राजस्थान में सबसे ज्यादा कौन सी बोली बोली जाती है? - raajasthaan mein sabase jyaada kaun see bolee bolee jaatee hai?

राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ

राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी हैं, वर्तमान में संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओं का उल्लेख हैं लेकिन राजस्थानी इन 22 भाषाओं में शामिल नहीं हैं। राजस्थानी की लिपी मुड़िया / बनियावली / महाजनी हैं। भाषाओं को बोलने की दृष्टि से राजस्थानी का विश्वe में 16वां स्थान है तथा भारत में 7वां स्थान हैं।

हिन्दी भाषा दिवस 14 सितम्बर को तथा राजस्थानी भाषा दिवस 21 फरवरी को मनाया जाता हैं। 1961 के आंकलन के अनुसार राजस्थान में कुल 73 बोलियां बोली जाती हैं।

उद्योतन सूरी ने अपने ग्रन्थ ‘कुवलयमाला ’ में 18 देशी भाषाओं का उल्लेख किया था, जिसमें राजस्थानी को उद्योतन सूरी ने मरुभाषा नाम दिया था। अकबर के दरबारी अबुल फजल ने राजस्थानी को मारवाड़ी नाम दिया था। 1912 में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ‘द लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में यहाँ की भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का प्रयोग किया था। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी को पांच उपशाखाओं में बांटा हैं।

  • पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी)।
  • उतर-पूर्वी राजस्थानी (अहीरवाटी व मेवाती)।
  • मध्यपूर्वी राजस्थानी।
  • दक्षिणी-पूर्वी राजस्थानी।
  • दक्षिणी राजस्थानी।

राजस्थानी की उत्पति 12वीं सदी के अन्त से शौरसैनी प्राकृत के गुर्जर अपभ्रंष से हुई थी। 13वीं सदी में राजस्थानी गद्य का प्रारम्भिक काल आरम्भ हुआ तथा 16वीं सदी में राजस्थानी का स्वतन्त्र रूप से विकास प्रारम्भ हुआ और 18वीं सदी में अर्वाचीन राजस्थानी का प्रारम्भिक काल आरम्भ हुआ था। राजस्थानी पर सर्वाधिक प्रभाव ब्रज व गुजराती का पड़ा था।

डिंगल-मारवाड़ी का साहित्यिक रूप डिंगल कहलाता हैं, डिंगल चारणों द्वारा प्रयुक्त होती हैं तथा यह मारवाड़ी मिश्रित राजस्थानी हैं इसको गीत के रूप में लिखा जाता हैं। इसकी उत्पति गुर्जरी अपभ्रंष से हुई तथा इसका प्रयोग पश्चिमी राजस्थान में होता हैं। राजस्थान का सर्वाधिक साहित्य डिंगल भाषा में हैं।

पिंगल- यह ब्रज मिश्रित राजस्थानी हैं तथा इसका प्रयोग भाटों द्वारा किया जाता हैं। इसे छन्द व वेदों के रूप में लिखा जाता हैं, इसका प्रयोग पूर्वी राजस्थान में होता हैं तथा इसकी उत्पति शौरसेनी अपभ्रंष से हुई हैं।

राजस्थान की प्रमुख बोलियां

मारवाड़ी –

  • इसे मरु भाषा भी कहा जाता हैं तथा यह राजस्थान की स्टैण्डर्ड/मानक बोली हैं। मारवाड़ी राजस्थान की सबसे प्राचीन बोली हैं और यह राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्रफल में बोली जाने वाली बोली हैं। जैन साहित्य व मीरां साहित्य इसी भाषा में है, रजिया के सोरठे पूर्वी मारवाड़ी में है जबकि पृथ्वीराज राठौड़ का ग्रन्थ बेलिकिशन रूकमणी री ख्यात उतरी मारवाड़ी में हैं।

मारवाड़ी राजस्थान में निम्न स्थानों पर बोली जाती हैं-

  • जोधपुर
  • जैसलमेर
  • बीकानेर
  • शेखावाटी
  • नागौर
  • सिरोही
  • पाली
  • बाड़मेर
  • जालौर
  • गंगानगर

इन सभी जिलों में बोली जाती हैं।

मारवाड़ी की उपबोलियां-

गोड़वाड़ी यह बोली जालौर के आहोर से पाली के बाली के बीच बोली जाती हैं, बीसलदेव रासौ की रचना इसी बोली में हैं।

देवड़ावाटी/सिरोही – यह बोली सिरोही के आसपास बोली जाती हैं।

शेखावाटी –यह बोली सीकर, झुंझुंनू व चुरू में बोली जाती हैं।

मारवाड़ी की अन्य उपबोलियां थली/बीकानेरी, माहेश्वरी, ओसवाली, ढ़टकी आदि हैं।

ढ़ूंढाड़ी- इस बोली को झाड़शाही व जयपुरी के नाम से भी जाना जाता हैं, यह बोली राजस्थान में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली हैं। इस बोली का सबसे प्राचीनतम उल्लेख ‘8 देश गुजरी’ नामक पुस्तक में हैं। संत दादू का अधिकांश साहित्य इसी भाषा में हैं। यह बोली राजस्थान के जयपुर, दौसा, टोंक व अजमेर में बोली जाती हैं।

ढूंढ़ाड़ी की उपबोलियां-

  • चैरासी- यह बोली टोंक व जयपुर के पश्चिम में बोली जाती हैं।
  • तोरावाटी – यह बोली नीम का थाना (सीकर) व खेतड़ी (झुंझुंनू) के आस पास बोली जाती हैं।
  • विशेष-कान्तली नदी का बहाव क्षेत्र भी तोरावाटी के नाम से जाना जाता हैं।
  • काठेड़ा –यह बोली जयपुर के पश्चिम तथा टोंक के क्षेत्र में बोली जाती हैं।
  • नागरचाल – यह बोली मुख्यतः सवाईमाधोपुर के आसपास बोली जाती हैं।
  • राजावाटी –जयपुर के पूर्वी भागों यह बोली बोली जाती हैं।
  • खड़ी जयपुरी-

मेवाड़ी-

  • इस बोली का सर्वप्रथम उल्लेख जगत् अम्बिका मन्दिर में उत्कीर्ण शिलालेखों में मिलता हैं। महाराणा कुम्भा के अधिकांश ग्रन्थ इसी बोली में हैं।
  • यह बोली राजस्थान में उदयपुर, राजसमन्द, भीलवाड़ा, चितौड़गढ़, प्रतापगढ़ आदि जिलों में बोली जाती हैं।

मेवाड़ी की उपबोली-

  • बागड़ी / भीली-यह बोली डूंगरपुर, बांसवाड़ा व उदयपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में बोली जाती हैं। भीलों द्वारा बोली जाने के कारण इसे भीली भी कहा जाता हैं।
  • बागड़ी पर सर्वाधिक प्रभाव गुजराती का पड़ा हैं।

हाड़ौती-

  • हाड़ौती को ढूँढ़ाड़ी की उपबोली माना जाता हैं, हाड़ौती का सर्वप्रथम उल्लेख 1875 ई. के केलांग के हिन्दी व्याकरण में मिलता हैं। बूंदी के कवि सूर्यमल्ल मिश्रण की अधिकांश रचनाएं इसी में ही हैं इसका प्रसिद्ध ग्रन्थ वंश भास्कर भी इसी में हैं।
  • हाड़ौती बोलने की दृष्टि कलिष्ट मानी जाती हैं। यह बोली राजस्थान में कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ में बोली जाती हैं।

मेवाती-

  • मेवाती राजस्थान में अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली में बोली जाती हैं। मेवाती पश्चिमी हिन्दी व राजस्थानी के मध्य सेतू का कार्य करती हैं।
  • मेवाती में चरणदासजी, लालदासजी, सहजोबाई व दयाबाई की रचनाएं हैं।

मेवाती की उपबोली-

  • अहीरवाटी/राठी/हीरवाल/हीरवाटी- यह बोली यादवों द्वारा बोली जाती हैं तथा यह बोली कोटपूतली (जयपुर) व अलवर में बोली जाती हैं।
  • जोधराज का ग्रन्थ हम्मीर रासौ इसी बोली में हैं। अहीरवाटी हरियाणवी की बांगरू व मेवाती के मध्य सेतू का कार्य करती हैं।

मालवी-

  • यह बोली राजस्थान की सबसे मधुर व कर्णप्रिय बोली हैं, यह राजस्थान की ऐसी बोली है जिस पर मराठी का प्रभाव पड़ा हैं।
  • मालवी मूलतः मध्यप्रदेश की बोली हैं, लेकिन राजस्थान में इस बोली को मारवाड़ी व ढ़ूढ़ाड़ी का मिश्रण माना जाता हैं।
  • राजस्थान में यह बोली झालावाड़, कोटा व प्रतापगढ में बोली जाती हैं। इसकी उपबोलियां नीमाड़ी व रागड़ी हैं।

नीमाड़ी-यह बोली दक्षिणी- पूर्वी राजस्थान में बोली जाती हैं।

रागड़ी – यह बोली मेवाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों में राजपूतों द्वारा बोली जाती हैं। इस बोली को कर्कष आवाज में बोला जाता हैं। रागड़ी मालवी व मारवाड़ी का मिश्रित रूप हैं।

खेराड़ी- यह बोली ढ़ूढ़ाड़ी, मेवाड़ी व हाड़ौती का मिश्रित रूप हैं। यह बोली भीलवाड़ा के शाहपुरा व बूंदी के मालखेड़ में बोली जाती हैं।

राजस्थानी पर पड़ौसी राज्यों की भाषाओं का भी प्रभाव पड़ा हैं-

पंजाबी- यह बोली राजस्थान के गंगानगर में सर्वाधिक तथा उसके बाद में हनुमानगढ़ में बोली जाती हैं।

हरियावणी-हरियाणवी राजस्थान में सर्वाधिक झुंझुनू तथा उसके बाद अलवर, चुरू, सीकर, हनुमानगढ़, जयपुर, भरतपुर आदि जिलों में बोली जाती हैं।

ब्रज – ब्रज राजस्थान में सर्वाधिक भरतपुर तथा उसके बाद धौलपुर, करौली व अलवर में भी बोली जाती हैं।

गुजराती राजस्थान में सर्वाधिक बाँसवाड़ा तथा उसके बाद सिरोही में बोली जाती हैं।

Please follow and like us:

Post Views: 33,226

राजस्थान में सबसे ज्यादा कौन सी भाषा बोली जाती है?

सही उत्तर है मारवाड़ी। यह राजस्थानी भाषा का मानक रूप है, जिसे राजस्थान का मरुभाषा कहा जाता है। अधिकांश साहित्य इसी भाषा में लिखा गया है। भाषा पश्चिमी राजस्थान में सबसे अधिक बोली जाती है।

राजस्थान की मातृभाषा क्या है?

अगर मातृभाषा की दृष्टि से देखें तो प्रदेश में राजस्थानी मातृभाषा वाले सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद हिंदी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, वागड़ी, हाड़ौती, ढुंढाड़ी, बागड़ी राजस्थानी, पंजाबी, उर्दू, ब्रज, मालवी, सिंधी, मेवाती और बागड़ी को रखा गया है।

राजस्थान में कितनी बोलियां बोली जाती है?

17 वीं सदी के अंत तक आते आते राजस्थानी पूर्णतः एक स्वतंत्र भाषा का रूप ले चूकी थी। वर्तमान में राजस्थानी भाषा बोलने वालों की संख्या 6 करोड़ से भी अधिक है। 72 इसकी बोलियां मानी जाती है।

राजस्थान की सबसे कठिन बोली कौन सी है?

हाड़ौती बोली - यह बोली मुखतय: हाड़ा राजपूतों द्वारा शासित कोटा, बारां, बूंदी तथा झालावाड़ के क्षेत्रों में बोली जाता है। हाड़ौती का भाषा के अर्थ में सर्वप्रथम प्रयोग केलॉग की हिंदी ग्रामर सन 1875 ईस्वी में किया गया। वर्तनी की दृष्टि से यह बोली राजस्थान की सभी बोलियों में सबसे कठिन समझी जाता है।

Toplist

नवीनतम लेख

टैग