वायुमंडल एवं पृथ्वी पर तापीय स्थिति, तापीय संतुलन एवं अनुकूल अधिवासीय वातावरण के लिए ऊष्मा का संतुलित रूप से प्राप्त होना आवश्यक है। इसी संदर्भ में विभिन्न जलवायु वेत्ताओं द्वारा ऊष्मा बजट के मध्य अवशोषित एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा अत्यंत जटिल प्रक्रियाओं से निर्धारित होती है, अतः उष्मा बजट का निर्धारण पूर्णतया अनुमान पर आधारित है। इसी कारण विभिन्न जलवायु वेत्ताओ के ऊष्मा बजट में भिन्नता पाई जाती है।
हालांकि समान रूप से स्वीकार किया गया है कि पृथ्वी पर सूर्य से प्राप्त उर्जा व उत्सर्जित ऊर्जा में पूर्णता संतुलन पाया जाता है। पृथ्वी सूर्य ऊर्जा का 51 प्रतिशत प्राप्त करता है, और विभिन्न प्रक्रियाओं से 51 प्रतिशत सौर ऊर्जा का उत्सर्जित करता है। पृथ्वी का वायुमंडल लगभग 48 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त करता है एवं 48 प्रतिशत ही उत्सर्जित भी करता है। इसी प्रकार पृथ्वी एवं वायुमंडल को ऊष्मा की प्राप्ति होती रहती है और ताप संतुलन बना रहता है।
सूर्य से उत्सर्जित ऊर्जा का 35 प्रतिशत भाग शून्य (वायुमंडल) में वापस लौटा दिया जाता है। शेष 65 प्रतिशत में लगभग 14 प्रतिशत वायुमंडल का जलवाष्प, बादल, धूलकण तथा कुछ स्थायी गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस तरह केवल 51 प्रतिशत ऊर्जा ही पृथ्वी को प्राप्त हो पाती है। इस 51 प्रतिशत ऊर्जा का 34 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होता है तथा शेष 17 प्रतिशत विसरित दिवा प्रकाश से प्राप्त होता है। सूर्य से प्राप्त 51 प्रतिशत ऊष्मा ही पृथ्वी को सही रूप में प्राप्त होती है। पृथ्वी से ऊष्मा की यही मात्रा उत्सर्जित होना आवश्यक होता है। यदि पृथ्वी को प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा से अधिक उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में कमी आने लगेगी। ठीक इसी तरह यदि प्राप्त ऊर्जा की संतुलन में तुलना में कम उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में वृद्धि हो जाएगी। अतः पृथ्वी को प्राप्त एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है और पृथ्वी का ताप संतुलन बना रहता है। यह स्थिति ऊष्मा बजट कहलाती है।
यद्यपि पृथ्वी, सूर्य से लगातार ऊर्जा प्राप्त करती रहती है परंतु पृथ्वी पर तापमान लगातार लगभग स्थिर बना रहता है इसका कारण पृथ्वी द्वारा समान मात्रा में ऊर्जा का प्राप्त करना तथा उसका विकिरण करना है! इस प्रकार पृथ्वी का एक समान मात्रा में सूर्यातप प्राप्त करना और उसका वापस जाना, उष्मा संतुलन या उष्मा बजट (heat budget) कहलाता है! इसे ही पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहते हैं!
पृथ्वी उष्मा का न तो संचय करती है न हीं हास करती है परंतु यह अपने तापमान को संतुलित रखने का प्रयास करती है! यह तभी संभव होता है, जब सूर्याताप के रूप में प्राप्त ऊष्मा एवं पार्थिव विकिरण द्वारा परावर्तित उष्मा बराबर हो! सूर्य से जितनी ऊर्जा विकीर्ण होती है, उसका कुछ भाग ही पृथ्वी को प्राप्त हो पाता है, क्योंकि वायुमंडल द्वारा प्रकीर्णन, परावर्तन और अवशोषण के कारण कुछ भाग अंतरिक्ष में लौटा दिया जाता है!
यदि माना जाए कि पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी सतह पर इकाई ऊर्जा प्राप्त होती है, तो उसमें से 14 इकाई सीधे वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है तथा 35 इकाई परिवर्तित हो जाती है! शेष 51 इकाई धरातल द्वारा अवशोषित की जाती है जिससे धरातल गर्म होता है! सौर ऊर्जा के अवशोषण से गर्म होने के पश्चात धरातल दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगता है! इसे पार्थिव विकिरण कहते हैं!
इस प्रकार 51 इकाई ऊर्जा पृथ्वी द्वारा वायुमंडल में पार्थिव विकिरण के रूप में छोड़ी जाती है, जिसमें से 34 इकाई वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाई ऑक्साइड और जलवाष्प द्वारा अवशोषित कर ली जाती है और शेष 17 इकाई ऊर्जा पुनः अंतरिक्ष में वापस कर दी जाती है!
इस प्रकार वायुमंडल कुल 48 इकाई ऊर्जा प्राप्त करता है तथा इस सारी ऊर्जा को अंतरिक्ष में विकिरित कर देता है! इस प्रकार कुल 100 यूनिट ऊर्जा की हानि होती है जिसमें पार्थिव विकिरण और वायुमंडल द्वारा किए जाने वाले परावर्तन का भी योगदान है!
तापमान प्रतिलोमन क्या है (Inversion of Temperature in hindi) –
सामान्यता ऊंचाई पर जाने पर तापमान में गिरावट आती है, किंतु जब कभी तापमान का यह नियम उलट हो जाता है, तो इसे तापमान प्रतिलोमन (Inversion of Temperature) कहा जाता है! यह दशा धरातल के निकट भी हो सकती है, परंतु अधिक ऊंचाई पर होने वाला तापीय प्रतिलोमन अधिक स्थाई होता है, क्योंकि पार्थिव विकिरण द्वारा ऊपरी गर्म परत को ठंडा करने में अधिक समय लगता है! धरातल के निकट होने वाला प्रतिलोमन अल्पकालिक होता है!
रुद्धोष्म ताप परिवर्तन क्या है (Adiabatic Temperature Change in hindi) –
जब कोई निश्चित तापमान वाली वायु समुद्र तल से ऊपर उठती है तो कम वायुमंडलीय दाब के कारण उसका आयतन बढ़ जाता है और वह फैलने लगती है! जब यही वायु नीचे उतरती है तो अधिक वायुमंडलीय भार के कारण सिकुड़ती है तथा उसका आयतन घट जाता है!
इस प्रकार वायु के ऊर्ध्वाधर रूप में ऊपर जाने तथा नीचे आने के कारण बिना उष्मा लिए तापमान में परिवर्तन आ जाता है! अर्थात जब कोई वस्तु न तो बाहरी माध्यम को उष्मा दे और न ही उससे उष्मा ले, परंतु उसका ताप बदल जाए तो इस परिवर्तन को रूद्भोष्म परिवर्तन (Adiabatic temperature change) कहते हैं! रूद्भोष्म परिवर्तन का एकमात्र कारण में परिवर्तन का एकमात्र कारण वायुदाब में परिवर्तन है!