तरुवर फल नहिं खात हैं
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
रहीम कहते हैं कि परोपकारी लोग परहित के लिए ही संपत्ति को संचित करते हैं। जैसे वृक्ष फलों का भक्षण नहीं करते हैं और ना ही सरोवर जल पीते हैं बल्कि इनकी सृजित संपत्ति दूसरों के काम ही आती है।
स्रोत :
- पुस्तक : रहीम ग्रंथावली (पृष्ठ 86)
- रचनाकार : रहीम
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1985
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तरुवर फल नहिं खात है सरवर पियत न पान इस काव्य पंक्ति के द्वारा रहीम क्या संदेश देना चाहते हैं?
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ रहीम कहते हैं कि परोपकारी लोग परहित के लिए ही संपत्ति को संचित करते हैं। जैसे वृक्ष फलों का भक्षण नहीं करते हैं और ना ही सरोवर जल पीते हैं बल्कि इनकी सृजित संपत्ति दूसरों के काम ही आती है।
तरुवर फल नहिं खात है पंक्ति में पेड़ की क्या विशेषता बताई गई हैं?
अर्थ= पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते हैं और तालाब भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन पुरुष वे हैं जो दूसरों के काम के लिए संपत्ति जमा करते हैं।
तरुवर फल नहिं खात है सरवर पियहिं न पान प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता हैं * 1 Point रहीम कबीरदास रसखान बिहारी?
इस पंक्ति के रचयिता महाकवि भूषण जी हैंं।
कवि रहीम जी ने अपने दोहे में पेड़ और नदी के माध्यम से हमें क्या संदेश दिया है?
रहीम के दोहों से हमें सीख मिलती है कि हमें अपने मित्र का सुख-दुख में बराबर साथ देना चाहिए। हमारे मन में परोपकार की भावना होनी चाहिए। जिस प्रकार प्रकृति हमारे लिए सदैव परोपकार करती है, उसी प्रकार हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए। रहीम वृक्ष और सरोवर की ही तरह संचित धन को जन कल्याण में खर्च करने की सीख देते हैं।