसे एकटक देखता ही रह गया था।

दंतुरित मुस्कान कविता की भाषा कौन सी है?

i) सहज - सरल खड़ीबोली में कवि ने अपने मनोभावों का सजीव चित्रण किया है। (ii) 'उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क' पंक्ति ने माँ के वात्सल्य, कर्तव्यबोध और गरिमा की अभिव्यक्ति की ।

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