रावण के 10 मूल कैसे हुए? - raavan ke 10 mool kaise hue?

महर्षि वाल्मीकि अपनी रामायण में रावण का जिक्र करते समय वर्णन करते हैं कि जब माता सीता की खोज में हनुमानजी लंका पहुंचे तो वह भी रावण की खूबियों से आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके। रामायण में कहा गया है कि लंका और रावण को देखकर हनुमानजी ने कहा था, रावण रूप-रंग, सौंदर्य, धैर्य, कांति तथा सर्वलक्षणों से युक्त वीर पुरुष है। यदि रावण में अधर्म अधिक बलवान न होता तो वह देवलोक का भी स्वामी बन सकता था।

पर्वत में दबा था हाथ और रच दिया शिव तांडव स्त्रोत

शिव तांडव स्त्रोत की रचना के बारे में कहा जाता है कि एक बार रावण अपनी शक्ति के मद में इतना मतवाला हो गया कि शिवजी के कैलाश पर्वत को ही उठा लिया था। उस समय शिवजी ने मात्र अपने पैर के अंगूठे से ही कैलाश पर्वत का भार बढ़ा दिया और रावण उसे अधिक समय तक उठा नहीं सका उसका हाथ पर्वत के नीचे फंस गया। बहुत प्रयत्न के बाद भी रावण अपना हाथ वहां से नहीं निकाल सका। तब रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उसी समय शिव तांडव स्रोत रच दिया। इससे शिवजी प्रसन्न हुए और उसे मुक्त कर दिया।

कोई नहीं हुआ रावण जैसा प्रखर बुद्धि

रावण के ज्ञान के बारे में कहा जाता है कि उसके बराबर प्रखर बुद्धि का प्राणी पृथ्वी पर कोई दूसरा नहीं हुआ है। इंसान के मस्तिष्क में बुद्धि और ज्ञान का भंडार होता है, जिसके बल पर वह जो चाहे हासिल कर सकता है। रावण के तो 10 सिर यानी दस मस्तिष्क थे।

शिवजी ने रावण से बनवाई थी पार्वती माता के लिए लंका

रावण वास्तुशास्त्र का बहुत बड़ा ज्ञाता था। कहते हैं, माता पार्वती के लिए महल के निर्माण का कार्य भगवान शंकर ने रावण को ही सौंपा था। तब रावण ने सोने की लंका का निर्माण किया। भगवान शिव ने गृह प्रवेश की पूजा के लिए भी रावण को ही पुरोहित बनाया। जब पूजन समाप्ति के बाद दक्षिणा देने का नंबर आया तो रावण ने वही सोने की लंका भगवान से दक्षिणा में मांग ली।

तप के बल पर ग्रहों को बना लिया था अपना दास

रावण महातपस्वी था। अपने तप के बल पर ही उसने सभी देवों और ग्रहों को अपने पक्ष में कर लिया था। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने रावण को अमरता और विद्वता का वरदान दिया था। बजरंगबली ने शनिदेव को रावण सीता खोज के दौरान रावण की कैद से मुक्त कराया था।

जब रामजी के निमंत्रण पर पूजा के लिए पहुंचा रावण

रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था। कुछ कथाओं के अनुसार, जब सेतु निर्माण के समय रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की गई तो उसके पूजन के लिए किसी विद्वान पुरोहित की खोज शुरू हुई। उस वक्त सबसे योग्य विद्वान रावण ही था, इसलिए उससे शिवलिंग पूजन का आग्रह किया गया और शिवभक्त रावण ने तब अपने शत्रुओं के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया था।

कवि और आयुर्वेद का जानकार था रावण

वेदों की ऋचाओं पर अनुसंधान कर रावण ने विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता हासिल की। रावण आयुर्वेद की जानकारी भी रखता था। वह एक महान कवि भी था। उसका यह कौशल शिव तांडव स्तोत्र में नजर आता है, जब पीड़ा की अवस्था में भी वह अपनी इस कला के बल पर शिवजी को प्रसन्न कर लेता है। रावण को रसायन शास्त्र अर्थात केमिस्ट्री का भी ज्ञाता कहा जाता है। माना जाता है कि रसायन शास्त्र के इस ज्ञान के बल पर उसने कई अचूक शक्तियां हासिल थीं और उसने इन शक्तियों के बल पर अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न कराए।

ऐसे हुआ था रावण हत्था का निर्माण

रावण संगीत प्रेमी था। वह वीणा बजाने में निपुण था। उसने एक वाद्य भी बनाया था, जिसे बेला कहा जाता था। इस यंत्र को वायलिन का ही मूल और प्रारंभिक रूप मान सकते हैं। इस वाद्य को ‘रावण हत्था’ भी कहते हैं।

लगन का पक्का था रावण

रावण जब किसी भी कार्य को हाथ में लेता, तो उसे पूरी निष्पक्षता और कर्तव्यभाव से पूर्ण करता था, यह उसकी खूबी थी। अपनी सच्ची लगनशीलता के कारण दिव्य अस्त्र-शस्त्र, मंत्र-तंत्र की सिद्धियां प्राप्त कर रावण विश्वविख्यात बना।

श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा था रावण से सीख लेने के लिए

रावण निर्भीक, निडर और साहसी था। हालांकि प्रभु राम से युद्ध को उसकी मूर्खता और अधर्म ही कहा जाता है। परंतु जब रावण मृत्यु शैया पर था तब स्वयं राम ने रावण की बुद्धि और बल की प्रशंसा करते हुए लक्ष्मण को रावण से सीख लेने के लिए कहा। तब रावण ने लक्ष्मण को तीन शिक्षाएं दी थीं।

10 Heads Of Ravana: जब कभी रावण का जिक्र आता है हमारे दिमाग में 10 सिर जरूर आ जाते हैं. लेकिन ऐसे बहुत कम लोग है जो रावण के 0 सिर के पीछे की हकीकत जानते होंगे. चलिए आज  रावण के 10 सिर के पीछे की कहानी जानते हैं. 

सच में थे रावण के 10 सिर ? 

रावण के 10 सिर को लेकर  2 तरह की धारणाएं बनी हैं.  कुछ लोगों का मानना है कि रावण के 10 सिर नहीं थे, ऐसा बस भ्रम पैदा होता था.  तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि रावण 6 दर्शन और 4 वेदों का ज्ञाता था इसलिए उसके 10 सिर थे. इस वजह से  रावण को दसकंठी भी कहा जाता है. 

10 सिर का मतलब

मान्यता है कि रावण के 10 सिर बुराई के प्रतीक थे. इसका जिक्र अभिषेक कुमार की सीरीज breathe into the shadows में भी किया गया है.  इन 10 सिर का अलग-अलग मायने भी हैं.  इसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार और धोखा शामिल है.  

रावण ने अपने सर की बली दी थी

पौराणिक कथाएं ये भी कहती हैं कि रावण भगवान शिव सबसे बड़ा भक्त था. इसलिए रावण ने शिव भगवान को खुश करने के लिए बहुत कठोर तप किए थे.  एक बार भगवान शिव को खुश करने के लिए रावण ने अपना सिर का बलिदान किया. 

रावण की 10 बातें कौन सी है?

रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। उसके पास एक ऐसा विमान था, जो अन्य किसी के पास नहीं था। इस सभी के कारण सभी उससे भयभीत रहते थे।

रावण को अपने 10 सिर कैसे मिले?

दशानन रावण के थे 10 सिर: रावण की कोई मामूली सत्ता नहीं थी. लेकिन यहां 10 सिर से तात्पर्य कुछ और ही है. दरअसल रावण के गले में 9 मणियों की एक माला थी. ये माला रावण के 10 सिर होने का भ्रम पैदा करती थी. रावण को मणियों की यह माला उनकी मां कैकसी ने दी थी.

रावण के 10 सिर क्यों होता है?

कुछ लोगों का मानना है कि रावण के 10 सिर नहीं थे, ऐसा बस भ्रम पैदा होता था. तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि रावण 6 दर्शन और 4 वेदों का ज्ञाता था इसलिए उसके 10 सिर थे. इस वजह से रावण को दसकंठी भी कहा जाता है. मान्यता है कि रावण के 10 सिर बुराई के प्रतीक थे.

रावण के कितने मस्तक थे?

रावण को 'दस मुख' या यानी 10 सिर वाला भी कहा जाता है और यही कारण है कि उसको 'दशानन' कहा जाता है. साहित्यिक किताबों और रामायण में उनको 10 सिर और 20 भुजाओं के रूप में दर्शाया गया है.

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