पत्नी ने शनि देव को श्राप क्यों दिया
ब्रह्म पुराण में दी गई कथा के अनुसार, शनि देव का विवाह चित्ररथ की पुत्री से हुआ था. वह गुणी, तेजस्वी और साध्वी प्रकृति की थीं. शनि देव बाल्यकाल से ही भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे. वह जब कभी भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते, तो ऐसे मग्न हो जाते थे कि बाहरी दुनिया की कोई सुध नहीं रहती थी।
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एक दिन उनकी पत्नी को पुत्र प्राप्ति की चाह हुई. वह शनि देव की प्रतीक्षा करने लगीं. उधर शनि देव बाहरी दुनिया से दूर अपने आराध्य प्रभु श्रीकृष्ण के ध्यान में मग्न थे. शनि देव को ध्यान से बाहर निकलने में काफी समय लग गया. दूसरी ओर पत्नी प्रतीक्षा करते हुए अत्यंत क्रोधित हो गईं।
शनि देव जैसे ही उनके पास पहुंचे, क्रोध के आवेश में पत्नी ने श्राप दे दिया कि आप आज से जिसे भी देखेंगे, वह नष्ट हो जाएगा. उनकी श्राप फलित होना था क्योंकि वह पतिव्रता तेजस्वी स्त्री थीं. शनि देव ने देरी का कारण बताया और उनको काफी समझाया. उन्हें अपनी गलती का एहसास तो हो गया, लेकिन वह श्राप को निष्प्रभावी नहीं कर सकती थीं. इस वजह से शनि देव की दृष्टि क्रूर हो गई।
पत्नी से मिले श्राप के कारण शनि देव हमेशा अपना सिर नीचे करके चलते हैं. कहीं गलती से भी किसी पर उनकी सीधी दृष्टि पड़ गई तो वह नष्ट हो सकता है. ऐसी पौराणिक मान्यता है. हालांकि ज्योतिष में भी बताया गया है कि हर व्यक्ति के जीवन में शनि की दशा जरूर आती है. वह शनि की दृष्टि से बच नहीं सकता है।
एक रात्रि वह ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, पर देवता तो भगवान के ध्यान में लीन थे। उन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतकाल निष्फल हो गया। इसलिए उन्होंने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से जिसे तुम देखोगे, वह नष्ट हो जाएगा।
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ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। उनकी धर्मपत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ किंतु श्राप के प्रतिकार की शक्ति उनमें नहीं थी, तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी का अनिष्ट हो।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी भेदन कर दे, तो पृथ्वी पर 12 वर्षों का घोर दुर्भिक्ष पड़ जाए और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाए। शनि ग्रह जब रोहिणी भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है। यह योग महाराज दशरथ के समय में आने वाला था। जब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ को बताया कि यदि शनि का योग आ जाएगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़पकर मर जाएगी।
प्रजा को इस कष्ट से बचाने हेतु महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मंडल में पहुंचे। पहले तो उन्होंने नित्य की भांति शनिदेव को प्रणाम किया, इसके पश्चात क्षत्रिय धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। शनिदेव, महाराज दशरथ की कर्तव्यनिष्ठा से अति प्रसन्न हुए और उनसे कहा वर मांगो- महाराज दशरथ ने वर मांगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप संकटभेदन न करें। शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट किया।
भगवान शनिदेव के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधि देवता यम हैं। इसका वर्ण कृष्ण, वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना है। शनिदेव एक राशि में 30-30 महीने रहते हैं। वे मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। इनकी शांति के लिए मृत्युंजय जप, नीलम धारण तथा ब्राह्मण को तिल, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी और सुवर्ण का दान देना चाहिए।
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्र यमाग्रजम, छायामार्तंड सम्भूतं नं नमामि शनैश्चरम।
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: तथा
इनमें से किसी एक मंत्र का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप का समय संध्याकाल तथा कुल संख्या 23 हजार होना चाहिए।
जीवन में ग्रहों का प्रभाव बहुत प्रबल माना जाता है और उस पर भी शनि ग्रह अशांत हो जाएं तो जीवन में कष्टों का आगमन शुरू हो जाता है. शनि, भगवान सूर्य और छाया के पुत्र हैं. शनि को क्रूर दृष्टि का ग्रह माना जाता है जो किसी के भी जीवन में उथल-पुथल मचा सकते हैं. लेकिन ऐसा क्यों है इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं.
आइए जानें, शनिदेव की क्रूर दृष्टि के पीछे का सच और कथा...
ब्रह्मपुराण के अनुसार, बचपन से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे. बड़े होने पर इनका विवाह चित्ररथ की कन्या से किया गया. इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थीं. एक बार पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से वे इनके पास पहुंची पर शनि श्रीकृष्ण के ध्यान में मग्न थे. पत्नी प्रतीक्षा करते हुए थक गईं और क्रोध में आकर उन्होंने शनि को श्राप दे दिया कि आज से आप जिसे देखोगे वह नष्ट हो जाएगा.
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ध्यान टूटने पर जब शनिदेव ने अपनी पत्नी को समणया तो उन्हें अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ. लेकिन बोले गए वचन तो वापस नहीं लिए जा सकते थे. उस दिन से शनिदेव अपना सिर नीचा रखने लगे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, अगर शनि रोहिणी-शकट भेदन कर दें तो पृथ्वी पर 12 वर्ष का अकाल पड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो किसी भी प्राणी का बचना मुश्किल है.