राजस्थान में छत पर जल संचयन क्यों महत्वपूर्ण है?

वर्तमान में  बड़े – बड़े बांधो, नहरी तंत्र, सरकारी उदासीनता और समाज की उपेक्षा के कारण परंपरागत जल संरक्षण प्रणालियों की स्थिति विकट हो गयी है। आज भी इनकी उतनी ही आवश्यकता है क्युकि इनकी निर्माण और रख- रखाव लागत कम होती है और ये पर्यावरण के अनुकूल भी है। इसलिए राजीव गांधी जल संचय योजना में इनका जीर्णोद्धार का कार्य भी शामिल किया गया है।

Solution : राजस्थान के अर्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षा का जल निम्नलिखित प्रकार से संग्रहण किया जाता है - (i) राजस्थान जैसे सूखे क्षेत्रों में रहने वाले लोग पीने का पानी एकत्र करने के लिए छत वर्षा जल संग्रहण तकनीक का प्रयोग करते हैं। (ii) खेतों में वर्षा जल एकत्रित करने के लिए गड्ढ़े बनाए जाते हैं ताकि मृदा को संचित किया जा सके। जैसे जैसलमेर में .खदीर. तथा राजस्थान के अन्य क्षेत्रों में .जौहड़.। (iii) राजस्थान के अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों विशेषकर बीकानेर , फलोदी और बाड़मेर में लगभग हर घर में पीने का पानी संग्रहित करने के लिए भूमिगत टैंक अथवा .टाँका. हुआ करते हैं। (iv) इन क्षेत्रों में छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का प्रयोग पानी को एकत्रित करने के लिए होता है तथा वे टैंक सुविकसित छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का अभिन्न हिस्सा होते हैं । (v) ये टैंक घरों की ढलवां छतों से पाइप द्वारा जुड़े होते हैं। (vi) छत से वर्षा का पानी इन नालों से होकर भूमिगत टांका तक पहुँचता है जहाँ इसे एकत्रित किया जाता है। वर्षा का पहला जल छत और नालों को साफ़ करने में प्रयोग होता है और उसे संगृहीत नहीं किआ जाता है। इसके बाढ़ होने वाली वर्षा का जल संग्रह किया जाता है।

Solution : राजस्थान में जल संग्रहण की निम्नलिखित पारम्परिक पद्धतियों का प्रचलन है-
1. खडीन-यह एक मिट्टी का बना हुआ अस्थायी तालाब होता है, इसे किसी ढाल वाली भूमि के नीचे बनाते हैं । इसके दोनों ओर मिट्टी की दीवार (धोरा) तथा तीसरी ओर पत्थर से बनी मजबूत दीवार होती है । जल की अधिकता पर खड़ीन भर जाता है तथा जल आगे वाली खडीन में चला जाता है । खडीन में जल के सूख जाने पर, इसमें कृषि की जाती है।
2. तालाब-राजस्थान में प्राय: वर्षा के जल का संग्रहण तालाब में किया जाता है। यहाँ स्त्रियों व पुरुषों के नहाने के पृथक् से घाट होते हैं। तालाब की तलहटी में कुआं बना होता है, जिसे बेरी कहते हैं। जल संचयन की यह प्राचीन विधि आज भी अपना महत्व रखती है। इससे भूमि जल का स्तर बढ़ता है।
3. झील-राजस्थान में प्राकृतिक व कृत्रिम दोनों प्रकार की झीलें पाई जाती हैं। इसमें वर्षा का जल संग्रहित किया जाता है । झीलों में से पानी रिसता रहता है। जिससे आसपास के कुओं, बावड़ी, कुण्ड आदि का जलस्तर बढ़ जाता है ।
4. बावड़ी-राजस्थान में बावड़ियों का अपना स्थान है । यह जल संग्रहण करने का प्राचीन तरीका है। यह गहरी होती है व इसमें उतरने के लिए सीढियाँ एवं तिबारे होते हैं तथा यह कलाकृतियों से सम्पन्न होती है ।
5. टोबा-थार के मरुस्थल में टोबा वर्षा के जल संग्रहण का मुख्य पारम्परिक स्तरोत है। यह नाडी की जैसा होता है परन्तु नाडी से गहरा होता है।


जल संग्रहण प्रणाली सामाजिक,आर्थिक और पर्यावरणनीय रूप में एक महत्वपूर्ण उपाय है। प्राचीन समय में भी लोग वर्षा प्रदेश, मृदा की बनावट तथा वर्षा जल संग्रहण की प्रक्रिया से पूरी तरह परीचित थे। पर्वतीय क्षेत्रों में पश्चिमी हिमालय प्रदेश में लोग कृषि के लिए 'गुल' अथवा 'कुल्स' (नालियों) का निर्माण करते थे। राजस्थान में छत पर वर्षा जल संग्रहण करते थे। शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में खेतों को वर्षा वाले भंडारण क्षेत्र में बदल दिया जाता था। इससे उनमें पानी भरा रहता था जो मृदा को आर्द्र बनाए रखता था। जैसलमेर में खादिन और अन्य भागों में 'जोहड़' इसके उदाहरण है।
राजस्थान के अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों विशेषकर बीकानेर, फलोदी और बाड़मेर में, लगभग हर घर में पीने का पानी संग्रहित करने के लिए वहाँ भूमिगत टैंक अथवा 'टाँका, हुआ करते थे। इसका आकार एक बड़े कमरे जितना हो सकता है। फलौदी में एक घर में 6.1 मीटर गहरा, 4.27 मीटर लंबा और चौड़ा टाँका था। टाँका यहाँ सुविकसित छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का अभिन्न हिस्सा होता है जिसे मुख्य घर के आंगन में बनाया जाता था। वे घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े हुए थे। छत से वर्षा का पानी इन नालो से होकर भूमिगत टाँका तक पहुंचता था जहां इसे एकत्रित किया जाता था। टाँका में वर्षा जल अगली वर्षा ऋतु तक संग्रहित किया जा सकता है। यह इसे जल की कमी वाली ग्रीष्म ऋतु तक पीने का जल उपलब्ध करवाने वाला जल स्रोत बनाता है। 


वर्षा जल संचयन वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इसके लिये अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाये। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भण्डारण का आकलन २१४ बिलियन घन मी. (बीसीएम) के रूप में किया गया है जिसमें से १६० बीसीएम की पुन: प्राप्ति हो सकती है।[1] इस समस्या का एक समाधान जल संचयन है। पशुओं के पीने के पानी की उपलब्धता, फसलों की सिंचाई के विकल्प के रूप में जल संचयन प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है। जल संचयन प्रणाली उन स्थानों के लिए उचित है, जहां प्रतिवर्ष न्यूनतम २०० मिमी वर्षा होती हो। इस प्रणाली का खर्च ४०० वर्ग इकाई में नया घर बनाते समय लगभग बारह से पंद्रह सौ रुपए मात्र तक आता है।[2]

उपयोग

जल संचयन में घर की छतों, स्थानीय कार्यालयों की छतों या फिर विशेष रूप से बनाए गए क्षेत्र से वर्षा का एकत्रित किया जाता है। इसमें दो तरह के गड्ढे बनाए जाते हैं। एक गड्ढा जिसमें दैनिक प्रयोग के लिए जल संचय किया जाता है और दूसरे का सिंचाई के काम में प्रयोग किया जाता है। दैनिक प्रयोग के लिए पक्के गड्ढे को सीमेंट व ईंट से निर्माण करते हैं और इसकी गहराई सात से दस फीट व लंबाई और चौड़ाई लगभग चार फीट होती है। इन गड्ढों को नालियों व नलियों (पाइप) द्वारा छत की नालियों और टोटियों से जोड़ दिया जाता है, जिससे वर्षा का जल साधे इन गड्ढों में पहुंच सके और दूसरे गड्ढे को ऐसे ही (कच्चा) रखा जाता है। इसके जल से खेतों की सिंचाई की जाती है। घरों की छत से जमा किए गए पानी को तुरंत ही प्रयोग में लाया जा सकता है। विश्व में कुछ ऐसे इलाके हैं जैसे न्यूजीलैंड, जहां लोग जल संचयन प्रणाली पर ही निर्भर रहते हैं। वहां पर लोग वर्षा होने पर अपने घरों के छत से पानी एकत्रित करते हैं।

संचयन के तरीके

पहाड़ियों में जल संचयन की प्रणाली का आरेख

शहरी क्षेत्रों में वर्षा के जल को संचित करने के लिए बहुत सी संचनाओं का प्रयोग किया जा सकता है।[3] ग्रामीण क्षेत्र में वर्षा जल का संचयन वाटर शेड को एक इकाई के रूप लेकर करते हैं। आमतौर पर सतही फैलाव तकनीक अपनाई जाती है क्योंकि ऐसी प्रणाली के लिए जगह प्रचुरता में उपलब्ध होती है तथा पुनर्भरित जल की मात्रा भी अधिक होती है। ढलान, नदियों व नालों के माध्यम से व्यर्थ जा रहे जल को बचाने के लिए इन तकनीकों को अपनाया जा सकता है। गली प्लग, परिरेखा बांध (कंटूर बंड), गेबियन संरचना, परिस्त्रवण टैंक (परकोलेशन टैंक), चैक बांध/सीमेन्ट प्लग/नाला बंड, पुनर्भरण शाफ्‌ट, कूप डग वैल पुनर्भरण, भूमि जल बांध/उपसतही डाईक, आदि।[3] ग्रामीण क्षेत्रों में छत से प्राप्त वर्षाजल से उत्पन्न अप्रवाह संचित करने के लिए भी बहुत सी संरचनाओं का प्रयोग किया जा सकता है। शहरी क्षेत्रों में इमारतों की छत, पक्के व कच्चे क्ष्रेत्रों से प्राप्त वर्षा जल व्यर्थ चला जाता है। यह जल जलभृतों में पुनर्भरित किया जा सकता है व ज़रूरत के समय लाभकारी ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है। वर्षा जल संचयन की प्रणाली को इस तरीके से अभिकल्पित किया जाना चाहिए कि यह संचयन/इकट्‌ठा करने व पुनर्भरण प्रणाली के लिए ज्यादा जगह न घेरे। शहरी क्षेत्रों में छत से प्राप्त वर्षा जल का भण्डारण करने की कुछ तकनीके इस प्रकार से हैं[3]: पुनर्भरण पिट (गड्ढा), पुनर्भरण खाई, नलकूप और पुनर्भरण कूप, आदि।

भारत में संचयन

भारत में मित जलीय क्षेत्रों, जैसे राजस्थान के थार रेगिस्तान क्षेत्र में लोग जल संचयन से जल एकत्रित किया करते हैं। यहां छत-उपरि जल संचयन तकनीक अपनायी गयी है। छतों पर वर्षा जल संचयन करना सरल एवं सस्ती तकनीक है जो मरूस्थलों में हजारों सालों से चलायी जा रही है। पिछले दो ढाई दशकों से बेयरफूट कॉलेज पंद्रह-सोलह राज्यों के गांवों और अंचलों के पाठशालाओं में, विद्यालय की छतों पर इकठ्ठा हुए वर्षा जल को, भूमिगत टैंकों में संचित करके ३ करोड़ से अधिक लोगों को पेयजल उपलब्ध कराता आया है। यह कॉलेज इस तकनीक को मात्र वैकल्पिक ही नहीं बल्कि स्थायी समाधान के रूप में विस्तार कर रहा है।[4] इस संरचना से दो उद्देश्यों पूर्ण होते हैं:-

  • पेयजल स्रोत, विशेषत: शुष्क मौसम के चार से पांच माह
  • स्वच्छता सुविधाओं में सुधार के लिए साल भर जल का प्रावधान

इस प्रकार स्थानीय तकनीकों से, विशेषत: आंचलिक क्षेत्रों में, समाज के विभिन्न वर्गों के अनेक प्रकार से प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है।

राजस्थान में छत पर जल संचयन क्यों महत्वपूर्ण है व्याख्या करें?

राजस्थान एक गर्म और शुष्क स्थान है। जल संसाधनों की उपलब्धता स्थान और समय के साथ, मुख्यतः मौसमी और वार्षिक वर्षा में भिन्नता के कारण बदलती रहती है। राजस्थान में मौसमी और बहुत कम वर्षा के कारण वर्षा जल संचयन छतों पर और अन्य वर्षा जल संचयन संरचनाओं की सहायता से किया जाता है।

राजस्थान में वर्षा जल संचयन क्यों आवश्यक है?

पशुओं के पीने के पानी की उपलब्धता, फसलों की सिंचाई के विकल्प के रूप में जल संचयन प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है। जल संचयन प्रणाली उन स्थानों के लिए उचित है, जहां प्रतिवर्ष न्यूनतम २०० मिमी वर्षा होती हो। इस प्रणाली का खर्च ४०० वर्ग इकाई में नया घर बनाते समय लगभग बारह से पंद्रह सौ रुपए मात्र तक आता है।

राजस्थान में छत वर्षा जल संग्रहण को क्या कहते हैं?

Solution : टाँका यहाँ सुविकसित छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का अभिन्न हिस्सा होता है जिसे मुख्य घर के आंगन में बनाया जाता था। वे घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े हुए थे। छत से वर्षा का पानी इन नालो से होकर भूमिगत टाँका तक पहुंचता था जहां इसे एकत्रित किया जाता था।

जल संचयन क्यों जरूरी है?

Solution : जनसंख्या वृद्धि तथा औद्योगिकीकरण के कारण धरातलीय तथा भूमिगत जल के भंडारों में जल की कमी हो गयी है। इस कारण जल संकट की समस्या उत्पन्न हो गयी है। बड़ी आबादी को पेय जल उपलब्ध कराने के लिए जल संचयन आवश्यक है।