सौर सेल ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में बदलता है ऊर्जा के दो रूप क्या है? - saur sel oorja ke ek roop ko doosare roop mein badalata hai oorja ke do roop kya hai?

  1. एक अर्धचालक ट्रायोड
  2. एक अर्धचालक डायोड
  3. दो अच्छे चालकों के बीच एक जंक्शन
  4. इनमें से कोई भी नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : एक अर्धचालक डायोड

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CT 1: सामान्य हिंदी (संधि और संधि विग्रह)

10 Questions 10 Marks 10 Mins

व्याख्या:

PN जंक्शन डायोड:

एक डायोड एक दो-टर्मिनल इलेक्ट्रॉनिक घटक है जो मुख्य रूप से एक दिशा में धारा का संचालन करता है; इसका एक दिशा में कम प्रतिरोध होता है, और दूसरे में उच्च प्रतिरोध होता है।

  • सौर सेल प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में भी परिवर्तित करता है। यह मूल रूप से एक बड़े क्षेत्र का फोटोडायोड है।

Additional Information

अग्र अभिनती के तहत डायोड

जब डायोड अग्र अभिनत होता है और लागू वोल्टेज को शून्य से बढ़ा दिया जाता है, तो प्रारंभिक स्तर पर कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि बाहरी वोल्टेज का विरोध आंतरिक बैरियर वोल्टेज VB द्वारा किया जा रहा है, जिसका मान Si के लिए 0.7 V और Ge के लिए 0.3 V है, क्योंकि दोनों क्षेत्रों में बहुसंख्यक वाहक (N क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन और P क्षेत्र में छिद्र) हैं।

जैसे ही VB को तटस्थ बना दिया जाता है, डायोड के माध्यम से धारा में बैटरी वोल्टेज बढ़ने के साथ तेजी से वृद्धि होती है।

पश्च अभिनती:

पश्च अभिनती में ऋणात्मक क्षेत्र बैटरी के धनात्मक टर्मिनल से जुड़ा होता है और धनात्मक क्षेत्र ऋणात्मक टर्मिनल से जुड़ा होता है। पश्च विभव विभव रोध की ताकत को बढ़ाता है। विभव अवरोध जंक्शन के पार आवेश वाहक के प्रवाह को रोकता है। यह एक उच्च प्रतिरोधक पथ बनाता है जिसमें कोई भी धारा परिपथ से नहीं बहती है।

ट्रायोड:

  • ट्रांजिस्टर की खोज से पहले प्रवर्धन प्रयोजनों के लिए निर्वात ट्रायोड का उपयोग किया गया था।
  •  एक ट्रायोड तीन इलेक्ट्रोड, कैथोड, एनोड और एक नियंत्रण ग्रिड के साथ एक निर्वात ट्यूब है।
  • इनका उपयोग निम्न-आवृत्ति संचालन के लिए किया जाता है

नियंत्रण ग्रिड के अनुरूप एक ऋणात्मक या धनात्मक वोल्टेज लागू करके, निर्वात ट्यूब के माध्यम से इलेक्ट्रॉन प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है।

Last updated on Sep 26, 2022

The Uttarakhand Public Service Commission (UKPSC) released the provisional answer key for the UKPSC AE (Assistant Engineer) Recruitment Exam on 24th May 2022. The candidates can calculate the total marks obtained by them in the written exam but the commission made it clear that it must not be treated as the final result of the exam. Also, a window was opened for the candidates to submit objections against the answer key from 25th May to 31st May 2022. The candidates check the UKPS AE Answer Key from here.

हम जानते हैं कि सूर्य ऊर्जा का एक अथाह भण्डार है। ऊर्जा की बढ़ती मांग और सीमित ऊर्जा स्रोतों के मद्देनजर हम सूर्य की ऊर्जा का अधिकतम उपयोग करना चाहते हैं। सूर्य से हमें सीधे-सीधे मुख्यतः दो प्रकार की ऊर्जा मिलती है – ऊष्मीय ऊर्जा तथा प्रकाशीय ऊर्जा। ऊष्मीय ऊर्जा का हम प्राचीन काल से ही कई तरह से उपयोग करते आए हैं, जैसे कि घरों को गरम रखने के लिये, कपड़े सुखाने के लिये, सोलर हीटर से पानी गरम करने के लिये तथा सोलर कुकर से खाना बनाने के लिये आदि। इसी के साथ सूर्य की प्रकाशीय ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिये वैज्ञानिकों ने सोलर सेल टेक्नोलॉजी का विकास किया। वैसे तो फोटोवोल्टाइक यानि प्रकाश-विद्युत आधारित सोलर सेल तकनीक के विकास के लिये बहुत पहले से कार्य चल रहा था, परन्तु 25 अप्रैल, 1954 को बेल लेबोरेटरी ने पहली बार सिलिकॉन आधारित व्यावहारिक सौर सेल की घोषणा की, जिनकी दक्षता लगभग 6 प्रतिशत थी। उसके बाद से दुनियाभर के वैज्ञानिक उन्नत किस्म के, अधिक दक्षता वाले, सस्ते और टिकाऊ सौर सेल बनाने में जुटे हुये हैं।

सौर सेल तकनीक के क्षेत्र में हो रहे नए-नए प्रयोगों और आविष्कारों के बारे में जानने से पहले, आइये जानते हैं कि आखिर सौर सेल क्या होते हैं और ये कैसे कार्य करते हैं? हो सकता है आपने ट्रेफिक लाइट सिग्नलों के आस-पास या आपके आस-पड़ोस में घरों की छतों पर खिड़की के पल्ले जैसी दिखने वाले नीली प्लेटों को देखा हो। कहीं-कहीं मैदानी इलाकों में या फार्मों में कतार में ऐसी अनेक प्लेट लगी होती हैं, जिनकी सहायता से सूर्य की प्रकाशीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। इन बड़ी-बड़ी प्लेटों को सौर पैनल कहते हैं और ये सौर पैनल बहुत से सौर सेलों से मिलकर बने होते हैं। सौर सेल या सौर बैटरी एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जो प्रकाश-विद्युत प्रभाव के सिद्धान्त के अनुसार सूर्य की प्रकाशीय ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है। एक सौर सेल तो सामान्यतः एक से दो वॉल्ट ऊर्जा उत्पन्न करता है, परंतु अधिक वोल्टेज प्राप्त करने के लिये ऐसे बहुत से सेलों को एक-दूसरे के साथ जोड़कर सोलर मॉड्यूल बनाए जाते हैं और कई सोलर माॅड्यूल को मिला कर सोलर पैनल बनाए जाते हैं।

अब सवाल यह पैदा होता है कि सौर सेल में ऐसी क्या चीज है, जिससे यह सूर्य की रोशनी को बिजली में परिवर्तित कर देता है। दरअसल, शुरुआती सौर सेल यहाँ तक कि वर्तमान में इस्तेमाल किए जाने वाले अधिकांश सौर सेल मोनो क्रिस्टलीय सिलिकॉन जैसे अकार्बनिक तत्वों से बने होते हैं, इसलिये इन्हें अकार्बनिक सौर सेल भी कहते हैं। अकार्बनिक सौर सेल सिलिकॉन जैसे अर्धचालक पदार्थ से बना हुआ होता है। यहाँ यह बताना उचित होगा कि अर्धचालक वे पदार्थ होते हैं जोकि सामान्य ताप पर विद्युत के कुचालक होते हैं परन्तु ताप बढ़ाने पर वे सुचालक की तरह कार्य करते हैं। अर्धचालकों में विशेष प्रकार की अशुद्धियाँ मिलाकर उन्हें दो तरह के अर्ध चालकों के रूप में विकसित किया जा सकता है- यदि अशुद्धि मिलने से उसमें इलेक्ट्रॉनों की अधिकता हो जाए तो उन्हें एन-टाइप अर्धचालक कहते हैं और यदि उनमें इलेक्ट्रॉनों की कमी हो जाए तो उन्हें पी-टाइप अर्धचालक कहते हैं।

जब एन-टाइप और पी-टाइप अर्धचालकों को एक विशेष विधि से एक दूसरे के साथ संयोजित किया जाता है तो उनके बीच एक बंध बनता है, जिसे पी-एन जंक्शन कहते हैं। दरअसल, यही सौर सेल होता है। इसके दोनों तरफ दो पतले चालक तार लगे होते हैं जिन्हें इलेक्ट्रोड कहते है। जब इस पी-एन जंक्शन की एन-टाइप वाली परत पर एक विशेष आवृत्ति की प्रकाश किरणें यानि फोटॉन कण पड़ते हैं तो इनकी ऊर्जा इलेक्ट्रॉनों को स्थानांतरित हो जाती है, जिसके कारण ये इलेक्ट्रॉन पी-एन जंक्शन को पार करके पी-टाइप वाली परत में पहुँचने लगते हैं और अपनी जगह खाली स्थान छोड़ देते हैं, जिसके फलस्वरूप पी-एन जंक्शन पर एक विभवान्तर पैदा हो जाता है। इस तरह बने सौर सेल को जब इलेक्ट्रोडों की मदद से किसी परिपथ में जोड़ते हैं तो विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है, जिसे विभिन्न बैट्रियों में स्टोर कर लिया जाता है और बाद में आवश्यकता पड़ने पर उसे इस्तेमाल किया जा सकता है। इस काम के लिये अधिकांशतः लेड-एसिड और निकिल-कैडमियम सौर बैट्रियों का प्रयोग किया जाता है।

विभिन्न प्रकार के सौर सेल

अधिकांशतः अकार्बनिक सौर सेल सिलिकॉन से बनते हैं। अकार्बनिक सौर सेल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं - मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल, पॉलीक्रिस्टलीय सौर सेल तथा थिन-फिल्म यानि पतली झिल्ली वाले सौर सेल।

मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल बनाने के लिये पहले पिघले हुए सिलिकॉन से एकल तथा समरूप पिंड यानि इंगोट बनाए जाते हैं और फिर उनसे पतली चौकोर परत काटी जाती हैं। इस तरह बने सौर सेलों की दक्षता लगभग 15 प्रतिशत होती है। मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल अपेक्षाकृत कम जगह घेरते हैं और अन्य सभी प्रकार के सौर सेलों की अपेक्षा अधिक समय तक चलते हैं। और जब बहुत से सिलिकॉन क्रिस्टलों को एक साथ ढलाई करके बनाए गए पिंड से काटी गई पतली परत से सौर सेल बनाया जाता है तो वह पॉलीक्रिस्टलीय सौर सेल होता है। मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल की अपेक्षा ये अधिक सस्ते होते हैं, क्योंकि इनके बनाने में सिलिकॉन की बर्बादी बहुत कम होती है। परन्तु मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल की अपेक्षा इनकी दक्षता कम होती है, क्योंकि इसके लिये इस्तेमाल किया जाने वाला पदार्थ उतना शुद्ध नहीं होता है। साथ ही उच्च तापीय अवस्था में इनकी दक्षता कम हो जाती है। आजकल जितने सौर सेल इस्तेमाल किए जा रहे हैं उनमें अधिकांश पॉलीक्रिस्टलीय तथा मोनोक्रिस्टलीय सौर सेल ही हैं, चाहे वह सौर फार्म में लगे सौर पैनल हों या ट्रेफिक लाइट में लगे सौर सेल हों।

थिन-फिल्म सौर सेल बनाने के लिये अमोर्फस यानि आकारहीन सिलिकॉन या कैडमियम टेल्यूराइड, कॉपर इंडियम तथा गेलियम सेलिनाइड जैसे पदार्थों की अत्यंत पतली परतों का उपयोग किया जाता है। ये सौर सेल लचीले होते हैं तथा इनका उत्पादन काफी सस्ता होता है। लेकिन इनकी पावर डेंसिटी यानि विद्युत घनत्व काफी कम होता है, जिसके कारण अन्य सौर पैनलों की अपेक्षा इनका पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक चाहिए। क्रिस्टलीय सौर सेलों की अपेक्षा ये अधिक महँगे तथा इनके लगाने के लिये अधिक जगह की आवश्यकता होती है। इसलिये इस तरह के सौर पैनल केवल सौर फार्मों में ही लगाए जाते हैं जहाँ आकार की कोई सीमा नहीं होती है। इनके लचीलेपन के कारण इनका उपयोग अपेक्षाकृत अधिक किया जाता है। इसलिये आज के मार्केट में इनकी माँग बढ़ती जा रही है।

यद्यपि अभी भी सिलिकॉन आधारित अकार्बनिक सौर सेल ही ज्यादातर उपयोग किए जा रहे हैं, परंतु इनकी कम दक्षता और अधिक कीमत के चलते दुनियाभर के वैज्ञानिक और उन्नत किस्म के सौर सेल बनाने में जुटे हुये हैं।

कार्बनिक सौर सेल

समान्यतः सौर सेल से अपने ऊपर पड़ने वाले प्रकाश का केवल 15 प्रतिशत भाग ही विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो पाता है, बाकी 85 प्रतिशत भाग बेकार चला जाता है, इसलिये वैज्ञानिकों ने इन सेलों की दक्षता बढ़ाने व पर्यावरण के अनुकूल रखने के लिये इस क्षेत्र में शोध करना आरम्भ किया और अब कार्बनिक सौर सेल बनाने की नई प्रौद्योगिकी की खोज की है। अभी भी इस क्षेत्र में प्रयास चल रहे हैं, ताकि हमें एक सस्ती, पर्यावरण के अनुकूल व अत्यधिक दक्ष प्रौद्योगिकी मिल सके। यह सौर सेल ऑर्गेनिक तत्वों से बनाए जाते हैं, यद्यपि इनकी दक्षता अकार्बनिक सेलों से कम होती है परंतु यह पर्यावरण के अनुकूल एवं सस्ते में बनाए जा सकते हैं, इसलिये दुनियाभर में इनके ऊपर काफी तेजी से शोध कार्य हो रहा है।

जब फोटॉन सेल की ऊपरी परत पर पड़ते हैं तो वे अपनी ऊर्जा इलेक्ट्रॉन्स को दे देते हैं जो कि अब एक्सिटोन कहलाते हैं। यह एक्सिटोन वैलेन्स बैंड से कन्डक्शन बैंड में चले जाते हैं परंतु इलैक्ट्रोस्टेटिक बल के कारण इनको कंडक्शन बैंड के कारण पूरी स्वतंत्रता नहीं मिली होती है। इसे खत्म करने के लिये एक अतिरिक्त परत का इस्तेमाल होता है जो इलेक्ट्रॉन्स के पोटैन्शियल यानि विभव को बढ़ा देती है। और जब यह एक्सिटोन आगे बढ़ते हैं तो यह दो भागों में बँट जाते हैं। एक होता है इलेक्ट्रॉन और दूसरा बचा हुआ खाली स्थान जिसे होल भी कहते हैं। इस बँटवारे के कारण एक इलेक्ट्रिक फील्ड की स्थापना होती है जो इलेक्ट्रॉन्स को एक तरफ करती है और होल्स को एक तरफ, जिसके फलस्वरूप वहाँ एक विभवान्तर पैदा हो जाता है। और जब इसे किसी परिपथ में जोड़ते हैं तो विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है। जिसके कारण हम इसका उपयोग बिजली के उपकरण चलाने में कर सकते हैं।

इससे पैदा हुई विद्युत ऊर्जा को बैट्रियों में स्टोर भी किया जा सकता है।

कार्बनिक सौर सेल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं – एक तो छोटे अणुओं से बने सौर सेल, दूसरे बहुलक अणुओं यानि पॉलिमर से बने सौर सेल तथा तीसरे प्रकार के डाई सेंसिटाइस्ड यानि रंजक संवेदी सौर सेल होते हैं।

यही नहीं, हाल ही में सिंगापुर में भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक नवाब सिंह के दल ने बेहद कारगर और सस्ता सिलिकॉन सौर सेल बनाने के लिये नैनो स्ट्रक्चर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने का दावा किया है। उनके अनुसार नया सौर सेल सौर ऊर्जा की लागत को आधा कर देगा। उन्होंने प्रकाश के कम अवशोषण एवं अमोर्फस पतले सिलिकॉन फिल्म सेलस में कैरियर रिकॉम्बिनेशन यानि वाहकों के आपस में संयोजन को कम करने के लिये सिलिकॉन सतह पर एक नया ढाँचा तैयार किया है। इस तरह तैयार किए गए सेल से इतनी विद्युत धारा पैदा की जा सकती है, जो अब तक सिलिकॉन सौर सेल के लिये एक विश्व रिकॉर्ड होगी।

कार्बनिक सौर सेल के लाभ

यद्यपि अकार्बनिक सौर सेल की अपेक्षा कार्बनिक सौर सेल केवल छः-सात प्रतिशत तक ही प्रकाश को विद्युत ऊर्जा में बदल पाते हैं, फिर भी इनके अनेक लाभ हैं। कार्बनिक सौर सेल बनाने के लिये थिन-फिल्म सौर सेल से 10 गुना पतली परत का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिये ये सेल लगभग पारदर्शी होते हैं। जिसके कारण कार्बनिक सौर सेलों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इन्हें प्लास्टिक की पतली परत की तरह किसी कार पर चढ़ा सकते हैं, खिड़कियों के शीशों पर चढ़ा सकते हैं और जरूरत पड़ने पर इन्हें किसी भी तरह से मोड़ कर रखा जा सकता है। इसके अलावा कार्बनिक पॉलीमर से बनाए गए नैनों सौर सेलों को किसी भी पदार्थ पर छिड़का जा सकता है, उदाहरण के तौर पर कार की छत पर इनका छिड़काव कर चिपकाया जा सकता है, और उससे कार की बैटरी को चार्ज किया जा सकता है। इसके अलावा भी कार्बनिक सेलों के कई लाभ होते हैं, जैसे कि कार्बनिक सेल हल्के और बेहद लचीले होते हैं, ये अर्ध पारदर्शी यानि सेमी ट्रान्सपेरेंट होते हैं इसलिये इन्हें खिड़कियों के शीशों पर भी चढ़ाया जा सकता है, इन्हें दूसरी धातुओं व वस्तुओं में आसानी से जोड़ा जा सकता है, इनके निर्माण में काफी कम खर्चा होता है, तथा इनका ऊर्जा पेबैक समय कम होता है। यहाँ ऊर्जा पेबैक समय कम होने का मतलब होता है कि सौर सेल को तैयार करने में जितनी ऊर्जा खर्च होती है, उतनी ऊर्जा वह बहुत ही जल्दी पैदा कर देता है।

सौर सेल तकनीक के नवीनतम उपयोग

आमतौर से यही माना जाता है कि सौर सेलों का उपयोग छतों पर लगे सौर पैनलों में या औद्योगिक उपयोग के लिये प्रकाशीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के लिये ही होता है। परंतु अब ऐसा नहीं है। अब तो वैज्ञानिक सौर सेलों के कई अपारम्परिक एवं अनोखे उपयोगों की सम्भावना तलास रहे हैं, जैसे कि सड़कों और राज मार्गों को सौर ऊर्जा से प्रकाशित करने के नए-नए तरीकों की खोज की जा रही है, नीदरलेंड में तो पहले से ही सोलर रोडवेज यानि सड़क किनारे सौर ऊर्जा पैनल लगाने का कार्य किया जा चुका है। इसी तरह जलीय सतहों पर तैरते हुये सौर पैनल लगाने की ओर भी शोध कार्य चल रहा है। दुनिया के कई देशों जैसे फ्रांस, जापान तथा इंग्लैंड में इस तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं। इस तकनीक से सौर पैनल लगाने के लिये आवश्यक जमीन की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा, वैज्ञानिक इस दिशा में भी कार्य कर रहे हैं कि अन्तरिक्ष में घूम रहे उपग्रह सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करें और फिर माइक्रोवेव तरंगों के रूप में ऊर्जा में परिवर्तित करके उसे पृथ्वी की ओर एक बीम के रूप में भेजने का कार्य करें। इस तरह की तकनीक से सूर्य की अधिकतम ऊर्जा का उपयोग किया जा सकेगा। क्योंकि उपग्रह को इस तरह स्थापित किया जा सकता है कि वह हर समय सूर्य के प्रकाश को ग्रहण करता रहे। उपग्रहों और अन्तरिक्ष यानों के इस्तेमाल में आने वाली ऊर्जा के लिये तो पहले से ही इनमें सौर पैनलों का उपयोग किया जा रहा है।

आज के युग में मानव जाति ने ऐसी गति पकड़ी है कि आज हम इस युग को रफ्तार का युग कहेंगे तो गलत नहीं होगा। अब ऐसी तेज जिंदगी में रुकावट आयी तो पूरा ही थम जाएगा। इसलिये हमें ऐसे ऊर्जा स्रोतों की जरूरत है जोकि कभी खत्म न हो और हमारा हमेशा साथ देते रहें। सौर सेलों से सूर्य की ऊर्जा का इस्तेमाल करना और उन्नत किस्म के सौर सेल बनाना इसी दिशा में एक कदम है।

सम्पर्क

शुभांशु शर्मा, बी-टेक (छात्र)
इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट
ऑफ इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर (उड़ीसा)
ई-मेल :

सौर सेल ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में बदलता है ऊर्जा के ये दो रूप क्या हैं?

सौर बैटरी में लगे सेल प्रकाश को समाहित कर अर्धचालकों के इलेक्ट्रॉन को उस धातु के साथ क्रिया करने को प्रेरित करता है। एक बार यह क्रिया होने के बाद इलेक्ट्रॉन में उपस्थित ऊर्जा या तो बैटरी में भंडार हो जाती है या फिर सीधे प्रयोग में आती है।

13 सौर सेल ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में बदलता है ऊर्जा के ये दो रूप क्या हैं ?`?

Solution : सौर सेल सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।

सौर सेल द्वारा कौन सी ऊर्जा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित होती है?

अतः, हम निष्कर्ष निकालते हैं कि सौर सेल द्वारा सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।

सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में कैसे बदला जाता है?

सौर ऊर्जा को दो तरीकों से प्रयोग हेतु बदला जाता है। सौर तापीय विधि (सोलर थर्मल): इससे सूर्य की ऊर्जा से हवा या तरल को गर्म किया जाता है। इस विधि का प्रयोग घरेलू कार्यो में किया जाता है। प्रकाशविद्युत विधि (फोटोइलेक्ट्रिक): इस विधि में सौर ऊर्जा को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टेक सेलों का प्रयोग होता है।

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