अनादि काल से सूर्य दिव्य शक्तियों का अक्षय स्रोत रहा है। विश्व की अनेक संस्कृतियों ने सूर्य को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानकर पूजा की है। अनेक संस्कृतियों के जीवनयापन की पूरी जीवन शैली सूर्य पर आधारित है। सूर्य के उदय के साथ दिन की शुरुआत और अस्त के साथ दिन की समाप्ति वास्तव में पूरी दुनिया में एक जैसी है। सूर्य हर क्षण विद्यमान हो
अनादि काल से सूर्य दिव्य शक्तियों का अक्षय स्रोत रहा है। विश्व की अनेक संस्कृतियों ने सूर्य को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानकर पूजा की है। अनेक संस्कृतियों के जीवनयापन की पूरी जीवन शैली सूर्य पर आधारित है। सूर्य के उदय के साथ दिन की शुरुआत और अस्त के साथ दिन की समाप्ति वास्तव में पूरी दुनिया में एक जैसी है। सूर्य हर क्षण विद्यमान होता है इसलिए अक्षय ऊर्जा का स्रोत है। पेड़-पौधों को सूर्य से ही ऊर्जा प्राप्त होती है। पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्नोत सूर्य है। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा सभी जीवों व वनस्पतियों में ऊर्जा का संचार करती है। वैज्ञानिकों की मानें तो एक घंटे में प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा से एक साल तक पूरे विश्व की बिजली की जरूरत पूरी की जा सकती है। सूर्य पूरी धरती पर ऊर्जा की इस कमी को अनंत काल से पूरा करता आ रहा है। अगर हम जीवित रहते हुए विकास करना चाहते हैं तो सूर्य एक अद्भुत विकल्प हो सकता है।
वैश्रि्वक ताप की वजह से नदियां सूख रही हैं। वर्ष भर हिमालयी या पर्वतीय नदियों में ही पानी रहता है। इन नदियों से प्राप्त जल-विद्युत देश की जरूरत के लिहाज से अपर्याप्त है। ताप विद्युत से काफी हद तक आवश्यकता की पूर्ति होती है, किंतु जल्द ही कोयला खत्म हो जाएगा तो ताप विद्युत की संभावनाएं भी समाप्त हो जाएंगी। परमाणु बिजली के लिए हमारे पास शोधन की तकनीक नहीं है, जिसके लिए हम अमेरिका पर निर्भर हैं, जबकि हमें पता है कि सतत विकास के लिए ऊर्जा सबसे बड़ी आवश्यकता है इसलिए अगर हम जीवित और स्वस्थ रहते हुए विकास करना चाहते हैं तो सूरज ही ऊर्जा का सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है। हमें अपने जीवन के विकास का ताना-बाना इसी के इर्द-गिर्द बुनना होगा। प्राचीन काल से ही भारत में सूर्य से प्राप्त ऊष्मा का उपयोग किया जाता रहा है। बीज बोने से लेकर उसके भंडारण तक की पूरी प्रक्रिया में सौर ऊर्जा का उपयोग होता है।
भारत में जो सौर ऊर्जा आती है वह पूरे विश्व की संपूर्ण विद्युत खपत से कई गुना ज्यादा है। भारत में 270 दिन सूर्य की रोशनी पूरे दिन मिलती है। अब वक्त आ गया है कि हम सौर ऊर्जा का प्रयोग अधिक से अधिक करें और उसी पर निर्भर बनने के नए रास्ते खोजें, क्योंकि सौर ऊर्जा अक्षय है, जो हमारे पर्यावरण को प्रदूषण से बचाती है। गांव की महिलाओें में होने वाली बीमारियों में दमा और कैंसर सबसे ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार इन बीमारियों की वजह महिलाओं द्वारा चूल्हों में लकड़ी जलाकर खाना बनाना है। इसका विकल्प सोलर कुकर है। सौर ऊर्जा खाना बनाने की सस्ती व प्राकृतिक विधि है। अब तक भारत में 4,60,000 से ज्यादा सोलर कुकर का इस्तेमाल हो रहा है।
केंद्र सरकार ने सोलर सिटी परियोजना द्वारा देश में गैर-परंपरागत ऊर्जा स्नोतों के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सोलर परियोजना की शुरुआत की है। इसके पहले चरण में नागपुर एवं चंडीगढ़ शहर को बिजली की आंशिक आपूर्ति सौर ऊर्जा के माध्यम से की जानी है। इस परियोजना का उद्देश्य शहर की दस फीसद बिजली की मांग की पूर्ति नवीकृत ऊर्जा स्नोतों से करनी है। 11वीं पंचवर्षीय योजना में 60 शहरों को सोलर सिटी परियोजना के अंतर्गत लाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत में नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्ति की दिशा में सोलर एनर्जी को प्रमुखता से अपनाया गया है। इसके तहत सौर तापीय ऊर्जा कार्यक्त्रम तथा सौर फोटोवोल्टिक कार्यक्रम को आरंभ किया गया है। सौरताप यंत्रों का प्रयोग पानी गरम करने, खाना पकाने, सुखाने, पानी को लवणमुक्त करने तथा रेफ्रीजरेशन प्रणालियों के परिचालन आदि के लिए किया जाता है। निम्न ग्रेड के सौरतापीय यंत्रों का देश में विकास किया गया है और इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। 50 लीटर प्रतिदिन से लेकर 2 लाख 10 हजार लीटर प्रतिदिन सौरजल ऊष्मा क्षमता वाली सोलर हीटर प्रणालियां देश में स्थापित की जा चुकी हैं। इनका घरेलू, वाणिच्यिक एवं व्यावसासिक उपयोग किया जा रहा है।
खाना बनाने के लिए विश्व की सबसे बड़ी सौरवाष्प प्रणाली आंध्र प्रदेश में तिरुमला में स्थापित की गई है। सौर फोटोवोल्टिक प्रौद्योगिकी दूरस्थ क्षेत्रों में प्रकाश, जल-पंपिंग, दूरसंचार और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के विद्युतीकरण तथा सामुदायिक प्रयोजनों के लिए एक उपयोगी ऊर्जा स्नोत के रूप में अपनाई गई है। एसपीवी प्रणाली के निर्माण में 50 उद्योग शामिल हैं और इनमें से 17 उद्योग पीवी माड्यूल्स के उत्पादन में सम्मिलित हैं। अब तक देश में 13 लाख से अधिक एसपीवी प्रणालियां अनेक प्रकार के अनुप्रयोगों में बिजली दे रही हैं। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की यह प्रगति अग्रिम पंक्ति में है, जो ऊर्जा के क्षेत्र में उसे आत्मनिर्भर बनाएगी। वास्तव में सौर ऊर्जा का उपयोग पर्यावरण संतुलन एवं संरक्षण के अनुकूल है। यह हमारी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए पर्याप्त है। औद्योगिक एवं वैज्ञानिक प्रगति के पहले सूर्य ही एकमात्र ऊर्जा का स्नोत रहा है इसलिए सूर्य को हमारे पूर्वजों ने देवता का रूप प्रदान कर मंदिरों में स्थापित किया था। कोणार्क का सूर्य मंदिर इसका नायाब उदाहरण है।
धरती की कोख से कोयला निकाल कर हम बिजली बना सकते हैं, किंतु कितने दिन तक? नदियों से जलविद्युत उत्पन्न कर सकते हैं, किंतु कितने दिनों तक? धरती सीमित है, पानी सीमित है, एक न एक दिन कोयला एवं पानी को खत्म होना ही है, तब ऊर्जा प्राप्ति का एकमात्र स्नोत सूर्य ही होगा। इसलिए हम आज से ही सूर्य की उपासना क्यों न शुरू कर दें, ताकि प्रकृति का संतुलन एवं पर्यावरण का संरक्षण हो सके। यही प्रकृति प्रदत्त विधान है। इसका पालन यदि हमने स्वेच्छा से नहीं किया तो प्रकृति हमें स्वीकार कराने के लिए एक बार फिर हमें किसी न किसी कहर का शिकार बना सकती है।
[स्वामी चिदानंद सरस्वती: लेखक परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष एवं गंगा एक्शन परिवार के प्रणेता हैं]