स्रोतों के आधार पर इतिहास को कितने भागों में बांटा गया है? - sroton ke aadhaar par itihaas ko kitane bhaagon mein baanta gaya hai?

विषयसूची

  • 1 इतिहास के कितने भाग हैं?
  • 2 वस्तुनिष्ठता की समस्या क्या है?
  • 3 2 इतिहास का क्या महत्व है?
  • 4 भारतीय इतिहास का जनक कौन है?

इतिहास के कितने भाग हैं?

इसे सुनेंरोकेंइतिहास के भाग : प्राचीन काल इतिहास (Ancient History) मध्यकालीन इतिहास (Midevable History) आधुनिक इतिहास (Morden History)

वस्तुनिष्ठता की समस्या क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसामाजिक शोध के द्वारा व्यक्ति जो निष्कर्ष निकालता है, उसमें ऐसा प्रयास करता है कि कहीं उसके स्वार्थों को आघात न पहुँचे। जो निष्कर्ष उसके स्वार्थों के विपरीत होते हैं, व्यक्ति उन्हें स्वीकार नहीं करता है। ऐसी स्थिति में वस्तुनिष्ठता को रख सकना, उस व्यक्ति के लिए असम्भव होता है।

संस्कृत के पिता कौन है?

संस्कृत का अन्य भाषाओं पर प्रभाव

संस्कृत शब्दहिन्दीमलयालम
मातृ माता अम्मा
पितृ/पितर पिता अच्चन्
दुहितृ बेटी
भ्रातृ/भ्रातर भाई

इतिहास के रचयिता कौन है?

इसे सुनेंरोकेंइतिहास के रचयिता कौन है? हेरोडोटस को इतिहास का जनक कहा जाता है । हेरोडोटस का जन्म 494 ईसा पूर्व फारसी साम्राज्य में हुआ था । हेरोडोटस के संस्कृत का नाम हरिदत्त था।

2 इतिहास का क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंइतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है। इन घटनाओं व ऐतिहासिक साक्ष्यों को तथ्य के आधार पर प्रमाणित किया जाता है।

इसे सुनेंरोकेंसामान्यतः इतिहास के अध्ययन को तीन भागों में बाँटा जाता है- प्राचीनकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल।

भारतीय इतिहास का जनक कौन है?

इसे सुनेंरोकेंMegasthenes (Μεγασθένης, सीए 350 – 2 9 0 ईसा पूर्व) भारत के पहले विदेशी राजदूत थे और उन्होंने इंडिका के नाम से जाने वाली मात्रा में अपने नृवंशविज्ञान अवलोकन दर्ज किए। अपने अग्रणी काम के लिए उन्हें भारतीय इतिहास के पिता के रूप में जाना जाता है।

इतिहास के तीन भाग कौन कौन है?

इसे सुनेंरोकेंइन तीन हिस्सों में भारत के इतिहास को बांटा गया है. तो इसी तरह सभी काल को अपने मौजूदा इतिहास के अनुसार बांटा गया है जिससे कि एक प्राचीन काल का इतिहास, एक मध्यकालीन का इतिहास और एक आधुनिक कालीन का इतिहास.

इस आर्टिकल में हम पढेंगे कि इतिहास किसे कहते हैं और इतिहास के जनक कौन हैं? इसके अलावां हम यह बभी पढेंगे कि इतिहास कितने प्रकार के होते हैं? और साथ ही हम इतिहास की परिभाषा हिन्दी में जानेंगे।

इतिहास किसे कहते हैं?

इतिहास को अंग्रेज़ी में History कहा जाता है, यह ग्रीक भाषा Historia से लिया गया है, जिसका अर्थ घटनाओं का वर्णन होता है।

इतिहास शब्द इति + हास शब्द से मिलकर बना है, जिसमे इति का अर्थ ‘बिती हुई’ तथा हास शब्द का अर्थ ‘घटित हुयी कहानी’ होती है। अतः हम कह सकते हैं कि अतीत का अध्ययन इतिहास कहलाता है

इतिहास की परिभाषा हिन्दी में

घटित घटनाओं या उससे सम्बंध रखनेवाली घटनाओं का काल क्रमानुसार वर्णन इतिहास कहलाता है। दुसरे शब्द में हम यह भी कह सकते हैं कि ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर भूतकाल की घटनाओं का वर्णन इतिहास कहलाता है।

इतिहास के जनक कौन हैं?

हेरोडोटस नाम के यूनानी व्यक्ति को इतिहास का जनक कहा जाता है। हेरोडोटस ने ही सबसे पहले इतिहास लिखना शुरू किया था, सबसे पहले इतिहास शब्द का प्रयोग हेरोडोटस द्वारा लिखित पुस्तक हिस्टोरिका में किया गया है। आप पढ़ रहे हैं – इतिहास किसे कहते हैं ?

इतिहास कितने प्रकार के होते हैं?

इतिहास को मुख्य तीन (3) खंडो में बाटा गया है। जो निम्नलिखित हैं-

  1. प्राक् ऐतिहासिक काल
  2. आद्य ऐतिहासिक काल
  3. ऐतिहासिक काल

प्राक् ऐतिहासिक काल

प्राक् ऐतिहासिक काल एक ऐसा काल है जिसका कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है, इसकी जानकारी हमें पुरातात्विक साक्ष्य जैसे-मिट्टी के बर्तन, पत्थर (पाषाण) के औजार और गुफाओं की कला आदि के आधार पर मिलती है। इस काल में अधिकतर पत्थर के औजार होने के कारण इसे पाषाण युग भी कहा जाता है। पाषण युग को भी 4 युगों में बाटा गया है, जो निम्नलिखित हैं।

1. पुरा पाषाण काल –

यह इतिहास का सबसे प्रारम्भिक समय था, इस समय के मानव को आदि मानव कहा जाता है। इस समय का मानव खानाबदोश (खाद्य संग्राहक) अर्थात् उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य जानवरों की भाँति ही अपना पेट भरना था। इस समय के मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि आग की खोज थी।

2. मध्य पाषाण काल –

यह पुरापाषाण के बाद का काल था। इस समय मानव के हथियार छोटे आकार के थे। इस समय के मानव की सबसे प्रमुख कार्य अंत्योष्टि (अंतिम संस्कार) कार्यक्रम था।

3. नव या उत्तर पाषाण काल –

इस काल में मानव ने स्थायी आवास बना लिया था। साथ ही मानव कृषि तथा पशुपालन भी प्रारम्भ कर दिया था। पहिया तथा मनका (घड़ा) की खोज भी इसी काल में हुआ था।

4. ताम्रपाषाण काल-

यह पाषाण काल का अंतिम समय था। इस समय तांबे की खोज हुई थी। जिस कारण औद्योगिकीकरण शुरू हो गया था । इसी औद्योगिकीकरण का विकसित रूप सिंधु सभ्यता में देखने को मिलता है।

पाषाण युग के महत्वपूर्ण खोज व विशेषताएं-

  1. मानव ने खेती 7000 ईसा पूर्व पाकिस्तान के सुलेमान एवं किर्थर पहाड़ियों के बीच की थी। पहली कृषि जौ एवं गेहूँ की थी।
  2. मानव द्वारा पाला गया पहला पशु कुत्ता था।
  3. पुरा-पाषाण काल में मानव आखेटक (शिकारी) था |
  4. इलाहाबाद के कोल्डिहवा में पहली बार चावल का साक्ष्य मिला |

आद्य ऐतिहासिक काल

आद्य ऐतिहासिक काल में पुरातात्विक साक्ष्य के साथ-साथ लिखित साक्ष्य भी मिले हैं, लेकिन इन्हें पढ़ा नहीं जा सका है। इस काल में सिन्धु सभ्यता को रखा गया है।

सिंधु सभ्यता

सिंधु नदी के किनारे विकसित होने के कारण इसे सिन्धु सभ्यता कहते हैं। इसकी जानकारी के लिए पहली खुदाई हड़प्पा से हुई थी। अतः इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं। सबसे पहले सिघु सभ्यता की जानकारी चार्ल्स मैशन ने दिया था, जिसका सर्वेक्षण जेम्स कनिंघम ने तथा पहली खुदाई दयाराम साहनी ने की थी।

सिंधु सभ्यता 13 लाख वर्ग किमी। में फैली हुई है। सिंधु सभ्यता का नामकरण जॉन मार्शल ने किया था। सिंधु सभ्यता का आकार त्रिभुजाकार है।  इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान के सुतकार्गेडोर में थी, जो दाश्क नदी के तट पर थी। तथा इसकी उत्तरी सीमा कश्मीर के मांडा में चिनाब नदी के तट पर थी।

इसकी पूर्वी सीमा उत्तर-प्रदेश के आलमगीरपुर में थी। जो हिन्डन नदी के किनारे थी और इसकी दक्षिणी सीमा महाराष्ट्र के दयामाबाद में  प्रवरा नदी के तट पर थी। सिधु सभ्यता की खुदाई में बहुत से नगर मिलें जिनमें मुख्य नगर निम्नलिखित हैं।

हड़प्पा (1921) –

पाकिस्तान के रावी नदी के किनारे माउंट गोमरी ज़िला में स्थित हड़प्पा कि खुदाई दयाराम साहनी ने सन् 1921 ई.  में की थी। यहाँ खुदाई से कुम्हार का चाक, अन्नागार, श्रमिक आवास, मातृदेवी की मूर्ति, लकड़ी की ओखली, लकड़ी का ताबूत, R.H. 37 कब्रिस्तान, हाथी का कपाल और स्वस्तिक चित्र आदि अवशेष मिलें। आप पढ़ रहे हैं – इतिहास किसे कहते हैं ?

मोहनजोदड़ो (1922) –

मोहनजोदड़ो की खुदाई सन् 1922 ई. में राखलदास बनर्जी ने की थी, यह पाकिस्तान के लरकाना जिलें में स्थित है। यहाँ खुदाई से पुरोहित आवास, घर में कुआँ, विशाल स्नानागार, अन्नागार, सूती वस्त्र, सबसे चौड़ी सड़क, सभागार, पशुपति शिव, कांसे की नर्तकी, ताम्बे का ढेर और इसके साथ-साथ मृतको का एक बहुत बड़ा टीला मिला।

चन्दहुदड़ो (1931) –

चन्दहुदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में सिन्धु नदी के किनारे पर स्थित एक मात्र ऐसा शहर था जो दुर्ग रहित था। यहाँ खुदाई से मनका बनाने का कारखाना, दवात, मेक-अप सामग्री, लिपस्टिक, शीशा, गुडिया और बिल्ली का पीछा करता हुआ कुत्ता से अलंकृत ईंट आदि अवशेष मिले हैं।

रोपण (1953) –

पंजाब राज्य के सतलज नदी के किनारे पर स्थित इस स्थान की खुदाई यज्ञदत्त शर्मा ने की थी । यहाँ मानव के साथ-साथ पालतू जानवरों के भी शव मिलें। ऐसा ही शव नव पाषण काल में जम्मू कश्मीर के बुर्जहोम में मिला था।

बनवाली-

हरियाणा के रंगोई नदी के समीप के इस स्थान की खुदाई रविन्द्र सिंह ने की थी। यहाँ की सड़के टेढ़ी-मेढ़ी थी, यहाँ जल निकासी की व्यवस्था नहीं थी, इसलिए यहाँ के घरो में सोखता मिला।

कालीबंगा-

कालीबंगा का अर्थ काली मिट्टी की चूड़ी होती है, इस स्थान की खुदाई बी.के. थापण और बी.बी. लाल ने की थी। यहाँ से अलंकृत ईंट, चूड़ी, हल और हवन कुंड मिले हैं।

ऐतिहासिक काल

इस काल के बारे में लिखित सामग्री उपलब्ध है और इसे पढ़ा भी जा सकता है, इसके अंतर्गत वैदिक काल से लेकर अभी तक का समय आता है। ऐतिहासिक काल की जानकारी हमें पुरातात्विक श्रोत (सिक्का और अभिलेख) , विदेशियों तथा साहित्य द्वारा मिलती है। इसी काल में भारत के प्रमुख धर्म जैसे बौद्ध और जैन धर्मों के साथ-साथ 72  अन्य संप्रदायों का विकास हुआ, इसी के बाद द्वितीय नगरीकरण महाजनपद का विकास हुआ।

वैदिक काल

वैदिक समाज की स्थापना आर्यों ने की थी, ये मध्य एशिया से भारत आए थे। संस्कृत इनकी मूल भाषा थी, देवताओं की भाषा संस्कृत होने के कारण यह ख़ुद को श्रेष्ठ मानते और भारत के मूल निवासियों को जिन्हें संस्कृत नहीं आती उन्हें अनार्य या निम्न कहा जाता था।

वैदिक समाज ग्रामीण सभ्यता थी अतः कृषि उस समय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था। आर्यों में जाती का निर्धारण कर्म के आधार पर होता था, किन्तु उत्तर वैदिक काल में यह वंश के आधार पर होने लगा। लोहे कि खोज भी उत्तर वैदिक काल में ही हुई थी।

वैदिक काल की सामाजिक व्यवस्था में सबसे बड़ा पद राजा का होता था, जिसे जनता द्वारा चुना जाता था। निर्णय लेने से पहले राजा अपने सभा, समितियों से विचार-विमर्श करते थे।

 जैन धर्म-

जैन धर्म के प्रवर्तक को तीर्थकर कहा जाता था, ऋषभदेव  जैनधर्म के संस्थापक व पहले तीर्थकर थे। जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी थे, इन्हें ही जैन धर्म का वास्तविक तीर्थकर माना जाता है। इन्होने अपना पहला उपदेश राजगीर तथा अंतिम उपदेश पावापुरी में दी थी।

महावीर स्वामी ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दी। महावीर स्वामी के उपदेशों को चौदह पूर्वी नामक पुस्तक में रखा गया है जो जैन धर्म की सबसे प्राचीन पुस्तक है। ज्ञान प्राप्त के बाद महावीर स्वामी ने पंचायन धर्म और त्रिरत्न दिए। महावीर स्वामी के दो प्रिय अनुयायी भद्रबाहु और स्थूलबाहू थे। मगध में 12 वर्षीय अकाल पड़ने के बाद दोनों अनुयायी में विवाद हो गया। आप पढ़ रहे हैं – इतिहास किसे कहते हैं ?

पंचायन धर्म
  1. झूठ नहीं बोलना
  2. धन संग्रह नहीं करना
  3. चोरी नहीं करना
  4. हिंसा नहीं करना
  5. ब्रह्माचार्य
त्रिरत्न
  1. सम्यक ज्ञान
  2. सम्यक विश्वास
  3. सम्यक आचरण

भद्रबाहु के नेतृत्व वाले लोग निर्वस्त्र रहते थे  जिन्हें दिगम्बर कहा गया, जबकि स्थूलबाहू के-के नेतृत्व वाले लोग श्वेत वस्त्र पहनते थे, जिसे श्वेताम्बर कहा गया। मौर्य काल में जैन धर्म का प्रमुख केंद्र मथुरा था । मध्यप्रदेश के चंदेल शासको ने खजुराहो में जैन मंदिर बनवाएँ तथा कर्नाटक में चामुंड शासको ने गोमतेश्वर का जैन मंदिर बनवायें, जिसे बाहुबली का मंदिर कहा जाता है।

बौद्ध धर्म-

बौद्ध धर्म कि शुरुआत महत्मा बुद्ध ने किया था। महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई.पू। नेपाल के लुम्बनी में हुआ था,   इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनके पिता सुद्दोधन तथा माता का नाम महामाया था। सिद्धार्थ के जन्म के 1 सप्ताह बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया। तब इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने इनका पालन-पोषण किया। 16 वर्ष की आयु में ही इनकी शादी हो गयी, इनकी पत्नी का नाम यशोधरा तथा इनके पुत्र का नाम राहुल था।   इनकी मृत्यु 483 ई.पू। उत्तर-प्रदेश के कुशीनगर जिले में हुई थी।

29 वर्ष की आयु में इन्होने अपना गृह त्याग दिया और अलार-कलाम से सांख्य दर्शन तथा रुद्रकराम से योग दर्शन की शिक्षा ली। रुद्रकराम को ही सिद्धार्थ का गुरु माना जाता है। सारनाथ में 6 वर्षो तक कठोर तपस्या करने के बाद ये गया चले गए, वहीँ वैशाखी पूर्णिमा के दिन एक पीपल वृक्ष के निचे इन्हें ज्ञान की प्राप्ति और सारनाथ में इन्होने पहली बार उपदेश दियें।

ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने चार सत्य कथन कहे और इच्छाओं पर नियंत्रण के लिए 8 मार्ग बताएँ, जिसे अष्टांगिक मार्ग कहते है। बुद्ध ने अपने अनुयायीओं को 10 चीजे करने को मना किया था जिसे शील कहते हैं। महात्मा बुद्धा ने तीन दर्शन (अनेश्वरवाद, शून्यवाद तथा क्षणिकवाद) भी कियें। आप पढ़ रहे हैं – इतिहास किसे कहते हैं ?

महात्मा बुद्ध के चार सत्य कथन-
  1. संसार दुखो से भरा है।
  2. हर दुःख का कोई न कोई  कारण आवश्य होता है।
  3. सभी दुखों का सबसे बड़ा कारण इच्छा है।
  4. इच्छा पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
महाजनपद

6वी  शताब्दी में ई.पू। अखण्ड भारत में द्वीतीय नगरीकरण प्रारम्भ हो गई, जिसे महाजनपद कहते हैं। बौद्ध ग्रन्थ अन्गुतर निकाय तथा जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र में 16 महाजनपद की चर्चा है, जो निम्नलिखित है। जिसमे मगध सबसे बड़ा महाजनपद था। मगध महाजपद पर कुल 7 राजवंशों ने शासन किया।

महाजनपदराजधानीक्षेत्र
गांधार तक्षशिला पाकिस्तान
कम्बोज हाटक J & K पाक सीमा
मत्स्य विराट नगर राजस्थान
कुरु इन्द्रप्रस्थ दिल्ली / हरियाणा
सूर्यसेन मथुरा उत्तर-प्रदेश
कौशल स्रावास्ति उत्तर-प्रदेश
पांचाल अहिच्छंद कांपिल्य उत्तर-प्रदेश
चेदी शक्तिमान उत्तर-प्रदेश
वत्स कौशाम्बी उत्तर-प्रदेश
काशी वाराणसी उत्तर-प्रदेश
मल्ल कुशीनगर उत्तर-प्रदेश
अस्मक पोटला महाराष्ट्र
अवन्ति उज्जैनी/महिस्मती मध्यप्रदेश
वज्जि वैशाली बिहार
अंग चंपा, भागलपुर, मुंगेर बिहार
मगध राजगरी, पाटलीपुत्र बिहार

हर्यक वंश –

इस वंश के संस्थापक बिंबिसार थे जिनको पहला ऐतिहासिक राजवंश माना जाता है, बेमिसाल ने अपना विस्तार दहेज में मिली क्षेत्र से किया। बिंबिसार छोटे राज्यों पर आक्रमण करके उन्हें जीतकर अपना राज्य विस्तार कर रहा था। बिंबिसार ने वैशाली पर भी आक्रमण किया किन्तु सफल नहीं रहा। बिंबिसार की मृत्यु उसके अपने ही बेटे अजातशत्रु द्वारा की गई थी। इस वंश का अंतिम शाशक उदायिन था। इसकी हत्या इसके ही सेनापति शिशुनाग ने की थी।

शिशुनाग वंश –

हर्यक वंश के अंतिम शासक उदायिन को मारकर शिशुनाग ने शिशुनाग वंश की स्थापना की और अपनी राजधानी वैशाली को बनाया। इस वंश का अगला शासक कालाशोक था, इसने पाटलिपुत्र को पुनः अपनी राजधानी बना दिया। इस वंश का अंतिम शासक नंदी वर्मन था जिसकी हत्या महापदम नंद ने की।

नंद वंश –

शिशुनाग वंश के अंतिम शासक कालाशोक की हत्या करके महापदम नंद ने नंद वंश की स्थापना की। इस वंश का अगला शासक घनानंद था, जो बहुत ही क्रूर शासक था। इसने कलिंग में नहर निर्माण का कार्य कराया। कौटिल्य चाणक्य द्वारा अखंड भारत की बात करने पर घनानंद ने भरे दरबार में चाणक्य का अपमान किया और इसी अपमान के प्रतिशोध हेतु चाणक्य ने चंद्रगुप्त के सहयोग से घनानंद की हत्या कर दी। घनानंद ही इस वंश का अंतिम शासक था।

मौर्य वंश –

घनानंद की हत्या करके चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की स्थापना की। जब चंद्रगुप्त मौर्य मगध का शासक था, तभी यूनानी आक्रमणकारी सेल्यूकस निकेटर ने मगध पर आक्रमण कर दिया किंतु चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को पराजित कर दिया और उसकी बेटी कार्नेलिया (हेलेना) से विवाह कर लिया। चंद्रगुप्त मौर्य को जैन धर्म की शिक्षा भद्रबाहु के नेतृत्व से मिली थी।

चंद्रगुप्त के बाद बिंदुसार मगध का शासक बना जो घनानंद की बहन दुर्धरा का पुत्र था। बिंदुसार के समय तक्षशिला में विद्रोह हो गया जिसे बिंदुसार का बड़ा बेटा सुशीम नहीं रोक पाया और तब बिंदुसार ने अपने छोटे पुत्र अशोक को तक्षशिला भेजा।

बिंदुसार की मृत्यु के पश्चात अशोक मगध का राजा बना। 261 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कर दिया परंतु कलिंग में हुए भीषण नरसंहार को देखकर परिवर्तित हो गया, और उसने कभी भी युद्ध ना करने का निर्णय लिया। इसके पश्चात् अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने बड़े बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।

अशोक भारत का पहला ऐसा शासक था जिसने स्तंभ अभिलेख के माध्यम से अपना संदेश जनता तक पहुँचाया हो। मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहदरथ था, जो कमजोर और अयोग्य शासक था। बृहदरथ का सेनापति पुष्यमित्र शुंग था, जिसने सेना निरीक्षण के दौरान बृहदरथ की हत्या कर दी और शुंग वंश की स्थापना की। आप पढ़ रहे हैं – इतिहास किसे कहते हैं ?

शुंग वंश-

पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की स्थापना की। मगध पर शासन करने वाला पहला गैर क्षेत्रीय राजवंश था, यह एक कट्टर ब्राह्मण था जिसने बहुत सारे बौद्ध स्तूपों तथा मठों को ध्वस्त करा दिया। इन्हीं के शासन काल में बौद्ध पुस्तक जातक ग्रन्थ की रचना हुई।

इस वंश के शासक भाग्व्रत के दरबार में यवन राजदूत हेलियोटोडस आया था, जिसका गरुन्ध्वाज अभिलेख मिला है। इस वंश के अंतिम शासक देवभूति थे जिनकी हत्या उन्हीं के मंत्री वासुदेव ने कर दी और इसके स्थान पर कण्णव वंश की स्थापना कर दी।

कण्णव वंश / कण्व वंश-

शुंग वंश के अन्तिम शासक देवभूति के मन्त्रि वासुदेव ने उसकी हत्या कर कण्व वंश की स्थापना की, इस वंश के कुल 4 शासको ने शासन किया। इस वंश का अन्तिम सम्राट सुशमी कण्य अत्यन्त अयोग्य और दुर्बल था, इसकी हत्या कर इसके मंत्री शिमुक ने और सातवाहन वंश की स्थपाना कर दी।

सातवाहन वंश-

इस वंश के संस्थापक शिमुक थे, शीशा के सिक्कों चलन इनके शासन काल में ही हुआ था, सातवाहन में सबसे योग्य शासक हाल था। ब्राह्मणों को सबसे पहले भू दान सातवाहनों ने देना शुरू किया। सातवाहन काल की भूमि सबसे उपजाऊ भूमि थी, सातवाहन वंश का साम्राज्य गोदावरी नदी कि घाटी में था। आप पढ़ रहे हैं – इतिहास किसे कहते हैं ?

मौर्योत्तर काल

मौर्य काल के पतन के बाद मगध छोटे-छोटे टुकड़ो में बट गया और कोई भी योग्य शासक नहीं रहा। जिसके कारण से विदेशी आक्रमणकरियों को एक अवसर मिल गया, इस बीच चार विदेशी आक्रमण हुआ, जो निम्नलिखित है-

  1. हिन्द यूनानी (Indo Greek)
  2. शाक / शिथियन वंश
  3. पहलव वंश
  4. कुषाण वंश

Indo Greek (हिन्द यूनानी) –

यह यवन से आकार भारत में बस गए अतः इन्हें हिन्द यूनानी (Indo Greek) भी कहते हैं। इंडो-ग्रीक शासकों ने सर्वप्रथम सोने के सिक्के तथा लेखयुक्त सिक्के जरी किये। यूनानियों ने ही भारत को सप्ताह के सात दिनों का विभाजन और समय की गणना सिखलाया।

शक्-

ये मध्य एशिया के रहने वाले थे। शक शासको में रुद्रमान  प्रमुख था। जूनागढ़ से प्राप्त अभिलेख से रुद्रमान का पहला संस्कृत अभिलेख है। इस वंश का अंतिम शासक रुद्रसिंह-III थे। कनिष्क के कैलेण्डर का नाम शक् संवत काल में पड़ा।

पहलव वंश-

ये ईरान के रहने वाले थे इन्हें फारस / पर्सिया कहा जाता था। इस वंश के संस्थापक मिथ्रेंडेट्स थे, इन्होने अपनी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) को बनायीं। इस वंश के सबसे योग्य शासक गोन्दोफर्मिस थे जिनका पाकिस्तान से ” तख्त-ए-बड़ी’ अभिलेख मिला है। यह खरोष्टि लिपी में है।

कुषाण वंश-

कुषाण वंश के संस्थापक कुजुलकडफिसस थे, इन्होंने तांबे का सिक्का चलाया था। कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था। कनिष्क ने 78 ई. में शक संवत को प्रचलित किया। कनिष्क ने अपनी पहली राजधानी पुरुषपुर तथा द्वितीय राजधानी मथुरा को बनाया। कनिष्क ने कश्मीर में कनिष्कपुर नाम के नगर की स्थापना की, यह बौद्ध धर्म का अनुयाई था।

इसी के शासनकाल में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन कुंडल वन में हुआ था, जो कश्मीर में स्थित है। पहली बार नाशपाती की खेती भी कनिष्क के शासनकाल में हुई थी। कनिष्का ने ही सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के चलाए। आप पढ़ रहे हैं – इतिहास किसे कहते हैं ?

इस आर्टिकल में आपने पढ़ा कि इतिहास किसे कहते हैं और इतिहास के जनक कौन हैं?,  इतिहास किसे कहते हैं? के अंतर्गत आपने प्राक् ऐतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल में कुषाण वंश तक पढ़ लिया है। इस काल के बाद गुप्त वंश की स्थापना हुई, जिसे जल्द ही अपडेट किया जायेगा।

स्रोत के आधार पर इतिहास को कितने भागों में बांटा गया है?

इतिहासकार वी. डी. महाजन द्वारा, प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है - साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक स्रोत, विदेशी विवरण, एवं जनजातीय गाथायें।

इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को कितने भागों में बांटा है?

Solution : तीन काल-खण्डों में—(1) प्राचीन काल, (2) मध्यकाल, (3) आधुनिक काल।

इतिहास के मुख्य रूप में कितने भागों में बांटा गया?

प्राचीन भारत के राजवंश और उनके संस्थापक.

इतिहास को तीन भागों में क्यों बांटा गया है?

जिसमें भारतीय इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया गया. पहला काल जब हिंदू शासक थे. दूसरा काल जब मुस्लिम शासक थे तथा तीसरा काल जब ब्रिटिश शासक थे. धर्म के आधार पर विभाजित करने के कारण उनके इस विभाजन पर कई सवाल भी उठाएं जाते हैं.

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